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शनिवार, 31 दिसंबर 2016

सर्दी में दुबकी कवितायें


छुपा चंद्रमुख ,ओढ़े कम्बल ,कंचन बदन शाल में लिपटा 
ना लहराते खुले केश दल ,पूरा  तन आलस में  सिमटा 
तरस गए है दृग दर्शन को ,सौष्ठव लिए हुए उस तन के 
मुरझाये से ,दबे पड़े है , विकसित पुष्प ,सभी यौवन के 
बुझा बुझा सा लगता सूरज ,सभी प्रेरणा लुप्त हुई है 
सपने भी अब  शरमाते है ,और भावना  सुप्त हुई है 
सभी तरफ छा रहा धुंधलका ,डाला कोहरे ने डेरा है 
मन ना करता कुछ करने को ,ऐसा आलस ने  घेरा है 
आह ,वाष्प बन मुख से निकले,बातें नहीं,उबासी आती 
हुई पकड़ ऊँगली की ढीली ,कलम ठीक से लिख ना पाती 
ठिठुर गए उदगार,शब्द भी, सिहर सिहर आते है  बाहर 
 सर्दी में मेरी कविताये,दुबकी है  कम्बल के  अंदर 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

डर और प्यार


जो विकराल ,भयंकर होते ,और दरिंदगी जो करते है 
या फिर भूत,पिशाच,निशाचर,इन सबसे हम सब डरते है 
बुरे काम से डर लगता है ,पापाचार  डराता हमको 
कभी कभी थप्पड़ से ज्यादा ,झूंठा प्यार डराता हमको 
माँ तो लेती पक्ष ,डराती है पर पापा की नाराजी 
दफ्तर में अफसर का गुस्सा ,या निचलों की मख्खनबाजी 
स्कूल में एक्ज़ाम डराता ,करना घर में काम डराता 
महबूबा का मीठा गुस्सा ,बदनामी का नाम डराता  
बुरी चीज ही हमे  डराये ,ऐसा ही ना होता हरदम 
कुछ प्यारी और अच्छी चीजों से भी डर कर रहते है हम  
परमपिता अच्छे है भगवन,पर हम उनसे भी डरते है 
देख रहे वो ,उनके डर से ,पाप कर्म कुछ कम करते है 
सबको अच्छी लगे मिठाई,आलू टिक्की,चाट पकोड़ी 
डाइबिटीज और केलोस्ट्राल के ,डर से हम खाते है थोड़ी 
इतनी अच्छी होती पत्नी, हर पति प्यार उसे करता है 
शेर भले ही कितना भी हो ,पर वो पत्नी से डरता है 
कभी बरसता ,हद से ज्यादा ,पत्नीजी का अगर प्यार है 
तो डर है निश्चित ही उस दिन ,पति होने वाला हलाल है 
बहुत अधिक दुख से डर लगता,बहुत अधिक सुख हमे डराता 
सचमुच बड़ा समझना मुश्किल,है डर और प्यार का  नाता 

घोटू  

बीते दिन

         
बीत गए दिन गठबंधन के 
अब तो लाले है चुम्बन के 
सभी पाँचसौ और हज़ारी ,
नोट बन्द है ,यौवन धन के 
ना उबाल है ना जूनून है 
एकदम ठंडा पड़ा खून है 
मात्र रह गया अस्थिपंजर ,
ऐसे हाल हुए इस तन  के 
मन का साथ नहीं देता तन 
सूखा सूखा सा हर मौसम 
रिमझिम होती थी बरसातें ,
बीते वो महीने सावन के 
बिगड़ी आदत जाए न छोड़ी 
इत  उत ताके ,नज़र निगोड़ी 
लेकिन तितली पास  न फटके ,
सूखे पुष्प देख  उपवन   के 
मन मसोस कर अब जीते है 
और ग़म  के आंसू  पीते   है
राधा,गोपी घास न   डाले ,
तट सूने है वृन्दावन  के 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

सर्दी और बर्फ़बारी

         

उनने तन अपना ढका जब ,श्वेत ऊनी शाल से,
             लगा इस पहाड़ों पर बर्फ़बारी हो गयी     
बादलों ने चंद्रमा को क़ैद जैसे कर लिया ,
         हुस्न के दीदार पर भी ,पहरेदारी हो गयी 
जिनकी हर हरकत से मन में जगा करती हसरतें ,
                वो नज़र आते नहीं तो बेकरारी हो गयी  
हिलते डुलते जलजलों के सिलसिले अब रुक गए,
      दिलजले आशिक़ सी अब हालत हमारी हो गयी  
  
 'घोटू '      

पुराने नोटों की अंतर पीड़ा

    

एक वो भी जमाना था,हम सभी के थे दुलारे 
प्यार  करते  थे  हमें सब, चाहते बांहे पसारे 
झलक हल्की सी हमारी ,लुभाती सबका जिया थी 
छुपा दिल सा,साड़ियों में ,हमें रखती गृहणियां थी 
उनके पहलू में कभी बंध ,कभी ब्लाउज में दुबक कर 
बहुत हमने मौज मारी ,और उठाया मज़ा छक  कर 
वक़्त ने पर एक दिन में ,हुलिया  ऐसी बिगाड़ी 
एक पिन में हुई पंक्चर ,हेकड़ी सारी  हमारी 
मार ऐसी पड़ी हम पर ,जीने के लाले पड़े है 
कल तलक रंगीन थे हम,आजकल काले पड़े है 
हाँ,कभी हम नोट होते ,पांच सौ के और हज़ारी 
शान कल तक थी रईसी ,बन गए है अब भिखारी 
आज हम आंसू बहाते ,और दुखी है इसी गम से 
लोग लाइन में लगे है, छुड़ाने को पिंड  हम से 
पसीने और खून की हम ,कभी थे  गाढ़ी कमाई 
और बुरा जब वक़्त आया ,सभी ने  नज़रें  चुराई 
आदमी की जिंदगी में ,ऐसा भी है  समय  आता 
आप जिनसे प्यार करते ,तोड़ देते वही  नाता 
बात नोटों की नहीं है,हक़ीक़त यह जिंदगी की 
चवन्नी हो या हज़ारी,  बुरी गत होती सभी की 
जमाने की रीत है ये ,और ये ही सृष्टि क्रम है 
मैं,अहम्,अपना पराया,सब क्षणिक है और भ्रम है 
हाथ ले, यमपाश कोई, मिटाने  अस्तित्व आता 
साथ कुछ जाता नहीं है,सब यहीं पर छूट जाता 
चाहते सब नवागत को ,पुराने को भूल जाते 
व्यर्थ ही हम दुखी होकर ,हृदय को अपने जलाते  
इसलिए बेहतर यही है ,रखें ये संतोष  मन में 
हो गए है अब रिटायर ,कभी हम भी थे चलन में 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुधवार, 14 दिसंबर 2016

