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मेरा काव्य-पिटारा
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शुक्रवार, 18 अप्रैल 2025
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मैंने तुझको देख लिया है मैंने पंखुड़ी में गुलाब की , हंसती बिजली ना देखी थी बारह मास रहे जो छाई,ऐसी बदली ना देखी थी ना देखे थे क्षीर सरोवर...
1 टिप्पणी:
बुधवार, 16 अप्रैल 2025
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मुक्तक 1 अचानक एक दिन यूं ही तमाशा कर दिया मैंने खुलासा करने वालों का खुलासा कर दिया मैंने वो तड़फे, तिलमिलाए पर,नहीं कुछ कर सके मेरा , ...
सोमवार, 14 अप्रैल 2025
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बदलाव मैंने देखा साथ वक्त के कैसे लोग बदल जाते हैं बीज वृक्ष बन जाता उसमें, फूल और फिर फल आते हैं दूध फटा बन जाता छेना जमता दूध ,दही क...
4 टिप्पणियां:
रविवार, 13 अप्रैल 2025
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अपनो से तुम मुझसे मिलने ना आते, तो मुझे बुरा नहीं लगता है , पर कभी-कभी जब आ जाते, तो यह मन खुश हो जाता है मैं यही सोच कुछ ना कहता, तुम बहु...
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घर का खाना वही अन्न है, वो ही आटा , वही दाल और मिर्च मसाला फिर भी हर घर के खाने का, होता है कुछ स्वाद निराला हर घर की रोटी रोटी का , अपना...
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