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शनिवार, 25 जून 2016

तुम्हे अगर जो कुछ होता है...

             तुम्हे अगर जो कुछ होता है...

तुम्हे अगर जो कुछ होता है ,हमे बहुत कुछ हो जाता है
क्योंकि हमारा और तुम्हारा ,जन्मों जन्मों का नाता है
तुमको जरा पीर होती है ,हम अधीर से हो जाते है
तेज धूप तुमको लगती है ,और इधर हम कुम्हलाते है
 तुम्हारी आँखों में आंसू  ,देख हमारा दिल रोता है
पता नहीं ये क्यों होता है,पर ये सच, ऐसा होता है
चीख हमारी निकला करती ,जब तुमको चुभता काँटा है
तुम्हे अगर जो कुछ होता है ,हमे बहुत कुछ हो जाता है
हल्की तुम्हे हरारत होती ,चढ़ जाता बुखार हमे है
 एक हाल में  हम जीते है ,इतना तुमसे प्यार हमे है
चेहरा देख उदास तुम्हारा ,हम पर मायूसी छाती है
तुम गमगीन नज़र आते तो ,अपनी रंगत उड़ जाती है
देख तुम्हारी बेचैनी को ,चैन नहीं ये दिल पाता है
तुम्हे अगर जो कुछ होता है ,हमे बहुत  कुछ हो जाता है
पर जब जब तुम मुस्काते हो ,मेरा मन भी मुस्काता है
देख ख़ुशी से रोशन चेहरा ,बाग़ बाग़ दिल हो जाता  है
कभी खिलखिला जब तुम हँसते ,दिल की कलियाँ खिल जाती है 
रौनक देख तुम्हारे मुख पर ,मेरी रौनक बढ़ जाती है
देख खनकता मुख तुम्हारा ,मेरा मन हँसता गाता है
तुम्हे अगर जो कुछ होता है ,हमे बहुत कुछ हो जाता है
हम तुम बने एक माटी के ,एक खून बहता है रग में
तुम पर जान छिड़कता हूँ मैं ,तुम मुझको सबसे प्रिय जग में
यह सब नियति का  लेखा है,बहुत दूर जा बैठे हो तुम
हमको चिता बहुत तुम्हारी ,दिल के टुकड़े ,बेटे हो तुम
लाख दूरियां हो पर खूं का ,रिश्ता नहीं बदल पाता  है
तुम्हे अगर जो कुछ होता है,हमे बहुत कुछ हो जाता है

मदन मोहन बाहेती  'घोटू'

बुधवार, 22 जून 2016

मैं नारी हूँ

 मैं नारी हूँ

मैं विद्या ,संगीत,कविता ,सरस्वती का रूप ,
धन ,वैभव ,ऐष्वर्य दायिनी हूँ,मैं लक्ष्मी  हूँ
मैं ही माता ,मैं ही पत्नी ,मैं ही भगिनी हूँ,
अन्नपूर्णा ,मैं दुर्गा हूँ ,जग की जननी हूँ,
मैं ही धरा हूँ,मैं ही गंगा,मैं ही कालिंदी हूँ,
मैं रति भी हूँ,पार्वती हूँ ,और मैं काली हूँ
मैं शक्ति का रूप मगर मैं क्यों दुखियारी हूँ,
अपनी व्यथा कहूं मैं किस से,मैं तो  नारी हूँ
मातपिता के अनुशासन में बचपन कटता है,
और पति के अनुशासन में कटता यौवन है
बेटे बहू,बुढ़ापे में ,अनुशासित करते है,
क्यों नारी पर ,सदा उमर भर,रहता बंधन है
कभी भ्रूण में मारी जाती ,कभी जन्म के बाद,
कभी दहेज के खतिर मुझे जलाया जाता  है
कभी मुझे बेचा जाता है ,भरे बाजारों में ,
मुझको नोचा जाता है  ,तडफाया जाता है
वरण स्वयंबर में तो मुझको करता अर्जुन है,
पांच पति की भोग्या मुझे बनाया जाता है
भरी सभा में चीरहरण दुःशासन करता है,
जुवे में क्यों ,मुझको दाव लगाया जाता है 
ममता भरी यशोदा सौ सौ आंसूं रोती  है ,
राजपाट पा ,राजाबेटा ,उसे भुलाता है
क्यों राधा की प्रीत भुला कर ,कृश्णकन्हैया भी ,
आठ आठ पटरानी के संग ब्याह रचाता है
इंद्र,रूप धर मेरे पति का,छल करता मुझसे ,
तो पाषाणशिला बन मैं क्यों शापित होती हूँ
क्यों सिद्धार्थ ,बुद्ध बनने को,मुझे त्यागता है ,
यशोधरा मैं ,दुखियारी,जीवन भर रोती हूँ
वन में पग पग साथ निभाने वाली सीता का ,
अगर हरण कर ले रावण,क्या सीता दोषी है
राम युद्ध कर,उसे दिलाते ,मुक्ति रावण से ,
क्यों सतीत्व की उसके अग्नि परीक्षा होती है
लोकलाज के डर से मर्यादा पुरुषोत्तम भी ,
गर्भवती सीता को वन में भिजवा देते है 
रामचरितमानस में तुलसी कभी पूजते है ,
कभी ताड़ना का अधिकारी ,उसको कहते है
भातृप्रेम में लक्ष्मण ,भ्राता संग वन जाते है ,
चौदह बरस उर्मिला ,विरहन,रहती रोती  है
जीवन को गति देनेवाली ,देवी स्वरूपा की,
युगों युगों से ,फिर क्यों ऐसी,दुर्गति होती है
ऊँगली पकड़ सिखाती चलना अपने बच्चों को,
सदाचरण का पाठ पढ़ाती,पहली शिक्षक है
पति प्रेम में पतिव्रता बन ,जीती मरती है,
अनुगामिनी मात्र नहीं,वह मार्ग प्रदर्शक है
मैं  सुखदात्री,अपने पति की सच्ची साथी हूँ,
फिर क्यों दुनिया कहती मै अबला ,बेचारी हूँ
मैं शक्ति का रूप, मगर मैं क्यों दुखियारी हूँ  ,
अपनी व्यथा कहूं मैं किससे ,मैं तो नारी हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