मटर के दानो सी मुस्कान

 

माँ ,जो सारा जीवन,
सात बच्चों के परिवार को ,
सँभालने में रही व्यस्त 
हो गयी काम की इतनी अभ्यस्त 
बुढापे में ,बिमारी के बाद ,
जब डॉक्टर ने कहा करने को विश्राम 
बच्चे ,काम नहीं करने देते ,
और उसका मन नहीं लगता 
बिना किये काम 
हर बार ,हर काम के लिए ,
हमेशा आगे बढ़ती है 
और मना करने पर ,
नाराज़ हो,लड़ती है 
सर्दियों में जब कभी कभी ,
मेथी या बथुवे की भाजी आती है 
तो वो उन्हें सुधार कर ,
बड़ा संतोष पाती है 
 परसों ,पत्नी जब पांच किलो, 
मटर ले आयी 
तो माँ मुस्कराई 
झपट कर मटर की थैली ली थाम 
बोली वो कम से कम ,कर ही सकती है ,
मटर छीलने का काम 
वो बड़ी  खुश थी ,यह सोच कर कि ,
घर के काम में उसका भी हाथ है 
उसने जब मटर की  फली छीली,
तो मटर की फली से झांकते हुए दाने ,
ऐसे नज़र आये जैसे वो मटर नहीं,
ख़ुशी छलकाते ,माँ के मुस्कराते दांत है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

तुम जियो हज़ारों साल


जब  आप जन्मदिन मनाते है    
लोग शुभकामनाये देते हुए ,
अक्सर ये गीत गाते है 
कि तुम जियो हज़ारों साल 
और हर साल के दिन हो पचास हज़ार 
आप अपने शुभचिंतकों का करते शुक्रिया है 
पर क्या आपने कभी गौर किया है 
कि गलती से भी ऊपरवाला ये भूल कर ले 
आपके दोस्तों की दुआ कबूल कर ले 
तो आपकी क्या हालत होगी 
हज़ारों साल की उम्र ,कितनी मुसीबत होगी 
पचास हज़ार दिन का सिर्फ एक साल भर 
होता है तीनसौ पेंसठ दिनों के ,
एक सौ सेतींस वर्षों के बराबर 
और ऐसे हज़ारों वर्ष जीने की कल्पना मात्र ही,
मन में सिहरन भर देती है 
बैचैन और परेशान कर देती है 
आज जब सत्तर या अस्सी तक की उम्र में ही,
शरीर शिथिल है ,बीमारियां घेरे है 
हमारे अपने ही ,पूछते नहीं,मुंह फेरे है 
हम उनके लिए बन जाते भार  है 
तो ऐसे हालात मे जीना ,कितना दुश्वार है
परेशानियां सहना है ,घुटना तिल तिल है 
अरे ऐसे जीवन का तो पचास हज़ार दिन वाला ,
एक साल भी जीना मुश्किल है 
जिसे शुभकामना समझ रहे आप है 
अरे इतने लम्बे जीवन की दुआ ,
वरदान नहीं  एक अभिशाप है 
हम तो बस ये चाहते है ,
जब तक जिये स्वस्थ रहें
खुश और मस्त रहे 
स्वाभिमान से रहे तने 
किसी पर बोझ न बने 
हमेशा छोटों का प्यार ,
और बड़ों का आशिर्वाद रहे बना 
बस जन्मदिन पर चाहिए ,
सब की ये शुभकामना 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
  

गुरुवार, 8 दिसंबर 2016

नोटबंदी या अनुशासनपर्व


नोटबंदी  या अनुशासनपर्व

जब से आयी है ये नोटबन्दी
फिजूल खर्चों पर ,लग गयी है पाबन्दी
हम सबकी होती ,ऐसी ही आदत है
कि हमारे पास होती ,पैसों की जितनी भी सहूलियत है
हम उतना ही खर्च करते है खुले हाथ से
कभी मुफलिसी से,कभी शाही अंदाज से
पर जब से हुई है नोटबन्दी
पड़ने लगी है नए नोटों की तंगी
बैंकों के आगे ,लगने लगी है कतारें लम्बी
थोड़ा सा ही पैसा ,मुश्किल से हाथ आता है
जिसको जितना मिलता है,वो उसी से काम चलाता है
पैसों की तंगी ने एक काम बड़ा ठीक किया है
हमने सीमित साधनो से,घर चलाना सीख लिया है
अब हमें मालूम पड़ने लगा है ,भाव दाल और आटे का
डोमिनो का पिज़ा भूल ,स्वाद लेते है मूली के परांठे का
मजबूरी में ही सही ,लोगो की  समझदारी बढ़ गयी है
शादी की दावतों में,पकवानों की फेहरिश्त सिकुड़ गयी है
दिखावे और लोकलाज के बन्धन हट गए है
कई शादियों में तो बराती ,चाय और लड्डू  से ही निपट गए है
पत्नी की साड़ियों में   छुपा हुआ धन हो गया है उजागर
घर की आर्थिक स्थिति गयी है सुधर
भले ही बैंकों की कतारों में खड़े रहने का सितम हुआ है
पर हिसाब लगा कर देखो ,
पिछले माह घर का खर्च कितना कम हुआ है
भले ही हम हुए है थोड़े से परेशान
पर हमारे खर्चों पर लग गयी है लगाम
हालांकि मन को थोड़ी खली है
पर हमने मितव्ययिता सीख ली है
मोदीजी ,हमें आपके इस कठिन फैसले पर गर्व है
ये नोटबन्दी नहीं,   हमारे देश  और घर घर की ,
अर्थव्यवस्था का,अनुशासन पर्व है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 30 नवंबर 2016

असमंजस

 
असमंजस 

प्रेमिका ने प्रेमी से फोन पर कहा 
प्रियतम ,तुम्हारे बिन न जाता रहा 
मै तुम्हे बहुत प्यार करती हूँ,
 तुम्हे दिलोजान से चाहती हूँ 
तुम्हारे हर कृत्य  में ,तुम्हारी ,
सहभागिनी होना चाहती हूँ 
इसलिए मेरे सनम 
मेरे साथ बाँट लो अपनी ख़ुशी और गम 
अगर तुम हंस रहे हो ,
तो अपनी थोड़ी सी मुस्कराहट देदो 
अगर उदास हो तो गमो की आहट दे दो 
अपने कुछ आंसू,मेरे गालों पर भी बहने दो
मुझे हमेशा अपना सहभागी रहने दो  
अगर कुछ खा रहे तो ,
उसका स्वाद ,मुझे भी चखादो 
अगर कुछ पी रहे तो थोड़ी ,
मुझे भी पिला दो 
हम दो जिस्म है मगर रहे एक दिल 
अपने हर काम में करलो मुझे शामिल 
प्रेमिका की बात सुन प्रेमी सकपकाया 
उसकी समझ में कुछ नहीं आया 
बोला यार ,मैं क्या बताऊँ,
बड़े असमंजस में पड़ा हूँ 
बताओ क्या करू,
इस समय मैं टॉयलेट में खड़ा हूँ 

घोटू 

रिश्तों में अदाकारी कभी अच्छी नहीं होती...


