एक सन्देश-

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मंगलवार, 23 मई 2017

आधार कार्ड 

मेरी आँखों की पुतली में वास तुम्हारा 
मेरे हाथों के पोरों पर  छाप   तुम्हारा 
तुम बिन मेरी कोई भी पहचान नहीं है 
बिना तुम्हारे ,होता कुछ भी काम नहीं है 
तुम ही मेरा संबल हो और तुम्ही सहारा 
मैं ,मैं तब हूँ ,जब तक कि है संग तुम्हारा
रहते मेरे साथ हमेशा ,यत्र तत्र हो  
तुम मेरे आधार कार्ड,पहचानपत्र हो 

घोटू  
दोहे 
१ 
सीख गर्भ से आ रही,कम्प्यूटर का ज्ञान 
अभिमन्यु सी हो रही,पैदा अब संतान 
२ 
लिए झुनझुना खेलना ,हुई पुरानी बात 
अब है बच्चे खेलते ,मोबाइल ले हाथ 
३ 
घर घर में ऐसी हुइ,कंप्यूटर की पैठ 
ए बी,सी डी हो गया ,गूगल,इंटरनेट 
४ 
पोती से दादी कहे ,हमको दो समझाय 
व्हाट्सएप पर संदेशे, ,कैसे भेजे जाय 
टीचर से बढ़ कर गुरु ,गूगल ,गुरुघंटाल 
सेकंडों में हल करे, सारे प्रश्न,सवाल 

घोटू 
कबूतर कथा 

जोड़ा एक कबूतर का ,कल ,दिखा ,देरहा मुझको गाली 
क्यों कर मेरी 'इश्कगाह ' पर ,तुमने लगवा  दी  है जाली 
प्रेम कर रहे दो प्रेमी पर  ,काहे को  प्रतिबंध  लगाया 
मिलनराह  में वाधा डाली ,युगल प्रेमियों को तडफाया 
बालकनी के एक कोने में , बैठ गुटर गूँ  कर लेते थे 
कभी फड़फड़ा पंख,प्यार करते,तुम्हारा क्या लेते थे 
मैंने कहा कबूतर भाई ,मैं भी हूँ एक प्रेम  पुजारी 
मुझको भी अच्छी लगती थी ,सदा प्रेम लीला तुम्हारी 
लेकिन जब तुम,हर चौथे दिन ,नयी संगिनी ले आते थे 
उसके संग तुम मौज मनाते ,पर मेरा दिल तड़फाते थे 
क्योंकि युगों से मेरे जीवन में बस एक कबूतरनी  है 
जिसके साथ जिंदगी सारी ,मुझको यूं ही बसर करनी है 
तुम्हे देखता मज़ा उठाते,अपना साथी बदल बदल कर 
मेरे दिल पर सांप लौटते,तुम्हारी किस्मत से जल कर 
मुझको बड़ा रश्क़ होता था ,देख देख किस्मत तुम्हारी 
रोज रोज की घुटन ,जलन ये देख न मुझसे गयी संभाली 
और फिर धीरे धीरे  तुमने ,जमा लिया कुछ अड्डा ऐसा 
तुमने मेरी बालकनी को ,बना दिया प्रसूतिगृह जैसा 
रोज गंदगी इतनी करते ,परेशान होती  घरवाली 
इसीलिए इनसे बचने को ,मैंने लगवा ली है जाली 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
क्षणिकाएं 
१ 
वो अपनी हठधर्मी को अनुशासन कहते है 
उनके लगाए प्रतिबंध ,उनके सिद्धांत रहते है 
हमारा अपनी मर्जी से जीना ,कहलाता उच्श्रृंखलता है 
ये हमे खलता है 
२ 
इसे आत्मनिर्भरता कहे या स्वार्थ ,
या अपना हाथ,जगन्नाथ 
बिना दुसरे की सहायता के ,
जब अपनी तस्वीरें ,
अपनी मरजी मुताबिक़ खींची जाती है 
'सेल्फी' कहलाती है 
३ 
समय है ,सबसे बड़ा 'कोरियोग्राफर'
जो सबको नचाता है,अपने इशारों पर 
४ 
गुस्से सी ,समंदर की लहरें ,
जब उमड़ती हुई आती है 
किनारे पर ,शांत पड़ी हुई ,
सारी अच्छाइयों को भी ,बहा ले जाती है 

घोटू 
आ जाया करो 

जो हमसे मिन्नतें करते थे कि रोज रोज आ जाया करो 
और बैठ हमारे पहलू में ,तुम देर तलक ना जाया करो 
इतने बदले.,अब मिलते तो ,कहते जो कहना ,जल्द कहो ,
हम काम में हैं मशगूल बहुत,तुम वक़्त यूं ही ना ज़ाया करो 

घोटू 
                   दो दो मायें 

हर एक के जीवन में दो माँ,एक कुदरती,एक कानूनी 
शादी बाद 'मदर इन लॉ 'मिल,कर देती है खुशियां दूनी
 
