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शनिवार, 7 जनवरी 2012

मुसीबत ही मुसीबत

मुसीबत ही मुसीबत
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मौलवी ने कहा था खैरात कर,
              रास्ता है ये ही जन्नत के लिये
वहां जन्नत में रहेंगी हमेशा,
             हूरें हाज़िर तेरी खिदमत  के लिये
ललक मन में हूर की ऐसी लगी,
             आ गये हम मौलवी की बात में
सोच कर जन्नत में हूरें मिलेगी,
            लुटा दी दौलत सभी खैरात में
और आखिर वो घडी भी आ गयी,
               एक दिन इस जहाँ से रुखसत हुए
पहुंचे जन्नत ,वेलकम को थी खड़ी,
              बीबी बन कर हूर,खिदमत के लिये
हमने बोला यहाँ भी तुम आ गयी,
            हो गयी क्या खुदा से कुछ गड़बड़ी
अरे जन्नत में तो मुझ को बक्श दो,
              इस तरह क्यों हो मेरे पीछे पड़ी
बोली बीबी मौलवी का शुक्र है,
              दिया जन्नत का पता मुझको  बता
कहा था उसने की तू खैरात कर,
             पांच टाईम नमाज़ें करके    अता
बताया था होगी जब जन्नत नशीं,
               हूर बन कर फरिश्तों से खेलना
मुझको क्या मालूम था जन्नत में भी,
               पडेगा मुझको ,तुम्ही को झेलना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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