हम भूल गये

                
                हम भूल गये  
                         
हो गए आधुनिक हम इतने,संस्कृती पुरानी भूल गए 
मिनरल वाटर के चक्कर में,गंगा का पानी  भूल  गए 
पिज़ा बर्गर पर दिल आया ,ठुकराया पुवे ,पकोड़ी को,
यूं पोपकोर्न से प्यार हुआ ,कि हम  गुड़धानी  भूल गए 
एकल बच्चे के  फैशन में, हम भूल गए  रक्षाबन्धन ,
वो भाई बहन का मधुर प्यार ,और छेड़ाखानी भूल गए 
वो रिश्ते चाचा ,भुआ के, हर एक को आज नसीब नहीं,
परिवारनियोजन के मारे , मौसी  और मामी भूल गए 
मोबाइल में उलझे  रहते,मिलते है तो बस 'हाय 'हेल्लो',
रिश्ते  नाते ,भाईचारा ,वो प्रीत  निभानी  भूल गए 
हुंटा ,अद्धा, ढईया ,पोना ,ये सभी पहाड़े ,पहाड़ हुए,
केल्क्युलेटर के चक्कर में ,वो गणित पुरानी भूल गए 
जीवन की क्रिया बदल गयी,बदलाव हुआ दिनचर्या में,
रातों जगते,दिन में सोते वो सुबह सुहानी भूल गए 
कोड़ी कोड़ी जोड़ी माया ,ना कभी किसी के साथ गयी ,
बस चार दिनों की होती है, जीवन की कहानी भूल गए 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

शुक्रवार, 18 नवंबर 2016

मेरी कवितायें

 
मेरी कवितायें,
जलेबी की तरह ,
टेडी,मेड़ी ,अतुकांत है 
पर चख कर देखो,
इनमे कुछ बात है 
ये चासनी से भरी हुई है 
इनमे मिठास है
 
ये गोल गोल छंद नहीं,
रस में डूबे हुए ,गुलाबजामुन है 
जो एक नया स्वाद भर देंगे जीवन में  

जब भी जीवन में ,शीत  का मौसम सताये 
इन्हें गरम गरम पकोड़ियों की तरह ;
प्यार की चटनी के साथ खा लेना ,
बड़ी स्वादिष्ट लगेगी,मेरी कवितायें 

ये तो मन की विभिन्न भावनाओं की ,
मिली जुली भेलपुरी है 
बड़ी चटपटी और स्वाद से भरी है 

या इन्हें आलूबड़ा समझ कर ,
रोज रोज की ऑफिस और घर की 
भागदौड़ के पाव के बीच में खा लेना 
अपनी क्षुधा मिटा लेना 

ये तवे पर सिकती हुई ,आलूटिक्कीयाँ है ,
जिनकी सौंधी सौंधी खुशबू तुम्हे लुभाएगी 
ये गरम गरम और चटपटी ,
तुम्हे बहुत भायेगी 

ये गोलगप्पे की तरह ,फूली फूली लगती है 
पर बड़ी हलकी है 
इनमे थोड़ी सी खुशियां,
और थोड़ी सी परेशानियों का खट्टा मीठा पानी ,
भर कर के खाओगे 
बड़ी तृप्ति पाओगे 

ये कोकोकोला की तरह झागीली नहीं है ,
कि ढक्कन  खोल कर बोतल से पियो,
ये तो प्याऊ का पानी है ,
अपने हाथों की ओक से ,
अंजलि भर भर पीना 
मिटा देगी  तुम्हारी तृषणाये 
मेरी कवितायें   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हर दुःख का उपचार समय है


हृदयविदारक समाचार है जब से आया 
मुश्किल से भी ,कुछ ना खाया 
चाय हो या दूध,चपाती 
नीचे गले उतर ना पाती 
पिछले कुछ दिन ऐसे बीते 
यूं ही आंसू पीते पीते 
झल्ली गम की ,
बीच गले में एक बन गयी 
भूख थम गयी 
एसा सदमा
 हृदय में जमा 
हिचकी भर भर रोते जाते 
दुःख के आंसू सूख न पाते 
साथ समय के धीरे धीरे 
कम हो जाती मन की पीरें 
चलता गतिक्रम वही  पुराना 
खाना ,पीना,.हंसना ,गाना 
फिर से वही पुरानी लय है 
हर दुःख का उपचार समय है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कोई नहीं चाहता बंधना

 
























कोई नहीं चाहता बंधना ,परवारिक बन्धन में 
फटी जीन्स से फटे हुए से,रिश्ते है फैशन में 

छोड़ ओढ़नी गयी लाज का पहरा फैशन मारी 
अब शादी और त्योंहारों पर ही दिखती है साडी 
वो भी नाभि,कटि दर्शना ,बस नितंब पर अटकी 
अंग प्रदर्शित करती नारी, संस्कार  से  भटकी 
खुली खुली सी चोली  पहने ,पूरी पीठ दिखाए 
अर्धा स्तन का करे प्रदर्शन और उस पर इतराये 
ना आँखों में शरम हया है,ना घूंघट प्रचलन में 
कोई नहीं चाहता  बंधना परिवारिक बन्धन में 
चाचा,चाची ,ताऊ ताई ,रिश्ते सब  दूरी  के 
अब तो दादा दादी के भी रिश्ते मजबूरी के 
गली मोहल्ले,पास पड़ोसी ,रिश्ते हुए सफाया 
मैं और मेरी मुनिया में है अब संसार समाया 
ऐसी चली हवा पश्चिम की ,हम अपनों को भूले 
 पैसे चार कमाए क्या बस  गर्वित होकर फूले
हुए सेल्फिश,सेल्फी खींचें अहम भर गया मन में 
फटी जीन्स से,फटे हुए  से,रिश्ते  अब फैशन में 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'