स्मार्ट फोन

 स्मार्ट फोन

जवान होती हुई बेटी, कई दिनों से ,
स्मार्टफोन की जिद कर  रही थी
पर ये बात ,उसके पिता के गले,
 नहीं उतर रही थी
उनकी सोच थी कि स्मार्ट फोन आने से ,
उनकी बेटी उसकी 'एडिक्ट 'हो जाएगी
दिन भर फेसबुक ,व्हाट्सएप में उलझी रहेगी,
पढ़ाई से उसकी रूचि खो जाएगी
माँ ने अपने पति को समझाया
हमने उसको इतना पढ़ाया,लिखाया
कुकिंग की क्लासेस दिलवाई,
होम मैनेजमेंट के गुण  सिखलाये
इसीलिये ना ,कि शादी के बाद ,
वो अपनी गृहस्थी ,ठीक से चला पाये
अब उसे स्मार्टफोन दिलवा दो ,
क्योंकि ये भी ,शादी के बाद ,
सुखी जीवन जीने की कला सिखाता है
इससे ,ऊँगली के इशारों पर ,
दुनिया को नचाने का ,आर्ट आ जाता है
और शादी के बाद ,यदि उसे सुख चाहिए
तो उसे ,अपने पति को ,उँगलियों पर ,
नचाने की कला आनी  चाहिए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शौक़ीन बुढ्ढे

       शौक़ीन बुढ्ढे  

ये बुढ्ढे बड़े शौक़ीन होते है
मीठी मीठी बातें करते है मगर नमकीन होते है
ये बुढ्ढे  बड़े शौक़ीन होते है
यूं तो सदाचार के लेक्चर झाड़ते है
पर  मौक़ा मिलते ही ,
आती जाती लड़कियों को  ताड़ते है
देख कर  मचलती जवानी
इनके मुंह में भर आता है पानीे 
और फिर जाने क्या क्या ख्वाब  बुनते   है
फिर अपनी मजबूरी को देख ,अपना सर धुनते है
पतझड़ के पीले पड़े पत्ते है ,जाने कब झड़ जाएंगे
पर हवा को देखेंगे,तो हाथ हिलाएंगे
जीवन की आधी अधूरी तमन्नाये,
उमर के इस मोड़ पर आकर, कसमसाने   लगती है
जी  चाहता है ,बचीखुची सारी हसरतें पूरी कर लें,
पर उमर आड़े  आने लगती है
समंदर की लहरों की तरह ,कामनाएं,
किनारे पर थपेड़े खाकर ,
फिर  समंदर में विलीन हो जाती है
क्योंकि काया इतनी क्षीण हो जाती है
जब गुजरे जमाने की यादें आती  है
बड़ा तडफाती है
कभी कभी जब बासी कढ़ी में उबाल आता है
मन में बड़ा मलाल आता है
देख कर के मॉडर्न लिविंग स्टाइल
तड़फ उठता  होगा उनका दिल
क्योंकि उनके जमाने में ,
 न टीवी होता था ,ना ही मोबाइल 
न फेसबुक थी न इंटरनेट पर चेटिंग
न लड़कियों संग घूमना फिरना ,न डेटिंग
माँ बाप जिसके पल्ले बाँध देते थे
उसी के साथ जिंदगी गुजार देते थे
पर देख कर के आज के हालात
क्या भगवान उन्हें साठ साल बाद ,
पैदा नहीं कर सकता था ,ऐसा सोचते होंगे
और अपनी बदकिस्मती पर ,
अपना सर नोचते होंगे
उनके जमाने में
मिलती थी खाने में
वो ही दाल और रोटी अक्सर
उन दिनों ,कहाँ होता था,
पीज़ा,नूडल और बर्गर
आज के युग की लोगों की तो चांदी है
उन्हें दुनिया भर के व्यंजन  खाने की आजादी है
आज का रहन सहन ,
ये वस्त्रों का खुलापन
और उस पर लड़कियों का ,
ये बिंदास आचरण
उनके मुंह में पानी ला देता होगा
बुझती हुई आँखों को चमका देता होगा
ख्यालों से मन  बहला देता होगा
जब भी किसी हसीना के दीदार होते है
ये फूंके हुए कारतूस ,
फिर से चलने को तैयार होते है
अपने आप को जवान  समझ कर ,
बुने गए इनके सपने ,बड़े रंगीन होते है
ये बुढ्ढे ,बड़े शौक़ीन होते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'



