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रविवार, 31 जुलाई 2016

बदलाव

बदलाव

चुगते थे कबूतर जो दाना ,आकर के अटारी पर मेरी,
वो स्विमिंग पूल के तट पर जा ,निज प्यास बुझाया करते है
जो आलू परांठा खाते थे, घर के मख्खन की डली  डाल ,
वो डबल चीज डलवा कर के ,पीज़ा मंगवाया करते है
पहले माबाप जो कहते थे ,उससे शादी हो जाती थी ,
अब चेटिंग,डेटिंग कर के ही ,दुल्हन को लाया करते है
पहले मन्दिर में जाते थे ,श्रद्धा से भेट चढाते थे ,
अब तो रिश्वत का दस प्रतिशत ,मन्दिर में चढ़ाया करते है
पहले सुख देकर औरों को ,सन्तोष हृदय को मिलता था,
औरो की ख़ुशी से अब जलते ,और खुद को जलाया करते है
पहले जब शैतानी करते थे ,बच्चे , हम समझाते थे
हम बूढ़े क्या हो गए हमे,बच्चे समझाया  करते   है
बदलाव उमर में क्या आया ,बदलाव जमाने में आया ,
वो याद जमाने आ आ कर ,मन को तडफाया करते है
वो दिन भी हमने देखे थे,ये दिन भी हमने देख लिए ,
हम बीते दिन की यादों से मन को बहलाया करते  है

घोटू

हाथी पादा

               हाथी पादा

सब इन्तजार में बैठे थे ,हाथी  पादेगा ,पादेगा
इतना विशाल प्राणी है तो वो वातावरण गुंजा देगा
लेकिन जब हाथी ने पादा,तो बस हल्की सी फुस निकली
लोगों की सभी अपेक्षाएं,ना पूर्ण हुई,बेदम  निकली
कुछ लोग बोलते है ज्यादा ,वो निरे ढपोल शंख होते
जो शोर शराबा दिखलाते, अंदर से बड़े  रंक  होते
निकले बरात भी शानदार ,अच्छा हो अगर बैंडबाजा
तो नहीं जरूरी होता है,सुन्दर होंगे दूल्हे राजा
शोशेबाजी को मत देखो,केवल बातों पर मत जाओ
तुम करो परीक्षा ,ठोक पीट, तब ही तुम उसको अपनाओ

घोटू

कुछ चोर तुम्हारे है मन में

          कुछ चोर तुम्हारे है मन में

ना आता नृत्य तुम्हे ,बतलाते टेडापन है आंगन में
तुम सबको चोर समझते हो ,कुछ चोर तुम्हारे है मन में

तुम  ही हो केवल दूध धुले ,तुम्हारी सोच अनूठी है
तुम ही हो सच्चे हरिश्चन्द्र ,ये सारी दुनिया झूंठी है
बाकी सारे है कामचोर  ,कर्तव्यनिष्ठता बस तुम में
सब के सब ही है नालायक ,है बची शिष्टता बस तुम में
इतना जो अहम पाल रख्खा,एक दिन तुम को ना ले डूबे
ऐसा ना हो इस चक्कर में, रह जाए धरे  सब मनसूबे
तुम तोड़फोड़ कर उलझ रहे हो जोड़तोड़ की उलझन में
तुम सबको चोर समझते हो ,कुछ तुम्हारे है मन में
कुछ कमियां सब में होती है ,कोई कितना भी अच्छा हो
जरूरत पर झूंठ बोल देता ,कोई  कितना भी सच्चा हो
थे बड़े युधिष्ठिर धर्मराज ,क्या झूंठ न उनने बोला था
अश्वत्थामा हो गया हतः ,सुन हृदय  द्रोण का डोला था
औरों की गलती ढूंढ ढूंढ ,कब तक मन को बहलाओगे
कर देखो आत्मनिरीक्षण तुम,खुद में सौ कमियां पाओगे
तब शायद तुम भी सोचोगे ,जीते आये हो किस भ्रम में
तुम सबको चोर समझते हो ,कुछ चोर तुम्हारे है मन में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तू तड़ाक

                       तू तड़ाक

वो तू तड़ाक पर उतर गए,मैंने जो उनको 'तू' बोला
बोले बेइज्जत किया हमे ,तुमने जो हमको 'तू 'बोला
मै बोला कहता 'आप'अगर,तो भी  तुम बुरा मान जाते
है आप पार्टी से नफरत  ,तुम कोंग्रेस  के  गुण  गाते
मै तुम्हे नहीं कह सकता तुम,यह तुच्छ शब्द ,तुम हो महान
मै नहीं चाहता था किंचित ,करना तुम्हारा हनन ,मान
जो प्रिय है उसको 'तू' कहते ,मैं अपनी माँ को' तू 'कहता
अपने बच्चों को 'तू' कहता ,उस परमेश्वर को 'तू' कहता
इसलिए तुम्हे 'तू' कह मैंने ,दिखला अपना सब प्यार दिया
ईश्वर वाला संबोधन दे  ,है  तुम्हारा सत्कार किया
और बिन सोचे और समझे ही,तुम बैठ गए हो बुरा मान
तुम आदरणीय और प्यारे ,लगते हो मुझको श्रीमान

घोटू

गुरुवार, 28 जुलाई 2016

कविता की बरसात

      कविता की बरसात

बात बचपन की करें क्या ,वो जमाना और था
जवानी में, सर पे ,जिम्मेदारियों का जोर था
हुए चिता मुक्त हम जब बच्चे सेटल  हो गए
साठ  से ऊपर हुए और  हम रिटायर  हो गए
आजकल स्वच्छन्द होकर जी रहे हम जिंदगी
थोड़ा सा आराम,मस्ती,कुछ खुदा की  बन्दगी
कोई पाबन्दी नहीं,खुद पर खुदी का राज  है
उम्र भर की कमाई का खा रहे हम ब्याज है
भावनाएं जब घुमड़ती है हृदय  आकाश में
बरसती है ,बन के कविता ,एक नए अंदाज में
बरसते बूंदों में रिमझिम,हृदय के जज्बात है
इसलिए ही कविता की हो रही बरसात  है

मंडन मोहन बाहेती'घोटू'


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