एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

गुरुवार, 1 मई 2014

दिल के अरमां ,आंसूओ में खो गये

  दिल के अरमां ,आंसूओ में खो  गये
                       १ 
शाम को सजती,संवरती मै रही,
                      आओगे तुम,प्यार निज दरशाओगे
बाँध लोगे बांहों  में अपनी मुझे ,
                       या कि मेरी बांहों  में बंध  जाओगे
आये थके हारे तुम ,खाया पिया ,
                         टी वी देखा  और झटपट  सो गये
क्या बताएं ,रात फिर कैसे कटी ,
                           दिल के अरमां ,आंसूओं में खो गये 
                            २
मुश्किलों से पार्टी का पा टिकिट ,
                       उतरे हम चुनाव के मैदान में
गाँव गाँव ,हर गली ,सबसे मिले ,
                   पूरी ताकत झोंकी अपनी जान  में
पानी सा पैसा बहाया ,सोच ये,
                       कमा लेंगे ,एम पी. जो हो गये
नतीजा  आया ,जमानत जप्त थी,
                       दिल के अरमां , आंसूओं में खो  गये 
                         ३
हुई शादी,प्यारी सी बीबी मिली,
                       धीरे धीरे ,बेटे भी दो हो गये
बुढ़ापे का सहारा ये बनेगें ,
                      लगा कर ये आस हम खुश हो गये
पढ़े,लिख्खे,नौकरी अच्छी  मिली ,
                      हुई शादी,अलग हमसे हो गये
बुढ़ापे में हम अकेले रह गये,
                  दिल के अरमां , आंसूओं में खो  गये

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मई से मई तक

    मई  से मई तक

मई में,
एक सुरमई आँखों वाली से ,
सुर मिले
उसकी प्रेममयी बातों ने,
प्रेम का मय पान कराया
फिर आनंदमयी जिंदगी के सपने देखे
परिणाम में परिणय हुआ
और अगली मई तक,
वो प्रेममयी ,आनंदमयी ,सुरमई आँखों वाली ,
ममतामयी बन गयी

घोटू

लेनिन की जीवनी का मुड़ा हुआ पन्ना














इस कोलाहल के बीच
कुछ लोग जयकारा नहीं लगा रहे हैं
टोपी भी नहीं पहनते हैं
न लाठी, न तलवार, न त्रिशूल, न टीका
कुछ पूछो तो मुस्कुरा देते हैं बस

क्या वे सच में तृप्त लोग हैं
क्या ये उनकी आतंरिक शांति है
या ऐसे लोगों का मौन
ज्वालामुखी विस्फोट से ठीक पहले
पर्वत की चोटी पर पसरे सन्नाटे जैसा है

अपने अन्दर खौलता हुआ लावा भरकर
ये लोग चुपचाप जोत रहे हैं
आज की बेनूरी शाम 
और क्रांति के भोर के बीच की बंजर ज़मीन
जहां उनके पसीने की एक-एक बूंद
मिट्टी में दबकर अंकुरित हो रही है

ये लोग उस मुड़े हुए पन्ने से आगे
पढ़ रहे हैं लेनिन की जीवनी
जिसे फाँसी के तख्ते तक जाने से ठीक पहले
भगत सिंह अपने सेल में छोड़ गए थे 

ये लोग सोवियत संघ की कब्र पर उपजी
हरी विषाक्त घास खाने वालों में नहीं हैं

---------------------------------------------
सुशील कुमार
दिल्ली, 24 अप्रैल 2014

प्रिय पत्नी तारा बाहेती के जन्मदिवस पर

    मेरी प्रिय पत्नी तारा बाहेती के जन्मदिवस पर
               शुभकामनाओं सहित

सड़सठ की हो गयी ,मगर अब भी मतवाली
वही  कशिश  है,वही  अदायें ,सत्रह  वाली
पांच दशक के बाद अभी भी उतनी  दिलकश
पास तुम्हारे आने को मन करता  बरबस 
वही ठुमकती  चाल ,निगाहें वो ही कातिल
मधुर मधुर  मुस्कान ,मोह  लेती मेरा दिल
तिरछी नज़रों वाला वो अंदाज ,वही है
वो ही साँसों की सरगम है ,साज वही है
 तो क्या हुआ ,बढ़ गया कंचन है जो तन पर 
तो क्या हुआ चढ़ गया चश्मा,अगर नयन पर
वो ही सुन्दर तन है,वैसी ही सुषमा है
और प्यार में ,अब भी वैसी ही ऊष्मा है
वही महकता बदन लिये खुशबू चन्दन की
वो ही प्यारी छटा और आभा यौवन की
अब भी तुम में वही चाशनी ,मीठी  रस की
बहुत बधाई तुमको अपने जनम दिवस की
सदा रहे मुख पर छाई  ,मुस्कान निराली
वही कशिश है ,वही अदायें , सत्रह  वाली

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

पत्नी तारा बाहेती के जन्मदिवस पर

    मेरी प्रिय

               शुभकामनाओं सहित

सड़सठ की हो गयी ,मगर अब भी मतवाली
वही  कशिश  है,वही  अदायें ,सत्रह  वाली
पांच दशक के बाद अभी भी उतनी  दिलकश
पास तुम्हारे आने को मन करता  बरबस 
वही ठुमकती  चाल ,निगाहें वो ही कातिल
मधुर मधुर  मुस्कान ,मोह  लेती मेरा दिल
तिरछी नज़रों वाला वो अंदाज ,वही है
वो ही साँसों की सरगम है ,साज वही है
 तो क्या हुआ ,बढ़ गया कंचन है जो तन पर 
तो क्या हुआ चढ़ गया चश्मा,अगर नयन पर
वो ही सुन्दर तन है,वैसी ही सुषमा है
और प्यार में ,अब भी वैसी ही ऊष्मा है
वही महकता बदन लिये खुशबू चन्दन की
वो ही प्यारी छटा और आभा यौवन की
अब भी तुम में वही चाशनी ,मीठी  रस की
बहुत बधाई तुमको अपने जनम दिवस की
सदा रहे मुख पर छाई  ,मुस्कान निराली
वही कशिश है ,वही अदायें , सत्रह  वाली

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-