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मंगलवार, 4 अगस्त 2020

पत्नीजी का मोबाईल प्रेम

तुम हाथों में ले मोबाईल ,घंटों खेला करती उस संग
करती रहती हो चार्ज उसे ,इस तरह रंग गयी उसके रंग
घंटे ,दो घंटे ,उसके संग ,ना खेलो , नींद नहीं आती
उस चिकने चिकने मोबाईल,को बड़े प्यार से सहलाती  
जितना टाइम उसको देती ,उसका बस पांच प्रतिशत भी
यदि वक़्त मुझे जो तुम दे दो ,दिखलादो वही मोहब्बत भी
फाइव जी ,टू जी में उलझी ,तुम ढूंढा करती नेट वर्क
मैं प्यार तुम्हे सौ जी करता ,पर तुमको पड़ता नहीं फर्क
अच्छा लगता 'जी मेल 'तुम्हे ,पर मेरे जी से मेल नहीं
खेलो तुम मोबाईल संग ,क्या मुझ संग सकती खेल नहीं
रहती हो संग 'सैमसंग 'के ,कुछ पल 'एपल 'संग भी रहलो
दो बातें मेरी भी सुनलो ,कुछ बातें अपनी भी कह लो
मोबाईल पर मेसेजेस पढ़ ,खुशियां छा जाती जैसे है
मेरी आँखों में झांक पढ़ो ,कितने ही प्रेम संदेशे  है
कर छेड़छाड़ ,उपकृत करदो ,मेरे मन को भी बहला दो
तुम मोह छोड़ मोबाईल का ,थोड़ा मुझको भी सहला दो

घोटू 
उँगलियाँ

फंसा करके उँगलियाँ में उँगलियाँ ,
           साथ चलते ,हम फंसे थे प्यार में
पकड़ ऊँगली ,पहुँच पहुंची तक गए ,
         उलझा ऊँगली ,कुन्तलों के जाल में
पहना ऊँगली में अंगूठी प्रेम से ,
                  साथ पाया,सात फेरे ले लिये
उँगलियों के इशारों पर तुम्हारे ,
                जिंदगी भर ,पूरी नाचा ही किये
बच्चों ने भी पकड़ कर के उँगलियाँ ,
              चलना सीखा ,जिंदगी मे कुछ बने
बुढ़ापे में आज भी वो उँगलियाँ ,
                सहलाती है ,प्यार करती है हमें

घोटू 

रविवार, 2 अगस्त 2020

पति की शिकायत -पत्नी से

नचाती हो हमको ,तुम उँगलियों पर ,
शराफत के मारे है ,हम नाचते  है
गृहस्थी के कामों में सहयोग देते ,
जरूरत पे बरतन भी हम मांजते है
बड़े प्रेम भाव से ,मख्खन लगाते ,
फिसलती नहीं तुम ,बहुत भाव खाती
खरे आदमी हम ,अखर हम को जाती ,
मोहब्बत जब मांगें ,तुम नखरे दिखाती

जबाब पत्नी का -पति को

यूं तो तुम प्यार जता कर के ,
कहते रहते मुझको 'जानू '
लेकिन मेरी हर फरमाइश ,
पर करते रहते हो 'ना नू'
जब मतलब होता तो मेरी ,
तारीफ़ के पुल  बाँधा करते
मेरा ना मूड बिगड़ जाये ,
रखते हो ख्याल ,बहुत डरते
जैसे ही मतलब निकल गया
व्यवहार बदल सा जाता है
ना मान मनोवल रहती है ,
सब प्यार बदल सा जाता है
तुम हो मतलब के यार पिया ,
 यह  बात ठीक से मैं जानू
मै नहीं बावली या मूरख ,
फिर बात तुम्हारी क्यों मानू ?

घोटू      
शिकवा शिकायत पत्नी से

एक
मैं सहमा सहमा ,डरा डरा ,जब धीमे स्वर में बात करूं ,
तुम झल्ला कर के कहती हो ,ऊंचे क्या बोल नहीं सकते
यदि मैं ऊंचे स्वर में बोलूं ,ये भी न सुहाता है तुमको ,
कहती हो क्या मैं बहरी हूँ , इतना चिल्ला कर जो बकते
मैं चुप रह कुछ भी ना बोलूं ,ये भी तुमको मंजूर नहीं ,
कहती गुमसुम क्यों बैठे हो,तुम मुझको रहे 'अवोइड 'कर
क्या करूं समझ जब ना आता ,रहता दुविधा, शंशोपज में ,
तो मैं तुम्हारी बातों का ,उत्तर देता बस मुस्कराकर

दो
मैं जब भी कोई बात करूं ,सीधे से नहीं मानती तुम ,
कोई 'इफ 'का या फिर 'बट 'का ,तुम लगा अड़ंगा देती हो
मेरा कोई भी हो सुझाव ,तुम मान जाओ ,ना है स्वभाव ,
मेरे हर निर्णय का विरोध ,कर मुझसे पंगा लेती हो      
छोटी  छोटी  सी बातों पर ,होने लगता है चीर हरण ,
और युद्ध महाभारत जैसा ,छिड़ जाता ,व्यंग बाण चलते
बस कुछ ही मौके आते है ,जब मैं प्रस्ताव कोई रखता ,
तुम नज़रें झुका मान जाती , लेकिन वो भी ना ना करते  

घोटू

शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

तुम भी रिटायर हम भी रिटायर
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हुये तुम रिटायर, है हम भी रिटायर
मगरअब भी जिन्दा,दिलों में है 'फायर '

हुए साठ के और ,रिटायर हुए हम
मगर फिटऔरफाइन,जवानी है कायम
उमर बढ़ गयी पर ,नहीं तन  ढला  है
है  चुस्ती  और फुर्ती ,बुलंद होंसला है
 अधिक काबलियत ,अनुभव बढ़ा है
मगर फिर भी जीवन ,गया गड़बड़ा है
नहीं कोई करता ,हमें 'एडमायर '
हए तुम रिटायर ,है हम भी रिटायर

निठल्ले से बैठे ,समय काटते अब
बेवक़्त ही ,फालतू  बन  गए सब
कोई पोते पोती को अपने घुमाता
कोई दूध सब्जी ,सवेरे जा लाता
 किसी  ने नयी नौकरी ढूंढ़ ली  है
कदर सबकी घर में ,कम हो चली है
डटे रहते फिर भी ,नहीं है हम कायर
हुए हम रिटायर ,हो तुम भी रिटायर

कोई वक़्त काटे ,करे बागवानी
सुबह शाम गमलों में ,देता है पानी
कोई टी वी देखे ,है चैनल बदलता
मोबाईल से अपने ,रहे कोई चिपका
कोई 'सोशल सर्विस ',लगा अब है करने
धरम की किताबें ,लगा कोई पढ़ने
कोई ब्लॉग लिखता ,बना कोई शायर
हुए तुम रिटायर ,है हम भी रिटायर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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