एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

सोमवार, 27 मार्च 2017

पति का रिटायरमेंट-पत्नीकी आनंदानुभूति 

हो गए पति देवता जब से रिटायर,
रूदबा उनका थोड़ा सा ठंडा पड़ा है 
निठल्ले है,वक़्त काटे से न कटता ,
व्यवस्थाये ,गयी सारी  गड़बड़ा है 
अब उमर संग आ गया बदलाव उनमे ,
या कि इसमें ,उनकी कुछ मजबूरियां है 
कोई उनकी आजकल सुनता नहीं है,
और बच्चों ने बना ली दूरियां  है 
जवानी भर ,जरा भी मेरी सुनी ना ,
दबा कर के रखा मुझको उम्र सारी 
बुढापे का फायदा ये तो हुआ है,
पतिजी अब लगे है,सुनने हमारी 
काटने को वक़्त ,कब तक पढ़ें पेपर ,
टीवी पर कब तलक नज़रोंको गढाये 
एक ही अवलम्ब उनका मैं बची हूँ,
साथ जिसके,चाय पियें,गपशपाये 
नहीं कुछ भी बताते थे,छुपाते थे,
बात दिलकी खोल अब कहने लगे है 
राय मेरी ,मांगते हर बात पर है,
सुनते है और कहने मे रहने लगे है 
मूड हो  तो खेल लेते,ताश पत्ती,
या सिनेमा में दिखाते नयी पिक्चर 
उमर संग व्यवहार में बदलाव आया,
जिसके खातिर तरसती थी जिंदगी भर 
ये रिटायरमेंट उनका एक तरह से,
मेरे खातिर आया है वरदान बन के 
जवानी में ना ,बुढापे मे ही सही पर,
हो रहे है ,पूर्ण सब अरमान मन के 
बच्चे सेटल हो गए अपने घरों में ,
नहीं चिता कोई भी है ,या फिकर है 
कट रही अब जिंदगी ये चैन से है ,
मौज मस्ती मनाने की ये उमर है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
उमर इसमें क्या करेगी 

साथ अपनी कबूतरनी को लिए करना गुटरगूं ,
अरे ये है हक़ हमारा,उमर इसमें क्या करेगी 
पंख फैला ,आसमां में,रोज खाना कलाबाज़ी ,
अरे ये है 'लक 'हमारा ,उमर इसमें क्या करेगी 
मन मसोसे देखते रहना और जल कर ख़ाक होना ,
ये निकम्मापन है उनका,उमर इसमें क्या करेगी 
मिली जितनी जिंदगी है,करो तुम एन्जॉय खुल कर,
व्यर्थ है दिल को जलाना ,उमर इसमें क्या करेगी 
कोई घर की रोटी खाये ,कोई मंगवाता है पिज़ा,
सभी का  अपना तरीका ,उमर इसमें क्या करेगी 
कोई की पत्नी पुरानी,पड़ोसन पर कोई रीझा ,
लगे घर का माल फीका ,उमर इसमें क्या करेगी 
आदतें जो पालते हम ,है शुरू से ,ना  बदलती,
रहा करती मरने तक है ,उमर इसमें क्या करेगी 
हसीनो की ताकाझांकी ,का अलग ही लुफ्त होता ,
छूटती ये नहीं लत है,उमर इसमें क्या करेगी 
अगर घंटी नहीं बजती,फोन साइलेंट मोड़ पर है,
बेटरी या हुई डाउन ,उमर इसमें क्या करेगी 
उसको फिर रिचार्ज करवाने,का समय अब आगया है 
नया मॉडल या पुराना ,उमर इसमें क्या करेगी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 26 मार्च 2017

