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बुधवार, 3 अक्तूबर 2018

चार पंक्तियाँ -५ 

उनकी हाँ में हाँ मिलाओ तुम सदा ,
बात हर एक पर  बजाओ तालियां 
अगर उनकी करी  ये चमचागिरी ,
समझो आशीर्वाद उनका पा लिया 
वो करे जो भी और जैसा भी करे ,
जरूरी, पुल तारीफों के बांधना 
बात उनके मन मुताबिक ना करी ,
लगेंगे  देने  तुम्हे  वो  गालियां 

घोटू 
बूंदी और सेव 

मोती सी गोलमोल,पीली एक मीठी बूंदी ,रसासिक्त 
और एक चरपरे,मनभावन ,कुरमुरे सेव है स्वादिष्ट 
दोनों ही सबको प्यारे है ,दोनों ने मोहा सबका मन 
है रूप भले ही अलग अलग ,ये भी बेसन ,वो भी बेसन 

जब गीला बेसन बूँद बूँद,था तला गया देशी घी में 
रसभरी चासनी उसने पी तो बदल गया वो बूंदी में 
मिल मिर्च मसाले संग बेसन ,निकला छिद्रों से झारी की 
और गर्म तेल में तला गया ,बन गया सेव वह प्यारी सी 
जैसी जिसकी संगत होती ,वैसी ही रंगत जाती बन 
है रूप भले ही अलग अलग ,ये भी बेसन ,वो भी बेसन 

सज्जन का साथ अगर मिलता ,मानव सज्जन बन जाता है 
मिलती जब दुर्जन की संगत ,तो वह दुर्जन कहलाता है 
पानी के संग घिसे चंदन ,तो वह प्रभु के मस्तक चढ़ता 
अग्नि का साथ अगर पाता ,तो किसी चिता में जा जलता 
संगत से एक राख बनता ,संगत से एक बने पावन 
है रूप भले ही अलग अलग ,ये भी चंदन,वो भी चंदन 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018

Sunday, January 22, 2012

अहो रूप-महा ध्वनि

अहो रूप-महा ध्वनि 
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इक दूजे की करे प्रशंसा,हम तुम ,आओ
मै तुम्हे सराहूं,  तुम मुझे  सराहो
ऊंटों की शादी में जैसे,आये गर्दभ,गायक बन कर
ऊँट सराहे गर्दभ गायन,गर्दभ कहे  ऊँट को सुन्दर
सुनकर तारीफ,दोनों पमुदित,इक दूजे का मन बहलाओ
मै तुम्हे सराहूं,तुम मुझे सराहो
काग चोंच में जैसे रोटी, नीचे खड़ी लोमड़ी, तरसे 
कहे  काग से गीत सुनाओ,अपने प्यारे मीठे स्वर से
तारीफ़ के चक्कर में अपने ,मुंह की रोटी नहीं गिराओ
मै तुम्हे सराहूं, तुम मुझे सराहो
इन झूंठी तारीफों से हम,कब तक खुद को खुश कर लेंगे
ना तो तुम ही सुधर पाओगे,और हम भी कैसे सुधरेंगे
इक दूजे की  कमी बता कर ,कोशिश कर ,सुधारो,सुधराओ
मै  तुम्हे सराहूं, तुम मुझे सराहो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 
              साडू  भाई 

एक ही कुए से,बाल्टी भर भर के ,
     प्यास को जिन्होंने ,अपनी बुझाया है 
एक ही चूल्हे से,लेकर के अंगारा,
    सिगड़ियां अपनी को,जिनने  जलाया है 
एक ही चक्की का,पिसा हुआ आटा और ,
      एक  हलवाई की ही,  खाते मिठाई    है          
एक ही दूकान पर,ठगे गए दो ग्राहक,
       आपस में   कहलाते, वो साडू भाई    है 

घोटू   

शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

न नौ मन तेल होगा,न राधा नाचेगी
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(कुछ प्रतिक्रियाएं )
                  १
राधा को नाचना तो नहीं आता,
मगर बहाने बनाती है
कभी आँगन को टेढ़ा बताती है
तो कभी नौ मन तेल मांगेगी
क्योंकि वो जानती है,
न नौ मन तेल होगा होगा,
न राधा नाचेगी
   २
राधा, नाचने के लिए,
अगर नौ मन तेल लेगी
तो इतने तेल का क्या करेगी?
क्या पकोड़ियाँ तलेगी?
और अगर इतनी पकोड़ियाँ खायेगी
तो खा खा कर मोटी हो जाएगी 
फिर कमर कैसे मटकायेगी
और क्या नाच भी पाएगी?
       3 
  हमारे कृष्ण कन्हैया
 कितने होशियार थे
बांसुरी बजा देते थे
और बिना नौ मन तेल के,
राधा को  नचा देते थे 
जैसे मिडिया वाले,
टी.वी. बजा बजा देते है
सत्ता की राधा को,
नचा नचा देते है 
         ४
अगर नौ मन तेल बचाना है,
और राधा को नचाना है
तो कोई आइटम सोंग बजा दो
खुद भी नाचने लगो,
और राधा को भी नचा दो
           ५
शादी के पहले,
तुमने नौ मन तेल देकर ,
राधा को खूब नचाया
पर शादी के बाद,
जब रुक्मणी आएगी
तो तुम्हे इतना नचाएगी
की मज़ा आ जायेगा
तुम्हारा,नौ मन से भी ज्यादा,
तेल निकल जायेगा
            6
गोकुल में,
जब थे कृष्ण और राधा
दूध ,दही,मक्खन खाते थे
और दोनों,गोप गोपियों के संग,
नाचते गाते थे
मक्खन और घी इतना होता था,
की हर कोई,
पुए,पूरी और पकवान,
देशी घी ने पकाता होगा
तेल कौन खाता होगा?
 इसलिए मेरा ये मत है 
की ये मुहावरा ही गलत है
          ७
नाचने के लिये,
नौ मन तेल की मांग करना,
एक दम,ना इंसाफी है
राधा को नचाने के लिये,
तो बांसुरी की धुन,
और कान्हा का प्यार ही काफी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'  

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