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शनिवार, 17 सितंबर 2011

जेबकतरी सरकार



बढ़ती कीमत देख के मच गया हाहाकार,
जनता की जेबें काटे ये जेबकतरी सरकार |

मोटरसाईकिल को सँभालना हो गया अब दुश्वार
कीमतें पेट्रोल की चली आसमान के पार |

बीस कमाके खरच पचासा होने के आसार,
महँगाई करती जाती है यहाँ वार पे वार |

त्राहिमाम कर जनता रोती दिल में जले अंगार,
सपने देखे बंद होने के महँगाई के द्वार |

महंगाई के रोध में सब मांगेंगे अधिकार,
दो-चार दिन चीख के मानेंगे फिर हार |

तेल पिलाये पानी अब कुछ कहना निराधार,
मन मसोस के रह जाना ही शायद जीवन सार |

लुटे हुए से लोग और धुँधला दिखता ये संसार,
त्योहारों के मौसम में अब मिले हैं ये उपहार |

देख न पाती दु:ख जनता के उल्टे देती मार,
जेबकतरी सरकार है ये तो जेबकतरी सरकार |

शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

ब्रेक के बाद --आपका भविष्य

     ब्रेक के बाद --आपका भविष्य
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टी.वी. वाले भी गजब ढाते है
पहले तो ये ख़बरें दिखाते है
पेट्रोल के दाम तीन रूपये बढे
 ढूध के दाम  दो रूपये  चढ़े
रिज़र्व बैंक ने ब्याज की दरें बढाई
इस हफ्ते फिर बढ़ी महंगाई
आम आदमी परेशान होगा
बारिश से सड़कों पर जाम होगा

फलों को केमिकल से ,बढ़ाते ,पकाते है
मिठाइयों में सिंथेटिक खोवा मिलाते है
इस बार गरमी का ,रिकार्ड टूट जायेगा
बिजली में कटौती होगी,पानी कम आएगा
झपट्टेमार खींच लेते गले से चेन है
बेकाबू कानून व्यवस्था ,कर रही बेचैन है
और इसके बाद,हमें  ये सुनायेंगे
ब्रेक के बाद,
आपका आपका आज का दिन कैसा रहेगा,
पंडित जी बतलायेगे

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

या मै जानू या तुम जानो

हम दोनों का प्यार पुराना,
परिणिति  परिणय में बदली
पंख लगा कर उड़ते थे हम,
मै भी पगला,तुम भी पगली
और फिर जीवन चक्र चला तो,
सर पर आयी जिम्मेदारी
घर से दफ्तर,दफ्तर से घर,
भाग दौड़ ,मेहनत,लाचारी
थका हुआ आता दफ्तर से,
मुझे  प्यार से तुम सहलाती
प्यार भरा सुन्दर चेहरा लख,
मेरी सब थकान मिट जाती
नए जोश और नयी फुर्ती से,
भरने लगता मन उडान है
जब है मेरा प्यार उमड़ता,
चढ़ जाती फिर से थकान है
लगती कभी एश्वर्या तुम,
लगती कभी सायरा बानो
कैसा है ये खेल प्यार का,
या मै जानू या तुम जानो

-मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 15 सितंबर 2011

समय की धारा में पीछे लौटकर 1979 तक जा पहुँचा हूँ जहाँ मैने अपनी पहली कविता लिखी थी।

