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मेरा काव्य-पिटारा
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गुरुवार, 31 मई 2012
***मुर्दा ***
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जिन्दा तो हैं यहाँ पर प्राण का नाम नहीं, फिरते हैं यात्र-तत्र बने जीवित मुर्दा; कुंठित है सोच अपंग क्रियाकलाप, कलुषित है हर अंग क्या नैन-मुख...
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ये नींद उचट जब जाती है
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ये नींद उचट जब जाती है सर्दी की हो गर्मी की, ये रातें बहुत सताती है ये नींद उचट जब जाती है मन के कोने में सिमटी सी दुबकी,सुख दुःख से ल...
ख़ामोशी ....
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"खामोश हो तुम , पर कुछ कहती हो " ऐसा कहते हो तुम अकसर ! "दिन में तारे गिनती रहती हो , खुली आँख से सपने बुनती हो...
बुधवार, 30 मई 2012
जमीन से जुड़ो
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जमीन से जुड़ो घास , जमीन से जुडी होती है जो शबनम की बूंदों को भी, बना देती मोती है एक छोटा सा बीज, जब धरती की कोख में समाता...
लालची लड़कियां
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लालची लड़कियां कुछ लड़कियां रंगबिरंगी तितलियों सी मदमाती है भीनी भीनी खुशबू से ललचाती है उड़ उड़ कर पुष्पों पर मंडराती है बा...
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