एक सन्देश-

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गुरुवार, 19 जनवरी 2012

सोना तो सोना ही रहेगा


वक़्त की मार से
काला पड़ गया
मिटटी में दबा हुआ
लोहे का टुकडा
सदा सोचता था
कोई उसे मिटटी से निकाले
झाड पोंछ कर फिर से
काम आने लायक बना दे
किस्मत ने
उसे चमकते सोने का
साथ दे दिया
सोने का साथ मिलते ही
लोहा चमकने लगा
भ्रमित हो गया
अपने को
सोना समझने लगा
सपनों की
दुनिया में खोने लगा
राह से भटकने लगा  
निरंतर सोने का सानिध्य
चाहने लगा
भूल गया था
सैकड़ों हथोड़े खाया हुआ
कई बार तपाया गया
लोहे का टुकडा था
सोने के साथ कितना भी
चमक जाए 
लोहा ही रहेगा
एक दिन उसने सुन लिया
कोई कह रहा था
लोहा सोने के साथ
क्या कर रहा
तुरंत उसे याद आया
वो मात्र लोहे का टुकडा था
सोना तो सोना ही रहेगा
निरंतर चमकता रहेगा
जिसे के भी साथ रहेगा
उसकी कीमत बढ़ाएगा
सोच विचार के बाद
विनम्रता से सोने से बोला
मुझे भूलना नहीं
निरंतर साथ निभाना
दूर से ही सही
अपनी चमक से
नहलाते रहना 
ज़िन्दगी के हथोडों से
बचने का तरीका बताते रहना
कभी पथ से ना डिगने देना
मंजिल तक पहुंचाना
फिर से 
किसी लायक बन कर
किसी के काम आऊँ
ऐसी हिम्मत देते रहना 
अपना स्नेह बनाए
रखना
19-01-2012
65-65-01-12

न हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा तु इन्सान की औलाद है सैकुलर शैतान बनेगा

JAGO HINDU JAGO: जनरल VK Singh ji बचा सकते हो तो बचा लो हमें व हमार...: 1985 में अलकायदा की स्थापना ने बाद बाकी सारी दुनिया की तरह भारत में भी मुस्लिम जिहादियों को नये सिरे से संगठित होने का मौका मिला । जिसका प...

आठवीं मंजिल से भोंकता हुआ कुत्ता

  आठवीं मंजिल से  भोंकता हुआ कुत्ता
---------------------------------------------
गली में पट्टा
पर मन में,
स्वच्छंद विचरने की विकलता
रेलिंग से बंधा हुआ,
आठवीं  मंजिल से भोंकता हुआ कुत्ता
मन में छटपटाहट है
या शायद मालिकिन के आने की आहट है
दर्द है या ख़ुशी है
या कोई पीड़ा छुपी है
या जमीन का निरीह प्राणी ,
इतनी ऊँचाई पर पहुँच कर चौंक रहा है
और नीचे वालों को देख कर भोंक रहा है
सुबह ही तो मालकिन ने टहलाया था
अपने नरम नरम हाथों से,
उसके रेशमी बालों को सहलाया था
और खिलाये थे दूध और बिस्कुट
तो चुपचाप उसी प्रेम से अभिभूत
अपनी मालकिन को निहार रहा था
जाने क्या क्या विचार रहा था
प्यार  के उन चंद पलों ने,
उसे बना दिया है उम्र भर का गुलाम
पूंछ हिलाता रहता है ,सुबह शाम
क्या होगी उसकी मानसिकता
किसी अनजान को देख कर झपटता
आठवीं मंजिल से भोंकता हुआ कुत्ता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वीरानियों में है कहीं आबाद कोई 
खामोशियों से दे रहा आवाज़ कोई 

हाँ मर गया दिल और दिल की ख्वाइशें
मुझमे मगर जिंदा रहा अहसास कोई 

टहलीं सड़क पर रात भर रानाइयां यूं
निकला बदन पर ओढ़ कर आकाश कोई

फिर ताजदारों से बगावत कर उठा दिल
दिल पर हुकुमत कर रहा बेताज कोई

फिर से दिल में ख्वाहिशें उगने लगी हैं
आँखों ने मेरी फिर से देखा ख्वाब कोई .......



रचनाकार :- कवि पंकज अंगार

ललितपुर, ऊ.प्र.)

