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बुधवार, 27 मार्च 2019

अंकलजी 

अंकल जी 
हमारे हर काम में आप क्यों देते हो दखल जी 
अंकल जी 
हम जो भी करते है ,हमें करने दो ,
हमसे कुछ न कहो 
हम अपने में खुश है और आप भी ,
अपने में खुश रहो 
हमारे जीने के ढंग पर टेढ़ी नज़र न लगाओ 
'चिल 'की 'पिल 'लेकर चैन से  सो जाओ 
हमें ये न करो ,वो न करो कह कर टोकते हो  
बात  बात पर नसीहत देकर  रोकते हो  
ये मत भूलो कि हम वर्तमान है , आज है 
जमाने पर हमारा राज है 
कल देश की बागडोर हमें सम्भालनी है 
हम पढ़े लिखे यूथ है, हम में  क्या कमी है 
और आप बुझते हुए चिराग है,बोनस में जी रहे है 
तो क्यों हर बात पर अड़ंगा लगा कर ,हमारा खून पी रहे है    
आप अब हो गये है बीता हुआ कल जी 
अंकल जी 
हम होली के त्योंहार पर ,पानी भरे गुब्बारे 
अगर फेंक कर किसी पर मारे 
तो आप हो जाते है नाराज 
और हमें डाटते है होकर के लाल पीला 
और वो आपके किशन कन्हैया 
जब फेंक कर के कंकरिया 
फोड़ा करते थे गोपियों की गगरिया 
तो उसको आप कहते है भगवान की बाल लीला 
आप मन में क्यों इतना भेदभाव रखते है 
हमें डाटते है और उनका नाम जपते है 
हमारी ग्रेटनेस देखो ,हम फिर भी ,
भले ही ऊपरी मन से ,आपकी इज्जत करते रहते है 
कभी भी आपको बूढा खूसट नहीं कहा ,
हमेशा आपको अंकल जी कहते है 
और आप सरे आम 
करते है हमें बदनाम 
हमेशा हमारे काम में टांग अड़ाते हो 
हमारी शिकायत कर ,
मम्मी पापा से डांट पड़वाते हो 
अरे हमारा तो बाल स्वभाव है ,
और बच्चे होते है चंचल जी 
अंकल जी  
देखो ,हम जब तक अच्छे है ,अच्छे है 
पर मुंहफट है ,अकल के कच्चे है 
हम भी सब पर नज़र रखते है ,
हमारा मुंह मत खुलवाओ 
हमसे कड़वा सत्य मत बुलवाओ 
हमें तो हमारी ताका झांकी कर लताड़ते हो 
पर हमने देखा है ,मौका मिलने पर ,
आप भी आती जाती  आंटियों को ताड़ते हो 
बुझती हुई आँखों में रौशनी आ जाती है 
चेहरे पर मुस्कराहट छा जाती है 
झुकी हुई कमर तन जाती है और 
शकल चमकने लगती है 
सुंदरियों को देख कर आपकी लार टपकने लगती है  
आपकी आशिकमिजाजी ,बीते दिनों की यादें दिला ,
आपको करती है बेकल जी 
अंकल जी 
 हमारी उमर में आपने भी क्या क्या शैतानिया की थी ,
क्या गए हो भूल 
आपने खिलाये थे क्या क्या  गुल 
कितनी लड़कियों को छेड़ा था 
कितनी बार किया बखेड़ा था 
और हम कुछ करें तो खफा होते हो 
नाराज हम पर हर दफा होते हो 
अंकल ,अब जमाना बदल गया है 
अब खुल्लमखुल्ला सब कुछ चलता है 
संस्कार का सूरज पहले पूरब से निकलता था 
अब पश्चिम से निकलता है 
क्या आपके जमाने में होते थे टेलीविज़न और इंटरनेट 
क्या कभी आपने आंटीजी से किया था मोबाइल पर चेट 
आज की पीढ़ी ,पुआ परांठे नहीं ,पीज़ा बर्गर खाती  है 
घर पर खाना नहीं बनता ,फोन कर बाज़ार से खाना मंगाती है 
आज की लड़कियां ,हमारी उमर के लड़कों से ,
छेड़छाड़ की अपेक्षा रखती है 
नहीं तो उन्हें निरा पोंगा पंडित समझती है 
आप भी थोड़ा सा ,जमाने के मुताबिक़ ढल जाओ 
नयी पीढ़ी के संग ,सुर में सुर मिलाओ 
तभी होगी आपकी कदर जी 
अंकल जी 

