पृष्ठ

सोमवार, 10 जून 2024

और उम्र कट गई 


एक दिन गुजर गया, 

एक रात कट गई 

मात्र आठ प्रहर में ,

जिंदगी सिमट गई 

कभी रहे प्रसन्न हम,

 दुखी कभी तो अनमने 

और उम्र कट गई 

शनेः शनेःशनेः शनेः 


कभी सिहरती सर्दियां 

रिमझिमी फुहार थी

कभी कड़कती धूप तो 

चांदनी बहार थी 

और हम लगे रहे ,

यूं ही वक्त थामने 

और उम्र कट गई 

शनेःशनेः शनेः शनेः 



 बरसता का धन कभी-

कभी न कौड़ी पास थी 

दुश्मनों का जोर था 

दोस्त की तलाश थी 

हंस के झेलते रहे 

मुसीबतें थी सामने 

और उम्र कट गई 

शनेः शनेः शनेः शनेः 


दिया किसी ने दर्द भी

 मिला किसी का प्यार भी 

मिली कभी जो जीत तो 

पाई हमने हार भी 

बदलती रही फिजा 

फर्क ना पड़ा हमें 

और उम्र कट गई 

शनेः शनेः शनेः शनेः 


जवानी में सुख मिला

 बुढ़ापे ने दुख दिया 

मेरे पीछे पड़ गये 

रोग और बीमारियां 

सबसे हम लड़ते रहे 

कौन माटी के बने 

और उम्र कट गई

शनेः शनेः शनेः शनेः 


मदन मोहन बाहेती घोटू 


 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।