रविवार, 13 नवंबर 2016

मोदीजी तुम्हारी मारी-मैं अब हूँ कंगाल बिचारी


मोदीजी तुम्हारी मारी-मैं  अब हूँ कंगाल बिचारी 


मेरी कुछ भी खता नहीं थी ,फिर भी मुझको गया सताया 
बुरे वक़्त के लिए बचाया ,पैसा  कुछ भी  काम न आया 
बूँद बूँद कर बचत  करी थी,कभी इधर से ,कभी उधर से 
तनिक बचाई घर खर्चों से ,बिदा मिली कुछ माँ के घर से 
कुछ उपहार मिली भैया से ,जब उसको राखी बाँधी थी 
पति से छुपा रखी कुछ पूँजी ,लेकिन क्या मैं अपराधी थी 
नए पांच सौ और हज़ार के ,कडक नोट में बदल रखी थी 
वक़्त जरूरत काम आएगी ,अब तक सबसे रही ढकी थी 
आठ नवम्बर ,आठ  बजे  पर ,ऐसी  आयी  रात   घनेरी 
मोदीजी के एक कदम ने  ,सारी  पोल  खोल दी   मेरी 
मेरे सारे  अरमानो   पर,,वज्रपात  कुछ  बरपा    ऐसा 
सारा धन हो  गया उजागर , कागज मात्र  रह गया पैसा 
चोरी छुपे बचाये पैसे  ,गिनने की  वो ख़ुशी खो  गयी 
मालामाल हुआ करती थी  ,पल भर में  कंगाल हो गयी 
अब मैं ,मइके में जाकर के ,खुला खर्च  ना कर पाउंगी 
अब  बेटी को ,चुपके चुपके , गहने  नहीं दिला पाउंगी 
छोटी मोटी  हर जरुरत पर ,हाथ पसारूँगी ,पति आगे 
'सेल' लगी तो जा न पाऊँगी ,बिना पति से पैसा  मांगे 
भले देश हित में मोदीजी, तुमने  अच्छा कदम उठाया 
लेकिन बचत प्रिया गृहणी को  ,पैसे पैसे को तरसाया 
कोड़ी कोड़ी जोड़ी मेरी ,बचत तो नहीं थी धन काला 
फिर क्यों इतनी बेदर्दी से  ,अलमारी से उसे निकाला 
बैंको की लम्बी लाइन में ,लग कर पड़ा जमा करवाना 
ज्यादा पैसे अगर हुए तो ,  देना  पड़  सकता  जुर्बाना  
पैसा था जब तलक गाँठ में ,तब तक थी गर्वीली,सबला 
मुझसी  सीधी सादी गृहणी, आज हो गयी ,फिर से अबला 
रूपये रूपये ,मोहताज हो गयी ,देखो कैसी है लाचारी  
मोदीजी ,तुम्हारी  मारी, अब मैं  हूँ   कंगाल  बिचारी 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

गुरुवार, 10 नवंबर 2016

शुद्ध यदि जो भावना है


ह्रदय निर्मल ,शुद्ध यदि जो भावना है 
सफलता की पूर्ण  तब सम्भावना है 
खोट यदि ना जो तुम्हारे प्यार में हैं 
कलुषता कोई  नहीं  आचार  में  है
किसी का कोई बुरा सोचा    नहीं  है 
तुम्हारा व्यवहार भी ओछा नहीं  है 
मानसिकता में नहीं  संकीर्णता  है 
विचारों  में यदि  इन जो  जीर्णता है 
प्रयासों   में तुम्हारे , सच्ची लगन है 
सादगी है सोच में ,निःस्वार्थ  मन है 
लाख विपदाएं तुम्हारी राह रोके 
लोग  कितना ही सताएं  और टोके 
चाँद सूरज ,खुद करेंगे ,पथ प्रदर्शित 
करोगे तुम ,कीर्ती और यश सदा अर्जित 
प्रगति का पथ ,तुम्हारे ही हित बना है 
सफलता की पूर्ण तब सम्भावना है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 





सेल्फी


आत्मनिर्भरता कहो या स्वार्थ 
आप कुछ भी निकालो अर्थ 
 पर सीधीसादी ,सच्ची है बात 
कि 'सेल्फी ' याने अपना हाथ,जगन्नाथ 
मनचाही मुद्रा ,ख़ुशी और मस्ती 
या साथ में हो कोई बड़ी हस्ती 
अपने मोबाइल से क्लिक करे  एक बार 
वो पल बन जाएंगे एक यादगार 

घोटू 
 

सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

प्रदूषण-बद से बदतर

प्रदूषण-बद से बदतर

कुछ खेत जले ,फैला धुंवा ,बढ़ गया प्रदूषण का स्तर
दिवाली की आतिशबाजी ,और वाहन का धुवा दिनभर
उस पर डकार खाये तुमने ,है चार परांठे मूली  के ,
निश्चित ही होने वाला है ,पॉल्यूशन अब ,बद से बदतर

घोटू
 

धुवाँ धुंवा आकाश हो गया

 

धुंवा धुंवा आकाश हो गया

कहीं किसी ने फसल काट कर,अपना सूखा खेत जलाया
आतिशबाजी  जला किसी ने ,दिवाली  त्योंहार  मनाया
हवा हताहत हुई इस तरह ,मुश्किल  लेना  सांस हो गया
                                           धुवा धुंवा आकाश हो गया
बूढ़े बाबा ,दमा ग्रसित थे ,बढ़ी सांस की  उन्हें  बिमारी
दम सा घुटने  लगा सभी का, हवा हो गयी इतनी भारी
जलने लगी किसी की आँखे ,कहीं हृदय  आघात हो गया
                                          धुंवा धुंवा आकाश हो गया
ऐसा घना धुंधलका छाया ,दिन में लगता शाम हो गयी
तारे सब हो गए नदारद , शुद्ध  हवा बदनाम  हो गयी
अपनी ही लापरवाही से ,अपनो को ही  त्रास हो गया
                                     धुंवा धुंवा आकाश हो गया
हवा हुई इतनी  जहरीली  ,घर घर फ़ैल गयी बिमारी
छेड़छाड़ करना प्रकृति से ,सचमुच हमें पड़ रहा भारी
ऐसी आग लगी मौसम में ,कितना बड़ा विनाश हो गया
                                         धुंवा धुंवा आकाश हो गया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                                

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2016

जादूगर सैंया

पहले कहते चख लेने दो ,
फिर कहते  हो छक लेने दो,
ऊँगली पकड़,पकड़ना पोंची ,
            कला कोई ये तुमसे  सीखे 
कभी मुझे ला देते जेवर ,
कभी कलाकन्द,मीठे घेवर ,
पल में मुझे पटा लेते हो ,
             क्या दिखलाऊँ तेवर तीखे 
तुम रसिया हो,मन बसिया हो,
मेरे प्रियतम और पिया हो ,
मेरा जिया चुराया तुमने ,
            तुम मालिक हो मेरे जी के 
तुम बिन साजन,ना लगता मन,
रहे तड़फता मेरा जीवन 
तुम्हारे बन्धन में बंध कर,
            सारे बन्धन  लगते फीके 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2016

दो पन्नो से ज्यादा ...