हिंदी संस्थान के सभागार में वर्ष 2000 में राहुल फाउन्डेशन की ओर से आयोजित उस गोष्ठी की याद हो आयी जब सुप्रसिद्व चिंतक और विज्ञान लेखक श्री गुणाकर मुले द्वारा ‘समय से जुडे कालस्य कुटिला गतिः’ नामक विषय पर ऐक व्याख्यान को सुनने का अवसर प्राप्त हुआ था उस संगोष्ठी में उन्होंने समयरेखा पर दार्शनिक तथा वैज्ञानिक यात्रा कराने का सुख श्रोताओं को उपलब्ध कराया था। कदाचित इस गोष्ठी में जाकर भी मैं उस टाइम मशीन पर सवार होकर लौटा हूँ जिसमें समय की धारा में पीछे लौटकर 1979 तक जा पहुँचा हूँ जहाँ मैने अपनी पहली कविता लिखी थी। यह कविता मेरे स्कूल की पत्रिका के साथ साथ साप्ताहिक समाचार पत्र‘गढवाल मंडल’ मे छपी थी। विद्यालय पत्रिका की प्रति न जाने कहाँ गुम हो गयी परन्तु समाचार पत्र की कतरन आज भी सहेजी रखी है। है। कदाचित आपको यह आज भी सार्थक जान पडे। संकल्प(कविता)
हमको आगे बढना है , हिमगिरि पर भी चढना है।
हिम्मत करके हमको वीरों हमको कदम बढाना है।
हम भारत के श्रेष्ठ नागरिक हमको देश जगाना है।
इसी देश के हित में मरकर अमर हमें हो जाना है।
इस धरती पर जन्म लिया तो यही हमारा धाम है।
इसकी रक्षा में मर मिटना मात्र हमारा काम है।
माँ भारत का मान बढाना इसको नित चमकाना है ।
बढे देश का मान सदा ही यही ध्येय हो हम सबका।
सभी धर्म वाले भाई हैं भाव रह अपने पनका।
और छात्र को निष्ठा पूर्वक, नित्य नियम से पढन है।
गाँधी गौतम के सिद्धांतो को फिर से अपनाना है।
माँ के गौरव मस्तक पर नया मुकुट नित मढना है।
हमको आगे बढना है , आगे कदम बढाना हैं।
हमको आगे बढना है , हिमगिरि पर भी चढना है।
अशोक कुमार शुक्ला कक्षा 9 पौडी गढवाल (मेरी प्रथम प्रकाशित कविता, रचनाकाल सन 1978, प्रकाशक-साप्ताहिक‘गढवाल मंडल)

एक इंजिनियर की आत्मकथा


इंजिनीयर्स डे पर "मोक्षगुंडम विश्वेस्वरैया", जिनके जन तिथि पर ये मनाया जाता है, को सादर नमन |
पेश है मेरी एक रचना |

मैं एक इंजिनियर हूँ,
जिंदगी के हर एक क्षेत्र में, कभी जूनियर तो कभी सीनियर हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

बचपन से लेके आज तक,
पढ़ाई से कभी रिश्ता न गया,
किताबों और कंप्यूटर में घुसा, कहने को मैं superior हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

चार साल वो कॉलेज के,
मस्ती में ही उड़ते गए,
कंपनी दर कंपनी रगड़ता हुआ, मैं अजीब creature हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

माँ-बाप के हरेक सपने,
पुरा किया पर साथ न रहा,
सब कुछ पाकर भी खोया हुआ, बहता हुआ मैं river हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

प्यार दोस्ती भी खूब किया,
शादी-बच्चे भी संभाला है,
जिम्मेदारी से भागा नही, मैं ख़ुद अपना career हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

पैसों की तो कमी न हुई,
पर परिवार संग रह न पाया,
भाग-दौड़ में भागता हुआ, चलता हुआ मैं timer हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

हर एक रूप जिंदगी का,
देखा है मैंने करीब से,
हर कष्टों को झेला मैंने, हर प्रॉब्लम से मैं familiar हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

बुढ़ा हुआ तब पीछे देखा,
हाथ में कुछ न साथ में कुछ,
भटक-भटक के रुक सा गया, पड़ा हुआ एक furniture हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ |

मौत की घड़ी जब पास है आई,
पाने को कुछ न खोने को कुछ,
सबकी ही तरह रवाना होता, आसमान के मैं near हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ |

(ये एक आम इंजिनियर के मन की उस समय की सोच है जब वो पुरी जिंदगी बिताने के बाद मरने के कगार पर होता है। वो एक मध्यम वर्गीय परिवार से होके भी एक इंजिनियर तो बन जाता है पर जिंदगी भर वो 'आम' ही रह जाता है। )


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