एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

प्रभु दर्शन का प्रताप

       प्रभु दर्शन का प्रताप

एक आदमी उम्र भर रहा बुरे कामो में लगा

जब पचास के आसपास हुआ ,
उसका जमीर जगा
सोचा अब तलक करता रहा पाप कर्म
न कोई भला काम किया ना दान धर्म
मरने के बाद पछताऊंगा
यहाँ भी नारकीय जीवन जिया है,
मरने के बाद भी नरक जाऊँगा
तो क्यों न जीते जी अपना जीवन सुधार लूं
दान धर्म करलूं और प्रभू का नाम लूं
मौके की बात की उस समय भगवान,
पृथ्वी  का लगा रहे थे चक्कर 
उन्होंने  उसका ह्रदय परिवर्तन देख कर
सोचा इसकी परीक्षा ले लें जरा
और उन्होंने एक बीमार,निर्धन बूढ़े का रूप धरा
और इस आदमी से मदद की गुहार की,
तो उसके  भीतर का सोया इंसान जग गया
और वो उस बूढ़े की सेवा में लग गया
प्रभु जी प्रसन्न  हुए  ,और प्रकट  होकर
उन्होंने उसको दे दिया ये वर
सामनेवाले मंदिर के तू लगाएगा जितने चक्कर
उतने ही वर्षों की होगी तेरी उमर,
आदमी ख़ुशी से पागल हो चक्कर लगाने लगा
और तेजी से भागने लगा
पर पचासवें चक्कर में उसका हार्ट फ़ैल हो गया
और उसका देहांत हो गया
मरने के बाद वो चकराया
जब उसने अपने आप को स्वर्ग में पाया
उसने चित्रगुप्त जी से पूछा,
मैंने उम्र भर था पाप किया
तो आपने कैसे मुझे ये स्वर्ग  दिया
चित्रगुप्त  जी बोले  ये सच है,तूने,
 उमर भर अपने को  पाप ही पाप में उलझाया था 
पर मरने के पूर्व तेरे मन में पश्चाताप आया था
और तूने साक्षात् प्रभू के दर्शन का पुण्य कमाया है
बस इसी का प्रताप है,तू स्वर्ग आया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

करुण पुकार

रे मैया मेरी छाया भी ना तुझे सुहाती है,
भैया से तो तू तो हरदम लाड़ दिखाती है;
सूखा मुझको देकर मेवा उसे खिलाती है,
मैया मुझसे भी न क्यों तू प्यार जताती है |

क्या गलती ये मेरी कन्या काया पाई हूँ ?
पर मैया मैं भी तो तेरे कोख से आई हूँ;
तू भी तो एक कन्या है क्यों इसे भूलाती है,
मैया मुझसे भी न क्यों तू प्यार जताती है |

दादा-दादी, बापू को तो जरा न भाती मैं,
पर तूने तो जन्मा क्यों फिर याद न आती मैं?
तू खुद ही जाके क्यों न सबको समझाती है?
मैया मुझसे भी न क्यों तू प्यार जताती है |

गर्भ में थी तब ही सबने मुझको मरवाना था,
ईश कृपा थी धरती पर जो मुझको आना था,
भैया जैसे ही प्रकृति मुझको भी बनाती है,
मैया मुझसे भी न क्यों तू प्यार जताती है |

नहीं अलग मैं भैया से हूँ, नहीं हूँ कमतर मैया,
बाला-बाल में भेद नहीं है अब तो मानो मैया;
कुल रोशन कर सकती अवसर क्यों न दिलाती है?
मैया मुझसे भी न क्यों तू प्यार जताती है |

धरती से उस आसमान तक मैं भी तो उड़ सकती माँ,
भैया जो-जो कर सकता है मैं भी तो कर सकती माँ,
क्यों भैया को खुशियाँ देती, मुझे रुलाती है,
मैया मुझसे भी न क्यों तू प्यार जताती है |

खुद तुम समझो मैया और जग को भी तुम बताओ,
दूर करो हर भेद को, सबके मन का मैल मिटाओ,
सब माएं ये समझ के कसम क्यों न खाती है ?
मैया मुझसे भी न क्यों तू प्यार जताती है |

