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रविवार, 29 अप्रैल 2012

लक्ष्मी जी का परिवार प्रेम

लक्ष्मी जी का परिवार प्रेम
(समुद्र मंथन से १४ रत्न प्रकट हुए थे-शंख,एरावत,उच्च्श्रेवा ,धवन्तरी,
कामधेनु,कल्प वृक्ष,इंद्र धनुष,हलाहल,अमृत,मणि,रम्भा,वारुणी,चन्द्र और लक्ष्मी
-तो लक्ष्मी जी के तेरह भाई बहन हुए,और समुद्र पिताजी-और क्योंकि
विष्णु जी समुद्र में वास करते है,अतः घर जमाई हुए ना )

एक दिन लक्ष्मी जी,अपने पति विष्णु जी के पैर दबा रही थी

और उनको अपने भाई बहनों की बड़ी याद आ रही थी
बोली इतने दिनों से ,घरजमाई की तरह,
रह रहे हो अपने ससुराल में
कभी खबर भी ली कि तुम्हारे तेरह,
साला साली है किस हाल में
प्रभु जी मुस्काए और बोले मेरी प्यारी कमले
मुझे सब कि खबर है,वे खुश है अच्छे भले
तेरह में से एक 'अमृत 'को तो मैंने दिया था बाँट
बाकी बचे चार बहने और भाई आठ
तो बहन 'रम्भा'स्वर्ग में मस्त है
और दूसरी बहन 'वारुणी'लोगों को कर रही मस्त है
'मणि 'बहन लोकर की शोभा बड़ा रही है
और 'कामधेनु'जनता की तरह ,दुही जा रही है
तुम्हारा भाई 'शंख'एक राजनेतिक पार्टी का प्रवक्ता है
और टी.वी.चेनल वालों को देख बजने लगता है
दूसरे भाई 'एरावत'को ढूँढने में कोई दिक्कत नहीं होगी
यू.पी,चले जाना,वहां पार्कों में,हाथियों की भीड़ होगी
हाँ ,'उच्च्श्रेवा 'भैया को थोडा मुश्किल है ढूंढ पाना
पर जहाँ अभी चुनाव हुए हो,ऐसे राज्य में चले जाना
जहाँ किसी भी पार्टी नहीं मिला हो स्पष्ट बहुमत
और सत्ता के लिए होती हो विधायकों की जरुरत
और तब जमकर 'होर्स ट्रेडिंग' होता हुए पायेंगे
उच्च श्रेणी के उच्च्श्रेवा वहीँ मिल जायेंगे
'धन्वन्तरी जी 'आजकल फार्मा कम्पनी चला रहे है
और मरदाना कमजोरी की दवा बना रहे है
बोलीवूड के किसी फंक्शन में आप जायेंगी
तो भैया'इंद्र धनुष 'की छटा नज़र आ जाएगी
और 'कल्प वृक्ष'भाई साहब का जो ढूंढना हो ठिकाना
तो किसी मंत्री जी के बंगले में चली जाना
और यदि  लोकसभा का सत्र रहा हो चल
तो वहां,सत्ता और विपक्ष,
एक दूसरे पर उगलते मिलेंगे 'हलाहल'
अपने इस भाई से मिल लेना वहीँ पर
और भाई 'चंद्रमा 'है शिवजी के मस्तक पर
और शिवजी कैलाश पर,बहुत है दूरी
पर वहां जाने के लिए,चाइना का वीसा है जरूरी
और चाइना वालों का भरोसा नहीं,
वीसा देंगे या ना देंगे
फिर भी चाहोगी,तो कोशिश करेंगे
तुम्हारे सब भाई बहन ठीक ठाक है,कहा ना
फिर भी तुम चाहो तो मिलने चले जाना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 