परी मेरी अब सोयेगी


रात ये कितनी बाकि है,
पुछ रहा हूँ तारों से;
पवन सुखद बनाने को,
अब कहता हूँ बहारों से ।

चाँद को ही बुलाया है,
निद्रासन मंगवाया है;
परी मेरी अब सोयेगी,
भँवरों से लोरी गवाया है ।

डैडी की सुन्दर गुड़िया है,
मम्मी की जान की पुड़िया है;
क्यों रात को पहरा देती है,
ज्यों सबकी दादी बुढ़िया है ।

स्वयं पुष्पराज ही आयेंगे,
खुशबू मधुर फैलायेंगे;
निद्रादेवी संग चाकर लाकर,
मिल गोद में सब सुलायेंगे ।

परी मेरी न रोयेगी,
परी मेरी अब सोयेगी ।

बुधवार, 18 जनवरी 2012

मै

       मै
     -----
कभी नदिया की तरह कल कल बहता हूँ
कभी सागर की लहरों सा उछालें भरता हूँ
कभी बादल की तरह आवारा  भटकता हूँ
कभी बारिश की तरह रिम झिम बरसता हूँ
कभी भंवरों की तरह गीत गुनगुनाता हूँ
कभी तितली की तरह फूलों पे मंडराता हूँ
कभी फूलों की तरह खिलता हूँ,महकता हूँ
कभी पंछी की तरह उड़ता हूँ,चहकता हूँ
कभी तारों की तरह टूट टूट जाता हूँ
कभी पानी के बुलबुलों सा फूट जाता हूँ
कभी सूरज की तरह तेज मै चमकता हूँ
कभी चंदा की तरह घटता और बढ़ता हूँ
मगर ये बात मै बिलकुल न समझ पाता हूँ
मै कौन हूँ,क्या हूँ और क्या चाहता हूँ

मदन मोहन बाहेती;घोटू;

बेटी का मेल

ड़ैड़ी,
इस बार टूर से लौटते वक्त
भले ही गिफ्ट मत लाना
पर इस मेल को पढ़ कर
यह वादा जरुर करना कि
मेरी इन सभी बातों को पूरा करेंगे
पहली बात
आप मेरा नाम उस स्कूल मे लिखायेंगे
जहां बहुत ज्यादा होम वर्क नही दिया जाता हो
और बहुत ज्यादा मार्क्स लाने के लिये
बच्चों को प्रेस न किया जाता हो


सच पापा ज्यादा ये ज्यादा मार्क्स लाने की टेंसन में
मै स्कूल आवर को ईटरटेन नही कर पाती
और पापा स्कूल घर से ज्यादा दूर भी नहो
क्योंकि जरा सी देर होने पर मम्मी परेसान होने लगती हैं
कि कहीं मेरे साथ कोई हादसा तो नही हो गया।
इसके अलावा ड़ैड़ी
अपना नया मकान उस जगह लेना
जहां पड़ोस के अंकल
अंकल जैसे ही हों
न कि बात करते करते गाल और पीठ छूने की कोशिश करते हों


और पापा अगल बगल के भइया लोग भी ऐसे न हों
जो मम्मी को सामने तो आंटी या भाभी जी कहते हों
और पीठ पीछे गंदी गंदी बातें कहते हों
डैडी एक बात और
मेरा स्कूल मे कोई भी ब्वाय फ्रेंड नही है
मुझे सभी लड़के खराब लगते हैं
वे अभी से सिगरेट और बियर पीते हैं
और गंदी गंदी बातें भी करते हैं
मै तो उन सबसे दूर रहती हूं


मेरा तो बस एक दोस्त है
पर डैडी वह बहुत सीधा है
ज्यादातर चुप ही रहता है
डसके ड़ैडी किसी औरत के साथ घूमते रहते हैं
और उसकी मम्मी नेट पर पता नही किससे किससे
चैट करती रहती है
यह सब उसे अच्छा नही लगता
पर वह छोटा है इसी लिये कुछ नही कह सकता |


पर मेरे प्यारे डैडी आपतो ऐसे नही है।
और मम्मी भी ऐसी नही हैं
पर आजकल मम्मी को भी नेट पे चैटिंग का शौक लग रहा है
यह मुझे भी अच्छा नही लगता
पापा आप उन्हे अपनी तरह से समझा दीजियेगा
मै उनकी शिकायत नही कर रही
पर मम्मी को क्या पता कि अक्सर जेंट्स लोग ही
फेमनिन नेम से आई डी खोल कर औरतों से
चैट करते रहते हैं
डैडी आपतो बहुत अच्छे हैं और यह सब जानते भी है।


