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शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

खुद का धंधा 


तुमने बी ए ,एम् ए ,करके ,पायी पगार बस कुछ हज़ार 
दफ्तर जाते हो रोज रोज , और साहेब  डाटते  बार  बार 
और गला सूखता नहीं कभी ,यस सर ,यस सर ,यस सर कहते 
मजबूरी में तुम सब ये सहते ,और सदा टेंशन में रहते 
और साथी एक तुम्हारा था ,जो था दसवीं में फ़ैल किया 
उसने एक चाट पकोड़ी का ,ठेला बाज़ार में लगा लिया 
था स्वाद हाथ में कुछ उसके ,थोड़ी कुछ उसकी मेहनत थी 
लगने लग गयी भीड़ उसके ठेले पर उसकी किस्मत थी 
प्रॉफिट भी  दूना  तिगना था ,और धंधा सभी केश से था 
उसकी कमाई लाखों में थी और रहता बड़े ऐश से था 
अब वो निज मरजी  का मालिक ,है उसके सात आठ नौकर 
बढ़िया सी कोठी बनवा ली ,उसने है मेट्रिक फ़ैल होकर 
और तुम लेने दो रूम फ्लैट ,बैंकों के काट रहे चक्कर 
छोटा मोटा धंधा खुद का ,है सदा नौकरी से बेहतर 
सरकारी सर्विस मिल जाए ,कुछ लोग पड़े इस चक्कर में 
क्यों खुद का काम नहीं करते ,बैठे बेकार रहे घर में 
अंदर के 'इंटरप्रेनर 'को ,एक बार जगा कर तो देखो 
छोटा मोटा धंधा कोई ,एक बार लगा कर तो देखो 
मेहनत थोड़ी करनी होगी ,तब सुई भाग्य की घूमेगी 
जो आज नहीं तो कल लक्ष्मी ,आ कदम तुम्हारे चूमेंगी 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
तुम भी कुत्ते ,हम भी कुत्ते 


तुम भी कुत्ते हम भी कुत्ते 
आपस में भाई भाई हम ,फिर क्यों होते गुत्थमगुत्थे
तुम भी कुत्ते हम भी कुत्ते 
तुम्हारी गली साफ़ सुधरी ,देखी जब इसकी चमक दमक  
मुझको उत्सुकता खींच लाइ देखूं  कैसी इसकी  रौनक 
देखा अनजान अजनबी को ,तुम सबके सब मिल झपट पड़े 
चिल्लाये मुझ पर भोंक भोंक ,मेरे रस्ते में हुए खड़े 
इस तरह शोर मत करो यार ,मारेंगे लोग हमें जुत्ते 
तुम भी कुत्ते ,हम भी कुत्ते 
तुमको ये डर  था ,मैं आकर ,तुम्हारी सत्ता छीन न लूँ 
जो पड़े रोटियों के टुकड़े ,मैं आकर उनको बीन न लूँ 
भैया मेरा रत्ती भर भी ,ऐसा ना कोई इरादा था 
बस रौनक देख चला आया ,बंदा मैं सीधासादा था 
पर तुमने मुझे नोच डाला ,फाड़े मेरे कपड़े लत्ते 
तुम भी कुत्ते ,हम भी कुत्ते 
तुम भी भोंके ,हम भी भोंके ,जब शोर हुआ ,सबने रोका 
हम रुके नहीं तो डंडे ले ,सबने मिल हमें बहुत  ठोका 
तुम पूंछ दबा ,मिमियाते से ,अपने दड़वे की ओर भगे 
मैं समझ गया ये मृगतृष्णा थी ,दूरी से देखो,तुम्हे ठगे 
डंडे ही मिलते खाने को ,मिल पाते नहीं मालमत्ते 
तुम भी कुत्ते ,हम भी कुत्ते 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
प्रथम प्रेम की यादें 

