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मेरा काव्य-पिटारा
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सोमवार, 20 जनवरी 2025
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सांत्वना चार दिनों की रही चांदनी, सब आए मिल चले गए इतना हम पर प्यार लुटाया,हम विव्हल हो छले गए तुम्हे पता हम वृद्ध किस तरह अपना जीवन काट ...
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सुख दुख बहुत हसीं यह जीवन यदि सुख से जियो दुख के विष को त्याग शान्ति अमृत पियो अपने दिल को जला दुखी क्यों करते हो रोज-रोज तुम यूं ही घुट घ...
मेरे घर का मौसम
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ना तुझमें खराबी, ना मुझमें खराबी मेरे घर का मौसम ,गुलाबी गुलाबी हम पर खुदा की ,है इतनी इनायत किसी को किसी से न शिकवा शिकायत मिला जो भी ...
रविवार, 19 जनवरी 2025
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बुढ़ापे की गाड़ी उमर धीरे-धीरे ढली जा रही है बुढ़ापे की गाड़ी चली जा रही है चरम चूं,चरम चूं , कभी चरमराती चलती है रुक-रुक, कभी डगमगाती ...
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पर्दा कोई ने खिसका दिया इधर कोई ने खिसका दिया उधर लेकिन में अपनी पूर्ण उमर , बस रहा लटकता बीच अधर अवरुद्ध प्रकाश किया करता मै सबको पर्द...
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