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गुरुवार, 29 अगस्त 2013

है डालरों से हम

               है डालरों से हम

बचपन से जवानी  तलक ,पाबंदी थी लगी ,
                ना स्कूलों में ऊँघे और ना दफ्तरों में हम
पर जबसे आया बुढ़ापा ,हम रिटायर हुए,
                 जी भर के ऊंघा  करते है ,अपने घरों में हम
बीबी को मगर इस तरह  ,आलस में ऊंघना ,
                  बिलकुल नहीं पसंद है ,रहती  है डाटती ,
कहती है दिन में सोने से  ,जगते है  रात को,
                    सोने न देते ,सताते,है बिस्तरों में  हम
अब ये ज़माना आ गया ,घर के घाट के,
                     अंकल जी कहके लड़कियां ना घास डालती,
कितने ही रंग लें बाल  और हम फेशियल  करें,
                      उड़ने का जोश ला नहीं ,सकते परों में हम
टी वी से या अखबार से अब कटता वक़्त है,
                        घर का कोई भी मेंबर ,हमको न पूछता ,
पावों को छुलाने की बन के चीज रह गए,
                         त्यौहार,शादी ब्याह के ,अब अवसरों में हम
हम दस के थे,डालर की भी ,कीमत थी दस रूपये ,
                          छांछट का है डालर हुआ ,छांछट के हुए हम,
फिर भी  हमारे बच्चे है  ,इतना न समझते ,
                             होते ही जाते कीमती, है डालरों से  हम

मदन मोहन बाहेती'घोटू;  

त्रिदेव

                      त्रिदेव

हिन्दू संस्कृति में सदैव
पूजे जाते है तीन देव
जिनका स्थान होता है विशेष
वो है ब्रम्हा ,विष्णू और महेश
सबसे पहले ब्रह्माजी ,जो है सृष्टी के कर्ता ,
जिन्होंने दुनिया को,हमको,आपको बनाया है
पर हमने अपने निर्माणकर्ता को ही भुलाया है
हम कितने संगदिल है
पूरे देश में ,ब्रह्मा जी के, बस एक या दो मंदिर है
और पूरे साल में ,कोई भी नहीं एसा दिन है  विशेष
जिस दिन इनकी होती है पूजा या  अभिषेक
वे परमपिता है
पर आज के युग में पिता को कौन पूछता है ?
दूसरे विष्णू जी ,जो पालन कर्ता है
इन्ही की मेहरबानी से ,सबका पेट भरता है
 जब भी धरती पर अत्याचार बढ़ता है
तो उसे मिटाने,इन्हें अवतार लेना  पड़ता है
बाकी समय ,समुन्दर में,शेषशैया पर,आराम फरमाते है
और अपनी पत्नी लक्ष्मी जी से ,पैर दबवाते है
अकेले मंदिरों में कम नज़र आते है
और अक्सर लक्ष्मी जी के साथ ,
लक्ष्मी नारायण रूप में पूजे जाते है
या फिर अपने राम और कृष्ण के रूप की पूजा करवाते है
इनसे ज्यादा ,इनकी पत्नी के  भक्त है
सारी दुनिया ,लक्ष्मी जी की सेवा में अनुरक्त है
 पर दीपावली को ,सिर्फ लक्ष्मी जी की पूजा होती है ,
विष्णुजी का नाम नदारद रहता है ,ये बात सालती है
पर ये भी  सच  है की पालनकर्ता तो विष्णू है ,
पर असल में लक्ष्मी जी सबको पालती है
तीसरे देवता ,शंकर जी है ,जो हर्ता है ,महादेव कहलाते है
पर कर्ता ,याने लिंग रूप में ज्यादा पूजे जाते है
कहते है ये भोले भंडारी है ,
थोड़ी सी भक्ती में ,जल्दी पिधल जाते है
पूरे देश में,बारह ज्योतिर्लिंगों के रूप में होता है इनका पूजन
अन्य  देवताओं की पूजा के लिए साल में एक दिन,
और इनकी पूजा के लिए पूरा सावन
और तो और ,इनकी 'मेरेज एन्नीवर्सरी 'भी ,
शिव रात्री के रूप में मनाई जाती है
दूर दूर से गंगाजल लाकर ,इन्हें कावड़ चढ़ाई जाती है
ये ही नहीं ,इनके संग  पूजा जाता है इनका पूरा परिवार
और इनके पुत्र गणेशजी ,हर शुभ काम में,
हमेशा प्रथम पूजन के है हक़दार
देश में  सबसे ज्यादा मंदिर इनके
इनकी पत्नी और बेटे गणेश के है
इनके परिवार के लोग ,
सबसे ज्यादा पूजनीय इस देश के है 
ये संहारक है ,इसलिए लोग इनसे डरते है
और इनका मूड गरम न हो जाए  ,
इसलिए जल चढ़ा कर ठंडा रखते है
ये सच है ,भय के बिना होती नहीं प्रीत है
इसीलिए तीन देवों में ये महादेव है ,और इनकी जीत है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 26 अगस्त 2013

