एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2018

शादी के बाद -बदलते परिदृश्य 

पहले वर्ष 

पति जब कहता 
सुनती हो जी ,प्यास लगी है 
पत्नी झट ले आयी पानी
 पति ने बोला मेरी रानी 
पानी तो था एक बहाना 
तुम्हे था अपने  पास बुलाना 
अब तुम आ गयी हो पास 
तुम्ही बुझादो ,मेरी प्यास 

दूसरे वर्ष 

पति जब कहता 
सुनती हो जी प्यास लगी है 
पत्नी कहती ,रुकिए थोड़ा लाती हूँ  जी 
ठंडा पानी ,या फिर सादा पिओगे जी 
पति कहता कैसा भी ला दो ,
हाथ तुम्हारा जब लगता है 
तुम्हारे हाथों से लाया ,
पानी भी अमृत लगता है 

पांच वर्ष के बाद 

पति जब कहता 
सुनती हो जी ,प्यास लगी है 
पत्नी कहती, अभी व्यस्त हूँ 
आज सुबह से ,लगी काम में ,
हुई पस्त हूँ 
खुद ही जाकर 
फ्रिज से लेकर 
पानी पीकर ,प्यास बुझालो 
हाथ पैर भी जरा हिला लो 
कोई बहाना ,नहीं बनाना 
और सुनो ,एक गिलास पानी,
मुझको भी देकर के जाना 

दस वर्ष बाद 

पति जब कहता ,
सुनती हो जी ,प्यास लगी है 
पत्नी कहती ,
अगर प्यास लगी है 
तो मै क्या करू
घर भर के सारे काम के लिए 
मै ही क्यों खटू ,मरू 
तुम इतने निट्ठल्ले हो गए हो 
रत्ती भर काम नहीं किया जाता 
अपने हाथ से पानी भी 
भर कर नहीं पिया जाता 
जरा हाथ पाँव हिलाओ ,
और आलस छोड़ कर जी लो 
खुद उठ कर जाओ 
और पानी पी लो 
 
पंद्रह वर्ष बाद 

पति कहता है 
सुनती हो जी,,प्यास लगी है 
पत्नी कहती ,हाँ सुन रही हूँ 
कोई बहरी नहीं हूँ 
तुम्हारी रोज रोज की फरमाइशें 
सुनते सुनते गयी हूँ थक 
इसलिए तुम्हारे सिरहाने ,
पानी से भरा जग 
दिया है रख 
जब प्यास लगे,पी लिया करो 
यूं मुझे बार बार आवाज देकर 
तंग मत किया करो 

पचीस वर्ष बाद 

पति कहता है ,
सुनती हो जी,प्यास लगी है ,
पत्नी कहती ,
आती हूँ जी 
कल से आपको खांसी हो रही है 
पानी को थोड़ा कुनकुना करके 
लाती हूँ जी 

पचास वर्ष बाद 

पति कहता है 
सुनती हो जी ,प्यास लगी थी 
मैं खुद तो ,रसोई में जाकर ,
हूँ पी आया 
प्यास लगी होगी तुमको भी ,,
दर्द तुम्हारे घुटनो में है ,
इसीलिये तुम्हारे खातिर ,
एक गिलास भर कर ले आया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'  

खल्वाट पति से 

बाकी ठीक ,मगर क्यों ऐसा ,बदला हाल तुम्हारा प्रीतम 
दिल तो मालामाल मगर क्यों ,सर कंगाल तुम्हारा प्रीतम 

मुझे चाँद सी मेहबूबा कह ,तुमने मख्खन बहुत लगाया 
ऐसा सर पर मुझे बिठाया ,सर पर चाँद उतर है आया 
चंदा जब चमका करता है ,आता ख्याल तुम्हारा प्रीतम 
दिल तो मालामाल मगर क्यों ,सर कंगाल तुम्हारा प्रीतम 

दूज ,तीज हो चाहे अमावस ,तुम हो रोशन ,मेरे मन में 
चटक चांदनी से  बरसाते ,प्रेम सुधा  मेरे जीवन   में 
नज़रें फिसल फिसल जाती लख ,चिकना भाल तुम्हारा प्रीतम 
दिल तो मालामाल मगर क्यों ,सर कंगाल तुम्हारा प्रीतम 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
परिधान से फैशन तक 

एक वस्त्र से ढक खुद को ,निज लाज बचती थी नारी 
ढक लेता था काया सारी ,वह वस्त्र कहाता था साड़ी 
कालांतर में होकर विभक्त ,वह वस्त्र एक ना रह पाया 
जो बना पयोधर का रक्षक,वह भाग कंचुकी कहलाया 
और दूजा भाग ढका जिसने ,लेकर नितम्ब से एड़ी तक 
उसने ना जाने कितने ही है रूप बदल डाले   अब तक 
कोई उसको कहता लहंगा ,वह कभी घाघरा बन डोले 
कहता है पेटीकोट कोई ,सलवार कोई  उसको बोले 
वो सुकड़ा ,चूड़ी दार हुआ ,ढीला तो बना शरारा वो 
कुछ ऊंचा ,तो स्कर्ट बना ,'प्लाज़ो'बन लगता प्यारा वो 
कुछ बंधा रेशमी नाड़े से ,कुछ कसा इलास्टिक बंधन में 
बन 'हॉट पेन्ट 'स्कर्ट मिनी',थी आग लगा दी  फैशन में 
ऊपर वाला वह अधोवस्त्र ,कंचुकी से 'चोली'बन बैठा 
फिर टॉप बना ,कुर्ती नीचे ,'ब्रा'बन कर इठलाया,ऐंठा 
उस एक वस्त्र ने साड़ी के,कट ,सिल कर इतने रूप धरे 
धारण करके ये परिधान ,नारी का रूप  नित्य  निखरे 
पहले तन को ढकता था अब ,ढकता कम ,दिखलाता ज्यादा 
फैशन मारी अब रोज रोज ,है एक्सपोज को आमादा 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
ऐसा पति पाया होगा 

दान में पिछले जनम मोती लुटाया होगा 
दूध,बिलपत्र ,रोज शिव को चढ़ाया होगा 
कोई अच्छा सा वर ,वरदान में माँगा होगा ,
तब कहीं जाके तुमने ऐसा पति पाया होगा 

घोटू 
मनोज -संजीला परिणय रजत जयंती पर

मन मनोज के सज रही ,संजीला की प्रीत 
शादी को इनकी हुए , पूरे  बरस  पचीस 
पूरे  बरस  पचीस ,कामना  है  ये  मन में 
सदा रहें खुश,सुख बरसे ,इनके जीवन में   
मिलनसार और हंसमुख जीवन रहे हमेशा 
जग जग जोड़ी बानी रहे ,बंधन  हो  ऐसा 

मदन मोहन और तारा बाहेती 

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-