जन्मदायिनी माँ का तो दिल,हरदम भरा प्यार से रहता 
जीवनसाथी की माँ में भी,झरना सदा प्यार का बहता 
माँ और सासू माँ , दोनों  बिन,लगे जिंदगी सूनी सूनी 
हर एक के जीवन में दो माँ,एक कुदरती,एक कानूनी
 
दे दामाद ख़ुशी बेटी को, सासू माँ का प्यार उमड़ता 
पोता दे और वंश बढ़ाये ,सास बहू रिश्ता, रंग चढ़ता 
एक दूजे के प्रति दोनों में ,होती प्रीत,मगर अंदरूनी 
हर एक के जीवन में दो माँ ,एक कुदरती,एक कानूनी
 
पति पत्नी का,एक दूजे की ,माँ के संग संबंध  निराला 
अगर मिले मन,स्वर्ग बने घर,नहीं मिले तो गड़बड़झाला 
इन दोनों की नोक झोंक  बिन ,लगे जिंदगी बड़ी  अलूनी 
हर एक के जीवन में दो माँ,एक कुदरती,एक कानूनी 

मदनमोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 18 मई 2017

Re:

My Dearest,

     My name is Samira, am an undergraduate, a young lovely and caring girl from Kenya but am staying at the refugee camp in Burkina Faso now , do not consider the fact that we have not meet before because my condition compelled to write this mail to you after reading your profile and it is fascinating, I mail you due to the urgency of my condition here in the refugee camp for you to help me , please I really want to have a good relationship with you if you will accept me and I have problem about my inherited fund 6.7 million USA dollars deposited in Islamic Development Bank here in Burkina Faso by my late father, please I want you to assist me and stand as my foreign Trustee and partner, that is what the bank demands of me which is in accordance to my late father will and instruction , please you will provide your account or open new account for the bank to transfer my inherited fund 6.7 million USA dollars into as my foreign partner and Trustee ,according to the bank Director it will involve little expenses which you have to assist on and for your time ,expenses and effort i will give you 30% of the total money which you will take immediately it is transfer into your account , I have all the document for prove and I want you to please be honest with me if you have accept to assist me, to reply  here is my private email misssamirakipkalya023@gmail.com  

Yours sincerely
Miss Samira Kipkalya

शुक्रवार, 5 मई 2017

ख्वाब में ही सही रोज़ आया करो...

ख्वाब में ही सही रोज़ आया करो
मेरी रातों को रौशन बनाया करो

ये मुहब्बत यूँ ही रोज़ बढती रहे
इस कदर धड़कनें तुम बढ़ाया करो

मैं यहाँ तुम वहाँ दूरियां हैं बहुत
अपनी बातों से इनको मिटाया करो

मुझको प्यारा तुम्हारा है गुस्सा बहुत
इसलिए तुम कभी रूठ जाया करो

मुझे घेरें कभी मायूसियां जो अगर
बच्चों सी दिल को तुम गुदगुदाया करो

तुमको मालूम है लोग जल जाते हैं
नाम मेरा लबों पे न लाया करो

जुड़ गयी ज़िन्दगी इसलिए तुम भी अब
नाम के आगे चर्चित लगाया करो

- VISHAAL CHARCHCHIT

मंगलवार, 2 मई 2017

माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

अब तक नहीं आयी 
कहां तू लुकाई
भूख ने पेट में 
हलचल मचाई
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

गयी जिस ओर 
निगाह उस ओर
घर में तो जैसे 
सन्नाटे का शोर
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

ये हरे भरे पत्ते 
बैरी हैं लगते
कहते हैं मां गई 
तेरी कलकत्ते
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

जल्दी से आओ 
दाना ले आओ
इन सबके मुंह पे 
ताला लगाओ
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

अब हम न मानेंगे
उड़ना भी जानेंगे
तेरे पीछे-पीछे हम
आसमान छानेंगे
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

- विशाल चर्चित

शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

सच्चा सुकून 

छुट्टियां लाख पांच सितारा होटल में मनालो,
सुकून तो अपने घर ,आकर ही मिलता  है 
पचीसों व्यंजन का ,बफे डिनर खा लो पर ,
चैन घर की दाल रोटी ,खाकर ही मिलता है 
सुना दो ,अच्छा सा कितना ही म्यूज़िक पर,
 मज़ा गुसलखाने में  ,गाकर ही मिलता है 
रंग बिरंगी परियां ,मन बहलाती, पर सुख,
बीबी की  बाहों में ,आकर ही मिलता है 

घोटू 

शनिवार, 15 अप्रैल 2017

बुझे चराग जले हैं जो इस बहाने से...