अक्सर इन्सान  कहता है,
मेरी हयात(जिंदगी) ....
"एक खुली किताब की तरह है "

क्या कभी किसी ने ,
खुली किताब को,
 दो पन्नो से ज्यादा देखा है???

जमाने का हर शक्स ,
खुद में पोशीदा नज़र आता है.

क्या तुमने,
किसी शक्स की, किताब में लिखे ,
"हर एक अफसाने का सच देखा है"'???




दो बहने


एक हरी नाजुक पत्ती थी ,
खुली हवा में इठलाती थी 
नीलगिरी के पर्वत पर वह ,
मुस्काती थी,इतराती थी 
हराभरा सुन्दर प्यारा था ,
उसका रूप बड़ा मतवाला 
प्रेमी ने दिल जला दिया तो,
जल कर रंग हो गया काला 
उस काया में अरमानो का ,
अब भी रक्त जमा लगता है 
जो कि गरम पानी में घुलमिल,
चाय का प्याला बनता है 
उसका स्वाद बड़ा प्यारा है,
रोज मोहती है सबका मन 
औरो को सुख देना ,उसने,
बना लिया है अपना जीवन 
और उसकी एक और बहन थी,
हरी भरी ,नाज़ुक ,सुन्दर सी 
लोग उसे मेंहदी कहते थे ,
पाने प्यार किसी का तरसी 
उसकी भी तक़दीर वही थी ,
गयी इश्क़ में वो भी मारी 
प्यार उसे भी रास न आया ,
यूं ही कुचली गयी बिचारी 
वो टूटी ,उसका दिल टूटा ,
हाल हुआ यों दीवानो सा 
गुमसुम पिसी पिसी काया में,
रक्त  छुपा है अरमानो का 
उसकी दबी कामना अब भी ,
साथ किसी का जब पाती है 
गोर हाथों में रच कर के ,
रंग गुलाबी ले आती है  
हरी भरी इन दो बहनो  को,
साथी मिल ना पाया मन का  
तो औरों को सुख देना ही ,
लक्ष्य बना इनके जीवन का 
 परम सनेही ,दोनों इनका ,
संग सभी को सुख पहुंचाता 
एक चुस्ती फुर्ती देती है ,
स्वाद रोज जिसका मन भाता 
और दूसरी ,हाथों में  सज,
सुंदरता की शान बढ़ाती 
शादी और सभी पर्वों पर ,
हाथ सुहागन के रच जाती 
इनका जो जीवन अपूर्ण था ,
उसे पूर्ण ये कर लेती है 
होठों या  हाथों पर  लग कर ,
मन में खुशियां भर लेती है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मैंने उमर काट दी बाकी


मैंने उमर काट दी बाकी 
इधर उधर कर ताका झांकी 
अगर खुदी में रहता खोया 
तनहाई  में करता  रोया 
डूबा रह  पिछली यादों में 
यूं ही घुटता  ,अवसादों में 
अपना सब सुख चैन गमाता 
बस,अपने मन को तड़फाता 
मैंने सोचा ,इससे बेहतर 
हालातों से समझौता कर 
तू जीवन का सुख ले हर पल,
बिना किये कोई गुस्ताखी 
मैंने उमर काट दी बाकी 
इधर उधर कर ताकाझांकी 
मैंने अपना बदल नज़रिया 
बड़े चैन का जीवन जिया 
खुश रह बाकी उमर बिताई 
हर बुराई में थी अच्छाई 
फिर कुछ सच्चे दोस्त मिल गए 
बीराने  में पुष्प  खिल  गए 
उनके संग में सुख दुःख बांटे 
दूर  किये  जीवन सन्नाटे 
सबसे हिलमिल प्रेम जताया ,
बिना किये कुछ टोकाटाकी 
मैंने उमर काट दी बाकी 
इधर उधर कर ताका झांकी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बदलते फैशन


पहले हमारे पेंट ,
जब कभी गलती से फट जाते थे 
हम उसे रफू करवा कर ,काम में लाते थे 
जमाना कितना बदल गया है 
आजकल फटी जीन्स पहनने का ,
फैशन चल गया है 
वैसे ही ,पहले रिश्ते ,
यदि गलतफहमियों से फट जाते थे 
तो आपस में समझौते से ,रफू किये जाते थे 
लोग ,एक दूसरे का,
उमर भर साथ निभाते थे 
आजकल फटी जीन्स की तरह ही 
चल रहा है ,फटे हुए रिश्तों का चलन 
हो रहा  है परिवारों का विभाजन 
और यही बन गया है आज का फैशन 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

करवा चौथ पर



उनने करवा चौथ मनाई ,पूरे दिन तक व्रत में रह कर 
करी चाह ,पति दीर्घायु हो ,तॄष्णा और क्षुधा सह सह कर 
उनका चन्दा जैसा मुखड़ा ,कुम्हला गया ,शाम होने तक,
चंद्रोदय के इन्तजार में ,बेकल दिखती थी रह रह कर 
चाँद उगा,छलनी से देखा मेरा मुख,फिर पीया  पानी,
उनकी मुरझाई आँखों से ,प्यार उमड़ता देखा बह कर 
तप उनका,मैंने फल पाया ,ऐसा अपना स्वार्थ दिखाया ,
खुद की लंबी उमर मांग ली ,सदा सुहागन रहना,कह कर

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

करो संगत जवानों की

  

