चौरासी पार
हो गए हम चौरासी पार
देश विदेश घूम कर देखा, देख लिया संसार
हो गए हम चौरासी पार
बचपन में गोदी में खेले ,निश्चल और
अबोध
हंसते कभी,कभी रोते थे ,नहीं काम और क्रोध
फिर जब दुनियादारी सीखी ,पड़ी वक्त की मार
हो गए हम चौरासी पार
उड़ते रहते थे पतंग से ,जब थी उम्र जवान
कटी डोर तो गिरे धरा पर रही आन ना शान
वक्त संग लोगों ने लूटा ,हमको सरे बाजार
हो गए हम चौरासी पार
जैसे जैसे उम्र बढी ,आई जीवन की शाम
तो संभाल और देखभाल में, मुश्किल आई तमाम
धीरे धीरे लगा बदलने, लोगों का व्यवहार
हो गए हम चौरासी पार
अब तन जर्जर,अस्थि पंजर, हुआ समय का फेर
आया बुढ़ापा ,कई व्याधियां, हमको बैठी घेर
अब तक जीवन की उपलब्धि ,
पाया सबका प्यार
हो गए हम चौरासी पार
मदन मोहन बाहेती घोटू
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