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शनिवार, 17 दिसंबर 2011

शिकवा-शिकायत


शिकवा-शिकायत

 
 
 
 
 
 
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शिकवा-शिकायत
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देख कर अपने पति की बेरुखी,
करी पत्नी ने शिकायत इस तरह
हम से अच्छे तुम्हारे ‘डॉग’ है,
घुमाते हो संग जिनको हर सुबह
गाजरों का अगर हलवा चाहिये,
गाजरों को पहले किस करना पड़े,
इन तुम्हारे गोभियों के फूल से,
भला गुलदस्ता सजेगा किस तरह
सर्दियों में जो अगर हो नहाना,
बाल्टी में गर्म पानी चाहिये,
छत पे जाने का तुम्हारा मन नहीं,
धूप में तन फिर सिकेगा किस तरह
झिझकते हो मिलाने में भी नज़र,
और करना चाहते हो आशिकी,
ये नहीं है सेज केवल फूल की,
मिलते पत्थर भी है मजनू की तरह
तड़फते रहते हो यूं किस के लिए,
होंश उड़ जाते है किस को देख कर,
किसलिए फिर अब तलक ना ‘किस’ लिए,
प्यार होता है भला क्या इस तरह
कर रखी है बंद सारी बत्तियां ,
चाहते हो चाँद को तुम देखना,
छूटती तुमसे रजाई ही नहीं,
चाँद का दीदार होगा किस तरह मदन मोहन बाहेती ‘घोटू’

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