डै़डी आप नया मकान उस जगह लीजियेगा
जंहां रोज रोज बम न फटते हों
और लोग एक दूसरे से मिलजुल कर रहते हों
और मेरा स्कूल भी घर के पास हो
ताकि देर होने पर मम्मी चिंता न रहे
ड़ैड़ी अब मै चाह कर भी छोटी मिडी नही पहनती
लोग मुझे कम मेरी टांगो को ज्यादा देखते हैं |


ड़ैड़ी मुझे नही मालुम आप यह मेल पढ़ कर क्या सोचेंगे
पर मै ये बाते कहूं भी तो किससे ?
क्योंकि मेरी तो काई दीदी भी नही है
और दादी भी नही है अगर
मम्मी से कहो तो वह झिडक देती हैं
कहती हैं तुम अपने आपमे सही रहो
दूसरो से मतलब क्यों रखती हो
पर ड़ैड़ी, आदमी अकेले तो सही नही रह सकता
जबतब कि दूसरे भी सही न हों
पापा यह बात मम्मी को आप समझाइयेगा
और मेरी इन सब बातों को पूरा करना भूल मत जाइयेगा
भले ही आप मेरे लिये गिफट लाना भूल जायें

आपकी अच्छी बेटी





रचनाकार:-मुकेश इलाहाबादी 


(मुकेश जी की यह रचना फेसबुक समूह "काव्य संसार" से ली गयी है |)

मंगलवार, 17 जनवरी 2012

वो एक ख्वाब था

वो एक ख्वाब था ।
पर जो भी था, लाजवाब था ।

चंद लम्हों को आया था,
मुस्कुराहट भी लाया था ।
अंधेरे में एक किरण बनकर,
मृत शरीर में जीवन बनकर ।
जीवन के अगणित सवालों के बीच,
कई फलसफों का वो जवाब था,
वो एक ख्वाब था ।

अश्रु को मोती में बदलता,
तमस को ज्योति में बदलता ।
अपनेपन का पाठ पढ़ाता,
जीवन के हर गुर सीखाता ।
सुखे हुए सुमनों के बीच,
खिलता हुआ वो गुलाब था ।
वो एक ख्वाब था ।

वो एक ख्वाब था ।
दो पल का ही सही, वो एक रुबाब था ।
वो एक ख्वाब था ।

रविवार, 15 जनवरी 2012

जब जब दिल में दर्द हुआ है

जब जब दिल में दर्द हुआ है
तब तब मौसम सर्द हुआ है
जब भी कोई आपके अपने,
             जिनको आप प्यार करते है
मुंह पर मीठी मीठी बातें,
            पीछे पीठ वार   करते है
जब जब भी बेगानों जैसा,
अपना ही हमदर्द हुआ है
तब तब मौसम सर्द हुआ है
रिश्तों के इस नीलाम्बर में,
               कई बार छातें है बादल                                      
होती है कुछ बूंदा बांदी,
               पर फिर प्यार बरसता निश्छल
शिकवे गिले सभी धुल जाते,
मौसम खुल बेगर्द  हुआ है
जब जब दिल में दर्द हुआ है
गलतफहमियों का कोहरा जब,
                आसमान में छा जाता है
देता कुछ भी नहीं दिखाई ,
                रास्ता नज़र नहीं आता है
दूर क्षितिज में अपनेपन का,
सूरज जब भी जर्द हुआ है
तब तब मौसम सर्द हुआ है
शीत ग्रीष्म के ऋतू चक्र के,
                         बीच बसंत ऋतू आती है  
नफरत के पत्ते झड़ते है ,
                        प्रीत कोपलें मुस्काती है
कलियों और भ्रमरों का रिश्ता,
जब खुल कर बेपर्द  हुआ  है
तब तब दिल में दर्द हुआ है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 14 जनवरी 2012

JAGO HINDU JAGO: मकरसक्राँति और लोहरी के पवित्र त्यौहार पर आप सबको ...

JAGO HINDU JAGO: मकरसक्राँति और लोहरी के पवित्र त्यौहार पर आप सबको ...
जिंदगी यूँ ही गुजर रही है ,
और अँधेरा थम नहीं रहा,
दूरियों  को मिटाना आसान था कभी ,
अब दूर तलक शमशान है ...
खामोश थे हम बेवजह कभी,
अब वो खामोश हो गए |
वजह कुछ  खास थी उनकी .....
बताना बहुत कुछ था
जुबान भी सही सलामत थी मेरी |
पर उनके कान निर्जीव पड़े थे ........
दबे पावों लौट आया एक अनकही कहानी बनकर ...
अब अलविदा भी कहना बेईमानी लगता है |




