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शनिवार, 17 सितंबर 2011

जेबकतरी सरकार



बढ़ती कीमत देख के मच गया हाहाकार,
जनता की जेबें काटे ये जेबकतरी सरकार |

मोटरसाईकिल को सँभालना हो गया अब दुश्वार
कीमतें पेट्रोल की चली आसमान के पार |

बीस कमाके खरच पचासा होने के आसार,
महँगाई करती जाती है यहाँ वार पे वार |

त्राहिमाम कर जनता रोती दिल में जले अंगार,
सपने देखे बंद होने के महँगाई के द्वार |

महंगाई के रोध में सब मांगेंगे अधिकार,
दो-चार दिन चीख के मानेंगे फिर हार |

तेल पिलाये पानी अब कुछ कहना निराधार,
मन मसोस के रह जाना ही शायद जीवन सार |

लुटे हुए से लोग और धुँधला दिखता ये संसार,
त्योहारों के मौसम में अब मिले हैं ये उपहार |

देख न पाती दु:ख जनता के उल्टे देती मार,
जेबकतरी सरकार है ये तो जेबकतरी सरकार |

6 टिप्‍पणियां:

  1. वर्तमान दशा का सटीक आकलन करती कविता....

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  2. वाह भई वाह

    आपने कितने प्यारे ढंग से समझााया है

    आभार

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  3. प्रिय बंधुवर प्रदीप कुमार साहनी जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    जेबकतरी सरकार रचना के माध्यम से आपने आम भारतीय के मन की बात कही है … साधुवाद ! आभार !!
    तेल पिलाए पानी अब कुछ कहना निराधार
    …और हमारे यहां तो पीने का पानी तक पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है …
    तमाम छंद प्रभावशाली हैं , पुनः बधाई और आभार !

    आ पके लिए दो लिंक दे रहा हूं
    ऐ दिल्ली वाली सरकार ! सौ धिक्कार !!

    मेरी ग़लती का नतीज़ा ये मेरी सरकार है !

    समय मिलने पर रचनाएं अवश्य देखें
    ♥ हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  4. शुक्ला जी आपका हार्दिक आभार |

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  5. राजेन्द्र जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद | आपके दिये लिंक पर मैं जरुर आऊँगा |

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