एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

रविवार, 24 जून 2018

Donation

Your email have a Donation sum of six Million Euros, which was registered and

insured here in the ONU office in Your name. For more information regarding your Donation.Please contact: onuclaimsfoundations@gmail.com
onuesp@qq.com


Mfg
Kurt

शुक्रवार, 22 जून 2018

नेताजी से 

परेशानी बढ़ , गयी अब चौगुना है 
कर रहे हर शिकायत को अनसुना है 
वोट पाकर , नोट के बस फेर में हो ,
क्या इसी के वास्ते तुमको  चुना है 
दूध चट कर  हमें कह कर चाय है ,
पिलाते तुम सिर्फ  पानी  गुनगुना  है
मुंह हमारा बंद रहे इस वास्ते 
आश्वासन  देते  पकड़ा झुनझुना है 
रजाई की तपिश पाने के लिए ,
रुई जैसा आपने हमको धुना है 
चाह कर भी हम निकल पाते नहीं ,
इस तरह से जाल वादों का बुना है 
अपने ही पैरों कुल्हाड़ी मार कर ,
मन हमारा ,बहुत जल जल कर भुना है 
ज्यादा उड़ने वाले अक्सर अर्श से ,
फर्श पर गिर जाते ,देखा और सुना है  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

रविवार, 17 जून 2018

मुझे याद रहेगी देर तलक 

वो तेरी सूरत  मुस्काती 
वो तेरी जुल्फें  लहराती 
वो चाल तेरी हिरण जैसी ,
वो तेरी कमरिया बल खाती 
       मुझे याद रहेगी  तेरी झलक 
     बड़ी देर तलक ,बड़ी दूर तलक 
वो महकाता चंदन सा बदन 
वो बहकाती चंचल चितवन 
तू रूप भरी ,रस की गागर ,
वो मचलाता तेरा यौवन 
       जो भी देखे वो जाए बहक 
       बड़ी देर तलक बड़ी दूर तलक 
मुस्कान तेरी वो मंद मंद 
रसभरे ओंठ ,गुलकंद कंद 
तेरी हर एक अदा कातिल ,
मेरे मन को आती पसंद ,
        मद भरे नयन ,अधखुले पलक 
        बड़ी देर तलक,बड़ी दूर तलक 
वो तेरे तन की दहक दहक 
वो तेरी खुशबू,महक महक 
खन खन करती वो तेरी हंसी,
वो तेरी बातें चहक चहक 
        तू जाम रूप का ,छलक छलक 
         बड़ी देर तलक ,बड़ी दूर तलक 
तू मूरत  संगेमरमर की 
तू अनुपम कृति है ईश्वर की 
जैसे धरती पर उतरी हो ,
तू कोई अप्सरा अंबर की 
       तू सबसे जुदा ,तू सबसे अलग 
        बड़ी देर तलक ,बड़ी दूर तलक 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 

बावन पत्ते 

हम और तुम और बावन पत्ते 

जब तुम पीसो ,तब मै काटूँ 
जब तुम काटो ,तब मैं बांटू 
चौके,पंजे ,अट्ठे,सत्ते 
हम और तुम और बावन पत्ते 

इक्के दुक्के कभी कभी हम 
तीन पांच करते आपस में 
तुम चौका, मैं छक्का मारूं,
बड़ा मज़ा आता है सच में 
ये क्या कम हम साथ साथ है 
और बिखरे, सात आठ नहीं है 
तुम मारो नहले पर दहला ,
फिर भी मन में गाँठ नहीं है 
तुम बेगम बन रहो ठाठ से ,
बादशाह मैं ,पर गुलाम हूँ 
तुम हो हुकुम ,ईंट मैं घर की ,
तुम चिड़िया मैं लालपान हूँ 
कभी जीतते,कभी हारते ,
हँसते हँसते  बावन हफ्ते 
हम और तुम और बावन पत्ते 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

पिताजी आप अच्छे थे 

संवारा आपने हमको ,सिखाया ठोकरे सहना 
सामना करने मुश्किल का,सदा तत्पर बने रहना 
अनुभव से हमें सींचा ,तभी तो हम पनप पाये 
जरासे जो अगर भटके ,सही तुम राह पर लाये 
मिलेगी एक दिन मंजिल ,बंधाया हौंसला हरदम 
बढे जाना,बढे जाना ,कभी थक के न जाना थम 
जहाँ सख्ती दिखानी हो,वहां सख्ती दिखाते थे 
कभी तुम प्यार से थपका ,सबक अच्छा सिखाते थे 
तुम्हारे रौब डर  से ही,सीख पाए हम अनुशासन 
हमें मालुम कितना तुम,प्यार करते थे मन ही मन 
सरल थे,सादगी थी ,विचारों के आप सच्चे थे 
तभी हम अच्छे बन पाए ,पिताजी आप अच्छे थे 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-