कवि परिचय:
विकास कुमार
केमिकल इंजिनियर
गुजरात 

मुझे जन्म दो


(यह कविता मेरे द्वारा लिखी हुई नहीं है, पर एक डॉक्टर के क्लिनिक में मैंने इसे देखा तो सोचा की सबके साथ साझा करना चाहिए और मैंने इसे लिख लिया | कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए सबको जागरूक करने हेतु इस रचना का प्रयोग किया जाता है |


हुमक हुमक गाने दो मुझको,
यूँ मत मर जाने दो मुझको,
जीवन भर आभार करुँगी,
माँ मैं तुमसे प्यार करुँगी,
मैं तेरी ही बेटी हूँ माँ,
मुझे जन्म दो, मुझे जन्म दो |

मैं भी तो हूँ अंश तुम्हारा,
मैं भी तो हूँ वंश तुम्हारा,
पापा को समझाकर देखो,
सारी बात बताकर देखो,
बिगड़ा है अनुपात बताओ,
क्या होंगे हालात बताओ,
फिर भी अगर न माने पापा,
रोउंगी मनुहार करुँगी,
जीवन भर आभार करुँगी,

मुझे जन्म दो, मुझे जन्म दो |


लक्ष्मी बाई, मदर टेरेसा,
क्या कोई बन पाया वैसा,
मत कहना एक धाय है पन्ना,
ममता का अध्याय है पन्ना,
ये बातें बतलाओ अम्मा,
दादी को समझाओ अम्मा,
सब गुण अंगीकार करुँगी,
जीवन भा आभार करुँगी,

मुझे जन्म दो, मुझे जन्म दो |

अन्तरिक्ष में जाकर के माँ,
रोशन तेरा नाम करुँगी,
जो-जो बेटे कर सकते हैं,
हर वो अच्छा काम करुँगी,
नाम से तेरी जानी जाऊं,
ये मैं बारम्बार करुँगी |
माँ मैं तुमसे प्यार करुँगी,
मुझे जन्म दो, मुझे जन्म दो |

शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

जल की अनंत यात्रा

जल की अनंत यात्रा
-------------------------
बादलों में भरा हुआ जल,
जब पानी की बूंदों में बरसता है
तो धरती के दिल में आ बसता है
कुछ सहमा सहमा,
कुए की गहराई में सिमिट कर रह जाता है
कुछ सरोवर में तरंगें भरता है,
तो कुछ नदिया की कल कल में बह जाता है
और कुछ बेचारा,
मुसीबत का मारा,
ठिठुरता है सर्दी में,
और पहाड़ों की चोटियों पर ठहर जाता है
पर जब सूरज को दया आती है,
तो पहाड़ों की जमी बर्फ पिघल जाती है
और इतने दिनों का जमा जल ,जब पिघलता है
तो मचलता ,इठलाता हुआ चलता है
और जवानी के जोश में,
या कहो आक्रोश में,
कितने ही पहाड़ों को काट कर,
अपना रास्ता बनाता है
और अपना एक धरातल पाता है
और कल कल करता हुआ ,
अपनी मंजिल की ओर,
 निकल पड़ता है
पर कई बार ,उसको  ,
ऊंचे धरातल से ,
निचले धरातल पर गिरना पड़ता है
तो वो दहाड़ता है
अपने में सिमटी हुई ,चांदी उगलता है,
गर्जना करता है,
और छोटी छोटी बूंदों में बिखर बिखर,
फिर से ऊपर को उछालें मारता है
और उसे सूरज की कुछ किरणे,
इंद्र धनुष सा चमका देती है
कुछ क्षणों के लिए,सुहावना बना देती है
और फिर बेबस सा,
अपने नए धरातल पर,
धीरे धीरे ,अपनी पुरानी चल से चलने लगता है
कितने ही कटाव और बिखराव के बाद,
अंत में सागर में जा मिलता है
क्योंकि हर जल की नियति ,
सागर में विलीन होना ही होता है
और  फिर से बादल बन ,
जल की अनंत यात्रा का आरम्भ होता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

कन्यादान



मतलब क्या है इस कन्यादान का ?
क्या ये सीढ़ी भर है नए जीवन निर्माण का ?

या सचमुच दान ही इसका अर्थ है,
या समाज में हो रहा अर्थ का अनर्थ है ?

दान तो होता है एक भौतिक सामान का,
कन्या जीवन्त मूल है इस सृष्टि महान का ।

नौ मास तक माँ ने जिसके लिए पीड़ा उठाई,
एक झटते में इस दान से वो हुई पराई ?

नाजो-मुहब्बत से बाप ने जिसे वर्षों पाला,
क्या एक रीत ने उसे खुद से अलग कर डाला ?