बुझे चराग जले हैं जो इस बहाने से
बहुत सुकून मिला है तेरे फिर आने से

बहुत दिनों से अंधेरों में था सफर दिल का
इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से

नया सा इश्क नयी सी है यूं तेरी रौनक
लगे कि जैसे हुआ दिल जरा ठिकाने से

चलो कि पा लें नई मंजिलें मुहब्बत की
बढ़ा हुआ है बहुत जोश चोट खाने से

कसम खुदा की तेरे साथ हम हुए चर्चित
जरा सा खुल के मुहब्बत में मुस्कुराने से

- VISHAAL CHARCHCHIT

मंगलवार, 28 मार्च 2017

खाना और पकाना 

साल में तीस चालीस दिन ,भंडारा या लंगर 
और पन्द्रह बीस बार ,जाना किसी के न्योते पर 
वर्ष में अठारह व्रत,याने दो बार की नवरात्रि 
चार व्रत चार जयंती के और एक शिवरात्रि 
चौविस व्रत एकादशी के ,
और बारह  पूर्णिमा के रखे  जाते 
इस तरह सालमे चार महीने तो ,
यूं ही बिन पकाये निकल जाते 
फिर पूरे सावन में एक समय भोजन करना 
सोम,मंगल और शनिवार को एकासन व्रत रखना 
याने की पांच माह से ज्यादा ,
सिर्फ एक समय भोजन 
तो फिर कूकिंग की जहमत क्यों उठाये हम 
लोग जो इतनी होटलें और रेस्टारेंट खोले पड़े है 
हम जैसो के  ही आसरे तो खड़े है
इनको चलते रहने देने के लिए भी तो कुछ करना है  
लोगो को रोजी रोटी देना है,
सरकार का सर्विस टेक्स भरना है 
और ये चाट पकोड़ी के ठेले ,पिज़ा बर्गर के आउटलेट 
हमारे भरोसे ही तो भरेगा इनका पेट 
जब आसानी से मिल जाता है ,
रोज नया टेस्ट और अलग अलग स्वाद 
तो फिर पकाने में ,
कोई क्यों करे ,अपना वक़्त बर्बाद 

घोटू  
बदलते रिश्तों का अंकगणित 

शादी के पहले आपका बेटा ,
जो पूरी तरह रहता है आपके संग 
शादी के बाद उसे मिल जाती है,
पत्नी याने क़ि अर्धांगिनी ,
और बन  जाता है उसका आधा अंग 
तो वह जिस दिन से पत्नी को ब्याह कर लाता है 
निश्चित है आधा तो आप के हाथ से निकल जाता है 
और फिर धीरे धीरे ,जब पत्नी का  है जादू 
तो अक्सर ,वो पूरा का पूरा ही हो जाता उसके काबू 
विवाह के फेरे ,उससे अपनी पत्नी की नजदीकियां ,
और आपसे उसकी दूरियां बढ़ाते है
अब उसे सास ससुर के रूपमे ,
एक जोड़ी माँ बाप औरमिलजाते है 
अब उसका प्यार ,
जिस पर था आपका पूर्ण अधिकार 
दो दो माँ पिताओं में विभाजित हो जाता है 
जो आपके दिलको दुखाता है 
तो पचास प्रतिशत अर्धांगिनी ,
  बाकी पचास  का आधा ,सास ससुर ले जाते है 
आप मुश्किल से ,बचा हुआ पच्चीस प्रतिशत ,
पाने के अधिकारी रह जाते है 
धीरे धीरे जब उसके बच्चे होते है ,परिवार बढ़ता है 
तो फिर उन सबमे भी उसका प्यार बंटता है 
और आपके हिस्से रह जाता है ,
बचा खुचा ,अवशेष मात्र ही,थोड़ा सा  प्यार 
और वो भी ,कभी कभी जब नहीं मिलता,
आप हो जाते है बेकरार 
पर भैया ,ये तो समाज का नियम है ,
याद  करिये ,आपने भी तो ऐसा ही किया था 
शादी के बाद ,अपने माँ बाप को ,
यूं ही तड़फता छोड़ दिया था 
तो ये सोच कर कि शादी के बाद से ,
बेटा निकल गया है हाथ से 
दुखी होना छोडॉ और मस्ती से जियो 
अपनी पत्नी के साथ प्रेम से ,
पकोड़े खाओ और चाय पियो 
क्योंकि एक वो ही है जो जीवन भर 
पूर्ण रूप से आपका साथ निभाती है 
आपकी सच्ची जीवनसाथी है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

सोमवार, 27 मार्च 2017

आज़ादी 

शीत  ऋतू में ,गरम वस्त्र में,
रखा हुआ था जिन्हें दबाकर 
अपना पूरा रंग आज वो,
दिखा रहे है मौका  पाकर 
श्वेत चर्म चुम्बी वसनो मे ,
हुई भीग कर, तुम इतना तर 
तन के सब आयाम तुम्हारे
,साफ़ हो रहे दृष्टिगोचर 
बहुत दिनों तक रह बन्धन में ,
जब मिलती थोड़ी आजादी 
तो अपनी मर्यादा तोड़े,
सब हो जाते है  उन्मादी 

