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गुरुवार, 5 जून 2014

पिताजी याद आतें है

       पिताजी याद आतें है

हमारी जिंदगी में जब भी दुःख,अवसाद आते है
परेशाँ मुश्किलें करती ,पिताजी याद आते है
सिखाया जिनने चलना था,हमें पकड़ा के निज उंगली
कराया ज्ञान अक्षर का  ,पढ़ाया  लिखना अ ,आ, ई
भला क्या है,बुरा क्या है ,गलत क्या है ,सही क्या है
दिया ये ज्ञान उनने  था,बताया   कैसी दुनिया  है
कहा था ,हाथ मारोगे,  तभी तुम तैर पाओगे
हटा कर राह  के रोड़े ,राह  अपनी  बनाओगे
नज़र उनपे ही जाती थी, जब आती थी कोई मुश्किल
उन्ही के पथप्रदर्शन से ,हमें हासिल हुई मंज़िल
जरुरत जब भी पड़ती थी,सहारा उनका मिलता था
नसीहत उनकी ही पाकर,किनारा हमको मिलता था
ढंग रहने का सादा था ,उच्चता थी विचारों में
भव्य व्यक्तित्व उनका था ,नज़र आता हजारों में
अभी भी गूंजती है खलखिलाहट और हंसी उनकी
वो ही चेहरा चमकता सा और वो सादगी उनकी
भले ही सख्त दिखते थे  हमें करने को अनुशासित
मगर हर बात में उनकी ,छुपा रहता , हमारा हित
उन्ही की ज्ञान और शिक्षा ,हमारी सच्ची दौलत है
आज हम जो भी कुछ है सब,पिताजी की बदौलत है
आज भी मुश्किलों के घने बादल ,जब भी छाते है
उन्ही की शिक्षा से हम खुद को बारिश से बचाते है
उन्ही के बीज है हम ,आज जो ,विकसे,फले,फूले
हमें धिक्कार है ,उपकार उनका ,जो कभी  भूले
वो अब भी आशीर्वादों की ,सदा सौगात लातें है
भटकते जब भी हम पथ से, पिताजी याद आते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

चुनाव -२०१४ के बाद

              चुनाव -२०१४ के बाद
                    तीन चित्र
                         १
                 स्थान परिवर्तन 
   कोई कहता था इस करवट,कोई कहता था उस करवट
    सभी के मन  में शंका  थी,  ऊँट  बैठेगा  किस  करवट
   मगर  करवट बदल कर ऊँट है कुछ इस तरह बैठा
   खत्म ही हो गया  डर  खिचड़ी ,सरकार बनने  का 
   नहीं पी एम 'मौनी' और ना सरकार कठपुतली
   बने पी एम 'मोदी ',इस तरह सरकार है बदली
   नयी संसद की  अबके इस तरह बदली कहानी है
  जहाँ पर बैठती थी सोनिया जी, अब अडवाणी है
                              २
                      स्वप्न भंग 
 मुलायम सोचते थे बनेगी सरकार जो खिचड़ी
मिलेगी खाने को उनको,मलाई,मावा और रबड़ी
अगर जो उचट करके लग गयी और साथ दी  किस्मत
हमारे सांसदों से ही  मिलेगा,  किसी को  बहुमत
हाथ लग जाय मुर्गी ,रोज  दे जो , सोने का अंडा
किले पे दिल्ली के फहराएं अबकी बार हम झंडा
मगर टूटी कमर ऐसे गिरे हम ,औंधे मुंह के बल
सिमट कर रह गए परिवार के ही चार हम केवल
                             ३
                        गवर्नर  
पुराना राजवंशी हूँ,बहुत मुझमे था दम और ख़म
बड़ा कर्मठ खिलाड़ी हूँ ,रहा सत्ता में ,मैं  हरदम
टिकिट मुझ को मिला ना जब ,मुझे गुस्सा बड़ा आया
लड़ा चुनाव खुद के बल ,भले ही फिर मैं पछताया
ये है विनती ,पुरानी दोस्ती का,कुछ सिला देना 
किसी भी राज्य का मुझको ,गवर्नर तुम बना देना
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 3 जून 2014

प्राणायाम--एक शंका

प्राणायाम--एक शंका

ऐसा कहा जाता है
आदमी गिनती की सांस लेकर आता है
और जब वो गिनती पूरी हो जाती है
मौत आती है
जीवन जीने में हर रोज
देतें है महत्वपूर्ण सहयोग
भोग और योग
भोग की प्रक्रिया में ,साँसे गतिमान होती है
और आदमी जितना ज्यादा भोग में लिप्त होता है ,
उतनी साँसों की गिनती कम होती जाती है
और उम्र घट जाती   है 
इसीलिए ,ऐसा  कहा जाता है
 ब्रह्मचर्य , उम्र को बढाता  है
और योग की एक विधा ,
जिसे  हम प्राणायाम कहते है
जिसमे अलग अलग विधि से ,
जल्दी जल्दी सांस लेते है
ये भी कहा जाता है  कि ,
प्राणायाम करने  से , उम्र बढ़ जाती है
यह बात हमारी समझ में कम आती है
जब जिंदगी की साँसे ,गिनी चुनी होती है ,
तो क्यों हम प्राणायाम कर,
जल्दी जल्दी सांस लेकर ,
व्यर्थ ही अपनी साँसों की गिनती ,
 यूं ही कम कर दिया  करते है
और अपनी उम्र घटा दिया करते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पीड़ा-टूटे आईने की

              पीड़ा-टूटे आईने की

मुझे अब याद आते है ,वो दिन कितने सुहाने थे,
           मेरे ही सामने आकर ,संवरती थी, हसीनाएं
बड़ी नटखट निराली शोखियों से,कई कोणों से,
           गठीले जिस्म को अपने,निरख़ती  थी हसीनाएं
दिखाती थी कई नखरे,अदा से मुस्कराती थी ,
          कभी खुद पे फ़िदा ,खुद को चूमा करती थी,हसीनाएं        
कभी नयनों के खंजर पे,धार करती थी कजरे से,
           नज़र  तिरछी से  दिल पर  वार ,करती थी हसीनाएं
 लगा के लाली होठों पर ,सुलगती  आग भरती थी,
           जलाती सब के दिल को ,खुद भी जलती थी ,हसीनाएं
बसा करता था उनका अक्स ,मेरे जिस्म के अंदर ,
                  नहीं  मुझसे कभी भी  शर्म ,करती थी ,हसीनाएं     
मगर देखा उन्हें बेशर्मी से ,अठखेलियां करते ,
                  गैर के संग ,तो दिल टुकड़े टुकड़े  हो गया मेरा
 आज भी मेरे हर टुकड़े में जो वो झाँक कर देखें ,
                  बसा है अक्स उनका ही और वो,सुन्दर,हसीं चेहरा

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

मैया,बहुत बुरे दिन आये

      घोटू के पद

मैया,बहुत बुरे दिन आये
ऐसे काटे पर जनता ने ,अब हम उड़ ना पायें
चौंवालीस पर सिमट गए हम,इतने नीचे आये
अपनी ही करनी का फल है ,क्या होगा पछताये 
कभी बोलती थी तूती  अब 'फुस'भी नहीं सुनाये
जो चमचे मुंह खोल न पाते ,अब खुल कर चिल्लाये
अपनी ही पार्टी वाले अब ,'जोकर'मुझे  बताये
बेटे फेर समय का है ये तू क्यों दिल पर लाये 
'जोकर'मतलब 'जो कर सकता'मम्मी जी'समझायें
फिर से अच्छे दिन आएंगे,जब तू ब्याह रचाये 

घोटू
 

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