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शनिवार, 24 सितंबर 2011

मेरी परम प्रिया,जलेबी

मेरी परम प्रिया-जलेबी
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पीत वर्णा,
वक्र बदना
कमनीय काया धारिणी,
सुंदरी!
जैसे,अग्नि तपित स्निग्ध कुंड में,
स्नानोपरांत,
रस कुंड से रसरंजित हो,
उतर आई हो,
कोई महकती हुई परी
तुम्हे देख कर
मेरे अधर,
लालायित हो जाते हैं,
करने को तुम्हारा चुम्बन
तुम्हारे सामीप्य से,
एक तृष्णा सी जग जाती है,
और तुम्हे पाने को मचल जाता है मन
तुम्हारी मिठास
देती है एक अवर्णनीय ,
तृप्ति का आभास
स्वर्णिम आभा लिए,
तुम्हारी अष्टावक्र काया
मेरे मन को,
जितना आनंद से है भिगोती
उतना सुख तुम शायद ही दे पाती,
यदि तुम कनक छड़ी सी सीधी होती
मै मधुमेह पीड़ित,
मोहित रहता हूँ,
देख कर तुम्हारी मधुरता
सब कुछ बिसरा कर,
तुम्हारे रसपान का सुख,
भोगने से वंचित नहीं रह सकता
क्योंकि तुम मनभावन,हो ही ऐसी
मेरी परम प्रिया,जलेबी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

6 टिप्‍पणियां:

  1. प्रस्तुति स्तुतनीय है, भावों को परनाम |
    मातु शारदे की कृपा, बनी रहे अविराम ||

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  2. वाह भाई वाह, परम प्रिया जलेबी की अष्टावक्र काया को जिस मधुर रस में प्रस्तुत किया है उसे पढकर ही मुंह में मिठास घुल गई. बहुत ही लाजवाब,

    रामराम

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  3. आपकी ये परम प्रिया हमारी भी है । यहां बाज़ार में तो नही मिलती तो चलो बनायेंगे ।

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