घोटू 
चलते चलते  

तिनका तिनका चुन बनाते घोसला हम,
दाना दाना चुग के सबको पालते  है 
लम्हा लम्हा झेलते है परेशानी,
कतरा कतरा खून अपना बालते है 
गाते गाते ये गला रुँध सा गया है,
खाते खाते भूख सारी मर गयी है 
सोते सोते नींद अब जाती उचट है,
सहमे सहमे सपने भी आते नहीं है 
चलते चलते अब बहुत हम थक गए है,
थकते थकते अब चला जाता नहीं है 
तपते तपते पड़ गए है बहुत ठन्डे,
जलते जलते अब जला जाता नहीं है 
डरते डरते खो गयी मर्दानगी  है,
घुटते घटते ओढ़ ली ,खामोशियाँ है 
रोते रोते सूख सब आंसू गए है ,
मरते मरते क्या कभी जाता जिया है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पति का रिटायरमेंट-पत्नीकी आनंदानुभूति 

हो गए पति देवता जब से रिटायर,
रूदबा उनका थोड़ा सा ठंडा पड़ा है 
निठल्ले है,वक़्त काटे से न कटता ,
व्यवस्थाये ,गयी सारी  गड़बड़ा है 
अब उमर संग आ गया बदलाव उनमे ,
या कि इसमें ,उनकी कुछ मजबूरियां है 
कोई उनकी आजकल सुनता नहीं है,
और बच्चों ने बना ली दूरियां  है 
जवानी भर ,जरा भी मेरी सुनी ना ,
दबा कर के रखा मुझको उम्र सारी 
बुढापे का फायदा ये तो हुआ है,
पतिजी अब लगे है,सुनने हमारी 
काटने को वक़्त ,कब तक पढ़ें पेपर ,
टीवी पर कब तलक नज़रोंको गढाये 
एक ही अवलम्ब उनका मैं बची हूँ,
साथ जिसके,चाय पियें,गपशपाये 
नहीं कुछ भी बताते थे,छुपाते थे,
बात दिलकी खोल अब कहने लगे है 
राय मेरी ,मांगते हर बात पर है,
सुनते है और कहने मे रहने लगे है 
मूड हो  तो खेल लेते,ताश पत्ती,
या सिनेमा में दिखाते नयी पिक्चर 
उमर संग व्यवहार में बदलाव आया,
जिसके खातिर तरसती थी जिंदगी भर 
ये रिटायरमेंट उनका एक तरह से,
मेरे खातिर आया है वरदान बन के 
जवानी में ना ,बुढापे मे ही सही पर,
हो रहे है ,पूर्ण सब अरमान मन के 
बच्चे सेटल हो गए अपने घरों में ,
नहीं चिता कोई भी है ,या फिकर है 
कट रही अब जिंदगी ये चैन से है ,
मौज मस्ती मनाने की ये उमर है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
उमर इसमें क्या करेगी 

साथ अपनी कबूतरनी को लिए करना गुटरगूं ,
अरे ये है हक़ हमारा,उमर इसमें क्या करेगी 
पंख फैला ,आसमां में,रोज खाना कलाबाज़ी ,
अरे ये है 'लक 'हमारा ,उमर इसमें क्या करेगी 
मन मसोसे देखते रहना और जल कर ख़ाक होना ,
ये निकम्मापन है उनका,उमर इसमें क्या करेगी 
मिली जितनी जिंदगी है,करो तुम एन्जॉय खुल कर,
व्यर्थ है दिल को जलाना ,उमर इसमें क्या करेगी 
कोई घर की रोटी खाये ,कोई मंगवाता है पिज़ा,
सभी का  अपना तरीका ,उमर इसमें क्या करेगी 
कोई की पत्नी पुरानी,पड़ोसन पर कोई रीझा ,
लगे घर का माल फीका ,उमर इसमें क्या करेगी 
आदतें जो पालते हम ,है शुरू से ,ना  बदलती,
रहा करती मरने तक है ,उमर इसमें क्या करेगी 
हसीनो की ताकाझांकी ,का अलग ही लुफ्त होता ,
छूटती ये नहीं लत है,उमर इसमें क्या करेगी 
अगर घंटी नहीं बजती,फोन साइलेंट मोड़ पर है,
बेटरी या हुई डाउन ,उमर इसमें क्या करेगी 
उसको फिर रिचार्ज करवाने,का समय अब आगया है 
नया मॉडल या पुराना ,उमर इसमें क्या करेगी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 26 मार्च 2017

