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सोमवार, 2 जनवरी 2012

हिन्दी विकीपीडिया और कविताकोश पर काव्य-संग्रह ‘टूटते सितारों की उडान’ का लिंक

होनहार विरवान के होत चीकने पात कहावत को चरितार्थ करते हुये ब्लाग जगत के सक्रिय ब्लागर श्रीयुत सत्यम् शिवम् जी के द्वारा ‘टूटते सितारों की उडान’ नामक काव्य-संग्रह का संपादन करते हुये इसे उत्कर्ष प्रकाशन मेरठ द्वारा प्रकाशित कराया गया है। इसमें ब्लाग जगत से जुडे बीस कवियों की रचनायें सम्मिलित की गयी हैं जिसमें छः प्रमुख महिला ब्लागर भी सम्मिलित हैं। संग्रह के नाम के अनुरूप इस संग्रह में सम्मिलित सभी रचनाकारों की रचनाऐं जीवन की आपा धापी में पल पल बिखरते जा रहे टूटते , छटपटाते रिश्तों का सच प्रगट करती हुयी सी जान पडती हैं। मूल रूप से इन्दौर में जन्मी और राजस्थान के कोटा जनपद में विवाहित दर्शन कौर वर्तमान में मायानगरी मुंबई में निवास कर रही हैं जिनकी रचनाओं में महानगरी में खो गया मानवीय रिश्ता इस प्रकार दिखा
........नाहक, तुम्हें बाँधने की कोशिश
छलावे के पीछे भागने वाले औंधे मुंह गिरते हैं
इस तपती हुयी मरू भूमि में
चमकती सी बालू का राशि
जैसे कोई प्यासा हिरन,
पानी के लिये
कुलांचे भरता जाता है
अंत में थककर दम तोड देता है
तुम्हारे लिये
इस मरूभूमि में मै भी भटक रही हूँ
काश कि तुम मिल जाते।...............
विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में छप चुकी वरिष्ठ हिन्दी कवियत्री सुश्री वन्दना गुप्ता जी की रचना का एक अंश देखें-.
...........न जाने कब
कैसे, कहाँ से
एक काला साया
गहराया
और मुझे
मेरी स्वतंत्रता को
मेरे वजूद को
पिंजरबद्ध कर गया
चलो स्वतंत्रता पर
पहरे लगे होते
मगर मेरी चाहतो
मेरी सोच
मेरी आत्मा को तो
लहूलुहान ना
किया होता
उस पर तो
ना वार किया होता
आज ना मैं
उड़ पाती हूँ
ना सोच पाती हूँ
हर जगह
सोने की सलाखों में
जंजीरों से जकड़ी
मेरी भावनाएं हैं
मेरी आकांक्षांऐं है
हाँ , मैं वो
सोन चिरैया हूँ
जो सोने के पिंजरे
में रहती हूँ
मगर बंधन मुक्त
ना हो पाती हूँ..
......................
राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित श्रीमती महेश्वरी कानेरी जी सेवानिवृति के उपरांत देहरादून उत्तराखंड में निवास कर रही हैं। उनकी एक रचना का अंश देखें -
जीवन तो जीया है मैने
लेकिन कब वो अपना था?
रिश्तों के टुकडों में,
सब कुछ बँटा- बँटा था।
कभी रीति और रिवाजों
की ओढी थी चुनरी....
कभी परंपराओं का
पहना था जामा.....
आँखों में स्वप्न नहीं
समर्पण रहता , हर दम
रिश्तों का फर्ज निभाते
जीवन कब बीत गया
दायित्व के बोझ तले
बरबस मन, ये कहता
कौन हूँ मैं ? कौन हूँ मैं?.
.....................
इस काव्य-संग्रह में सम्मिलित प्रमुख व्लागर सर्वश्री रूप चंद्र जी शास्त्री ‘मयंक’ आदि कुछ रचनाकारों के नाम हिन्दी कविता की प्रतिष्ठित वेवसाइट । कविताकोश में भी उपलब्ध हैं अतः उनके पन्ने पर इस काव्य-संग्रह का लिंक ... भी कविताकोश में जोड दिया गया है जिसे पढने के लिये इस लिंक पर क्लिक करते हुये पहुंचा जा सकता है । इस कविता-संग्रह को । हिन्दी विकीपीडिया पर उपलब्ध हिन्दी पुस्तकों की सूची में भी जोडा गया है जो अभी अपने प्रारंभिक स्वरूप में है ... यदि आप चाहें तो स्वयं भी इसमें पठनीय सामग्रियों को जोड कर इसे और अधिक विकसित कर सकते हैं। आप को नव वर्ष ''२०१२'' की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ढेरों बधाइयाँ।

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