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गुरुवार, 26 जनवरी 2012

बूढा होता प्रजातंत्र

बूढा होता प्रजातंत्र
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  पेंसठ साल का प्रजातंत्र
और बासठ  का  गणतंत्र
दोनों की ही उमर सठिया गयी है
और सहारे के लिए,हाथों में,लाठियां आ गयी है
मगर कुछ नेताओं ने,
सत्ता को बना लिया अपनी बपौती है
इसलिए लाठी,जो सहारे के लिए होती है
उसका उपयोग,हथियारों की तरह करवाने लगे है
और विरोधियों पर लाठियां भंजवाने लगे है
विद्रोह की आहट से भी इतना डरते है
की रात के दो बजे,सोती हुई महिलाओं पर,
लाठियां चलवाने लगते है
भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे है
कुर्सी पर ही चिपक कर ,रहने के मंसूबें है
पर बूढ़े है,इसलिए आँखे कमजोर हो गयी लगती है
इसलिए विद्रोह की आग भी नहीं दिखती है
सत्ता के मद में पगलाये हुए है
शतुरमुर्ग की तरह,रेत में मुंह छुपाये हुए है
जनता की लाठी जब चलेगी
तो वो इनको उखाड़ फेंकेगी
फिर भी ये लाठियां चला रहे है
सत्ता न छिन जाये,घबरा रहें है
जनता त्रस्त है
पर अच्छे दिनों की आशा में आश्वस्त है
पर भ्रष्टाचार में डूबा सारा तंत्र है
बूढा होता हुआ गणतंत्र है
  
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

5 टिप्‍पणियां:

  1. बिलकुल सच लिखा है..
    गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें ..जय हिंद !!
    kalamdaan.blogspot.com

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  2. आज के चर्चा मंच पर आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
    का अवलोकन किया ||
    बहुत बहुत बधाई ||

    जवाब देंहटाएं

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