कर्मक्षेत्र -कुरुक्षेत्र

        कर्मक्षेत्र -कुरुक्षेत्र

जीवन में जंग होती अक्सर,

                       जर,जमीन का हो चक्कर
सगे और सम्बन्धी कितने,
                           तुमसे लड़ने को तत्पर
भ्राता दुर्योधन  हठ धर्मी ,
                           जिद है सत्ता   पाने की
घर घर पर होती महाभारत,
                           ये है रीत जमाने की
  कई शकुनी,भड़काने को,
                           फेंक   रहे  उलटे पासे
धृतराष्ट्र भी ,पुत्र मोह में,
                           बंद रखे ,अपनी आँखें
भरी सभा,रो रही द्रोपदी,
                            चीरहरण  इज्जत का है
तो फिर कौन रोक सकता है,
                             युद्ध  महाभारत  का है
कर्मक्षेत्र ही कुरुक्षेत्र  है,
                            भले बुरे की जंग छिड़ी
सत्य असत्य आज दोनों की,
                            आपस  में है फ़ौज भिड़ी
अधिकार की इस लड़ाई में,
                            लड़ना पड़ता,जीवन भर
देख सामने ,कुछ अपनों को,
                           शस्त्र  फेंकतें है कायर
तुम अर्जुन बन,कृष्ण चन्द्र को ,
                             बना सारथी ,पास रखो
तुम अपने गांडीव ,बाहुबल,
                              पर पूरा  विश्वास  रखो
कृष्ण साथ है,राह दिखाते,
                             ध्वज  पर बैठे हनुमत है
तो समझो इस महासमर में,
                            जीत  तुम्हारी निश्चित  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

              
       

महिलायें-महान बड़ी

     महिलायें-महान बड़ी

महिलायें,सचमुच में,होती है महान बड़ी,

                          पति का भी ख्याल रखे,बच्चे भी पाले है
कभी सूर्य चंदा बन,रास्ता दिखलाती,
                          अंधियारे जीवन में,करती उजियाले   है
जीवन की उलझन के डोरे भी सुलझाती,
                           और कभी मनभावन ,डोरे भी डाले है
मुख पर मुस्कान लिए,ख्याल रखे है सब का,
                             दफ्तर भी जाती है,घर भी संभाले  है
कभी सरस्वती है तो ,कभी रूप दुर्गा का,
                             कभी ज्ञान बाँटें है,कभी दुष्ट  मारे है
नारी तो देवी है,नारी सा कोई नहीं,
                             वो घर की लक्ष्मी है,घर को सँवारे है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'   

सोमवार, 1 अक्तूबर 2012

वो बचपन कितना प्यारा था

       वो बचपन कितना प्यारा था

जब मै था,नन्हा नन्हा मुन्ना गोलू सा

सबको देख मुस्करा देता था मै भोलू सा
सजा धजा कर मुझको सुन्दर और सलोना
आँखों में काजल ,माथे पर लगा ठिठोना
करती थी तैयार,पास था जो भी आता
करता मुझको प्यार और था मै  इठलाता
बूढ़े,बड़े,जवान,और कितनी कन्यायें
मुझसे मिलने आती थी ,बाँहें फैलाये
मुझको गोदी में लेकर घूमा करती थी
मेरे कोमल गालों को चूमा करती थी
उन्हें देख कर मै भी भरता था किलकारी
टांगें हिला हिला  उन पर जाता बलिहारी
मुझको गोदी में लेकर जो थी इतराती
आज वो ही कन्यायें ,मुझसे है कतराती
बड़ा हो गया तो क्या,मै  हूँ,वो का वोही
पहले जैसा प्यार  क्यों नहीं  करता कोई
हे भगवन,मुझको लौटा दे,प्यारा बचपन
उठा गोद में,प्यार करें,कन्यायें ,हरदम
जब मै उनकी प्यारी आँखों का तारा था
वो बचपन कितना प्यारा था

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


हलचल अन्य ब्लोगों से 1-