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सोमवार, 14 नवंबर 2011

आताताइयों के इस समाज में

मै ठिठक कर रुक गया
मंदिर के आहाते में
आज फिर एक लाश मिली थी
तमाशबीन
लाश के चारों ओर खडे थे
नजदीक ही कुछ
पुलिसवाले भी खडे थे
उत्सुकतावश मै भी शामिल हो गया तमाशवीनों में
देखा कटे हाथों वाली वह लाश
औधे मुॅह पडी थी
नजदीक ही उसके कटे हाथ पडे थे
जिसकी मुट्ठियॉ
अभी तक भिंची थी
न मालूम क्रोध से अथवा विरोध से
भीड का एक आदमी
चिल्ला चिल्लाकर बता रहा था
आज दूसरा दिन हुआ है
मंदिर को खुले और
हिंसा फिर होने लगी है
मुझे उसकी बात पर हॅसी सी आयी
तभी पुलिसवाले ने मेरी तरफ निगाह घुमायी
और बोला मिस्टर! तुम जानते थे इसे?
मैने कहा- जी नहीं,
तभी दूसरे ने लाश को
पलट दिया
लाश का चेहरा देखते ही मै सकपका गया
खून से लिपटी
कटे हाथों वाली वह लाश
किसी और की नहीं
मेरी अपनी ही तो थी?

8 टिप्‍पणियां:

  1. अशोक शुक्ला जी @ क्या सोच कर आपने ये नेक सलाह दे डाली. मैंने केवल नारी-पक्ष को रखा तो दूध ही बना डाला और आपको बताऊँ तथाकथित पुरुष जो होते हैं ऐसे बिल्ला होते हैं जिनपर हमेशा कीड़े-मकोड़े , मक्खियाँ ही भिनभिनाया करते हैं.आप भी नारी-विमर्श करके अपनी रोटी ही तो सेंकने पर लगे हुए हैं. जरा अपने अन्दर झाँका भी कीजिये.

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  2. आदरणीया ‘वजर््य नारी स्वर’ महोदया

    मै आपकी टिप्पणी का आशय समझ नहीं पाया।

    कौन सी नेक सलाह?

    मेरे विचार से प्रत्येक रचनाकार के लिये उसकी रचना उसके शिशु जैसी होती है और उसे प्यार पाने की अपेक्षा स्वाभाविक होती है।
    और हाँ! और कौन से तथाकथित पुरूष बिल्ला होते हैं जिन पर मक्खियाँ भिनभिनाती हैं? उपरोक्त पंक्तियों में तो मैने आज के चलते फिरते इन्सान के अन्दर जो मर चुका आदमी यानी (आदमीयत) की चर्चा की थी आपको इसमें बिल्ला पुरूष और भिनभिनाती मक्खियाँ कहाँ नजर आ गयीं?

    और रही बात हमारे द्वारा नारी विमर्श करते हुये अपनी रोटियाँ सेकने की तो आपके सद्भावना पूर्वक अवगत कराना चाहता हूँ ब्लागों पर आकर टिप्पणियाँ लिखकर मेरी रोटियाँ नहीं सिंकती।

    कभी अवसर पाकर उत्तर प्रदेश में मेरे विभिन्न तैनाती स्थलों पर जाकर पडताल अवश्य करियेगा कि मैंने नारी विमर्श के नाम पर रोटी सेंकी है या कुछ परिवारो को छत और चूल्हा मुहैया कराया है।

    आपकी टिप्पणी कुछ असहज करने जैसी लगी।
    रही बात आपके ब्लाग पर आने की तो सहजता से अवगत कराना चाहता हूँ कि आपकी ‘शव साधना’ कविता पढकर मैं इतना प्रभावित हुआ था कि स्वयं को आपके ब्लाग पर आने से नहीं रोक सका। पुनः कहूँगा के आपकी कवितायें प्रभावशाली हैं यदि आपको मेरा आपके ब्लाग पर आना अरूचिकर एवं अवांछनीय लगता है तो अपने इस दुःसाहस के लिये क्षमा चाहूँगा।
    शुभकामनाओं सहित।

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. "काश कि ब्लाग लेखिका ने भी इस कविता को इसी शिद्दत से पढा होता?"

    मैं आपके इसी टिप्पणी से असहज हो गयी जैसे की आप मेरी टिपण्णी से हुए. मैंने इसी से आपसे पूछ लिया कि क्या सोच कर आपने ऐसा कहा. बिना महसूस किये मैं यूँ ही लिखा नहीं करती. कहा-सुनी फिर से माफ़ करे. आप की रचनाएँ मुझे भी प्रभावित करती है. इसलिए आ जाती हूँ आपके ब्लॉग पर. माफ़ी...

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  5. आप की पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (१८) के मंच पर शामिल की गई है/.आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप हिंदी की सेवा इसी तरह करते रहें यही कामना है /आपका
    ब्लोगर्स मीट वीकली के मंच पर स्वागत है /आइये /आभार /
    '

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"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।