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बुधवार, 9 अगस्त 2017

समृद्धि और संतोष  

आज मैं जब बह किसी बच्चे को ,
मोबाईल पर देर तक 
अपने किसी दोस्त से ,
करते हुए देखता हूँ गपशप 
मुझे अपने बचपन के ,
दिनों  के वो छोटे छोटे डब्बे है याद आते 
जिनमे छेद  कर के,
एक मोटे  से धागे से बाँध कर ,
हम टेलीफोन थे बनाते 
और अपने दोस्तों से 
बड़ी शान से थे बतियाते 
वो अस्पष्ट से सुनाई देते हुए शब्द,
और वो फुसफुसाते हुए होठ ,
हमे कर देते थे निहाल जितना 
आज का आई फोन भी,
 सुख नहीं दे पाता उतना 
एक छोटी सी दूरबीन,
 जिसके एक सिरे पर ,
फिल्म की कटिंग की छोटी छोटी तस्वीर 
जब दुसरे सिरे पर लगे लेंस से ,
बड़ी बड़ी नज़र आती थी 
हमारी बांछें खिल जाती थी 
या फिर हाट,बाज़ार,मेले का वो बाइस्कोप 
जब ताजमहल से लेकर ,
नहाती मोटी  धोबन के दर्शन था कराता  
हमे कितना मज़ा था आता 
जो सुख आज टीवी या पीवीआर,
 के सिनेमा घरों में भी नहीं मिल पाता 
बड़े बड़े दस मंजिली स्टार क्रूज़ में बैठ कर 
या गोवा या पट्टेया के स्पीड बोट  में सैर कर 
आज हम वो आनंद नहीं महसूस कर पाते 
जो बरसात में हमें मिलता था ,
जब हम घर के आगे की बहती नाली में,
कागज की नाव थे तैराते 
दूर आसमान में उड़ते हुए हवाईजहाजों को ,
देख कर ,उनके साथ साथ की दौड़ 
बिजनेस क्लास में हवाई सफर के ,
आनंद  को देती है पीछे छोड़ 
कहाँ तब का गर्मी की रातों में ,
अपने परिवार के साथ ,खुली छतों पर ,
तारे गिनते हुए ,ठंडी ठंडी हवा में सोना 
कहाँ  अब का ,मन बहलाने के लिए ,
गर्मी में किसी हिलस्टेशन पर ,
पांच सितारा होटल के ए सी रूम का 
ये गुदगुदा बिछौना 
दोनों में है कितना अंतर 
कौन था ज्यादा सुखकर 
पहले हम हर छोटी छोटी सुविधा में ,
खुशियां ढूंढते थे ,और संतोष से जीते थे 
मिट्टी की मटकी का ठंडा पानी खुश हो पीते थे 
और जिंदगी में आज ,
इतनी सुख और सुविधाएँ उपलब्ध है ,
पर मन में संतोष नहीं है 
ये जमाने की रफ़्तार है ,
पर क्या इसमें हमारा दोष नहीं है? 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जिंदगी और मिठाइयां 