बुढापे में अगर तुमको,जोश जो भरना है जी में,
तरीका सबसे  अच्छा है ,करो सगत जवानों की 
रहेगी मौज और मस्ती,उंगलिया सब की सब घी में,
तुम्हारे चेहरे पर छा जायेगी ,रंगत  जवानों  की 
करेगी बात हंस हंस कर  ,हसीना नाज़नीं  तुमसे,
भले अंकल पुकारेगी ,तो इसमें हर्ज ही क्या है,
तुम्हारी सोच बदलेगी,जवां समझोगे तुम खुद को,
रखेगी,सजसंवर कर 'फिट',तम्हे सोहबत जवानों की 
चढ़े परवान पर फिर से ,तुम्हारा जोश और जज्बा ,
तुम्हारे तन की रग रग में,जवानी फिर से दौड़ेगी ,
सफेदी सर की तुम्हारे,हो काली ,लहलहायेगी,
लौट फिर तुम में आएगी,वही हिम्मत जवानों की 
उमर के फासले की जब झिझक मिट जायेगी तो फिर,
तुम्हारे अनुभवों  का लाभ ,पायेगी नयी  पीढ़ी ,
कभी तुम उनसे सीखोगे,कभी वो तुमसे सीखेंगे ,
तुम्हारा दिल भी खुश होगा ,यूं पा उल्फत जवानों की 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुढापा-एक सोच


जवानी  में तो  यूं  ही, सुहाना  संसार  होता है 
उमर के साथ जो बढ़ता ,वो सच्चा प्यार होता है 
बुढापा कुछ नहीं ,एक सोच है ,इसको बदल डालो ,
पुराना जितना , उतना  चटपटा  अचार होता है 
न चिता काम की,फुरसत ही फुरसत ,मौज मस्ती है,
यही तो वो उमर है ,जब चमन  ,गुलजार होता है 
ताउमर ,काम कर मधुमख्खियों सा,भरा जो छत्ता ,
बची जो शहद ,चखने का ,यही त्योंहार होता है 
अपनी तन्हाई का रावण जला दो,मिलके यारों से,
जला दीये दिवाली के,दूर अन्धकार होता है 
प्रभु में लीन होने से, पूर्व का पर्व  ये  सुन्दर,
हमारी जिंदगी में  ,सिर्फ बस एक बार होता है 
यूं तो दिलफेंक कितने ही ,दिखाते दिलवरी अपनी,
निभाता साथ जीवन भर ,वही दिलदार होता है
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

नवरात्र में


नवरात्र में 
पत्नी के हाथ में 
जब दो दो डंडे नज़र आये 
तो घोटू कवि  घबराये 
और बन कर बड़े भोले 
अपनी पत्नीजी से बोले 
देवी ,जो भी भड़ास हो मन में 
निकाल लो इन नौ  दिन में
जितने चाहे डंडे बजा लो 
और पूरा जी भर के मज़ा लो  
पर इन नौ दिनों के बाद 
करना पडेगा इन डडों का त्याग 
क्योंकि तुम्हारे हाथों में जब होते है डंडे 
होंश मेरे ,पड़ जाते है ठन्डे 
इसलिए ये बात मै स्पष्ट कहना चाहता हूँ 
बाकी दिन मैं शांति के साथ रहना चाहता हूँ 
बात सुन मेरी भड़क गयी पत्नी 
और दोनों हाथों में ,डंडे ले तनी 
बोली लो ,अभी मिटाती हूँ तुम्हारे मन की भ्रान्ति 
पर ये तो बतलाओ ,कौन है ये कलमुंही शान्ति 

घोटू 

रविवार, 9 अक्तूबर 2016

चीनी सालों होश में आओ....

चीनी सालों होश में आओ वर्ना होश में ला देंगे
तेरी माँ की माँ को भी हम नानी याद दिला देंगे

गया ज़माना बात-बात पर हमको आँख दिखाते थे
और हिन्दुस्तानी हम सीधे सादे चुपचाप रह जाते थे

अब तो आँख दिखा के देखो सीधे आँख फोड़ देंगे
अग्नि पृथ्वी सारी मिसाइलें बीजिंग तक घुसेड देंगे

छोडो अरुणांचल-सिक्किम पर घडी-घडी दावा करना
जब देखो अपने धन-बल का रोज़ - रोज़ हौवा करना

अच्छा होगा इज्ज़त से हिमालय के उस पार ही रहना
अच्छा होगा अपनी छोटी सी चार फुटी औकात में रहना

वर्ना यहीं से बैठे - बैठे हम खोपड़ी तुम्हारी खोल देंगे
तुम चीनियों को हम शरबत जैसा पानी में घोल देंगे

इतराते हो जिस दीवार पे मिनटों में ध्वस्त हो जायेगी
हिरोशिमा-नागासाकी से भी भयानक तबाही हो जायेगी

पूरी दुनिया में अब भारत की शान का परचम लहराता है
बाप तुम्हारा अमरीका भी अब यहाँ आके दम हिलाता है

ताकतवर होने पर भी हम छोटे देशों को नहीं डराते हैं
शांतिप्रियता और भाईचारे के लिए हम "चर्चित" कहलाते हैं

- विशाल चर्चित

शनिवार, 24 सितंबर 2016

दीवान की दीवानगी


एक गोकुल था जहाँ कान्हा बजाता बांसुरी,
निकल कर के घर से आती,भागी भागी गोपियाँ 
यहाँ भी आते निकल ,दीवाने सब व्यायाम के ,
सवेरे दीवानजी की,बजती है जब  सीटियां 
फर्क ये है कि वहां पर ,वो रचाते रास थे ,
और यहाँ  होता  सवेरे ,योग और व्यायाम है 
वहां जुटती गोपियाँ थी,यहाँ सीनियर सिटिज़न ,
दीवान की दीवानगी का ,ये सुखद अंजाम है 

घोटू 

शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

प्रियतमा तुम ,मै पिया हूँ


गीत मै  हूँ ,रागिनी तुम ,
भाव मै हूँ,भंगिमा  तुम 
साज मै ,संगीत हो तुम,
चाँद मै हूँ,पूर्णिमा  तुम 
राह मै हूँ,तुम हो मंजिल,
नाव मै हूँ,तुम हो साहिल
मै अगर तन,प्राण तुम हो,
तुम हो धड़कन ,मैं अगर दिल 
मैं हूँ ऊँगली ,अंगूठी तुम,
मै हूँ चूड़ी ,तुम खनक हो 
वृक्ष हूँ मैं , छाँव हो तुम ,
फूल हूँ मै ,तुम महक हो 
सूर्य हूँ मैं ,तुम उषा हो,
मैं हूँ बदली,नीर हो तुम 
मैं हूँ मजनू,तुम हो लैला,
मै हूँ रांझा,हीर हो तुम 
मै  क्षुधा हूँ ,तुम हो भोजन ,
तुम्हो पानी,प्यास हूँ मै 
तुम ख़ुशी,आल्हाद हूँ मै ,
आस तुम,विश्वास हूँ मै 
तुम हो नदिया,मै समंदर,
प्रेरणा तुम,कर्म हूँ मै 
दान तुम,संकल्प हूँ मै ,
आस्था तुम,धर्म हूं मै 
यज्ञ हो तुम,आहुति मै ,
तुम हो बाती ,मै दिया हूँ 
एक दूजे में बसे हम,
प्रियतमा तुम,मैं पिया हूँ 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आस मत दो

