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शुक्रवार, 26 जून 2020

ऊंची दूकान -फीके पकवान

हे उच्चवर्ग के निम्न स्तरीय लोगों ,
तुम्हारी हरकतें तुम्हे धिक्कार रही है
तुम्हारी मरी हुई गैरत ,
तुम्हे पुकार रही है
किसी की चमचागिरी से ,
अगर थोड़ा सा लाभ जो मिल जाए
तो अपना जमीर ही बेच दे
क्या आदमी इतना गिर जाए
तुम्हारे इस तरह के व्यवहार से ,
होती है हमें शर्मिंदगी
क्या इस तरह से ही तलवे चाट कर ,
जी जाती है जिंदगी
क्या मज़ा आता है तुम्हे ,
इधर की उधर लगाने में
क्या सुख मिलता है तुम्हे ,
एक दूसरे को लड़ाने में
तुम बड़े भोले बनते हो ,
पर लोग तुम्हे जान गए है
शेखी बघारना छोड़ दो ,
सब तुम्हे पहचान गए है
तुम्हारी दिखती तो ऊंची दूकान है
पर  पकवान बड़े फीके है
अपना मतलब निकालने के लिए ,
तुम्हारे बड़े घटिया तरीके है
अपनी करतूतों  से बाज आओ ,
जो करती तुम्हे शर्मसार रही है
हे उच्चवर्ग के निम्नस्तरीय लोगों ,
तुम्हारी हरकतें तुम्हे धिक्कार रही है  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
हसरत और हक़ीक़त

बहुत थी हसरतें मन में ,यहाँ जाऊं ,वहां जाऊं
खरीदूं  सारी दुनिया को ,यहाँ खाऊं ,वहां खाऊं
चाह  थी देख लूं दुनिया ,मगर कर पाया ना ऐसा
रह गयी दिल की सब दिल में,नहीं था पास में पैसा
उमंगों को लग गए  पर ,करी  जी तोड़ कर मेहनत
जवानी भर ,इसी धुन में ,बिगाड़ी अपनी सब सेहत
पास में आज पैसा है ,कमा ली ढेर सी दौलत
करूं  सब शौक अब पूरे ,नहीं इतनी बची हिम्मत
बुढ़ापा आगया है अब ,कई तकलीफ़ ने घेरा
कई बीमारियों ने आ ,मेरे तन पर किया डेरा
रही ना हसरतें मन में ,बची ना है कोई ख्वाइश
गयी जब सूख फसलें तो भला किस काम की बारिश

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '  

गुरुवार, 25 जून 2020

हो गये हम खोखले है

कर दिये  इस  बुढ़ापे में ,पस्त इतने हौंसले है
ऐसा लगता हम हमारी , शख्सियत ही खो चले है
पीर दिल की छुपाने को ,हंसी हँसते खोखली है ,
सच मगर ये, दर असल में ,हो गये हम  खोखले है
अपनों की रुसवाइयाँ है ,काटती तन्हाईयाँ है ,
कभी रौनक थी जहाँ पर ,पड़े सूने घोसले है
नींदभी आती नहीं है ,ख्वाब भी आते नहीं है ,
समंदर में यादों के बस ,हुआ करती हलचलें है
ठीक से चल नहीं पाते ,फूलने लगती है साँसें ,
जिंदगानी के सफर में ,भले हम मीलों चले है
भूलने की बिमारी का ,असर इतना हो गया है ,
भूल जाते हैं हम अक्सर ,पार सत्तर हो चले है
भावनाओं ने फंसाया ,नहीं छूटी मोह माया ,
छोड़ गुड़ हमने दिया पर ,नहीं छूटे गुलगुले है
आप माने या न माने ,बुढ़ापे की ये हक़ीक़त ,
सिर्फ बीबी साथ देती ,आप वरना ऐकले  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
चीनी ड्रेगन

यह द्वापर की बात है ,जब गोकुल के पास
एक कालिया नाग का ,था यमुना में  वास
था यमुना में वास ,किया था जल जहरीला
उसको बस में किया कृष्ण ने ,दिखला लीला
करी नागिनों ने विनती ,कर फन पर नर्तन
प्राण दान दे ,किया समंदर में निष्कासन

वही भयंकर विषैला ,दुष्ट कालिया नाग
गया समंदर तैरता ,चीन देश को भाग
चीन देश को भाग ,बन गया चीनी ड्रेगन
जहरीले कर दिये वहां के लोगों के मन
फिर फुंकार रहा है ,करने उसका मर्दन
भारत का हर सैनिक तत्पर है कान्हा बन

मदन मोहन बाहेती ;घोटू '

रविवार, 21 जून 2020

सूरज देखेंगे

हमने अपनी जिन आँखों से ,देखा है चंदा का आनन,
अपनी उन आँखों से क्यों कर ,हम ग्रसता सूरज देखेंगे
जिन आँखों में बसी हुई है ,चंदा की सुन्दर मादक छवि ,
अपनी उन शीतल आँखों से ,क्यों जलता सूरज देखेंगे
चंदा का प्यारा चेहरा तो ,बसा हमारी आँखों में है ,
इसीलिए तो आसमान में ,चंदा चमकेगा आज नहीं
उसकी यादों में क्षीण हुआ ,सूरज तम से ढक जाएगा ,
दे स्वर्ण मुद्रिका उसे पटा लेगा ,करता नाराज नहीं
सूरज पर चंदा की छाया ,कैसी प्रकृति की लीला है ,
जैसे बाहों के बंधन में ,चंदा और सूरज देखोगे
कल सुबह पुनः हम प्राची से ,ले वही सुनहरी सी आभा ,
वो ही हँसता मुस्काता सा ,प्यारा सा सूरज देखेंगे

घोटू 

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