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शनिवार, 4 जनवरी 2014

कौन आया ?

     कौन आया ?

सोई थी मैं ,द्वार किसने खटखटाया
                            कौन   आया?
पा अकेला ,सताने मिला मौका
याद तुम्हारी पवन का बनी झोंका
और उसने हृदयपट को थपथपाया
                            कौन आया ?
मूर्त होकर ,मिलन के सपने सुहाने
लगे उचटा ,नींद से मुझको  जगाने
बावरा,बेसुध हुआ,मन डगमगाया
                           कौन आया?
मधुर यादें,मदभरी  बौछार बन के
भिगोने मुझको लगी है प्यार बन के
बड़ी ठिठुरन ,मिलन को मन,कसमसाया
                                    कौन आया ?
या कि फिर विरहाग्नि की तीव्र लपटें
आगई ,मुझको जलाने ,सब झपट के
मुझे तो हर एक मौसम ने सताया
                            कौन आया ?
रात पूनम की लगी मुझको अमावस
बदलती करवट रही मैं ,मौन बेबस
चमक तारों ने मुझे ढाढस  बंधाया
                             कौन आया ?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

मेरी तेरी ना बनती पर .. .

      मेरी तेरी ना बनती पर .. . 

कहा  बाल्टी   से  कूए  ने ,कि तू मुझे उलीच रही है
जनता खुश तू प्यास बुझाती ,सूखा उपवन सींच रही है
मेरी संचित जलनिधि को तू ,बार बार करती है खाली
मै चुपचाप सहा करता हूँ और  तू   देती रहती गाली
मैं जब चाहूँ ,तुझे डुबो दूं ,तुझे पता है मेरी  ताकत
लेकिन मेरी मजबूरी से बहुत बढ़ रही तेरी हिम्मत
अब लगता है,मैं मूरख  था या फिर मेरी थी नादानी
मैंने अब तक ,केवल ,अपने अपनों को ही बांटा पानी
मोटर पम्प ,हाथ में लेकर ,लोग खड़े है,लिए इरादे
पम्प लगा ,पानी उलीच दें,और कीचड में कमल खिला दें
पड़ा हुआ मैं ,शंशोपज में ,बड़ी राजनैतिक उलझन है
मुझको वो करना पड़ता जो ,नहीं मानता ,मेरा मन है
बड़े विकट हालात हो रहे ,आने को मौसम तूफानी
जोड़ तोड़ कर ,कैसे भी है ,मुझको अपनी साख बचानी
तभी बड़प्पन ,दिखा रहा मैं ,मरता भला क्या नहीं करता
तेरी मेरी ना  बनती पर ,मेरे बिना  काम ना चलता

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

गुरुवार, 2 जनवरी 2014

नया साल - नयी नज्म



सबकुछ न बदले
पर इतना तो बदले,
कि इन्सान अपनी ही
फितरत न बदले...
मौसम न बदले
तो तासीर बदले,
हवाओं का रुख और
खुशबू तो बदले...
जीना न बदले
मरना न बदले
मगर बीच की जंग
का मंजर तो बदले...
रिश्ते न बदलें
जमाना न बद्ले
मगर नकली दिखना
दिखाना तो बदले...
नेता न बदलें
सियासत न बदले
जनता का बातों
में आना तो बदले...
कहते हैं चर्चित
नये साल पर ये
कि यारों का यूं
मुस्कुराना न बदले...

- VISHAAL CHARCHCHIT

बुधवार, 1 जनवरी 2014

झूंठ बोलिये


      झूंठ बोलिये

यदि जीवन सुख से जीना है
हंसी खुशी का रस पीना है
ना मालूम किसी के दिल को क्या चुभ जाए ,
मन की बातें ,मन में रखिये ,नहीं खोलिए
झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये! झूंठ बोलिये!
सच्चे बोल कड़े लगते है
झूंठे बोल भले लगते है
मौका देखो,वैसा बोलो
चाहे ऐसा वैसा   बोलो
जरुरत है तो डट कर बोलो
मन के भाव सिमट कर बोलो
थोडा उलट पुलट कर बोलो
डर है,पीछे हट कर   बोलो
लेकिन ये है जो भी बोलो
सबके मन में मिश्री  घोलो
आप पाओगे ,ये दुनिया काफी भोली है
झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!
वो जो अगर सामने आये
आँख मिलाये या शरमाये
हो सकता है तुमसे पूछे
क्योंजी कैसी लगती हूँ मैं ?
अच्छा तुमको नहीं लगा हो
भले पाऊडर पोत  रखा हो
चुपड़ी हो गालों पर लाली
नज़र आरही गर्दन काली
पर जो करना उन्हें सुखी है
कहो आप तो चंद्रमुखी   है
झूंठी तारीफ़ करी,प्यार के बीज बोलिये
झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!
 अगर पड़ोसन घर आती है
चीजें मांग न लौटती   है
चीज लौट जब भी आती है
बिगड़ी ही पायी ही  जाती है
इसीलिये तुम ऐसा  करिये
झूंठ बोलने में ना डरिये
अब मांगे  तो यही कीजिये
कोई बहाना   बना  दीजिये
बिगड़ गयी या टूट  गयी है
समझो आफत छूट  गयी है
चीज भी बची ,झंझट से भी दूर हो लिये
झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!
भैया ये  तो प्रजातंत्र है
राज्य झूंठ का यत्र तत्र है
झूंठे है भाषण,आश्वासन
झूंठ बोलने वाला ,शासन
झूंठा धंधा  ,चोर बाज़ारी
झूंठे है नर,झूंठी   नारी
रहो रोम में रोमन जैसे
वरना काम चलेगा कैसे
तभी तरक्की कर जाओगे
जबकि झूंठ को अपनाओगे
देख हवा का रुख,उसके ही साथ हो लिये
झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये !झूंठ बोलिये!
जीवन जियो हंसी खुशी का
आज ज़माना चापलूसी का
चापलूसी या मख्खनबाजी
पाकर सब ही होते  राजी
ये तुम तब ही कर सकते हो
माहिर झूंठ बोलने में हो
साहब आगे पीछे डोलो
हाँ को हाँ,ना को ना बोलो
अगर झूंठ पर ना लगाम है
जिव्हा सोने की खदान है
मतलब पूरा करिये,सुख के द्वार खोलिए
झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!
केवल आप युधिष्ठिर होकर
सत्य सत्य का रोना रोकर
जी न पाओगे ,इस दुनिया में
आज ज़माना बदल गया है
अब सौ क्या ,लाखों कौरव है
झूंठ बोलना ही गौरव है
और युधिष्ठिर भी मौके  पर
झूंठ युद्ध में बोल गये  पर
कहा गया अश्वस्थामा मर
यह न बताया ,नारी या नर
तो जब मतलब आये,मन की हिचक खोलिए
झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!
इस जीवन में कितने सारे
ऐसे मौके आते प्यारे
झूंठ बोलना ही है पड़ता
वरना सारा काम बिगड़ता
तुम्ही बताओ,दशरथ राजा
झूंठ बोलते ,अगर ज़रा सा
केकैयी के वचन भुलाते
अपने वादे से टल जाते
तो क्या चौदह बरस राम जी
खाक  छानते फिर जंगल की
सच के खातिर,कितने झंझट मोल ले लिये
झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चमचा

