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रविवार, 8 दिसंबर 2019

जीवन -सात दिन का

सारा जीवन सात दिनों का ,पहले दो दिन बचपन के
तीन दिवस ऊर्जा परिपूरित ,कहलाते है यौवन के
छटे  दिवस तक ,ढीले पड़ते ,पुर्जे सारे इस तन के
आये बुढ़ापा दिवस सातवें ,हम तुम पड़ते ठन्डे है
ये  जीवन का सन्डे  है
संडे का  दिन छुट्टी का दिन ,काम नहीं आराम करो
बहुत थक लिये ,पिछले छह दिन ,अब थोड़ा विश्राम करो  
सुबह देर तक सोवो  प्रेम से और रंगीली शाम करो
अपनी सब चिंताएं छोडो आया असली 'फन डे ' है
ये जीवन का सन्डे है
हमें याद आते है वो दिन ,जब हम नौकरी करते थे
सन्डे की छुट्टी के खातिर ,कितना अधिक तरसते थे
कई काम सन्डे को, करने खातिर छोड़ा करते थे
काम पेन्डिंग सब पूरे कर ,हमने गाड़े झंडे है
ये जीवन का सन्डे है
यह  तो एक  आराम पर्व है हमको  ,यूं  न बिताना है
जितना भी बन सके ,दीन  दुखियों को सुख पहुँचाना है
बहुत कमाया धन जीवन में ,अब तो पुण्य कमाना है
मन को रमा ,राम में ,तजने सब हथकंडे है
ये जीवन का सन्डे है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शनिवार, 7 दिसंबर 2019

गाली गलोच -अपनी अपनी सोच

आप भी क्रुद्ध है
सामनेवाला भी क्रुद्ध है
हो रहा वाकयुद्ध है
कुछ गालिया वो दे रहा है
कुछ गलियां आप दे रहे है
न लट्ठ चले न बंदूक दगी
न खून बहा न चोंट लगी
पर दोनों ही पक्षों के मन का ,
निकल गया गुबार
बस  की थोड़ी बकझक है
ये लड़ाई कितनी अहिंसक है

ये गाली देने की विधा भी निराली है
किसी को जानवर शेर कहो तो तारीफ़ ,
और गधा कहो तो गाली है
हमारी समझ में ये नहीं आता है
लक्ष्मीजी जिस पर सवारी करती है ,
किसी को उनका वाहन उल्लू बतलाना
गाली क्यों कहलाता है

भावनाओं  का गुबार छटता है ,
आँखों के रास्ते ,
जब गम सारे आंसूं बन बह जाते है
और दुःख होते है सफा
इसी तरह मन में गुबार गुस्से का ,,
अगर तुमको है हटाना ,
तो उसे दो जी भर  कर गालियां ,
जिससे तुम हो ख़फ़ा

शराफ़त के चिंदे चिंदे करनेवाली ,
उनकी जुबान
जब उगलने लगती है आग
तो समझलो बंदा,
अपनी असलियत पर आ गया है
उसके मुंह पर ,
गालियों का गुबार छा गया है

हमारे गाँवों की तहजीब में भी ,
इतनी बस गयी है ये गालियां
कि शादियों में भी समधियों  को ,
गाकर सुनाई जाती है गालियां

ये जरूरी नहीं कि गालियां ,
चिल्ला कर ही दी जाये ,
नजाकत और नफासत से भी
गाली देने का है तरीका
'लुच्चा कहीं का '

एक प्रश्न बार बार मेरे जहन में मंडराता है
मेरी समझ में नहीं आता है
साला हो साली
कैसे बन गए गाली
ये तो बड़ा मनभावना नाता है
फिर गाली क्यों कहलाता है
ये और ऐसे ही कुछ शब्द ,
हो गए इतने आम है
कि बन गए तकियाकलाम है
हम सुनते रहते है लोग खुद ,
खुद को ही गाली दिया करते है ऐसे
कि यार हम साले भी  बेवकूफ है कैसे?


मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

भगवान का ज्ञान  

कल रात मेरे साथ एक घटना घटी
आपको लगेगी थोड़ी अटपटी
पर ये सच है श्रीमान
कि कल मेरे सपने में आये थे भगवान
और बोले थे 'वत्स
अब तो जीवन कट रहा होगा मस्त
क्योंकि तुम अब हो गये हो  रिटायर
बंद हो गया रोज रोज दफ्तर का चक्कर
न काम न धाम
दिन भर आराम ही आराम
जब इच्छा हो ,पत्नी से चाय बनवालो
थोड़ी सी रिकवेस्ट करो ,तो पकोड़े तलवालो
न फाइलों में सर खपाना न बॉस की चमचागिरी
आजकल तो है  एकदम फ्री
न कोई चिंता न कोई टेंशन
और फिर अच्छीखासी पेंशन
इतने बरसों बाद
अब तो कभी कभी मुझको भी कर लेते हो तुम  याद
मैं इधर से गुजर रहा था  
रिटायर लोगों का सेम्पल सर्वे चल रहा था
तुम चैन की नींद लेते हुए नज़र आये
मैंने सोचा चलो शुरुवात तुमसे ही की जाए
तो  बताओ कैसा लग रहा है रिटायरमेंट के बाद
अब तो हो बिलकुल आज़ाद
मैं बोलै भगवन
रिटायरमेंट के एक दो महीने बाद तक तो
मैं रहा काफी प्रसन्न
मैं फुर्सत के पूरे मज़े ले रहा था
बीबी भी खुश थी, मैं उसे पूरा टाइम दे रहा था
पर बाद में तन्हाई काटने लगी
प्यार करनेवाली पत्नी भी डाटने लगी
दिन भर घर में निठल्ले से पड़े रहते हो
हमेशा मेरे सर पर चढ़े रहते हो
तुम्हारी जी हजूरी करते करते मैं आगयी हूँ तंग
न सखियों संग गपशप का टाइम और न सत्संग
हमेशा खुद में ही रखते हो उलझा कर
मुझे समझ रखा है अपनी नौकर
उधर बहू बेटों की भी फ्रीडम
लगता था उन्हें कि जैसे हो गयी हो ख़तम
एक दिन बेटा  बोला समझाते समझाते
आप दिन भ घर में घुसे हुए बोअर नहीं हो जाते
रोज सुबह उठ कर थोड़ा टहल लिया करो
बच्चों को स्कूल बस तक छोड़ दिया करो
लौटते समय डेरी से दूध भी ला सकते हो
शाम को बच्चों को झूला भी झुलवा सकते हो  
 नहीं तो बैठे बैठे ,आपकी हड्डियां जायेगी जकड
बीमारियां लेगी पकड़ मोटापा जाएगा बढ़
तो आजकल पोते पोतियों की तीमारदारी में लगा रहता हूँ
नहीं तो बीबी से आलसी और निठल्ले के ताने सहता हूँ
वैसे भी बढ़ती हुई उम्र के साथ शरीर क्षीण हो गया है
चेहरा कांतिहीन हो गया है
दिखता कम है ,नज़र धुँधली है
दो दांत इम्प्लांट हुए है और दो पर केप चढ़ी है
थोड़ा सा चलो तो सांस फूलती है
याद कमजोर हो गयी है ,हर बात भूलती है
डाइबिटीज है ,खाने  पर नियंत्रण है
फिर भी मीठा खाने को मचलता मन है
घुटनो में दर्द है ,चल नहीं पाते
नींद नहीं आती ,जग कर कटती है रातें
अपनों के प्यार को आत्मा तरसती है
और प्रभु जी आप कह रहे हो कि मस्ती है
भगवन बोले वत्स ,लगता है तुम हो परेशान
तुम चाहो तो करवा दें तुम्हे जल्दी बुलवाने का इंतजाम
हम घबरा गए और बोले नहीं नहीं प्रभु ,
ऐसी परेशानी की कोई बात नहीं है
अब तो ये सब अच्छा लगने लगा है ,
अभी आपके यहाँ जल्दी आने के हालात नहीं है
ये शरीर है ,थोड़ी बहुत उंच नीच तो रहती है चलती
मैंने अपने हाल को बढ़ा चढ़ा कर,
 बुरा बताने की, की गलती
मैंने सोचा था आपने दर्शन दिए है ,
तो आशीर्वाद देकर थोड़ा अहसान कर दोगे
अमृत का कोई छींटा छिटक ,
मुझे फिर से जवान कर  दोगे
पर आप तो उलटे जल्दी बुलाने की बात करने लगे
हम तो आपके दर्शन कर के मुफ्त ही गए ठगे
अभी इतनी जल्दी थोड़े ही मरना है
अभी तो पोते पोती नातिन की शादी करना है
आपने ये जो इतनी सुन्दर दुनिया बनाई है ,
इसे भी ठीक से देखने की हसरत है
इसलिए आपने जो उम्र लिखी है ,
उससे भी ज्यादा  आठ दस वर्षों की जरुरत है
इसलिए हे भगवन
आपसे है नम्र  निवेदन
आपने है दिए दर्शन तो करदो  बस इतना उपकार
मेरी  आयु बढ़वा दो बस एडिशनल दस साल
प्रभु हँसे और बोले मुर्ख आदमी
बस तुझमे है यही कमी
मोह में बंधा हुआ है
लालच में अँधा हुआ है
कब छूटेगा तुझसे ये बंधन
जरा सोच ,आज भी जीर्णशीर्ण हो रहा है तेरा तन
दिनबदिन तेरी हालत होती जायेगी बदतर
तेरा शरीर होता जाएगा जर्जर
अभी तो तू थोड़ा खुद को संभल भी लेता है ,
बाद में पूर्ण रूप से हो जाएगा दूसरो पर निर्भर
तू बहुत ही बदहाल हो जाएगा
परिवार पर बोझा और भार हो जाएगा
तू लम्बी उम्र तो जियेगा पर दुःख भोगेगा
मैंने ज्यादा लम्बी उम्र क्यों मांगी ,खुद को कोसेगा
वृद्धावस्था की लम्बी उम्र के हर दिन तुझे पश्चाताप होगा
मेरा तेरी उम्र में इजाफा करना ,तेरे लिए अभिशाप होगा
इसलिए हे मानव ,तू मत ला मन में ,
बहुत ज्यादा लम्बा जीने की कल्पना भी
अगर दुर्गति से बचना है तो ,
विधाता ने जो दी है जिंदगी ,जैसी लिखी है ,वैसी जी
राम में मन रमा ,एक वो ही सच्चा है
आदमी चलते फिरते चला जाए ,यही सबसे अच्छा है
 
