एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शनिवार, 15 अप्रैल 2017

बुझे चराग जले हैं जो इस बहाने से...

बुझे चराग जले हैं जो इस बहाने से
बहुत सुकून मिला है तेरे फिर आने से

बहुत दिनों से अंधेरों में था सफर दिल का
इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से

नया सा इश्क नयी सी है यूं तेरी रौनक
लगे कि जैसे हुआ दिल जरा ठिकाने से

चलो कि पा लें नई मंजिलें मुहब्बत की
बढ़ा हुआ है बहुत जोश चोट खाने से

कसम खुदा की तेरे साथ हम हुए चर्चित
जरा सा खुल के मुहब्बत में मुस्कुराने से

- VISHAAL CHARCHCHIT

मंगलवार, 28 मार्च 2017

खाना और पकाना 

साल में तीस चालीस दिन ,भंडारा या लंगर 
और पन्द्रह बीस बार ,जाना किसी के न्योते पर 
वर्ष में अठारह व्रत,याने दो बार की नवरात्रि 
चार व्रत चार जयंती के और एक शिवरात्रि 
चौविस व्रत एकादशी के ,
और बारह  पूर्णिमा के रखे  जाते 
इस तरह सालमे चार महीने तो ,
यूं ही बिन पकाये निकल जाते 
फिर पूरे सावन में एक समय भोजन करना 
सोम,मंगल और शनिवार को एकासन व्रत रखना 
याने की पांच माह से ज्यादा ,
सिर्फ एक समय भोजन 
तो फिर कूकिंग की जहमत क्यों उठाये हम 
लोग जो इतनी होटलें और रेस्टारेंट खोले पड़े है 
हम जैसो के  ही आसरे तो खड़े है
इनको चलते रहने देने के लिए भी तो कुछ करना है  
लोगो को रोजी रोटी देना है,
सरकार का सर्विस टेक्स भरना है 
और ये चाट पकोड़ी के ठेले ,पिज़ा बर्गर के आउटलेट 
हमारे भरोसे ही तो भरेगा इनका पेट 
जब आसानी से मिल जाता है ,
रोज नया टेस्ट और अलग अलग स्वाद 
तो फिर पकाने में ,
कोई क्यों करे ,अपना वक़्त बर्बाद 

घोटू  
बदलते रिश्तों का अंकगणित 

शादी के पहले आपका बेटा ,
जो पूरी तरह रहता है आपके संग 
शादी के बाद उसे मिल जाती है,
पत्नी याने क़ि अर्धांगिनी ,
और बन  जाता है उसका आधा अंग 
तो वह जिस दिन से पत्नी को ब्याह कर लाता है 
निश्चित है आधा तो आप के हाथ से निकल जाता है 
और फिर धीरे धीरे ,जब पत्नी का  है जादू 
तो अक्सर ,वो पूरा का पूरा ही हो जाता उसके काबू 
विवाह के फेरे ,उससे अपनी पत्नी की नजदीकियां ,
और आपसे उसकी दूरियां बढ़ाते है
अब उसे सास ससुर के रूपमे ,
एक जोड़ी माँ बाप औरमिलजाते है 
अब उसका प्यार ,
जिस पर था आपका पूर्ण अधिकार 
दो दो माँ पिताओं में विभाजित हो जाता है 
जो आपके दिलको दुखाता है 
तो पचास प्रतिशत अर्धांगिनी ,
  बाकी पचास  का आधा ,सास ससुर ले जाते है 
आप मुश्किल से ,बचा हुआ पच्चीस प्रतिशत ,
पाने के अधिकारी रह जाते है 
धीरे धीरे जब उसके बच्चे होते है ,परिवार बढ़ता है 
तो फिर उन सबमे भी उसका प्यार बंटता है 
और आपके हिस्से रह जाता है ,
बचा खुचा ,अवशेष मात्र ही,थोड़ा सा  प्यार 
और वो भी ,कभी कभी जब नहीं मिलता,
आप हो जाते है बेकरार 
पर भैया ,ये तो समाज का नियम है ,
याद  करिये ,आपने भी तो ऐसा ही किया था 
शादी के बाद ,अपने माँ बाप को ,
यूं ही तड़फता छोड़ दिया था 
तो ये सोच कर कि शादी के बाद से ,
बेटा निकल गया है हाथ से 
दुखी होना छोडॉ और मस्ती से जियो 
अपनी पत्नी के साथ प्रेम से ,
पकोड़े खाओ और चाय पियो 
क्योंकि एक वो ही है जो जीवन भर 
पूर्ण रूप से आपका साथ निभाती है 
आपकी सच्ची जीवनसाथी है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

सोमवार, 27 मार्च 2017

आज़ादी 

शीत  ऋतू में ,गरम वस्त्र में,
रखा हुआ था जिन्हें दबाकर 
अपना पूरा रंग आज वो,
दिखा रहे है मौका  पाकर 
श्वेत चर्म चुम्बी वसनो मे ,
हुई भीग कर, तुम इतना तर 
तन के सब आयाम तुम्हारे
,साफ़ हो रहे दृष्टिगोचर 
बहुत दिनों तक रह बन्धन में ,
जब मिलती थोड़ी आजादी 
तो अपनी मर्यादा तोड़े,
सब हो जाते है  उन्मादी 

घोटू 
चलते चलते  

तिनका तिनका चुन बनाते घोसला हम,
दाना दाना चुग के सबको पालते  है 
लम्हा लम्हा झेलते है परेशानी,
कतरा कतरा खून अपना बालते है 
गाते गाते ये गला रुँध सा गया है,
खाते खाते भूख सारी मर गयी है 
सोते सोते नींद अब जाती उचट है,
सहमे सहमे सपने भी आते नहीं है 
चलते चलते अब बहुत हम थक गए है,
थकते थकते अब चला जाता नहीं है 
तपते तपते पड़ गए है बहुत ठन्डे,
जलते जलते अब जला जाता नहीं है 
डरते डरते खो गयी मर्दानगी  है,
घुटते घटते ओढ़ ली ,खामोशियाँ है 
रोते रोते सूख सब आंसू गए है ,
मरते मरते क्या कभी जाता जिया है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-