बदनसीबी
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मुफलिसी की मार कुछ ऐसी पड़ी,
भूख से बदहाल था सारा बदन
सोचा जाए,धूप खायें,बैठ कर,
कुछ तो खाया,सोच कर बहलेगा मन
बेमुरव्वत सूर्य भी उस रोज तो,
देख कर आँखें चुराने लग गया
छुप गया वो बादलों की ओट में,
बेरुखी ऐसी दिखाने लग गया
फिर ये सोचा,हवायें ही खाए हम,
गरम ना तो चलो ठंडी ही सही
देख हमको वृक्ष ,पत्ते,थम गए,
आस खाने की हवा भी ना रही
बहुत ढूँढा,कुछ न खाने को मिला,
यही था तकदीर में ,गम खा लिया
प्यास से था हलक सूखा पड़ा ,
आसुओं को पिया,मन बहला लिया
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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मुफलिसी की मार कुछ ऐसी पड़ी,
भूख से बदहाल था सारा बदन
सोचा जाए,धूप खायें,बैठ कर,
कुछ तो खाया,सोच कर बहलेगा मन
बेमुरव्वत सूर्य भी उस रोज तो,
देख कर आँखें चुराने लग गया
छुप गया वो बादलों की ओट में,
बेरुखी ऐसी दिखाने लग गया
फिर ये सोचा,हवायें ही खाए हम,
गरम ना तो चलो ठंडी ही सही
देख हमको वृक्ष ,पत्ते,थम गए,
आस खाने की हवा भी ना रही
बहुत ढूँढा,कुछ न खाने को मिला,
यही था तकदीर में ,गम खा लिया
प्यास से था हलक सूखा पड़ा ,
आसुओं को पिया,मन बहला लिया
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
बहुत सुन्दर मार्मिक रचना .
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा मंच-729:चर्चाकार-दिलबाग विर्क