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गुरुवार, 5 जुलाई 2018

करारे नोट 

कल तलक हम भी करारे नोट थे ,आजकल तो महज चिल्लर रह गए 
कोई हमको पर्स में रखता नहीं ,गुल्लकों में बस सिमट कर रह गये 
था जमाना हमको जब पाता कोई ,जरिया बनते थे ख़ुशी और हर्ष का 
कल तलक  कितनी हमारी पूछ थी ,बन गए हम आज बोझा पर्स का 
छोटे  बटुवे में छुपा कर लड़कियां ,लिपटा अपने सीने से रखती हमे 
उँगलियों से सहला  कर गिनती हमें प्यार वाली निगाह  से तकती हमें 
घटा दी मंहगाई ने क्रयशक्तियाँ ,हुआ अवमुल्यन हम घट कर रह गए
कल तलक हम भी करारे नोट थे ,आजकल तो महज चिल्लर रह गए 
नेताओं ने दीवारों में चुन रखा ,वोट पाने का हम जरिया बन गए 
चुनावों में वोट हित  बांटा हमें ,जीत का ऐसा नज़रिया बन गए 
जाते जब इस हाथ से उस हाथ में ,काम में आ जाती है फुर्ती सदा 
चेहरे पर  झांई बिलकुल ना पड़ी ,लगे कहलाने हम काली सम्पदा 
चलन में थे किन्तु चल पाए नहीं ,लॉकरों में हम दुबक कर रह गए 
कल तलक हम भी करारे नोट थे आजकल तो महज चिल्लर रह गए 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
पके हुए फल 

हम तो पके हुए से फल है ,कब तक डाली पर लटकेंगे 
गिरना ही अपनी नियति है ,आज नहीं तो कल टपकेंगे 
इन्तजार में लोग  खड़े है ,कब हम टपके ,कब वो पायें 
सबके ही मन में लालच है ,मधुर स्वाद का मज़ा उठायें 
देर टपकने की ही है देखो,हमको पाने सब झपटेंगे 
हम तो पके हुए से फल है ,कब तक डाली पर लटकेंगे 
ज्यादा देर रहे जो लटके ,पत्थर फेंक तोड़ देंगे  वो 
मीठा गूदा रस खा लेंगे ,गुठली वहीँ छोड़ देंगे  वो 
ज्यादा देर टिक गए तो फिर ,सबकी आँखों में खटकेंगे 
हम तो पके हुए से फल है ,कब तक डाली पर लटकेंगे 
गिरना ही अपनी नियति है ,आज नहीं तो कल टपकेंगे 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
जीवन की फड़फड़ाहट 

उन्मुक्त बचपन की चहचहाहट 
किशोरावस्था की कुलबुलाहट 
जवानी की सुगबुगाहट 
हुस्न की चमचमाहट 
मन में  प्यार की गरमाहट 
पत्नी के कोमल हाथों की थपथपाहट 
हनीमून की खिलखिलाहट 
प्यार और जिम्मेदारियों की  मिलावट 
गृहस्थी की गड़बड़ाहट 
पैसा कमाने की हड़बड़ाहट 
जीवन की गाडी की खड़खड़ाहट 
परेशानिया और छटपटाहट 
आने लगती है थकावट  
जब रूकती है व्यस्तता की फड़फड़ाहट  
आती है बुढ़ापे की फुसफुसाहट 
शिथिल तन की कुलबुलाहट 
नज़रों की धुंधलाहट 
गायब होती मौजमस्ती की गमगमाहट
मन में होती झनझनाहट 
अंकल कहे जाने पर चिड़चिड़ाहट 
स्वास्थ्य  में गिरावट 
हर काम में रुकावट 
ऐसे में भगवान के प्रति झुकावट   
पुरानी  यादों की गरमाहट 
और चेहरे पर मुस्कराहट 
दूर कर देती है बुढ़ापे की गड़बड़ाहट 

मदनमोहन बाहेती 'घोटू '
जीवन की फड़फड़ाहट 

उन्मुक्त बचपन की चहचहाहट 
किशोरावस्था की कुलबुलाहट 
जवानी की सुगबुगाहट 
हुस्न की चमचमाहट 
मन में  प्यार की गरमाहट 
पत्नी के कोमल हाथों की थपथपाहट 
हनीमून की खिलखिलाहट 
प्यार और जिम्मेदारियों ली मिलावट 
गृहस्थी की गड़बड़ाहट 
पैसा कमाने की हड़बड़ाहट 
जीवन की गाडी की खड़खड़ाहट 
परेशानिया और छटपटाहट 
आने लगती है थकावट  
जब रूकती है व्यस्तता की फड़फड़ाहट  
आती है बुढ़ापे की फुसफुसाहट 
शिथिल तन की कुलबुलाहट 
नज़रों की धुंधलाहट 
गायब होती मौजमस्ती की गमगमाहट
मन में होती झनझनाहट 
अंकल कहे जाने पर चिड़चिड़ाहट 
स्वास्थ्य  में गिरावट 
हर काम में रुकावट 
ऐसे में भगवान के प्रति झुकावट   
पुरानी  यादों की गरमाहट 
और चेहरे पर मुस्कराहट 
दूर कर देती है बुढ़ापे की गड़बड़ाहट 

मदनमोहन बाहेती 'घोटू '
फलती फूलती औरतें 

अहमियत औरतों की ,जिंदगी में ख़ास है 
मगर उनके दर्द का ,हमको नहीं अहसास है 
गुलबदन ,शादी के पहले होती नाज़ुक फूल है
काम जब करती नहीं तो बदन जाता फूल है  
काम ज्यादा अगर करती ,फूल जाती सांस है 
काम यदि कम करे तो मुंह फुला लेती सास है 
फुला देता उन्हें पति के प्यार का आहार है 
उनके बलबूते ही फलता फूलता परिवार है 
देती बच्चों को दुआएं ,उनकी हर एक सांस है 
अहमियत औरतों की ,जिंदगी में ख़ास है 

घोटू 

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