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शनिवार, 18 मई 2013

जन्मदिवस की बधाई

   

आपका आया जन्मदिन ,आपको कोटिश बधाई 
आपकी इस जिन्दगी में ,रहे सब खुशियाँ समाई 
           कोई चिंता ना सताये   
            खूब मीठी नींद आये 
           आप हरदम मुस्कराये     
          गम नहीं नजदीक आये  
          स्वास्थ्य सुन्दर,भली सेहत 
              आये ना कोई मुसीबत 
               स्वजनों का प्यार पायें
              हमेशा खुशियाँ मनाये 
आपके इस मृदुल मुख पर ,रहे रौनक सदा छाई 
आपका आया जन्मदिन ,आपको कोटिश बधाई 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मै तुम्हे सम्भालूँ,तुम मुझे संभालो

    

दुःख पीड़ा में ,इक दूजे का हाथ बटा लो
मै तुम्हे सम्भालूँ ,तुम मुझे संभालो 
जब भी आती याद जवानी की वो बातें
 दिन मस्ती के होते थे और मादक रातें  
बीत गया वो दौर खुशी का ,हँसते ,गाते 
अब तो बस यादें है जिनसे मन बहलाते 
आपा  धापी में जीवन की ,बस मशीन बन 
चलते ,रुकते ,यूं ही बीत गया सब जीवन 
भूली बिसरी उन यादों को  आओ खंगालो 
मै तुम्हे सम्भालूँ,तुम मुझे  संभालो ,,
तुम संग बंधन बाँध ,बंधे दुनियादारी में 
फंसे गृहस्थी के चक्कर,जिम्मेदारी में 
बच्चों का पालन पोषण और बीमारी में 
जीवन बीत गया यूं ही मारामारी में 
उमर काट दी ,यूं ही घुट घुट ,रह कर चिंतित 
पर हम दोनों,इक दूजे पर ,अब अवलंबित 
एक दूसरे को सुख दुःख में,देखो भालो 
मै तुम्हे सम्भालूँ, तुम मुझे संभालो 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

और अभी तक ,मै क्वांरा बैठा हुआ हूँ



मुझको जीवनसाथी के लिए ,
तलाश थी एक एसी लड़की की 
जो दिखने में सुन्दर हो,
और हो पढीलिखी 
मेरी माँ चाहती थी सजातीय हो ,
घर के कामकाज में निपुण हो 
संस्कारी और सर्वगुण संपन्न हो 
और पिताजी चाहते थे ,उसके माँ बाप ,
ढेर सा दहेज़ दे सकें,इतने संपन्न हो 
दादी जी चाहती थी ,जन्मपत्री का सही  मिलान
बत्तीस गुण मिल जाये 
बहू हो ऐसी जो काम करे दिन भर और,
रात को उनके पैर भी दबाये 
कभी कोई मुझे पसंद आती ,
तो वो मुझे कर देती रिजेक्ट 
कभी कोई मुझे पसंद करती ,
तो मै कर देता उसे रिजेक्ट 
कभी कोई लड़की मुझे और मै उसे  ,
कर लेता पसंद 
तो या तो मेरे मम्मी पापा को 
 पसंद नहीं आता ये सम्बन्ध 
या उसके मम्मी पापा ,नहीं होते रजामंद 
लगता है ऐसी सर्वगुण संपन्न लडकियां 
भगवान् ने बनाना करदी बंद 
फिर भी ,अगली दूकान पर शायद ,
सबकी पसंद का सामान मिल जाए 
यही आस मन में समेटा हुआ हूँ 
और अभी तक मै क्वांरा बैठा हुआ हूँ 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

प्रेम की साप्ताहिकी

 

गुरु को शुरू हुआ ,
नज़र मिली पहली बार 
शुक्रवार को डेटिंग ,
शनिवार ,हुआ प्यार 
रविवार ,शादी की ,
सोमवार ,मधुर मिलन 
मंगल को मनमुटाव,
और बुध को 'सेपरेशन'
गुरुवार ,प्रेम गुरु,
ढूंढ रहे नयी फ्रेंड 
प्रेम एक हफ्ते का,
कैसा ये नया ट्रेंड 
घोटू 

तुम रिश्तों को क्या समझोगे ?

 तुम  रिश्तों को को क्या  समझोगे ?

 जब   बासंती ऋतू आती है ,
                         कलियों  की गलियाँ जाते हो
देखा फूल ,आयी जो खुशबू ,
                          गुंजन करते , मंडराते     हो
करके फूलों का  अवगुंठन ,
                           करते  हो रसपान मधुर तुम
डाल डाल पर ,पुष्प पुष्प पर ,
                            इधर  उधर भटका करते तुम
      तुम रस के लोभी भँवरे हो,
        तन भी काला ,मन भी काला
                        तुम रिश्तों को क्या समझोगे ?
जब चुनाव का मौसम आता ,
                           तुम गलियाँ गलियाँ जाते हो
देते आश्वासन और भाषण ,
                            जनता को तुम  बहकाते  हो
करते लम्बे लम्बे वादे ,
                             जो न कभी पूरे  हो पाते
तुमको केवल वोट चाहिये ,
                              जन सेवा की चाह बताके
            तुम सत्ता के लोभी नेता ,
            उजले कपडे पर मन काला
                               तुम रिश्तों को क्या समझोगे ?   
हर मौसम में,हर दिन ,हर पल ,
                                 जोड़ तोड़ कर ,जैसे ,तैसे
तुम पैसे के पीछे  पागल ,
                                  तुम्हे कमाने है बस पैसे
परिवार को किया विस्मरित
                                  कर बूढ़े माँ बाप ,तिरस्कृत
इतनी दौलत ,इतना पैसा ,
                                  किसके  लिये कर  रहे संचित
               फिरते भागे ,मगर अभागे
                मन भी काला ,धन भी काला
                                 
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
      
             


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