जिस घर में वह अब तक सिद्दत से खेली,
हुई पराई क्योंकि उसकी उठ गई डोली ?

क्या करुँ मन में हजम होती नही ये बात,
यह प्रश्न ऐसे छाया जैसे छाती काली रात |

कौन कहता है कन्याएँ नहीं हमारा वंश है,
वह भी सबकुछ है क्यो.कि वह भी हमारा ही अंश है ।

कन्या 'दान' करने के लिए नहीं है कोई वस्तु,
परायापन भी नहीं है संगत, ज्यों कह दिया एवमस्तु ।

रेवड़ी

        रेवड़ी
मेरे दिल में मिठास है
कुछ खुशबू खास है
कड़क कुरमुरी हूँ
स्वाद से भरी हूँ
मुझसे लिपटे है जितने तिल
वो है मेरे चाहने वालो के दिल
सोने की अशर्फी हूँ
मोतियों से जड़ी हूँ
मै रेवड़ी हूँ
सर्दी की उष्मा हूँ
प्यार का उपहार हूँ
दिलों से लिपटा हुआ ,
मिलन का त्यौहार हूँ
जो खाता खिलाता है
बस ये ही चाहता है
मीठा खाओ ,मीठा बोलो
सब के मन में अमृत घोलो
महाराष्ट्र का तिल  गुड हूँ
यूपी की खिचड़ी हूँ
आसाम का बिहू
केरल का पोंगल और
पंजाब की लोहड़ी हूँ
मै रेवड़ी हूँ

....तो क्या बात हो

(२००वीं पोस्ट)
किताबों के पन्ने यूँ पलटते हुए सोचते हैं,
यूँ आराम से पलट जाए जिन्दगी तो क्या बात हो ।

तमन्ना जो पूरी होती है सिर्फ ख्वाबों में,
एक दिन हकीकत बन जाए तो क्या बात हो ।

शरीफों की शराफत में भी जो न हो बात,
कोई मयकश ही वो कह जाए तो क्या बात हो ।

कुछ लोग अकसर मतलब के लिए ढूँढते हैं मुझे,
कोई बस हाल पुछने ही आ जाए तो क्या बात हो ।

कत्ल करके तो सब ले लेंगे जान मेरी,
कोई बस लुभा के ही ले जाए तो क्या बात है ।

जिंदगी रहने भर तो खुशियाँ लुटाता ही रहुँगा,
कोई मेरी मौत से भी खुश हो जाए तो क्या बात हो ।

(यह रचना मूल रूप से मेरी नहीं है | अच्छी लगी तो हल्का फुल्का सुधार के साथ यहाँ प्रस्तुत कर दिया )

कुंड़लिया ----- दिलबाग विर्क


हाथी ढको नकाब से , आया है फरमान ।
है यू.पी. में चल रहा , चुनावी घमासान ।।
चुनावी घमासान , मदद मिले न सरकारी ।
ये चुनाव आयोग , दिखाता सख्ती भारी ।।
किए करोड़ों खर्च , नहीं बन पाया साथी  ।
था ये चुनाव चिह्न , इसीलिए ढका हाथी ।।

* * * * *

मैं रुक गयी होती



जब मैं चली थी तो
तुने रोका नहीं वरना
मैं रुक गयी होती |
यादें साथ थी और
कुछ बातें याद थी
ख़ुशबू जो आयी होती
तेरे पास आने की तो
मैं रुक गयी होती |
सर पर इल्ज़ाम और
अश्कों का ज़खीरा ले
मुझे जाना तो पड़ा
बेकसूर समझा होता तो
मैं रुक गयी होती |
तेरे गुरुर से पनपी
इल्तज़ा ले गयी
मुझे तुझसे इतना दूर
उस वक़्त जो तुने
नज़रें मिलायी होती तो
मैं रुक गयी होती |
खफा थी मैं तुझसे
या तू ज़ुदा था मुझसे
उन खार भरी राह में
तुने रोका होता तो शायद
मैं रुक गयी होती |
बस हाथ बढाया होता
मुझे अपना बनाया होता
दो घड़ी रुक बातें
जो की होती तुमने तो
ठहर जाते ये कदम और
मैं रुक गयी होती |
_------ "दीप्ति शर्मा "





