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गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

कुंड़लिया ----- दिलबाग विर्क


              आरक्षण की मार है , रही देश को मार ।
              इक जाति कभी दूसरी, मांगे ये अधिकार ।।
              मांगे ये अधिकार, नहीं इसका हल कोई ।
              करें हैं तोड़-फोड़ , व्यर्थ में ताकत खोई ।।
              कहे विर्क कविराय , नहीं दिखते शुभ लक्षण ।
              हो सुविधा की मांग , न मांगो तुम आरक्षण ।।

                                * * * * *

5 टिप्‍पणियां:

  1. bahut sundar virk ji ....es samvedansheel vishay pr ap ne kalam chalai ... bahut bahut abhar.

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  2. रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । नव वर्ष -2012 के लिए हार्दिक शुभकामनाएं । धन्यवाद ।

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  3. मूर्ख जनता, नेतावों द्वारा पकडाए गए झुनझुने ही ज्यादा पसंद करते है ! खैर, आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !

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  4. ख़ूबसूरत प्रस्तुति, बधाई.

    नूतन वर्ष की मंगल कामनाओं के साथ मेरे ब्लॉग "meri kavitayen " पर आप सस्नेह/ सादर आमंत्रित हैं.

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