शनिवार, 28 अप्रैल 2012

तेरे हाथों में

    तेरे हाथों में

ये तेरा हाथ जिस दिन से,है आया मेरे हाथों में

जुलम मुझ पर ,शुरू से ही,है ढाया तेरे हाथों ने
तुम्हारे थे बड़े  लम्बे,नुकीले ,तेज से नाख़ून,
दबाया हाथ तो नाखून,चुभाया   तेरे हाथों ने
इशारों पर तुम्हारी उंगुलियों के ,रहा मै चलता,
बहुत ही नाच है मुझको, नचाया तेरे  हाथों ने
हुई शादी तो अग्नि के,लगाए सात थे फेरे,
तभी से मुझको चक्कर में,फंसाया तेरे हाथों ने
कभी सहलाया है मुझको,नरम से तेरे हाथों ने,
निकाला अपना मतलब फिर,भगाया तेरे हाथों ने
शरारत हमने तुमने बहुत की है,मिल के  हाथों से,
कभी सोते हुए मुझको जगाया तेरे हाथों ने
रह गया  चाटता ही उंगुलियां मै अपने हाथों की,
पका जब प्रेम से खाना ,खिलाया तेरे  हाथों ने
मै रोया जब,तो पोंछे थे,तेरे ही हाथ ने आंसू,
ख़ुशी में भी ,गले से था,लगाया  तेरे हाथों ने
सफ़र जीवन का हँसते हंसते,कट गया यूं ही,
कि संग संग साथ जीवन भर,निभाया तेरे हाथों ने

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


खूब बूढों डोकरो होजे-आशीर्वाद या श्राप

  खूब बूढों डोकरो होजे-आशीर्वाद  या श्राप

पौराणिक  कथाओं में पढ़ा था,
जब कोई बड़ा या महात्मा,
छोटे को आशीर्वाद देता था
तो "चिरंजीव भव"या "आयुष्मान भव "
या "जीवही शरदम शतः " कहता था
और मै जब अपनी दादी को धोक देता था
तो "खूब बूढों डोकरो होजे "की आशीष लेता था
और आज जब मेरे  केश
सब हो गए है सफ़ेद
दांत चबा नहीं पा रहे है
घुटने डगमगा रहें है
बदन पर झुर्रियां छागयी है
काया में कमजोरी आ गयी है
क्षुधा हो गयी मंद है
मिठाई पर प्रतिबन्ध है
सांस फूल जाती है चलने में जरा
मतलब कि मै हो गया हूँ बूढा डोकरा
फलित हो गया है बढों का आशीर्वाद
पर कई बार मन में उठता है विवाद
एकल परिवार के इस युग में,
जब बदल गयी है जीवन कि सारी मान्यताएं
और ज्यादा लम्बी उमर पाना,
देता है कितनी यातनाएं
एक तो जर्जर तन
और उस पर टूटा हुआ मन
तो कौन चाहेगा,लम्बा हो जीवन
ज्यादा लम्बी उमर ,लगती है अभिशाप
और ये पुराने आशीर्वाद,
आज के युग में बन गए हैं श्राप

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

बेगुनाह की इक आह से तू बर्बाद हो सकता है

जुर्म करने वाले न भूल जाना जुर्म करके 
के आसमाँ तेरे हर जुर्म पे नजर रखता है |

खुद पे गुमां करने से पहले ये सोच लेना 
के तुझे भी आगोश-ए-मौत में सिमटना है |

ए इन्सान ना कर इतना फरेब इंसानों से 
के इंसानियत ने तुझसे भी हिसाब लेना है |

दिल्लगी किसी से इतनी भी ना करो दोस्त 
के तेरी दिल्लगी से कोई तबाह हो सकता है |

ये दिल भी इक बहते समंदर की माफिक है 
के दर्द-औ-खुशियों का इसमें संगम होता है |

बेगुनाह को गुनहगार साबित ना कर "अमोल"
के बेगुनाह की इक आह से तू बर्बाद हो सकता है |

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

अनंत की खोज


अनंत की खोज में भटकता ही रहा,
पंछी अकेला बस तरसता ही रहा,
दर-ब-दर, यहाँ वहाँ,
और न जाने कहाँ-कहाँ,
जो ढूंढा वो मिला ही नहीं,
जो मिला उसकी तो चाह ही नहीं थी |
अनंत तो अनंत है,
मिल जाये तो फिर अनंत कहाँ ?

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