 
  

सेंटिमेंटल बुढ्ढे

सेंटिमेंटल बुढ्ढे

ये बुढ्ढे बड़े सेंटिमेंटल होते है
जो बच्चे उन्हें याद तक  करते,
उन्ही की याद में रोते  है
ये बुढ्ढे बड़े सेंटिमेंटल होते है
ये ठीक है उन्होंने बच्चों को पाला पोसा ,
लिखाया ,पढ़ाया
आगे बढ़ाया
तो ऐसा कौनसा  अहसान कर दिया
यह तो उनका कर्तव्य था ,जब उनने जन्म दिया
अपने लगाए हुए पौधे को ,सभी सींचते है ,
यही सोच कर कि ,फूल खिले,फल आएं
सब की  होती है ,अपनी अपनी अपेक्षाएं
तो क्या बच्चे बड़े होने पर ,
श्रवणकुमार बन कर,
पूरी ही करते रहें उनकी अपेक्षाएं
और अपनी जिंदगी ,अपने ढंग से न जी पाएं
उनने अपने ढंग से अपनी जिंदगी जी है ,
और हमे अपने ढंग से ,जिंदगी करनी बसर है
हमारी और उनकी सोच में और जीने के ढंग में ,
पीढ़ी का अंतर है
उनके हिसाब से अपनी जिंदगी क्यों बिताएं
हमें पीज़ा पसंद है तो सादी रोटी क्यों खाएं
युग बदल गया है ,जीवन पद्धति बदल गयी है
हम पुराने ढर्रे पर चलना नहीं चाहते,
हमारी सोच नयी है
और अगर हम उनके हिसाब से  नहीं चलते है,
तो मेंटल होते है
ये बुढ्ढे बड़े सेंटिमेंटल होते है
हर बात में शिक्षा ,हर बात में ज्ञान  
क्या यही होती है बुजुर्गियत की पहचान
हर बात पर  उनकी रोकटोक ,
सबको कर देती है परेशान
आज की मशीनी जिंदगी में ,
किसके पास टाइम है कि हर बार
उन्हें करे नमस्कार
हर बात पर उनकी सलाह मांगे
उनके आगे पीछे भागे
अरे,उनने अपने ढंग से  अपनी जिंदगी बिताली
और अब जब बैठें है खाली
कथा भागवत सुने,रामायण पढ़े
हमारे रास्ते में न अड़े
उनके पास टीवी है ,कार है
पैसे की कमी नहीं है
तो राम के नाम का स्मरण करें ,
उनके लिए ये ही सही है
क्योंकि जिस लोक में जाने की उनकी तैयारी है ,
वहां ये ही काम आएगा
साथ कुछ नहीं जाएगा
और ऐसा भी नहीं कि हम ,
उनके लिए कुछ नहीं करते है
'फादर्स डे 'पर फूल भेजते है ,गिफ्ट देते है
त्योंहारों पर उनके चरण छूते  है
और फंकशनो में 'वीआईपी 'स्थान देते है
हमे मालूम है कि हम उनके लिए कुछ करें न करें ,
वे हमेशा हमे आशीर्वाद बरसाते  रहेंगे
हमारी परेशानी में परेशान नज़र आते  रहेंगे
उनकी कोई भी बददुआ हमे मिल ही नहीं सकती ,
क्योंकि ये बड़े जेंटल होते है
ये बुढ्ढे बड़े  सेंटिमेंटल होते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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