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शनिवार, 6 सितंबर 2025

मैं बूढ़ा नहीं हूं 

काम की हूं चीज मैं कूड़ा नहीं हूं 
बूढ़ा दिखता हूं मगर बूढ़ा नहीं हूं 

कोई मेरे दिल के अंदर झांक देखें 
मेरे मन की भावना को आंक देखें
पाएगा वह एक कलेजा जलता जलता जवानी का जूस है जिसमें उबलता 
वीक थोड़ी बैटरी पर हो गई है 
चेहरे की चमक थोड़ी खो गई है परिस्थितियों हो गई प्रतिकूल सी है 
मगर खुशबू अब भी कायम फूल सी है उमर बढ़ती ने मुझे ऐसा ठगा है 
फूल सा ये बदन मुरझाने लगा है 
मगर चेहरा मेरा अब भी मुस्कुराता 
अब भी हंसता हूं खुशी के गीत गाता देख करके हुस्न मन अब भी उछलता 
अभी भी कायम पहले जेसी ही चंचलता कड़कते व्यवहार में आई नमी है 
बस जरा सी कहीं, कुछ आई कमी है 
 तन बदन पर आ गई कुछ सलवटें है
 उड़ न पाते अधिक,क्योंकि पर कटे हैं जवानी का जोश थोड़ा हो गया कम
मगर जज्बा पुराना अब भी है कायम
 ढोल में है पोल फिर भी बज रहा है 
रंगीला मिज़ाज फिर भी सज रहा है 
ठीक से नव पीढ़ी संग जुड़ा नहीं हूं 
बूढ़ा दिखता हूं मगर बूढ़ा नहीं हूं 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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