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शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

या मै जानू या तुम जानो

हम दोनों का प्यार पुराना,
परिणिति  परिणय में बदली
पंख लगा कर उड़ते थे हम,
मै भी पगला,तुम भी पगली
और फिर जीवन चक्र चला तो,
सर पर आयी जिम्मेदारी
घर से दफ्तर,दफ्तर से घर,
भाग दौड़ ,मेहनत,लाचारी
थका हुआ आता दफ्तर से,
मुझे  प्यार से तुम सहलाती
प्यार भरा सुन्दर चेहरा लख,
मेरी सब थकान मिट जाती
नए जोश और नयी फुर्ती से,
भरने लगता मन उडान है
जब है मेरा प्यार उमड़ता,
चढ़ जाती फिर से थकान है
लगती कभी एश्वर्या तुम,
लगती कभी सायरा बानो
कैसा है ये खेल प्यार का,
या मै जानू या तुम जानो

-मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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