      करिश्मा कृष्ण का 
                  १ 
बिन लिए हथियार कर में,महाभारत के समर में ,
पांडवों की जय कराना, ये करिश्मा कृष्ण का था 
छोड़ अपना राज मथुरा,समंदर के किनारे जा ,
द्वारिका नूतन बसाना ,ये करिश्मा कृष्ण का था 
बालपन में ,उँगलियों से ,बांसुरी की धुन बजाना ,
गोपियों का मन रिझाना ये करिश्मा कृष्ण का था 
और बड़े हो उसी ऊँगली ,पर चढ़ा कर के सुदर्शन ,
चक्र ,दुनिया को हिलाना, ये करिश्मा कृष्ण का था 
                    २ 
लोग अक्सर ऐश्वर्य पा ,भूल जाते सखाओं को ,
दोस्ती पर सुदामा के ,संग निभाई  कृष्ण ने थी 
एक पत्नी झेलना मुश्किल ,मगर रख आठ रानी,
जिंदगी, खुश सभी को रख कर बितायी कृष्ण ने थी 
फलों की चिता किये बिन,कर्म की महिमा बता कर,
 महाभारत के समर  में ,गीता सुनाई कृष्ण ने थी 
ऐसा बंशी बजाने का महारथ हासिल किया था ,
उमर भर ही चैन की  ,बंशी बजायी  कृष्ण ने थी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'              

शार्ट कट 

मूर्ती को प्रभु समझ हम,पाहनो को पूजते है 
देव क्या ,हम देवता के वाहनों को पुजते है 
शिव का वाहन ,नन्दी है तो,हम उसे भी जल चढाते 
और मन की कामना हम ,कान में उसके  सुनाते 
गजानन वाहन है मूषक ,चढाये मोदक उड़ाता 
कान में उसके मनोरथ ,फुसफुसा  कर कहा जाता
चढ़ाते हनुमानजी को, राम का हम नाम लिखते 
भला क्यों सीधे प्रभु से , मांगने में हम  हिचकते 
सोचते है प्रभु से यदि ,करेगा रिकमंड  वाहन 
तो प्रभु जल्दी सुनेंगें, मिलेगा जो चाहता  मन 
काम चमचों से कराना , शार्ट कट का  रास्ता है
 रीति लेकिन ये पुरानी  ,बन गयी अब आस्था  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
शिकायत -पत्नी की 

छोटा सा सौदा लेने में,कितना मोलभाव करते हो 
एक पेंट भी लेनी हो तो ,तुम दस पेंट ट्राय करते हो 
कभी डिजाइन पसन्द न आती ,कभी फिटिंगमे होता संशय 
बना कोई ना कोई बहाना,टाल दिया करते तुम निर्णय 
तो शादी के पहले जिस दिन,मुझे देखने तुम आये थे 
कुछ मिनिटों में ,कैसे शादी का निर्णय तुम ले पाए थे 
जब तुमने मुझको देखा था ,क्या देखा बस चेहरा ,मोहरा 
केवल  नाकनक्श देखे थे,या देखा था बदन  छरहरा 
या फिर मेरे बाल जाल में, अपनी नज़रें उलझाई थी 
या फिर मेरी मीठी बातें ,तुम्हारे  मन को भायी  थी 
देख आवरण ही बस मेरा क्या तुम मुझको आंक सके थे 
सच बतलाना रत्ती भर भी ,मेरे दिल में झाँक सके थे 
जबकि तुम्हे मालूम था तुमको ,जीवन भर है साथ निभाना 
बहुत मायना रखती उस दिन ,तुम्हारी छोटी  हाँ या ना 
कुछ मिनिटों में कितना मुश्किल,होता है ये निर्णय करना 
अपना जीवन साथी चुनना,जिस के संग है जीना ,मरना 
आपस में कितनी मिलती है ,सोच हमारी और तुम्हारी 
एक गलत निर्णय जीवन भर,दोनों पर पड़ सकता भारी 
तो फिर उस दिन क्या अंदर से,तुम्हारा दिल कुछ बोला था 
या फिर शायद मुझे देख कर ,तुम्हारा भी दिल डोला था 
टालमटोल नहीं कर पाए ,तुमने बस ,हामी भर दी  थी 
ये तुम्हारा निर्णय था या ,फिर ये ईश्वर  की मरजी   थी 
कहते है कि सभी जोड़ियां ,है ऊपर से बन कर आती 
यह नियति का निर्णय होता,किसका ,कौन बनेगा साथी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 21 मार्च 2017

बूढ़े भी कुछ कम नहीं 

क्या जवानों ने ही ठेका ले रखा ,
           आशिक़ी का,बूढ़े भी कुछ कम नहीं 
बूढ़े सीने में भी है दिल धड़कता ,
             बूढ़े तन में होता है क्या  दम  नहीं 
जवानी में बहुत मारी फ़ाक्ता ,
                अनुभव से काबलियत आ गयी ,
बात ये दीगर है ,पतझड़ आ गया ,
              रहा पहले जैसा अब मौसम नहीं 