मोर,कबूतर और आदमी

      मोर,कबूतर और आदमी

झिलमिलाते सात रंग है ,मोर के पंखों में सब,
नाचता है जब ठुमुक कर ,मोरनी को लुभाता
गौर से गर्दन कबूतर की अगर देखोगे तुम,
जब कबूतरनी को पटाने ,है वो गरदन हिलाता
रंग तब मोरों के पंखों के है सारे उभरते ,
गुटरगूं कर मटकाता है कबूतर गर्दन है जब
कबूतरनी मुग्ध होकर ,फडफडाती पंख है ,
प्यार का ये निमंत्रण मंजूर होता उसको तब
पंछियों के प्यार से ये सीखता है आदमी ,
पत्नीजी के इशारों पर ,नाचता है मोर सा
पत्नीजी को पटाने को वो कबूतर की तरह ,
हिलाता रहता है गर्दन ,हो बड़ा कमजोर सा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

संत

          संत

एक आदमी जो प्रवचन में सीटी बजाता है
नौटंकी करता है ,नाचता गाता है
लोगों को मर्दानगी की दवा बतलाता है
लोगो की जमीनो को  हड़पता है
मासूम बच्ची से  बलात्कार करता है
काले जादू के चक्कर में बच्चों की बलि चढ़ाता है
आज के युग में वो संत कहलाता है
घोटू

जवानी सलामत- बुढ़ापा कोसों दूर है

जवानी सलामत- बुढ़ापा कोसों दूर है

हम तो है ,कोल्ड स्टोरेज में रखे आलू ,
जब भी जरुरत पड़े,लो काम में,हम ताज़े है
ज़रा सी फूंक जो मारोगे ,लगेगे बजने ,
हम तो है बांसुरी ,या बिगुल,बेन्ड बाजे है
पुरानी चीज को रखते संभाल कर हम है ,
चीज 'एंटिक 'जितनी,उतना दाम बढ़ता है
बीबियाँ वैसे कभी पुरानी नहीं पड़ती ,
ज्यों ज्यों बढ़ती है उमर ,वैसे  प्यार बढ़ता है
वैसे भी दिल हमारा एक रेफ्रिजेटर  है ,
उसमे जो चीज रखी ,सदा फ्रेश  रहती है
हमारी बीबी सदा दिल में हमारे रहती ,
प्यार में ताजगी जो हो तो ऐश रहती  है
समय के साथ,जब बढ़ती है  उमर तो अक्सर,
लोग जाने क्यों ,खुद को बूढा समझने लगते
आदमी सोचता है जैसा,वैसा हो जाता ,
सोच कर बूढा खुद को बूढ़े  वो लगने लगते
सोच में अपने न आने दो उमर का साया,
जब तलक ज़िंदा हो तुम और जिंदगानी है
जब तलक है जवान मन और सोच तुम्हारा,
समझ लो ,तब तलक ही ,सलामत जवानी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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