बुधवार, 11 जनवरी 2012

एक थैली के चट्टे बट्टे

एक थैली के चट्टे बट्टे
---------------------------
बी जे पी हो या कांग्रेस
ये सब के सब है एक जैस
सब दल जनता को भरमाते,
है बदल बदल कर अलग भेष
मन बहलाते इनके वादे,
भाषण लम्बे लम्बे
पर हमने देखा ये सब है,
एक बेल के तुम्बे
सत्ता मिलते ही ये देखा,
सब करते है ऐश
बी जे पी हो या कांग्रेस
ये कर देंगे,वो कर देंगे,
दिखलाते है ख्वाब
रंग बदलने में ये सब है,
गिरगिट के भी बाप
रंग बिरंगी टोपी,झंडे,
रंग बिरंगी ड्रेस
बी जे पी हो या कांग्रेस
सभी बढ़ाते है मंहगाई,
सब चीजों के भाव
एक गली में भों भों करते,
जब होता टकराव
पर खुद का मतलब होने पर,
हो जाते है एक
बी जे पी हो या कांग्रेस
एक थैली के चट्टे बट्टे,
कुछ है नाग,संपोले
इस हमाम में सब नंगे है,
अब किसको क्या बोलें
नेताओं ने लूट लूट कर,
किया खोखला देश
बी जे पी हो या कांग्रेस
ये सब के सब है एक जैस

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 10 जनवरी 2012

मुस्कुराहट तेरी



कर देती है दूर हर मुश्किल मेरी,
बस एक मीठी सी  मुस्कुराहट  तेरी |

थक-हार कर संध्या जब घर आता हूँ,
बस देख कर तुझको मैं चहक जाता हूँ |

देखकर हर दिखावे से दूर तेरे नैनों को,
पंख मिल जाता है मेरे मन के मैनों को |

जब गोद में लेके तुम्हे खिलाता हूँ,
सच, मैं स्वयं स्वर्गीय आनंद पाता हूँ |

नन्हें हाथों से तेरा यूँ ऊँगली पकड़ना,
लगता है मुझे स्वयं इश्वर का जकड़ना |

आज हो गयी है तू छः मास की,
बाग़ खिलने लगा है मन में आस की |

पर  "परी" जब भी तू रोती है,
हृदय में एक पीड़ा-सी होती है |

देखकर मुझे बरबस खिलखिला देती हो,
पुलकित कर देती हो, झिलमिला देती हो |

कर देती है दूर हर मुश्किल मेरी,
बस एक मीठी सी  मुस्कुराहट  तेरी |

सोमवार, 9 जनवरी 2012

ये आँखें



कभी अनमोल मोतियों
को गिरा देती हैं |
तो कभी बहुत कुछ 
अपने में छुपा लेती हैं ,
ये आँखें |
   -- " दीप्ति शर्मा "

अब आने वाला चुनाव है


अब आने वाला चुनाव है
-----------------------------
मरे हुए सपनो को फिर से,
जीवन दिलवाने के खातिर
सपनो का संसार दिखा कर,
फिर से बहलाने के खातिर
पांच साल में,एक बार जो,
मिलकर यज्ञ किया जाता है
राजनीती के इस खेले को,
नाम चुनाव दिया जाता है
इक दूजे को 'स्वाह 'स्वाह' कर,
'इदं न मम' की बातें करते
बार बार इस आयोजन में,
मन्त्र न,झूंठे वादे पढ़ते
मन में भर कर भाव कलुषित,
फैलाते ये घना धुंवां  है
मार पीट और खूनखराबा,
अक्सर कितनी बार हुआ है
समिधा बना खरचते पैसा,
आहुति होती धन और बल की
संचित धन हो जाए कई गुना,
इसी मधुर आशा में कल की
बाहुबली, दबंग सभी तो,
सत्ता सुख का सपना पाले
उजले वसन पहन कर दिखते,
बगुला भगत बने ये सारे
पदासीन फिर सत्ता पाने,
एडी चोंटी जोर लगाते
बढ़ा दाम,फिर सस्ता करते,
घटा रहे मंहगाई ,बताते
अच्छा ,भला,बुरा क्या छांटे,
जिसको देखो वो है नंगा
डुबकी सभी लगाना चाहें,
बहती है सत्ता की गंगा
कोशिश टिकिट जाय मिल सबको,
बीबी ,बेटा,साला,भाई
वंशवाद फैले और विकसे,
पांच साल तक करें कमाई
  भ्रष्टाचार  मिटा देंगे हम,
और विकास का वादा करते
सर्व प्रथम खुद का विकास कर,
अपनी अपनी झोली भरते
एक बार मिल जाए सत्ता,
जीवन में आ जाय उजाला
फेंट रहे सब अपने पत्ते,
अब चुनाव है आनेवाला
 
