एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

रविवार, 5 अगस्त 2018

चरण महिमा 

छुवो तो चरण कमल ,धोवो तो चरणामृत ,
चरणों की शरणो में लोग बहुत पड़ते है 
रोंदो तो पाँव तले ,मंजिल पर पाँव चढ़े ,
मुश्किल तब ,जब कांटे ,पांवों में गढ़ते है 
पैर अगर भारी है ,तो समझो खुशखबरी ,
पैर जमीं पर न पड़े ,जब चढ़ता यौवन है 
पैर झुके ,दबे पाँव ,आगमन बुढ़ापे का ,
बोझ खुदका सहने का ,नहीं बचता दमखम है 
चोर चले दबे पाँव ,जूतों में दबे  पाँव ,
थके पाँव  दबवा लो ,राहत दिलवाते है 
चलते तो चार कदम ,साथ चलो मिला कदम ,
खींचों तो टाँगे है ,मारो तो  लाते  है 
चार पैर कुर्सी के ,चार पैर का पलंग ,
बैठ या सो इन पर ,उमर गुजर जाती है 
अर्ध पुरुष दोपाया ,चौपाया बन जाता ,
शादी कर जीवन में ,अर्धांगिनी  आती है 
कोई के पाँव फूल ,जाते है मुश्किल में ,
कोई के पांवो में  बैठता शनीचर  है 
तो कोई पाँव पकड़ ,पाँव  पसारा करता ,
कोई घूमता रहता ,पांवों में चक्कर है 
पैर लड़खड़ाते कुछ ,पैर फिसल जाते कुछ ,
फूंक फूंक हरेक कदम ,समझदार रखते है 
 बैठता कोई है ,पाँव पर पाँव धरे 
कोई पाँव सर पर रख ,इधर उधर भगते है 
कोई खड़ा हो जाता ,जब पावों पर अपने ,
परिवार अपना वो ,तब ही बसाता है 
कोई के पैरों में लगती जब मेंहदी है 
 मुश्किल से इधर उधर,वो आता जाता है  
कोई के पैरों में ,बंधी बेड़ियाँ रहती ,
कोई के पैरों में घुँघरू है ,पायल है 
पैर ठुमक कर चलते ,पैर नृत्य करते है ,
मानव के जीवन में ,पैरों का संबल है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
तोड़ फोड़ 

कभी उछाले मार उदधि तोड़े मर्यादा 
तोड़ फोड़ पर कभी हवा होती आमादा 
तोड़ सभी तटबंध ,कभी सरिता बहती है 
तोड़ फोड़ तो जीवन में चलती रहती  है 
टूट  दूध के दांत पुनः फिर आ जाते है 
किन्तु बुढ़ापे में फिर टूट टूट जाते है 
रोज टूटते बाल  ,आप जब करते कंघी 
वृद्धावस्था आई,खोपड़ी होती  नंगी 
टूट डाल से फूल,बनाते सुन्दर माला 
टूट वृक्ष से फल भी देते  स्वाद निराला 
अपना कोई रूठ अगर जाता जीवन में 
तो जाता दिल टूट ,दर्द होता है मन में 
टूटा धागा अगर प्रेम का ,गाँठ पड़ेगी 
टूट जायेगे रिश्ते यदि जो बात बढ़ेगी 
साथ आपके अपनों का जब छूटा करता 
आसमान में कोई सितारा टूटा  करता 
किसी सुहागन से  किस्मत जब उसकी रूठे 
बुझ जाते अरमान,हाथ की चूड़ी टूटे 
टूट टूट कर भरी हुई है माँ में ममता 
नेता नहीं निभाते वादा ,टूटे जनता 
राजनीती में तोड़फोड़ होती  है हरदम 
पी मौसम्बी जूस ,तोड़ते नेता अनशन 
टूट आइना ,टुकड़े टुकड़े हो जाता है 
हर टुकड़े में पूरा अक्स नज़र आता है 
रूढ़िवाद को तोड़ रही है पीढ़ी नूतन 
मिलते प्रेमी युगल तोड़ कर सारे बंधन 
भाव टूटते है जब तो शेयर बाज़ार टूटता 
जब ज्यादा बढ़ जाता है तो परिवार टूटता 
होती गलतफहमियां है तो प्यार टूटता 
सांस टूटती है तो हमसे  संसार छूटता 
पिया मिलन की एक विरहन की सांस न टूटे 
कभी किसी का तुम पर से विश्वास न टूटे 
टूट  फूट घर की सम्भले है  ,रखरखाव से 
टूट  फूट जीवन की संवरे ,प्रेम भाव से 