मदन मोहन बाहेती 'घोटू ';

गुरुवार, 5 दिसंबर 2019

अधिकार

हमे पता तुमने कितना कर्तव्य निभाया
अपनाया ना किन्तु शुक्र है ,ना ठुकराया
पत्नी डर से ,पुत्र धर्म तुम निभा न पाये
पूर्ण आस्था से पर पति का धर्म निभाये
किंन्तु पिता मै ,तुम मेरी आँखों के तारे
जिसको ले,  मैंने पाले थे , सपने सारे
हंसी ख़ुशी से कटे बुढ़ापा ,आस कहीं थी
टूट गए सब सपने ,शायद नियति यही थी
मैंने ऊँगली पकड़ सिखाया ,तुमको चलना
मुझे याद है तुम्हारी जिद और मचलना
ऐसे मचले देख एक ललना का आनन
किया इशारों पर ऊँगली के उसके नर्तन
भुला दिए माँ बाप जिन्होंने प्यार लुटाया
पा पत्नी का साथ ,अलग संसार बसाया
निज जनकों से तुमने बना रखी दूरी थी
तुम कर्तव्य निभा ना पाए ,मजबूरी थी
हम रिश्तों का मोह नहीं अपना खो सकते
और न ही हम तुम जैसे निष्ठुर हो सकते
हुआ विछोह ,पुत्र का मोह ,हमें ये गम था
त्योहारों पर छूटे पैर  ,यही क्या कम था
हम भोले है ,हमने सारा प्यार दे दिया
तुम्हे वसीयत में सारा अधिकार दे दिया


घोटू 
लोग है कितने सयाने हो गये


लाभ हानि देखते हर काम में ,लोग है कितने सयाने हो गए
दिख न पाता  सूर्य सुबहोशाम का ,काम में इतने दीवाने हो गए
प्रेमपत्रों का जमाना लद गया , शुरू अब ई मेल आने हो गए
मैं और मेरी दुनिया ही संसार है ,बाकी सब रिश्ते अजाने हो गए
गूंथें थे ,शोभित गले  का हार थे ,ऐसे बिखरे दाने दाने हो गए
शहर में दो रूम का एक फ्लेट है ,गाँव के बंगले बिराने हो गए
 चाचा मामा ताऊ सब अंकल बने ,बाकी सब रिश्ते पुराने हो गए
नहीं फुर्सत मिलने की ,माँ बाप से ,सैंकड़ों ही अब बहाने हो गए
'घोटू 'कुछ अनजान तो अपने बने ,और अपने अब बेगाने हो गए

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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