घोटू 
परशादखोर 

तरह तरह के प्राणी रहते ,है इस दुनिया के जंगल में 
कुछ गिरगिट जैसे होते है ,रंग बदलते है पल पल में 
बचाखुचा शिकार शेर ,गीदड़ से खाते चुपके से ,
ये परशादखोर ऐसे है ,खुश हो जाते  तुलसीदल  में 
इनको बस मतलब खाने से ,वो भी अगर मिले फ़ोकट में,
वो बस खाते है भंडारा ,जाते नहीं कभी होटल में 
गैरों की शादी में घुस कर ,मज़ा लूटते है दावत का ,
इनसे जब चन्दा मांगो तो ,गायब हो जाते है पल में 

घोटू 
कथनी और करनी 

न जाने लोग कितनी ही ,अजब बातें किया करते ,
जिनकी कथनी और करनी में,न कोई मेल होता है 
प्यार में कहते सजनी से,सितारे मांग में भर दूं ,
सितारे तोड़ कर लाना ,न कोई खेल होता है 
कभी मिलती नहीं आँखें ,मगर कहते नज़र लड़ना,
होठ से होठ मिलने से ,सदा होती नहीं पप्पी 
मिले जब होठ ऊपर का ,तुम्हारे होठ निचले से ,
इसे सीधी  सी भाषा में ,कहा जाता रखो चुप्पी 
न जाने उनकी मुस्काहट,गिराती बिजलियाँ कैसे ,
हंसी उनकी कहाती है ,भला क्यों फूल सा खिलना 
हमारा दिल अलग धड़के ,तुम्हारा दिल अलग धड़के ,
मगर क्यों लोग उल्फत में ,कहा करते है दिल मिलना 
अलग से पकते है चांवल,अलग से दाल भी पकती ,
मगर जब मिल के पकते है ,खिचड़ी गल रही कहते 
जरा भी ना खिसकती है,उसी स्थान पर रहती ,
मगर जब हिलती डुलती तो ,जुबां ये चल रही कहते 
हाथ से हाथ मिलने पर ,दोस्ती होती ना हरदम ,
इस तरह होती क्रिया को ,बजाना ताली कहते है 
वो हरदम बॉस ना होता,डरा करते है हम जिससे,
नाचते जिसके ऑर्डर पर ,उसे घरवाली कहते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
फिर भी जल बिच मीन पियासी 

पाने को मैं प्यार तुम्हारा ,कितने दिन से था अभिलाषी 
मुझे मिला उपहार प्यार का,कहने को है बात जरा सी 
दिन भर चैन नहीं मिलता है ,और रात को नींद न आती 
ऐसी  तुमसे प्रीत लगाई,  हुई  मुसीबत अच्छी खासी 
दिल के बदले दिल देने की ,गयी न तुमसे  रीत निभाई ,
मैंने तुम्हे दिया था चुम्बन, तुमने मुझको दे दी  खांसी 
देखी  आँखे लाल तुम्हारी  ,समझा छाये गुलाबी डोरे ,
ऐसी तुमसे आँख मिलाई ,'आई फ्लू' में आँखे फांसी 
मैंने जबसे ऊँगली पकड़ी ,तुम ऊँगली पर नचा रही हो,
मेरी टांग खींचती रहती ,कह खुद को चरणों की दासी 
ऐसे तुमसे दिल उलझाया ,बस उलझन ही रही उमर भर ,
मैंने इतने पापड़ बेले ,फिर भी जल बिच मीन पियासी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
औरत की  व्यथा 

हर औरत की अपनी अपनी कोई कथा है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई व्यथा है 
सब के अपने अपने दुःख है  परेशानियां 
सबकी होती अपनी अपनी कई कहानियां 
कोई दुखी है , उसका बेटा, कँवारा बैठा ,
और किसी की बहू दिखाती उसे धता है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई व्यथा है 
घर भर पर पहले चलती थी जिसकी सत्ता 
बिना इजाजत जिसकी ना हिलता था पत्ता 
वो बेचारी बहुत दुखी और परेशान है ,
आज नहीं घर में कोई उसकी सुनता  है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई व्यथा है 
सास ससुर से तंग,त्रस्त  कोई की बेटी 
सुविधा और अभाव ग्रस्त,कोई की बेटी 
परेशान माँ ,बेबस सी तिलतिल घुटती है 
बेटी को दामाद , किसी की  रहा  सता  है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई व्यथा है 
घर की रोज रोज की किचकिच से कुछ ऊबी 
काम छोड़ कर ,पूजा पाठ भक्ति में  डूबी 
लेकिन मन अब भी घर में ऐसा उलझा है ,
करते हुए बुराई बहू की , ना थकता  है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई व्यथा है 
कोई घर की सब जिम्मेदारी  ढोती  है 
फिर कदर नहीं ,ये सोच ,दुखी होती है 
कोई रसोई में घुस रहे  पकाती व्यंजन ,
पोते पोती की तारीफ़ सुन सुख मिलता है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई व्यथा है
कोई सुखी है लेकिन दुःख ओढा करती है 
और ठीकरा बहुओं पर फोड़ा  करती  है 
कभी,कहीं भी खुश ना रहती किसी हाल में,
उनके मन में हरदम रहती व्याकुलता है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई कथा है  
सुने पिता की बचपन में ,यौवन में पति की 
 बढ़ी उमर तो  ,बेटों पर आश्रित हो जीती
वह जननी है,अन्नपूर्णा , दुर्गा ,लक्ष्मी ,
फिर जीवनभर ,उसमे क्यों ये परवशता है 
हर औरत किअपनी अपनी कोई व्यथा है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