     चमचा

दुनिया देखी ,कुछ ना सूझा
एक साहब ने मुझसे पूछा
यार,अजब है दुनियादारी
चक्कर खाती ,अकल हमारी
वही तरक्की कर पाता है
जो कि चमचा कहलाता है
होता अरे तमाशा क्या है
 चमचे की परिभाषा क्या है 
ना  मैं अफसर,ना मैं नेता
बोलो फिर क्या उत्तर देता
किन्तु समझ में जो भी आया
मैंने उसको साफ़ बताया
'च' से चुगलखोर  हो जाता
'म'से 'मख्खनबाज' कहाता
'चा'से 'चापलूस' होता है
सब गुण मिल चमचा होता है
या फिर'च'से चतुर जानिये
और 'म'से 'मक्कार'मानिये
'चा'से जो 'चालू'होता है
समझो वह 'चमचा' होता है
जो मुंह लगा हुआ होता है
बस वो ही चमचा होता है
चमचा होता सुख का दाता
जो ना केवल हमें खिलाता
बल्कि परसता भी है जाता
काम पकाने के भी आता
सरे आम ,सुन्दर से सुन्दर
चाहे नारी हो चाहे नर
सबका मुख चुम्बन करता है
चमचा वह हिम्मत रखता है
और बड़े से बड़े कड़ाहों ,
के भी गरम गरम पकवानो,
को वह हिला दिया करता है
सब कुछ मिला दिया करता है
चमचे में 'चम' लगा यार है
'चम 'में काफी चमत्कार है
जिसका वह होता है चमचा
'चम 'उसको देता है चमका
और चमचे का अंत 'मचा'है
देता उसकी धूम मचा  है
बेलन को पिसना पड़ता है
चकले को घिसना पड़ता है
तवा अंगीठी पर जलता है
सबको कुछ करना पड़ता है
चमचा ना कुछ करता धरता
लेकिन फिर भी उसको मिलता
पका पकाया माल ताल है
यह सब चमचे का कमाल है
मालिक के मुख में पहुंचाता
सारा यश है खुद पा जाता
और जो कुछ चिपका रह  जाता
वह भी चमचे का हो जाता
समझदार कुछ खानेवाले
चमचे को अपनाने वाले
बिना हाथ से अपने छूकर
बिलकुल शुद्ध ,पवित्तर रह कर
जो खाना है ,खा लेते है
अपना काम बना लेते है
चमचा उसके हाथ लगा है
और इशारों पर चलता है
उसके भाग्य सदा खिलते है
सब पकवान उसे मिलते है
पहले जिसके पास कभी भी
जितनी अधिक जमीं होती थी
वही बड़ा माना जाता था
जितना ज्यादा धन पाता था
अधिक औरतें रख पाता था  
बड़ा आदमी कहलाता था
किन्तु आज के इस समाज मे
ज्यादा चमचे रखे पास में
वही बड़ा माना जाता है
बड़ा आदमी कहलाता है
क्योंकि अगर चमचे अच्छे है
तो धन भी है ,बड़े मजे है
तो जमीन भी मिल जाती है
और औरतें भी आती  है
सच,चमचे में बड़ा तेज है
अंगरेजी में एक फ्रेज़ है
भाग्यवान वो होता, मुंह में
रख चांदी का चमचा ,जन्मे
भाग्यवान वह क्यों कहलाता
चमचा मुंह में रख कर आता
अब चमचों के भी चमचे है
हर चमचे के बड़े मजे है
मालिक के संग आते जाते
चमचे भी है पूजे जाते
चमचे रखना ही गौरव है
चमचे रखना ही  वैभव है
ऐश्वर्य है और बड़प्पन
होती है चमचो की खन खन
आज तरक्की की सीढ़ी पर
चमचों की ही भीड़ रही बढ
चहल पहल है तो चमचों की
चमक दमक है तो चमचों की
इसीलिये तुम मेरी सुनिये
चमचे बनिये !चमचे बनिये !

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
  


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