 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 8 जनवरी 2012

धवल चाँदनी

उन्मुक्त से गगन में, पूर्ण चन्द्र की रात में, निखार पर है होती ये धवल चाँदनी । मदमस्त सी करती, धरनि का हर कोना, समरुपता फैलाती ये धवल चाँदनी । क्या नदिया, क्या सागर, क्या जड़, क्या मानव, हर एक को नहलाती ये धवल चाँदनी । निछावर सी करती, परहित में ही खुद को, रातों को उज्ज्वल करती ये धवल चाँदनी । प्रकृति की एक देन ये, श्रृंगार ये निशा रानी का, मन "दीप" का हर लेती ये धवल चाँदनी ।

शनिवार, 7 जनवरी 2012

मुसीबत ही मुसीबत

मुसीबत ही मुसीबत
-----------------------
मौलवी ने कहा था खैरात कर,
              रास्ता है ये ही जन्नत के लिये
वहां जन्नत में रहेंगी हमेशा,
             हूरें हाज़िर तेरी खिदमत  के लिये
ललक मन में हूर की ऐसी लगी,
             आ गये हम मौलवी की बात में
सोच कर जन्नत में हूरें मिलेगी,
            लुटा दी दौलत सभी खैरात में
और आखिर वो घडी भी आ गयी,
               एक दिन इस जहाँ से रुखसत हुए
पहुंचे जन्नत ,वेलकम को थी खड़ी,
              बीबी बन कर हूर,खिदमत के लिये
हमने बोला यहाँ भी तुम आ गयी,
            हो गयी क्या खुदा से कुछ गड़बड़ी
अरे जन्नत में तो मुझ को बक्श दो,
              इस तरह क्यों हो मेरे पीछे पड़ी
बोली बीबी मौलवी का शुक्र है,
              दिया जन्नत का पता मुझको  बता
कहा था उसने की तू खैरात कर,
             पांच टाईम नमाज़ें करके    अता
बताया था होगी जब जन्नत नशीं,
               हूर बन कर फरिश्तों से खेलना
मुझको क्या मालूम था जन्नत में भी,
               पडेगा मुझको ,तुम्ही को झेलना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

रियो-कुछ शब्द चित्र

रियो-कुछ शब्द चित्र
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          १
सागर के तट पर,
अठखेलियाँ करता यौवन
बड़े बड़े दरवाजे,
छोटी सी चिलमन
          २
बूढ़े के आस पास,
दो दो हसीनायें
और दो दो कुत्तों को,
टहलाती  बूढीयायें 
               ३
तैरता क्रिसमस ट्री,
सौ मीटर ऊंचा
तीस लाख बल्बों से,
जगमग समूचा
              ४
हूरों के सपने थे,
पर किस्मत फूटी
मोटी सी महिलायें,
काली कलूटी
              ५
पहाड़ की चोंटी पर,
सातवाँ अजूबा
क्राइस्ट का स्टेचू,
सौ फिट से ऊंचा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

(दक्षिण अमेरिका के बाजील के रिओ शहर की यात्रा
के दौरान लिखे गए कुछ शब्द चित्र आज पोस्ट कर रहा हूँ )

बुधवार, 4 जनवरी 2012

अब क्या करना है |




इत्मिनान से जी लूँ
लिख लूँ कुछ नगमें
जो ज़ज्बात से भरें हों
फिर सोचूँगी की मुझे
अब क्या करना है |

गढ़ लूँ कुछ नये आयाम
सतत बढूँ दीर्घ गूंज से
ले मैं रुख पर नकाब
फिर सोचूँगी की मुझे
अब क्या करना है |

स्मरण कर उन्मुक्त स्वर
स्वछन्द गगन में टहलूं
सहजभाव से स्मृतियों में
कुछ ख्यालों को छुला लूँ
फिर सोचूँगी की मुझे
अब क्या करना है |

महसूस कर लूँ एहसास
तेरे यहाँ आने का
बरस जाये बरखा
सावन भर आये और
तुझसे मिलन हो जाएँ
फिर सोचूँगी की मुझे
अब क्या करना है |
--- दीप्ति शर्मा


