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सोमवार, 10 मई 2021

आओ कुछ खुशियां बिखरायें
गुमसुम मुरझाये चेहरों पर ,जरा मुस्कराहट फैलाये
आओ कुछ खुशियां बिखरायें

बहुत दिन हुए गप्पें मारे अपनों के संग वक़्त गुजारे
घर में ही घुस कर बैठे है ,सबके सब , कोरोना मारे
टी वी देखो,समाचार सुन,उल्टा मन भरता है डर से
रामा जाने ,दूर हटेगी कब ये आफत ,सबके सर से  
कर देती लाचार सभी को ,आती जाती ये विपदाएं
आओ कुछ खुशियां बरसायें

सहमे सहमे दुबके है सब ,उडी हुई चेहरे की रंगत
हर कोई पीड़ित चिंतित है सबके मन में छायी दहशत
गौरैया की तरह हो गयी ,हंसी आज चेहरे से गायब
मार ठहाके ,यार दोस्त संग ,हंसना भूल गए है अब सब
बुझे हुए अंधियारे मन में ,आशा की हम किरण जगाये
आओ कुछ खुशियां बिखरायें

किन्तु करेंगे हम ये कैसे ,ना सुनते अब लोग लतीफे
लड्डू,पेड़ा ,गरम जलेबी ,सब पकवान लग रहे फीके
न तो पार्टी ना ही महफ़िल ,ना उत्सव ,त्योंहार मनाना
दो गज दूरी ,मुंह पर पट्टी ,बंद हुआ सब आना जाना
कोई के प्रति ,तो फिर कैसे ,अपने भावों को दर्शाएं
आओ कुछ खुशियां बिखरायें

इस विपदा में साथ दे रहा है सबका ,अपना मोबाईल
बस उसको सहला ऊँगली से ,लोग लगाते है अपना दिल
तो क्यों न हम मोबाईल पर ,हालचाल अपनों का  जाने
कभी ज़ूम पर मीटिंग करके मिले जुलें ,मन को बहलाने  
देख एक दूजे  की सूरत ,मन में कुछ सुकून  तो आये  
आओ कुछ खुशियां बिखरायें

मदन मोहन बहती 'घोटू '

   

सोमवार, 3 मई 2021

संडे की सुबह

संडे की सुबह मज़ा तब ही तो आता है ,
जब बीती रात सेटरडे वाली होती है
अलसाये से और उनींदे ,थके हुए,
तन की मस्ती की बात निराली होती है

पत्नी बाहों में बांह डाल  कर ये बोले ,
देखो कितना दिन चढ़ आया ,उठ जाओ
सच्चा प्यार तुम्हारा तब ही जानूँगी ,
अपने हाथों से चाय बना कर पिलवाओ
अमृत से  ज्यादा स्वाद और मन को भाती ,
तुम्हारी बनी ,चाय की प्याली होती है
संडे की सुबह मज़ा तब ही तो आता है
जब बीती रात  सेटरडे वाली होती है

उत्सव जैसा ये दिन आता है हफ्ते में ,
पूरे दिन आराम ,मस्त खाना ,पीना
ना दफ्तर की फ़िक्र ,काम की ना चिंता ,
मौज और मस्ती से मन माफिक जीना
सन्डे सुबह बिखरते है रंग होली के ,
और सन्डे की रात दिवाली होती है
संडे की सुबह मज़ा तब ही तो आता है ,
जब बीती रात ,सेटरडे वाली होती है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '


शादीशुदा मर्द का दुखड़ा

सर पर मेरे सदा चढ़ी ही रहती है ,
यूं जीना दुश्वार किया है बीबी ने  
थोड़ा खुल कर सांस नहीं मैं ले सकता ,
जीते जी ही मार दिया है बीबी ने

सर पर थे जो बाल ,झड़ गए सेवा में ,
दिनभर उसकी लल्लू चप्पू करता हूँ
मैं कुछ गलती करूं ,मूड उसका बगड़े ,
तने नहीं उसकी भृकुटी ,मैं डरता हूँ
कंवारेपन की मौज मस्तियाँ गायब है ,
ऐसा बंटाधार किया है  बीबी ने
सर पर मेरे सदा चढ़ी ही रहती है ,
यूं जीना दुश्वार किया है बीबी ने

शादीशुदा आदमी कैदी हो जाता ,
उमर गुजरती उसकी हाँ जी ,हाँ जी में
बीबी जी नाराज़ कहीं ना हो जाए ,
लगा हुआ रहता है मख्खनबाजी में
निज मरजी का कुछ भी तो ना कर सकता
मुझको यूं लाचार किया है बीबी ने
सर पर मेरे सदा चढ़ी ही रहती है
यूं जीना दुश्वार किया है बीबी ने

करता दिन भर काम ,मोहब्बत का मारा ,
बन गुलाम जोरू का  ,यही हक़ीक़त है
पराधीन ,सपने में भी है सुखी नहीं ,
उसके जीवन में बस आफत ही आफत है
इतना सब कुछ कर भी प्यार अगर माँगा ,
नखरे कर ,इंकार किया है बीबी ने
सर पर मेरे सदा चढ़ी ही रहती है ,
यूं जीना दुश्वार किया है बीबी ने

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
उगते सूरज से

ऐ सूरज इसके पहले कि तू सर पे चढ़े ,
निज कोषों से कुछ मुझे 'विटामिन 'दे देना
शक्ति से मैं लड़ पाऊं सब विपदाओं से,
इतना साहस और गुण  तू अनगिन दे देना

तू अभी विशाल ,लाल ,स्वर्णिम आभा वाला  
तुझमे शीतलता व्याप्त ,प्रीत से भरा हुआ
नयनों को प्यारी ,तेरी ये छवि लगती है ,
तूने ही आ ,इस जग को चेतन करा हुआ  
पर जैसे जैसे आलोकित होगी दुनिया ,
सब छुपे  दबे  जो दोष प्रकट हो जाएंगे
दुष्ट प्रवृती  के और पीड़ा देने वाले ,
जितने भी है रोग ,प्रकट  हो जाएंगे
मैं प्रतिरोध कर सकूं हर बिमारी का ,
स्वस्थ रहूँ , मुझको  ऐसे दिन दे देना
ऐ सूरज इसके पहले कि तू सर पे चढ़े ,
निज कोषों से कुछ मुझे विटामिन दे देना

नन्हा बच्चा प्यार लुटाता है सब पर ,
जब हँसता ,मुस्काता ,भरता किलकारी
पर उसका निश्छल व्यवहार बदल जाता ,
ज्यों  बढ़ता ,जाता सीख सभी दुनियादारी
वैसे ही जब छोड़ के आँचल प्राची का ,
धीरे धीरे तू ऊपर उठता जाएगा
तुझसे नज़र मिलाना भी मुश्किल होगा ,
तू इतना ज्यादा तेज ,प्रखर हो जाएगा
इसके पहले कि तपन बने ये शीतलता ,
मधुर प्यार के ,मुझको पलछिन दे देना
ऐ  सूरज इसके पहले कि तू सर पे चढ़े ,
निज कोषों से तू मुझे विटामिन दे देना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

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