बीते नवम्बर की आठ तारीख को
तरक्की के इस जमाने में एक जंगली बेल ... की मुहिम चलाने वाली सुश्री डा0 सन्ध्या गुप्ता जी नहीं रही । उनके असामयिक निधन की सूचना ब्लाग जगत में विलंब से प्राप्त हुयी । श्री अनुराग शर्मा जी के
पिटरबर्ग से एक भारतीय नामक ब्लाग ..
पर प्रकाशित श्रद्वांजलि से यह ज्ञात हो सका कि
डा0 सन्ध्या गुप्ता जी नहीं रहीं।
वे विगत नवम्बर 2010 तक अपने ब्लाग पर सक्रिय रूप से लिखती रहीं फिर लगातार ब्लाग जगत में अनुपस्थित रही थी । इस अनुपस्थिति की बाबत 4 अगस्त 2011 में एक दिन अचानक अपने ब्लाग पर
‘फिर मिलेंगे’... नामक शीर्षक के छोटे से वक्तब्य के साथ प्रगट हुयी थीं तब उन्होने अवगत कराया था कि वे जीभ के गंभीर संक्रमण से जूझ रही थीं और शीघ्र स्वस्थ होकर लौट आयेंगी ।
आज उन्हे श्रद्वांजलि स्वरूप प्रस्तुत है उनके ब्लाग पर नवम्बर 2010 को प्रकाशित उनकी ही कविता "तय तो यह था..."
तय तो यह था...
तय तो यह था कि
आदमी काम पर जाता
और लौट आता सकुशल
तय तो यह था कि
पिछवाड़े में इसी साल फलने लगता अमरूद
तय था कि इसी महीने आती
छोटी बहन की चिट्ठी गाँव से
और
इसी बरसात के पहले बन कर
तैयार हो जाता
गाँव की नदी पर पुल
अलीगढ़ के डॉक्टर बचा ही लेते
गाँव के किसुन चाचा की आँख- तय था
तय तो यह भी था कि
एक दिन सारे बच्चे जा सकेंगे स्कूल...
हमारी दुनिया में जो चीजें तय थीं
वे समय के दुःख में शामिल हो एक
अंतहीन...अतृप्त यात्राओं पर चली गयीं
लेकिन-
नहीं था तय ईश्वर और जाति को लेकर
मनुष्य के बीच युद्ध!
ज़मीन पर बैठते ही चिपक जायेंगे पर
और मारी जायेंगी हम हिंसक वक़्त के हाथों
चिड़ियों ने तो स्वप्न में भी
नहीं किया था तय!
प्रस्तुतकर्ता sandhyagupta पर ८:३२:०० पूर्वाह्न
सचमुच!
तय तो यह था कि
तुम इलाज के लिए गयी थी
सो लौट आती सकुशल
परन्तु ...तुम्हीं सो गये दास्तां कहते कहते....
ईश्वर डा0 सन्ध्या गुप्ता जी को स्वर्ग में स्थान दे इसी हार्दिक श्रद्वांजलि के साथ......
हार्दिक श्रृद्धांजलि ||
जवाब देंहटाएंhardik sradhanjali.
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली (२२) में शामिल की गई है /कृपया आप वहां आइये .और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आपका सहयोग हमेशा इसी तरह हमको मिलता रहे यही कामना है /लिंक है
http://hbfint.blogspot.com/2011/12/22-ramayana.html
haardik savednaayein,parmaatmaa unkee aatmaa ko shantee pradaan kare
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