जिधर जिधर से तुम गुजरी थी इस बगिया में ,
फूल रही है आज वहां की क्यारी क्यारी 
जहां जहां पर मेंहदी वाले  पैर  पड़े थे ,
आज वहां पर उग आयी ,मेंहदी की झाड़ी 
जहां गुलाबी हाथों से तुमने छुवा था ,
वहां गुलाब के फूल खिले है,महक रहे है 
और जहाँ तुम खुश होकर खिलखिला हंसी थी 
आज वहां पर कितने पंछी चहक रहे है 
जहां प्यार से तुमने मुझे दिया था चुंबन ,
वहां भ्र्मर ,कलियों संग करते  अभिसार है 
संग तुम्हारे बीता मेरा एक एक पल पल ,
मेरे जीवन की एक प्यारी यादगार है 
तो क्या हुआ ,आज यदि तुम हो गयी पराई ,
मगर कभी तुमने मुझको समझा था अपना 
मेरे दिल में ,साँसों में ,मेरी आँखों में ,
अब भी बसा हुआ है वो प्यारा सा  सपना 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

गुरुवार, 30 अगस्त 2018

मॉडर्न कवि मिलन 

वो आये ,उनका स्वागत कर ,हमने पूछा भाई 
घर का पता ढूढ़ने में कुछ मुश्किल तो ना आई 
उनने झट से मुस्कराकर निज मोबाईल दिखलाया 
बोले 'जी पी एस 'लगा है,'गूगल 'ने पहुँचाया 
हमने पूछा थके हुए हो ,चाय वाय  मँगवाये 
बोले अपने 'वाई फाई 'का ,पहले कोड बताएं 
फिर पास आये ,फोन उठाकर ,खींची सेल्फी झट से 
'पहुंच गए 'लिख 'व्हाट्स एप'पत्नी को भेजा फट से 
हम बोलै साहित्य जगत की ,क्या खबरें है नूतन 
वो बोले मॉडर्न तखल्लुस रखने का अब फैशन 
चंद्रमुखी ने नाम बदल कर ,'फेस बुकी 'कर डाला 
सर्वेश्वर ने नया तखल्लुस 'गूगली 'है रख डाला 
डायरी में कविता लिख कर रखना सबने छोड़ा 
मोबाईल लख ,कविता पढ़ते ,ऐसा नाता जोड़ा 
अपना ब्लॉग बना निज रचना लोग पोस्ट है करते 
पढ़ने वाले दिखा अंगूठा ,लाइक उसको करते 
साहित्यिक पत्रिका बंद सब ,पेपर भी ना छापे 
टी वी वाले ,कविसम्मेलन करते कभी बुलाके 
हास्य कवि ,चुटकुले सुना कर ,है ताली बजवाते 
अब ना बच्चन की मधुशाला ,अब ना नीरज गाते 
कविसम्मेलन में भी देखी  है गुटबाजी छाई 
एक  दूजे की कविता सुन कर ,करते वाही वाही
फिर बोले,छोडो ये किस्से ,तुम कैसे बतलाओ 
ये तो चलता सदा रहेगा ,अब तुम चाय मँगाओ 

मदन मोहन बाहेती ' घोटू ' 
मैं डॉग लवर हूँ 

मैं भी कुत्ते सा भौंका करता अक्सर हूँ 
                             मैं डॉग लवर हूँ 
मैं कुत्ते सा, मालिक आगे पूंछ हिलाता 
रोज रोज ही ,सुबह घूमने  को मैं  जाता 
स्वामिभक्त श्वान सा ,मेरी बात निराली 
मैं भी पूरे घरभर की करता  रखवाली 
झट जग जाता,श्वान सरीखी निद्रा रखता 
मैं हूँ घर में ,कोई अजनबी ,नहीं फटकता 
खड़े कान रहते ,चौकन्ना रहता हरदम 
बंधे गले में, पट्टे से   सामजिक बंधन  
हो जब अपनी गली. स्वयं को शेर समझता 
हड्डी डालो ,खुद का खून ,स्वाद ले चखता 
रोटी कोई डाल दे ,रखता नहीं सबर हूँ 
                              मैं डॉग लवर हूँ 
   
घोटू 

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