आस मत दो

गर मुझे अपना बना सकते नहीं तुम,
तो परायेपन का भी अहसास मत दो
मिलन का सुख यदि मुझे दे नहीं सकते ,
तो जुदाई का मुझे तुम त्रास मत दो
है अलग यदि रास्ते ,मेरे तुम्हारे ,
इस सफर में संग ना चल पाएंगे हम
मोड़ शायद कोई तो ऐसा मिलेगा ,
जहाँ फिर से अचानक टकराएंगे हम
जानता हूँ ,फूल तो दोगे  नहीं तुम,
चुभे मन को ,कोई ऐसी फांस मत दो
गर मुझे अपना बना सकते नहीं तुम,
तो परायेपन का भी अहसास मत दो
लाख हम चाहें ,करें कोशिश कितनी,
मेल लेकिन हर किसी से हों न  पाता
अड़चने आ रोकती पथ,मिल न पाते,
यह मिलन का योग लिखता है विधाता
बता कर मजबूरियां ,मत सांत्वना दो,
मिलेंगे अगले जनम में,आस मत दो
गर मुझे अपना बना सकते नहीं तुम ,
तो परायेपन का भी अहसास मत दो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
 

हम पुलिस है

जब थे वो सत्ता में
हम थे उनकी सुरक्षा में
उन्हें सेल्यूट ठोकते थे
उनके इशारों पर डोलते थे
पर जब परिस्तिथियाँ बदली
सत्ता उनके हाथों से निकली
और वो विपक्ष में है
पर हम तो सत्ता के पक्ष में है
और जब वो करते है प्रदर्शन
सत्ताधारियो के इशारे पर हम
उन पर लाठियां भांजते है
जब की हम जानते है
भविष्य के बारे में क्या कह सकते है
वो कल फिर सत्ता में आ सकते है
पर हमारी तो ये ही मुसीबत है
कि हम कुर्सी के सेवक है
आज जिन्हें लाठी मार कर पड़ता है रोकना
कल उन्ही को पड़ सकता है सलाम ठोकना
कई बार सत्ता के इशारे पर
अपने ज़मीर के भी विरुद्ध जाकर
सभी मर्यादाओं को,अलग ताक पर रख कर 
सो रही औरते और संतों पर
रात के दो बजे भी लाठियां मारी है
क्या करें नौकरी की ये लाचारी है 
कभी अपने आप पर भी ये मन कुढ़ता है
नौकरी में क्या क्या करना पड़ता है
अपनी ही हरकतों से आ गए अजीज है
 हमारे मन को कचोटती यही टीस है
जी हाँ ,हम पुलिस  है

हम पुलिस है


जब थे वो सत्ता में
हम थे उनकी सुरक्षा में
उन्हें सेल्यूट ठोकते थे
उनके इशारों पर डोलते थे
पर जब परिस्तिथियाँ बदली
सत्ता उनके हाथों से निकली
और वो विपक्ष में है
पर हम तो सत्ता के पक्ष में है
और जब वो करते है प्रदर्शन
सत्ताधारियो के इशारे पर हम
उन पर लाठियां भांजते है
जब की हम जानते है
भविष्य के बारे में क्या कह सकते है
वो कल फिर सत्ता में आ सकते है
पर हमारी तो ये ही मुसीबत है
कि हम कुर्सी के सेवक है
आज जिन्हें लाठी मार कर पड़ता है रोकना
कल उन्ही को पड़ सकता है सलाम ठोकना
कई बार सत्ता के इशारे पर
अपने ज़मीर के भी विरुद्ध जाकर
सभी मर्यादाओं को,अलग ताक पर रख कर
सो रही औरते और संतों पर
रात के दो बजे भी लाठियां मारी है
क्या करें नौकरी की ये लाचारी है
कभी अपने आप पर भी ये मन कुढ़ता है
नौकरी में क्या क्या करना पड़ता है
अपनी ही हरकतों से आ गए अजीज है
 हमारे मन को कचोटती यही टीस है
जी हाँ ,हम पुलिस  है

रविवार, 18 सितंबर 2016

पश्चाताप

पश्चाताप

मैंने गर्वोन्वित हो सबको किया तिरस्कृत ,
     मेरे माँ और बाप,बहन भाई थे अच्छे
जैसा मैंने किया ,मिला मुझको भी वैसा ,
     मुझको नहीं पूछते ,बिलकुल,मेरे बच्चे
मैंने कितने मन्दिर और देवता पूजे ,
      मातृदेवता,पितृदेवता भूला  गया मैं
वो जो हरदम ,मेरे आंसू रहे पोंछते,
      उनकी धुंधलाई आँखों को रुला गया मै
तीर्थयात्राएं की ,अन्नक्षेत्र खुलवाये ,
     जगह जगह पर मैंने करवाये भंडारे
लेकिन घर के एक कोने में गुमसुम बैठे ,
    जो मिल जाता ,खा लेते ,माँ बाप बिचारे
दीनो को कम्बल बंटवा ,फोटो खिंचवाए ,
     फटी रजाई ,माँ की लेकिन बदल न पाया
सच तो ये है ,मैंने जैसा ,जो बोया था ,
      आज बुढापे में,वैसा ही फल है पाया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चन्दन और पानी

चन्दन और पानी

तुमने अपने मन जीवन में ,
जबसे मुझे कर लिया शामिल
जैसे चन्दन की लकड़ी को,
गंगाजल का साथ गया मिल
कभी चढूं विष्णु चरणों पर
कभी चढूं शिव के मस्तक पर
अपनेजीवन करू समर्पित,
प्रभु पूजन में ,घिस घिस,तिल तिल 
सुखद सुरभि  मै फैलाऊंगा
शीतलता ,तन पर  लाऊंगा
औरों को सुख देना ही तो,
मेरा मकसद,मेरी मंजिल