      करिश्मा कृष्ण का 
                  १ 
बिन लिए हथियार कर में,महाभारत के समर में ,
पांडवों की जय कराना, ये करिश्मा कृष्ण का था 
छोड़ अपना राज मथुरा,समंदर के किनारे जा ,
द्वारिका नूतन बसाना ,ये करिश्मा कृष्ण का था 
बालपन में ,उँगलियों से ,बांसुरी की धुन बजाना ,
गोपियों का मन रिझाना ये करिश्मा कृष्ण का था 
और बड़े हो उसी ऊँगली ,पर चढ़ा कर के सुदर्शन ,
चक्र ,दुनिया को हिलाना, ये करिश्मा कृष्ण का था 
                    २ 
लोग अक्सर ऐश्वर्य पा ,भूल जाते सखाओं को ,
दोस्ती पर सुदामा के ,संग निभाई  कृष्ण ने थी 
एक पत्नी झेलना मुश्किल ,मगर रख आठ रानी,
जिंदगी, खुश सभी को रख कर बितायी कृष्ण ने थी 
फलों की चिता किये बिन,कर्म की महिमा बता कर,
 महाभारत के समर  में ,गीता सुनाई कृष्ण ने थी 
ऐसा बंशी बजाने का महारथ हासिल किया था ,
उमर भर ही चैन की  ,बंशी बजायी  कृष्ण ने थी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'              

शार्ट कट 

मूर्ती को प्रभु समझ हम,पाहनो को पूजते है 
देव क्या ,हम देवता के वाहनों को पुजते है 
शिव का वाहन ,नन्दी है तो,हम उसे भी जल चढाते 
और मन की कामना हम ,कान में उसके  सुनाते 
गजानन वाहन है मूषक ,चढाये मोदक उड़ाता 
कान में उसके मनोरथ ,फुसफुसा  कर कहा जाता
चढ़ाते हनुमानजी को, राम का हम नाम लिखते 
भला क्यों सीधे प्रभु से , मांगने में हम  हिचकते 
सोचते है प्रभु से यदि ,करेगा रिकमंड  वाहन 
तो प्रभु जल्दी सुनेंगें, मिलेगा जो चाहता  मन 
काम चमचों से कराना , शार्ट कट का  रास्ता है
 रीति लेकिन ये पुरानी  ,बन गयी अब आस्था  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
शिकायत -पत्नी की 

छोटा सा सौदा लेने में,कितना मोलभाव करते हो 
एक पेंट भी लेनी हो तो ,तुम दस पेंट ट्राय करते हो 
कभी डिजाइन पसन्द न आती ,कभी फिटिंगमे होता संशय 
बना कोई ना कोई बहाना,टाल दिया करते तुम निर्णय 
तो शादी के पहले जिस दिन,मुझे देखने तुम आये थे 
कुछ मिनिटों में ,कैसे शादी का निर्णय तुम ले पाए थे 
जब तुमने मुझको देखा था ,क्या देखा बस चेहरा ,मोहरा 
केवल  नाकनक्श देखे थे,या देखा था बदन  छरहरा 
या फिर मेरे बाल जाल में, अपनी नज़रें उलझाई थी 
या फिर मेरी मीठी बातें ,तुम्हारे  मन को भायी  थी 
देख आवरण ही बस मेरा क्या तुम मुझको आंक सके थे 
सच बतलाना रत्ती भर भी ,मेरे दिल में झाँक सके थे 
जबकि तुम्हे मालूम था तुमको ,जीवन भर है साथ निभाना 
बहुत मायना रखती उस दिन ,तुम्हारी छोटी  हाँ या ना 
कुछ मिनिटों में कितना मुश्किल,होता है ये निर्णय करना 
अपना जीवन साथी चुनना,जिस के संग है जीना ,मरना 
आपस में कितनी मिलती है ,सोच हमारी और तुम्हारी 
एक गलत निर्णय जीवन भर,दोनों पर पड़ सकता भारी 
तो फिर उस दिन क्या अंदर से,तुम्हारा दिल कुछ बोला था 
या फिर शायद मुझे देख कर ,तुम्हारा भी दिल डोला था 
टालमटोल नहीं कर पाए ,तुमने बस ,हामी भर दी  थी 
ये तुम्हारा निर्णय था या ,फिर ये ईश्वर  की मरजी   थी 
कहते है कि सभी जोड़ियां ,है ऊपर से बन कर आती 
यह नियति का निर्णय होता,किसका ,कौन बनेगा साथी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-