मदनमोहन बाहेती 'घोटू '

शुक्रवार, 1 मार्च 2019

चंद  चतुष्पदियाँ  

१ 
हंसना सिखाया ,मस्तियाँ और मौज भेज दी 
ग़म रोके ,ढेर सारी खुशियां ,रोज भेज दी 
मांगे थे मैंने तुझसे बस दो तीन  खैरख्वाह ,
तूने तो खुदा ,दोस्तों की फ़ौज भेज दी 
२ ,
प्राचीन इमारतों की भी तो शान बहुत है 
बुझते हुए दीयों पर भी मुस्कान बहुत है 
जीने का ये अंदाज कोई सीख ले हमसे ,
महफ़िल ये बुजुर्गों की ,पर जवान बहुत है 
३ 
बढ़ती हुई उमर के भी अब अंदाज अलग है 
बूढ़े हुए है ,दिल में पर जज्बात अलग है 
लेते है मौज मस्तियाँ ,आशिक़ मिजाज है ,
बोनस में जी रहे है हम ये बात अलग है 
४ 
वीरान जिंदगी को वो कर खुशनुमा गये 
धड़कन के साथ ,जगह वो दिल में बना गये 
पहली नज़र में प्यार का जादू चला गए ,
आँखों के रस्ते आये और दिल में समा गए 
५ 
देखूं जो उसे ,मन में एक तूफ़ान जगे है 
मुस्कान मेरी अब भी मेरे मन को ठगे है 
चांदी से बाल ,सोने सा दिल ,हुस्न गजब का ,
 बुढ़िया  नहीं,बीबी मेरी ,जवान लगे है  
६ 
मोहब्बत तोड़ कर देखो ,मोहब्बत जान पाओगे 
मोहब्बत का सही मतलब ,तभी पहचान पाओगे 
शुरू में मोह होता है , साथ में रहते रहते पर ,
इबादत में ,इक दूजे की ,बदलता इसको पाओगे 

घोटू  ,


घोटू 

सोमवार, 25 फ़रवरी 2019

पिरामिड और इंसान 

कहते है कि ऊँट जब पहाड़ के नीचे आता है 
तब ही वो अपनी औकात समझ  पाता है 
वैसी ही भावनाएं मेरे मन में हुई जाग्रत 
जब मैं मिश्र देश के पिरेमिड के पास खड़ा हुआ ,
मेरा अहम् हुआ आहत 
मैंने देखा कि इस विशाल ,भव्य संरचना के आगे ,
इंसान कितना अदना है 
फिर सोचा कि ये पिरेमिड भी तो ,
इंसान के हाथों से ही बना है 
इंसान का कद कितना ही छोटा क्यों न हो ,
यह उसके बुलंद हौसले और सोच का ही कमाल है
जिसने बनाया ये पिरेमिड बेमिसाल है 
जिसका एक एक पत्थर इंसान के आकार के बड़ा है 
और जो हजारों वर्षों से ,हर मौसम को झेलता हुआ ,
आज भी सर उठाये गर्व से खड़ा है 
दर असल ये विशाल पिरेमिड ,अदने से मानव के ,
मस्तिष्क की सोच की  महानता के सूचक है 
जिसके बल पर  वो पहुँच गया चाँद तक है 
आदमी का आकार  नहीं ,
ये उसकी सोच और जज्बे का बलबूता है 
जिससे वह कामयाबी की ऊँची मंजिलों को छूता है


मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
 

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