घोटू

हमारी धृष्टता

हमारी धृष्टता

बड़ी अजीब होती है आदमी की प्रवत्तियाँ
वह कभी भी ,अपनी घरवाली से सन्तुष्ट होता,
उसे सदा ललचाती ,औरों की स्त्रियां
उसके लालच की पराकाष्टा ,
तब स्पष्ट नज़र आती है
जब वह मन्दिर में जा ,
देवताओं को पूजता है
वहाँ पर भी ,पराई स्त्री का ,
लालच ही उसे सूझता है
गणेशजी को मोदक चढ़ा ,
उनके गले में फूल की माला टांगता है
और बदले में उनसे उनकी पत्नी,
रिद्धि और सिद्धि माँगता है
भगवान विष्णु के आराधन में ,
विष्णु सहस्त्रनाम सुमरता है
और उनसे उनकी पत्नी ,
लक्ष्मी जी की याचना करता है
करता है शिवजी की भक्ति
और मांगता हूँ उनसे उनकी शक्ति
आपको कैसा लगेगा ,
सच सच बतलाइये आप
आपके सामने ही कोई आपकी ,
पत्नी या प्रेमिका का करे जाप
पर ये बेझिझक ,कृष्ण के सामने ही ,
कृष्ण के मन्दिर में जपता  है 'राधे राधे'
किसी और की पत्नी की चाहत ,
कोई अच्छी बात नहीं है ,
ये कोई उसको समझा दे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बच्चों के संस्कार

बच्चों के संस्कार

सूरज को हो सकता ,शनिदेव सा बेटा ,
    ऋषि की संताने भी राक्षस हो सकती है
और हिरणकश्यप सुत ,प्रहलाद हो सकता ,
   बाप के दुश्मन की ,जो करता  भक्ति  है
आदम के कुछ बेटे ,बन जाते है गांधी ,
    और बिगड़ जाते कुछ ,बन जाते बगदादी
बच्चों को संस्कार ,कब ,कैसे मिलजाएं,
     कोई संत बन जाता और कोई अपराधी
कौनसी संताने ,कब कैसी निकलेगी ,
    नहीं कोई अंदाजा ,इसका कर सकता है
कभी जन्म राशि का ,लालन और पालन का ,
     शिक्षा और संगत का ,बड़ा असर पड़ता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

श्री गणेश उचावः

श्री गणेश उचावः

एक रिटायर हुए सज्जन
कर रहे थे गणपति बप्पा का आराधन
'हे बप्पा ,मै अब हो रहा हूँ रिटायर
अपनी संतानो पर रहूंगा निर्भर
तू उन्हें इतनी सदबुद्धि दे
कि वो अपने माँ बाप का ख्याल रखे
गणपति बप्पा बोले वत्स ,
ये संसार का नियम सदा से चला आता है
ज्यादा दिनों तक किसी का रहना ,
किसी को भी नहीं सुहाता है
तुम्ही मुझे बप्पा बप्पा कह कर
बड़े प्रेम से पूजते हो पर
डेढ़ दिन या तीन दिन ,
या ज्यादा से ज्यादा दस दिन में
मुझे विसर्जित देते हो कर
माँ का भी, नवरात्रों में ,
नौ दिन तक ही करते हो पूजन
और फिर कर देती हो ,
उसका भी विसर्जन
तो जब हम देवताओं के साथ ,
आदमी का ऐसा  व्यवहार है
तो ज्यादा दिन टिकने पर ,
अगर होता तुम्हारा तिरस्कार है
तो तुम्हे इसके लिए रहना होगा तैयार
क्योंकि बड़ा प्रेक्टिकल होता है ये संसार

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 14 सितंबर 2016

जलवे -फैशन के

        जलवे -फैशन के

 चूनर दुपट्टा भई ,दिखती है कहीं कहीं,
 जोवन को ढकती नहीं ,काँधे पर लटकती है
घूंघट भी घट घट के,लुप्त हुआ मस्तक से ,
लजीली जो नज़रें थी,  इत उत  भटकती  है
घाघरा घना घना ,अब मिनी स्कर्ट बना ,
खुली खुली टांगो से ,शरम  हया  घटती  है
कुर्ती और ब्लाउज अब ,बांह हीन सब के सब ,
फैशन की कैंची से ,सब चीजें  कटती  है
२   
पीठ के प्रदर्शन का,चला ऐसा  फैशन है ,
खुली पीठ ,लज्जा के बन्धन को तोडा है
सिमटा सा सकुचाया ,गला भला ब्लाउज का,
फैशन के चक्कर में,हुआ बहुत चौड़ा  है
चोली की पट्टी अब ,खुले आम दिखती सब ,
झुकने पर दिखलाता ,यौवन भी थोड़ा है
सत्तर प्रतिशत जल तन में ,उतना ही खुला बदन
फैशन के जलवों ने , कहीं का न छोड़ा  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
 

रिटर्न गिफ्ट

रिटर्न गिफ्ट

मेरे प्रिय श्रीमान
आप अक्सर कहते है ,
कि मैंने पिछले जनम में ,
किये थे मोती  दान
तभी इस जन्म में ,आप जैसा ,
प्यार करने वाला पति पाया है
आपका ये कथन ,निश्चित ही सच होगा ,
पर उन मोतियों के बदले ,
रिटर्न गिफ्ट देने का ,मौका अब आया है
आप उन मोतियों के बदले ,
इस जन्म मे मोतियों के आभूषणों का ,
उपहार दे दो
मुझे खुशियों का संसार  दे  दो
प्रियतम , यदि इस जन्म में ,
आप मुझ पर मोती लुटाएंगे
तो मुझे विश्वास है कि अगले जन्म में भी,
आप मुझको ही , पत्नी के रूप में पायेगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 3 सितंबर 2016

अवमूल्यन

अवमूल्यन

अपने जमाने में ,
मात्र पांच सौ रूपये महीने की पगार से ,
अपने पूरे परिवार को पालनेवाला पिता ,
 अपने बेटे के साथ
पांच सितारा होटल में डिनर के बाद
जब वेटर को पांच सौ रूपये की ,
टिप देते हुए देखता है 
तो शंशोपज में पड़  जाता है कि ,
अपने बेटे की सम्पन्नता पर अभिमान करे
या अपने अवमूल्यन का करे अहसास

घोटू

अंतिम पीढ़ी

अंतिम पीढ़ी

प्रियजन ,
हम हैं ,मानव प्रजाति के ,
वो लुप्तप्रायः होते हुए संस्करण
जिन्होंने बचपन में झेला है ,
अपनी पिछली पीढ़ी का कठोर,
अनुशासन और बन्धन
और अब झेल रहे है ,अगली पीढ़ी के ,
व्यंगबाण और प्रताड़न
हमारी पीढ़ी के ,
बस ,अब भग्नावशेष ही पड़े है
और हम अब,
विलुप्त होने की कगार पर खड़े है

घोटू

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