हमारी जिंदगी में  ,
मिठाइयों का रोल है कितना अहम 
कि अपनी कोई भी ख़ुशी का प्रदर्शन 
मिठाई बाँट कर ही करते है हम 
जन्मदिन हो या विवाह हो 
या पूरी हुई ,संतान पाने की चाह हो 
आपने नया घर बनाया हो 
या बच्चे का अच्छा रिजल्ट आया हो 
सगाई हो या रोका हो 
कोई भी ख़ुशी का मौक़ा हो 
त्योंहार हो या कोई शुभप्रसंग 
अपनी प्रसन्नता प्रकट करने का ,
सबसे अच्छा ढंग 
यह कि सब मिलने जुलने वालों का ,
मुंह मीठा करवाया जाता है 
मिठाइयों का खुशीयों  से ,
चोली और दामन का नाता है  
अरे और तो और ,
भगवान से जब लेना होता है आशीर्वाद 
तो उन्हें भी चढ़ाया जाता है ,
मिठाइयों का ही परशाद 
गणेश जी को मोदक और ,
हनुमानजी को बेसन के लड्डू भाते है 
और कृष्ण भगवान को,
छप्पन भोग चढ़ाते है  
पर आजकल हम,
 मोटा न होने के चक्कर में 
या फिर डाइबिटीज के डर में 
जब परहेज से रहते है,
मिठाइयां नहीं खाते है 
हम दुनिया की कितनी अच्छी चीजों के ,
स्वाद से वंचित रह जाते है 
गरम गरम रस टपकाती जलेबियाँ 
जो पहली नज़र में ही चुरा लेती है जिया 
मुंह में पानी आ जाता है जिनका नाम सुन 
रसगुल्ले या गुलाबजामुन 
दूर से अपनी और खींचता है जिनका जलवा 
मूंग की दाल का या गाजर का हलवा 
देखते हम जिन पर हो जाते है लट्टू 
बूंदी के प्यारे प्यारे गोलमोल लड्डू 
क़त्ल करता हुआ ,चांदी की वर्क चढ़ी ,
काजू की कतलियों का यौवन 
देख कर नहीं डोलेगा किसका मन 
और वो आपके सामने अंगड़ाइयां भरती 
रस भरी प्यारी सी इमरती 
या  वो मन मोहते हुए रबड़ी के लच्छे 
देख कर मुंह में पानी भरते अच्छे अच्छे 
लवंगलता और बालूशाही की मिठास 
जो आपके लिए बनी है ख़ास 
 ये इतनी सारी मिठाइयां ,
आपको दे रही हो निमंत्रण 
और ललचाई नज़रों से ,
आप खुद पर कर रहे है नियंत्रण 
क्यों आप इन सबका मोह त्याग कर, बेकार 
अपनी जुबान पर करते है अत्याचार 
क्योंकि यदि आप अपनी जिव्हा को तरसाएगे 
तो बड़ा दुःख पाएंगे 
अरे अगर कुछ केलोरियाँ ,
ज्यादा भी खा ली जाएंगी 
दो चार किलोमीटर घूमने में जल जाएंगी 
पर बिना खाये जो आपका मन जलेगा 
आपको बहुत खलेगा 
ये दो इंच की लपलपाती जिव्हा 
जब तक तृप्त रहेगी 
तब तक मस्त रहेगी 
अगर मीठा खायेगी 
तो मीठा बतियायेगी 
और अगर तरसेगी 
तो कहर बन के बरसेगी 
और  अगर ये गलती से मचल गयी 
बगावत करके फिसल गयी 
तो फिर ये बड़ा सताएगी 
मुंह से निकली बात वापस  न आएगी 
इसलिए इस रसना को। 
रसास्वादन करने दो 
इसे तृप्त रखो ,इसमें मिठास भरने दो 
मीठा मीठा बोल कर सबका मन लुभावो 
जी भर के मिठाइयां खाओ ,
और सबको खिलाओ 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 5 अगस्त 2017

चकमक या बुझता अंगारा 

जवानी में हमारे जिस्म,
चकमक पत्थर की तरह होते है ,
जिनके आपस में टकराने से ,
चिंगारियाँ  निकलती है 
और आग जलती है 
लेकिन बुढ़ापे में ,हो जाते है 
उस बुझते हुए कोयले की तरह 
जिनके ऊपर चढ़ी रहती है,
राख की सतह 
जो कभी कभी हवा के झोंके के आने पर 
थोड़ी सी उड़ जाती है 
और तब बुझते हुए अंगारों की ,
थोड़ी सी दहक नज़र आती है 
जो आज भी ,
अपनी तपिश का दम भरती  है 
अरे गुलाब की सूखी पखुड़ियों में भी ,
थोड़ी खुशबू हुआ करती है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


ये दिल कितना पगला होता 

बीती बातें भुला न पाता ,लक्ष्य सामने अगला होता 
ये दिल कितना पगला होता 
अपनी तीन गर्लफ्रेंडों संग ,वो मुश्किल से निभा रहा है 
लेकिन फिर भी मन ना भरता,वो चौथी को पटा रहा है  
उसे पता जब शादी होगी, बीबी नहीं भटकने  देगी 
कन्ट्रोल रख ,नहीं किसीको ,उसके पास फटकने देगी 
लेकिन फिर भी,उनके पीछे,ये दीवाना  कंगला होता 
ये दिल कितना पगला होता 
मौज मस्तियाँ ,चार दिनों की,यूं ही अचानक छूट जायेगी 
परिवार का भार पड़ेगा  ,यारी सारी ,टूट   जायेगी 
वो अपने घर,तुम अपने घर,देख नहीं पहचानो तक भी 
पत्नीजी के अनुशासन में ,नहीं सकोगे ,उसको तक भी 
इधर उधर की सोच बावला ,क्यों फिर यूं ही गंदला होता 
ये दिल कितना पगला होता 
ये तो लालच का मारा है,माँगा करता ,मोर हमेशा 
साथ एक के रहते रहते ,हो जाता है ,बोअर हमेशा 
दिखता कितना ही शरीफ हो,मन में रहता चोर हमेशा 
कितना ही शाकाहारी हो ,रहता आदमखोर  हमेशा 
और ये चक्कर नहीं छूटता ,चाहे सर है टकला होता 
ये दिल कितना पगला होता 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
माँ के हाथ का खाना 

हलवा ,पूरी ,आलू ,होते ,स्वाद बहुत भंडारे के 
तृप्ति मिलती ,जब छकते है लंगर हम गुरद्वारे के 
माँ के हाथों बनी ,दाल और रोटी की लज्जत आगे,
फीके लगते ,सारे व्यंजन,होटल पांच  सितारे  के 

घोटू 

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