सोमवार, 2 जनवरी 2012

हिन्दी विकीपीडिया और कविताकोश पर काव्य-संग्रह ‘टूटते सितारों की उडान’ का लिंक

होनहार विरवान के होत चीकने पात कहावत को चरितार्थ करते हुये ब्लाग जगत के सक्रिय ब्लागर श्रीयुत सत्यम् शिवम् जी के द्वारा ‘टूटते सितारों की उडान’ नामक काव्य-संग्रह का संपादन करते हुये इसे उत्कर्ष प्रकाशन मेरठ द्वारा प्रकाशित कराया गया है। इसमें ब्लाग जगत से जुडे बीस कवियों की रचनायें सम्मिलित की गयी हैं जिसमें छः प्रमुख महिला ब्लागर भी सम्मिलित हैं। संग्रह के नाम के अनुरूप इस संग्रह में सम्मिलित सभी रचनाकारों की रचनाऐं जीवन की आपा धापी में पल पल बिखरते जा रहे टूटते , छटपटाते रिश्तों का सच प्रगट करती हुयी सी जान पडती हैं। मूल रूप से इन्दौर में जन्मी और राजस्थान के कोटा जनपद में विवाहित दर्शन कौर वर्तमान में मायानगरी मुंबई में निवास कर रही हैं जिनकी रचनाओं में महानगरी में खो गया मानवीय रिश्ता इस प्रकार दिखा
........नाहक, तुम्हें बाँधने की कोशिश
छलावे के पीछे भागने वाले औंधे मुंह गिरते हैं
इस तपती हुयी मरू भूमि में
चमकती सी बालू का राशि
जैसे कोई प्यासा हिरन,
पानी के लिये
कुलांचे भरता जाता है
अंत में थककर दम तोड देता है
तुम्हारे लिये
इस मरूभूमि में मै भी भटक रही हूँ
काश कि तुम मिल जाते।...............
विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में छप चुकी वरिष्ठ हिन्दी कवियत्री सुश्री वन्दना गुप्ता जी की रचना का एक अंश देखें-.
...........न जाने कब
कैसे, कहाँ से
एक काला साया
गहराया
और मुझे
मेरी स्वतंत्रता को
मेरे वजूद को
पिंजरबद्ध कर गया
चलो स्वतंत्रता पर
पहरे लगे होते
मगर मेरी चाहतो
मेरी सोच
मेरी आत्मा को तो
लहूलुहान ना
किया होता
उस पर तो
ना वार किया होता
आज ना मैं
उड़ पाती हूँ
ना सोच पाती हूँ
हर जगह
सोने की सलाखों में
जंजीरों से जकड़ी
मेरी भावनाएं हैं
मेरी आकांक्षांऐं है
हाँ , मैं वो
सोन चिरैया हूँ
जो सोने के पिंजरे
में रहती हूँ
मगर बंधन मुक्त
ना हो पाती हूँ..
......................
राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित श्रीमती महेश्वरी कानेरी जी सेवानिवृति के उपरांत देहरादून उत्तराखंड में निवास कर रही हैं। उनकी एक रचना का अंश देखें -
जीवन तो जीया है मैने
लेकिन कब वो अपना था?
रिश्तों के टुकडों में,
सब कुछ बँटा- बँटा था।
कभी रीति और रिवाजों
की ओढी थी चुनरी....
कभी परंपराओं का
पहना था जामा.....
आँखों में स्वप्न नहीं
समर्पण रहता , हर दम
रिश्तों का फर्ज निभाते
जीवन कब बीत गया
दायित्व के बोझ तले
बरबस मन, ये कहता
कौन हूँ मैं ? कौन हूँ मैं?.
.....................
इस काव्य-संग्रह में सम्मिलित प्रमुख व्लागर सर्वश्री रूप चंद्र जी शास्त्री ‘मयंक’ आदि कुछ रचनाकारों के नाम हिन्दी कविता की प्रतिष्ठित वेवसाइट । कविताकोश में भी उपलब्ध हैं अतः उनके पन्ने पर इस काव्य-संग्रह का लिंक ... भी कविताकोश में जोड दिया गया है जिसे पढने के लिये इस लिंक पर क्लिक करते हुये पहुंचा जा सकता है । इस कविता-संग्रह को । हिन्दी विकीपीडिया पर उपलब्ध हिन्दी पुस्तकों की सूची में भी जोडा गया है जो अभी अपने प्रारंभिक स्वरूप में है ... यदि आप चाहें तो स्वयं भी इसमें पठनीय सामग्रियों को जोड कर इसे और अधिक विकसित कर सकते हैं। आप को नव वर्ष ''२०१२'' की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ढेरों बधाइयाँ।

रविवार, 1 जनवरी 2012

साहित्य सुरभि: हो मुबारिक साल नया

साहित्य सुरभि: हो मुबारिक साल नया: नव जीवन की आस ले , आया है नव वर्ष माहौल बने शान्ति का , फैले हर-सू हर्ष । फैले हर - सू हर्ष , यही कोशिश हो सबकी सुधरें कुछ ह...

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