शनिवार, 18 मार्च 2017

औरत की  व्यथा 

हर औरत की अपनी अपनी कोई कथा है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई व्यथा है 
सब के अपने अपने दुःख है  परेशानियां 
सबकी होती अपनी अपनी कई कहानियां 
कोई दुखी है , उसका बेटा, कँवारा बैठा ,
और किसी की बहू दिखाती उसे धता है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई व्यथा है 
घर भर पर पहले चलती थी जिसकी सत्ता 
बिना इजाजत जिसकी ना हिलता था पत्ता 
वो बेचारी बहुत दुखी और परेशान है ,
आज नहीं घर में कोई उसकी सुनता  है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई व्यथा है 
सास ससुर से तंग,त्रस्त  कोई की बेटी 
सुविधा और अभाव ग्रस्त,कोई की बेटी 
परेशान माँ ,बेबस सी तिलतिल घुटती है 
बेटी को दामाद , किसी की  रहा  सता  है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई व्यथा है 
घर की रोज रोज की किचकिच से कुछ ऊबी 
काम छोड़ कर ,पूजा पाठ भक्ति में  डूबी 
लेकिन मन अब भी घर में ऐसा उलझा है ,
करते हुए बुराई बहू की , ना थकता  है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई व्यथा है 
कोई घर की सब जिम्मेदारी  ढोती  है 
फिर कदर नहीं ,ये सोच ,दुखी होती है 
कोई रसोई में घुस रहे  पकाती व्यंजन ,
पोते पोती की तारीफ़ सुन सुख मिलता है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई व्यथा है 
सुने पिता की बचपन में ,यौवन में पति की 
 बढ़ी उमर तो  ,बेटों पर आश्रित हो जीती
वह जननी है,अन्नपूर्णा , दुर्गा ,लक्ष्मी ,
फिर जीवनभर ,उसमे क्यों ये परवशता है 
हर औरत किअपनी अपनी कोई व्यथा है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

बुधवार, 15 मार्च 2017

                बदलता व्यवहार

मैं कई बार सोचा करता ,ऐसा क्या जादू चल जाता
कि अलग अलग स्थानों पर ,सबका व्यवहार बदल जाता
ले नाम धरम का भंडारे ,करवा खाना बांटा करते
सब्जीवाले से धना मिर्च ,हम मगर मुफ्त माँगा करते
रिक्शेवाले से किचकिच कर ,हम उसे किराया कम देते
पानीपूरी के ठेले पर , हम  एक पूरी फ़ोकट लेते
छोटी दूकान पर मोलभाव,शोरूमो में दूना पैसा 
हम खुश होकर दे देते है,व्यवहार बदलता क्यों ऐसा 
लगता है सेल जहां कोई,हम दौड़े दौड़े जाते है 
हालांकि आने जाने में ,दूने पैसे लग जाते है
हम तीन चार सौ का पिज़ा ,घर मंगवा खाते खुश होकर
पर घर के परांठे ना खाते,मोटे  होने से लगता डर
जा पांच सितारा होटल में,दो सौ की खाते एक रोटी
और उस पर शान दिखाने को ,वेटर को देते टिप मोटी
मन्दिर में जा,प्रभु चरणों में ,जेबें टटोल,सिक्का फेंकें
परशाद चढ़ा खुद खाते है,बाकी जाते है घर लेके
दांतों से पैसे को पकड़े ,हम लेन देन में है पक्के
अपना बदला व्यवहार देख ,हम खुद हो जाते भौंचक्के
सुन्दर साड़ी में सजी हुई ,पत्नी पर ध्यान नहीं धरते
पर देख पराई नारों को ,तारीफ़ के पुल बांधा  करते
बिन ढूंढें ही मिल जाती है,औरों में  कमियां हमें कई
अपनी कमियां ,कमजोरी का,लेकिन होता अहसास नहीं
ये कैसा है मानव स्वभाव ,हम में क्यों आता परिवर्तन
हम क्षण क्षण रूप बदलते क्यों,आओ हम आज करें चिंतन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                   होली में