घोटू 

आस बरसात की 

हुई व्याकुल धरा ग्रीष्म के त्रास से 
देखती थी गगन को बड़ी आस  से 
मित्र बादल ने जल सी भरी अंजुली 
सोचा बरसा दूँ शीतलता ,राहत भरी 
चाह उसकी अधूरी मगर रह गयी 
आयी सौतन हवा ,खींच संग ले गयी 
और आकाश सब देखता  ये रहा 
न कुछ इससे कहा ,न कुछ उससे कहा 
छेड़खानी ये आपस में चलती रही 
तप्त धरती अगन में तड़फती  रही 
लाख बादल घिरे कौंधी और बिजलियाँ 
प्यासी धरती का जलता रहा पर जिया 

घोटू 
पापा तो पापा होते है 

लाख मुश्किलें हो जीवन में ,कभी नहीं आपा खोते है 
पापा तो पापा  होते है 
हो संतान भले नाशुक्री ,लायक हो चाहे नालायक  
बेगाना व्यवहार अधिकतर  ,होता जिनका पीड़ादायक
अपने घर में ,अपनी ही सन्तानो से डरते रहते है 
पर बच्चे ,खुशहाल ,सुखी हो,यही दुआ करते रहते है 
घरवालों  के तिरस्कार से ,भरा बुढ़ापा वो  ढोते  है 
पापा तो पापा होते है 
भले विचारों में उनके और इनके हो पीढ़ी का अंतर 
भले बहू ने, आ  ,बेटे के ,कानो में फूँका हो  मंतर  
भले भुला उपकार समझते  बच्चे है उनको नाकारा 
किन्तु मुसीबत यदि आ जाए  ,बढ़ कर  देते यही सहारा 
एकाकीपन की पीड़ा से ,परेशान ,घुट कर  रोते है 
पापा तो पापा होते है 
उनसे आँख चुराने लगते ,जब उनकी आँखों के टुकड़े 
तो फिर भला कौन के आगे ,जा वो  रोवें अपने दुखड़े 
वो था जिन्हे सहारा देना ,वो ही कन्नी  काट रहे  है 
इज्जत देने के बदले वो ,मात पिता को डाट रहे  है 
फिर भी सदबुद्धि आएगी ,मन में सपन संजोते है 
पापा तो पापा होते है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधवार, 1 अगस्त 2018

संगिनी ,ओ मेरी संगिनी 

पंचतत्वों से मिल तुम हो ऐसी बनी
पूर्ण मुझको किया , बन के अर्धांगिनी 
संगिनी ,ओ मेरी संगिनी 
तुम हवा हो हवा, बन के शीतल पवन ,
मेरे जीवन में लाना ,महक प्यार की 
भूल कर भी कभी ,बन के तूफ़ान तुम ,
लूटना मत ख़ुशी ,मेरे गुलजार की 
खुशबुओं से रहो ,तुम हमेशा सनी 
पूर्ण मुझको किया बन के अर्धांगिनी 
संगिनी ,ओ  मेरी संगिनी 
तुम हो शीतल सा जल और जल ही रहो ,
मंद  सरिता सी बहती रहो तुम सदा 
तोडना ना कभी ,अपने तटबंध तुम ,
बाढ़ बन के न लाना ,कभी आपदा 
सबके मन को हरो ,कर के कल कल ध्वनि 
पूर्ण मुझको किया ,बन के अर्धांगिनी 
संगिनी ,ओ मेरी संगिनी 
तुम अगन हो अगन, बाती दीपक की बन ,
जगमगाना प्रिये ,मेरे घर बार को
 बन के ज्वाला कभी तुम भड़कना नहीं ,
स्वाह करना न खुशियों के संसार को 
तुमसे जीवन में फैले सदा रौशनी 
पूर्ण मुझको किया बन के अर्धांगिनी 
संगिनी ,ओ मेरी संगिनी 
तुम धरा हो धरा ,मातृरूपा बनो ,
सबका पोषण करो ,तुम रहो उर्वरा 
पेड़ पौधे फसल ,सारे फूले फले ,
तुम बंजर कभी भी न बनना जरा 
रहे हरियाली जीवन में हरदम बनी 
पूर्ण मुझको किया बन के अर्धांगिनी 
संगिनी ,ओ मेरी संगिनी 
तुम हो आकाश विस्तृत ,भरा प्यार से ,
छा  रहा हर तरफ ,ओर ना छोर है 
बन के पंछी मैं उन्मुक्त उड़ता रहूँ ,
तेरी बाहों का बंधन चहुँ ऒर है 
मैं हूँ हंसा तेरा ,तू मेरी हंसिनी 
पूर्ण मुझको किया बन के अर्धांगिनी 
संगिनी ,ओ मेरी संगिनी 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-