पृष्ठ

शनिवार, 3 सितंबर 2011

चीखों जैसी किलकारियाँ!

(भारतीय नारी के विषय ‘मादा भ्रूण हत्या’ को समर्पित एक प्रश्नावली )
आखिर क्यों ?
शहनाई और किलकारी,
क्रमागत हैं एक दूसरे की!
कुछ महकाती हैं आँगन को
तो चीखों जैसी लगती हैं कुछ !
आखिर क्यों?
आखिर क्यों ?
किसी एक का सृजन पूज्य है
और दूसरे का त्याज्य ?
किसी का निर्माण वरदान सा हैं
और दूसरे का अभिशप्त !
आखिर क्यों ?
आखिर क्यों ?
हर सृजन का साकार होना
एक जैसा नहीं है!
‘उस’ सृजन से पूर्व भी तो बजी थी
मंदिर की वैसी ही घंटियाँ!
जिनको सुनकर
धरा पर उतर आयी थी वो शक्ति!
जिसके बगैर सब ‘मिट्टी’ है,
फिर क्योंकर तुम्हारे समाज में
शापित हैं कुछ किलकारियॉ
और कुछ हैं महिमामंडित ?
आखिर क्यों?

4 टिप्‍पणियां:

  1. Samaj ki mansikta ko sawalon ke ghere me leti hui bahut hi sarthak rachna. Badhai Shukla ji..Samaj ki mansikta ko sawalon ke ghere me leti hui bahut hi sarthak rachna. Badhai Shukla ji..

    जवाब देंहटाएं
  2. Pradeep ji
    dhanyawaad. Mai takniki gyaan he kuch anaadi hu.
    Please kavita ko blog par sahi setting ke saath laga dijiye.
    Please

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||

    सादर --

    बधाई |

    जवाब देंहटाएं
  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।