परायों से भी अपनों सा ,करो व्यवहार  होली में
भुला कर भेद सब मन के,लुटाओ प्यार होली में 
कोई  चिकने है चमकीले,कोई ज्यादा मुलायम है,
गुलाबी पर नज़र आते ,सभी रुखसार  होली में
जब उनके अंग छूकर के ,तरंगें मनमे उठती है ,
भंग  का रंग चढ़ता है,हमें  हर  बार होली  में
गुलाबी दोहज़ारी नोट, ए टी एम से निकले,
तुम्हारे रूप का हो इस तरह ,दीदार होली में 
रंगों से रँगा हर चेहरा ,हमे अपना सा लगता है ,
खेलते खेल खुल्ला  है ,सभी दिलदार होली में
किसी भी गाल पर तुम हाथ फेरो ,छूट जब मिलती,
बड़े बेसब्रे हो जाते  है ,बरखुरदार  होली में
रंगों से तरबतर कपड़े,चिपककर जिस्म से लिपटे,
तुम्हारा  भीगा ये जलवा ,लगे अंगार होली में
बड़ा ही मौज मस्ती का ,है ये त्योंहार कुछ ऐसा ,
दिलों को जीत लेते हम,दिलों को हार होली में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 14 मार्च 2017

कल तक था सवाया,-आज हुआ पराया

एक जमाना था ,
जब एक रूपये का सिक्का ,चवन्नी के संग
याने कि सवा रुपया,भरता था जीवन में रंग
ये बड़ा शुभ माना जाता था
और समृद्धि का प्रतीक जाना जाता था
सवा रूपये के प्रसाद चढाने से,
पूरी होती मनोकामना थी 
सवा रूपये का चढ़ावा ,सवाया फल देगा ,
ऐसी धारणा थी
सुनते है मेरी दादी ने ,पोता पाने की आशा में ,
मनौती करवाई थी
और मेरे पैदा होने पर ,बालाजी को  ,
चूरमे की सवामनी चढाई थी
जब मैं स्कूल गया ,पण्डितजी को सवा रुपया चढ़ाया था
उसके बाद उन्होंने मुझे पढाया था
यूं तो मैं सच्ची लगन और मन से पढता था
पर मेरे पास होने पर हमेशा ,सवा रूपये का प्रशाद चढ़ता था
मेरी सगाई पर मेरे ससुर ने ,
मुझे चाँदी का रुपया और चवन्नी याने सवा रुपया दिया था
और अपनी बेटी के लिए ,मुझे फांस लिया था
और शादी के बाद ,जब मेरी बीबी घर में थी आयी
तो सब बोले थे,बहू तो है बेटे से सवाई
और आजतक भी वो मुझ पर सवाई ही पड़ रही है
हमेशा मुझ पर सवार रहती है ,सर पर चढ़ रही है
उन दिनों स्कूल मे ,अद्धा,सवैया और हूँठा के
पहाड़े रटाये जाते थे
और लोग सवा रूपये की दक्षिणा में ,
सत्यनारायण की कथा सम्पन्न कराया करते थे
और तो और हिंदी कविता  में ,
दो पंक्ति के दोहे और चार पंक्ति की चौपाई के संग
एक सवैया भी होता था,जिसका अपना ही था रंग
अब सवाल ये है कि आजकल,सवा को ये क्या हो गया है
सवा न जाने कहाँ  खो गया है
जबसे चवन्नी का चलन हवा हो गया है
तबसे बिचारा सवा,हमसे रुसवा हो गया है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

होली - एक अनुभव 
                        १  
न जाने कौन सी भाभी,न जाने कौन से भैया 
छिपा कर अपनी बीबी को ,थे रखते जौन से भैया 
पराये जलवों का जुमला  ,गए सब भूल होली में ,
हम मलते गाल भाभी के ,खड़े थे मौन से  भैया 
                            २ 

हुआ होली के दिन पूरा ,हमारा ख्वाब  बरसों का  
मली गुलाल गालों पर ,नहीं उनने  हमें  रोका 
इधर हम उनसे रंग खेलें,उधर पतिदेवता उनके,
हमारे माल पर थे साफ़ करते हाथ, पा  मौका 
                            ३ 
मुलायम ,स्वाद खोये सा,भरा मिठास है मन में 
श्वेत मैदे सा और खस्ता, गुथा  है रूप,यौवन में 
पगा है प्यार के रस में,बड़ी प्यारी सी है लज्जत,
तुम्हारे जैसा ही तो था,खिलाया गुझिया जो तुमने 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 13 मार्च 2017

चिमटा चला के मारा, बेलन घुमा के मारा...


चिमटा चला के मारा, बेलन घुमा के मारा
फिर भी बचे रहे तो, भूखा सुला के मारा

बरसों से चल रहा है, दहशत का सिलसिला ये
बीवी ने जिंदगी को, दोजख बना के मारा

कैसे बतायें कितनी मनहूस वो घडी थी
इक शेर को है जिसने शौहर बना के मारा

वैसे तो कम नहीं हैं हम भी यूं दिल्लगी में
उसपे निगाह अक्सर उससे बचा के मारा

चर्चित को यूं तो दिक्कत, चर्चा से थी नहीं पर
बीवी ने आशिकी को मुद्दा बना के मारा

- विशाल चर्चित

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