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मंगलवार, 5 मई 2015

अमोघ अस्त्र

             अमोघ अस्त्र

शांतिकाल में'किचन अस्त्र'यह ,पेट भरा करता है सबका
इसमें कोई धार नहीं है,लेकिन है हथियार गजब का
दोनो तरफ ,किधर से भी तुम ,पकड़ो इसे ,वार करता है
है अमोघ यह शस्त्र निराला,हर बन्दा इससे  डरता है
जिसको धारण करके नारी ,कभी अन्नपूर्णा बन जाती
और कोप में, हाथों  में ले, झांसी  की  रानी  कहलाती
वैसे लकड़ी का टुकड़ा है ,लेकिन इतना पावरफुल है
लोग इसे 'बेलन'कहते है, करता सबकी बत्ती गुल है

घोटू   

शनिवार, 2 मई 2015

नज़ाकत या आफत

        नज़ाकत या आफत

कहा हमने तुम्हारे हाथ,कोमल और नाजुक है ,
        करोगे काम घर का तो,नज़ाकत  भाग जायेगी
उन्हें मेंहदी लगाकर के,सजाकर के ही तुम रखना,
        नहीं तो कमल जैसी पंखुड़ियां ,कुम्हला न जाएगी
कहा उनने ,नजाकत ना ,इन हाथों में बड़ा दम है,
                 ज़रा छू के तो देखो तुम,पसीने छूट जाएंगे ,
पड़ेंगे गाल पर तो मुंह तुम्हारा लाल कर देंगे,
              उँगलियाँ पाँचों की पांचो ,उभर गालों पे आएंगी

घोटू

फ्लर्टिंग

             फ्लर्टिंग
                   १
मज़ा लैला और मजनू सी,मोहब्बत में नहीं आता
मज़ा मियां और बीबी की ,सोहबत में नहीं  आता
चुगे या ना चुगे चिड़िया ,रहो तुम डालते दाना ,
मज़ा जो आता फ्लर्टिंग में ,कहीं पर भी नहीं आता
                           २
तुम्हारी हरकतों से वो,अगर जो थोड़ा हंसती है
कर रहे फ्लर्ट तुम उससे ,भली भांति समझती है
हंसी तो फंस गयी है वो,ग़लतफ़हमी में मत रहना ,
मज़ा उसको भी आता है ,वो टाइम पास करती है
                             ३
देख कर हुस्न मतवाला ,तुम्हारी बांछें जाती खिल
लिया जो देख बीबी ने ,बड़ी हो जाएगी   मुश्किल
जवानी देखते उसकी ,बुढ़ापा  अपना भी देखो ,
कहेगी जब तुम्हे अंकल,जलेगा फिर तुम्हारा दिल
                           ४
ये तुम्हारा दीवानापन ,ज़माना ताकता  होगा
फलूदा होगी इज्जत जो,गये पकड़े,पता होगा
बड़ा छुप छुप के मस्ती में ,इधर तुम मौज लेते हो,
उधर घर में तुम्हारे भी ,पड़ोसी झांकता होगा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 1 मई 2015

पिसाई ही पिसाई

         पिसाई ही पिसाई
आदमी यूं तो रहता है ,अकेला मस्त मस्ती में
जानता है उसे पिसना ,पडेगा  फंस गृहस्थी में
मगर वो ढोल बाजे से,रचाता अपनी है शादी
और उसका बेंड बजता है,उमर भर की है बर्बादी
गृहस्थी  और दफ्तर में,हमेशा रहता  वो घिसता
बहू और सास झगडे भी ,बिचारा आदमी पिसता
गेंहूँ,मक्की जब पिसते है ,तभी रोटी है बन पाती
मसाले पिसते, खाने में ,तभी लज्जत है आ पाती
 पुदीना और धनिया पिस के,चटनी का मज़ा देते
रचा कर के पिसी मेंहदी ,वो हाथों को सजा  लेते
 और  मंहगाई के मारे ,आप और हम पिसे  जाते
साथ में गेंहू के सारे ,बिचारे घुन भी पिस   जाते
पिसाई से न ,लज्जत ही ,मगर बल भी है बढ़ जाता
अणु पिसता, बन परमाणु ,बड़ा बलवान बन जाता
पीसते दांत से खाना ,तभी हम है ,निगल पाते
हमें गुस्सा जब आता है ,पीस  कर दांत ,रह जाते
कहा 'घोटू' ने ये हंस कर ,मज़ा जीने का है पिस कर
है चन्दन एक लकड़ी पर,सर पे चढ़ती है वो घिस कर

मदन मोहन बाहेती' घोटू'
 

वो

                        वो

कोई कहता है बदली है,गरजती है,बरसती है ,
            कोई कहता है बिजली है,जो गिरती तो गज़ब ढाती
बहुत दिलकश,बहुत सुन्दर,बहुत नाजुक,रंगीली है ,
            वो खुद है फूल,फूलों पर ,मगर तितली सी मंडराती
अजब अंदाज आँखों का ,कोई कहता है मछली सी,
            कोई कहता है हिरणी सी,समझ ही हम नहीं पाते
  गजब ढाते है उस पर लब ,बदलते रहते है जब तब,
             कभी पंखुड़ी गुलाबी है ,कभी अंगार  दहकाते
सजी है मोतियों जैसी ,चमकते दांत की माला ,
              दौड़ती काटने को पर ,कभी जब कटकटाती है
कोई कहता वो काँटा है,बड़ी  तीखी  चुभन इनकी,
              कोई कहता वो गुल है पर,हज़ारों गुल खिलाती है
है उनकी जुल्फ बदली सी ,चढ़ी रहती जो उनके सर ,
             बड़ी मुश्किल से वो उसको,कहीं कर पाती है बस में
गूंथ कर प्यारी सी चोंटी ,उन्हें लाती है काबू में,
               लटक कर दोनों कन्धों पर,लगे नागिन सी वो डसने
कोई कहता है हिरणी सी,मोरनी सी कहे कोई ,
               या उनकी चाल कों ,गजगामिनी  कोई बताता है
कमल की नाल सी बांहे ,कदलीस्तंभ जंघाएँ,
                फलों से है लदी डाली ,चमन सा तन , सुहाना  है
कोई कहता है चंदा है ,कोई कहता है सूरज है ,
                कभी नदिया सी लहराती,कभी ममता का निर्झर है
कोई कहता सहेली है,कोई कहता पहेली है,
                 वो क्या है और कैसी है,समझना तुम पे निर्भर है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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