एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

रविवार, 6 सितंबर 2020

गुरुघंटालों के प्रति -शिक्षकदिवस पर

मैंने गुरु से सीखा जितना ,उतना गुरुघंटालों से
ढाई घर चलनेवाली ,उनकी शतरंजी चालों से

जीवनपथ पर जब निकला मैं ,था सीधासादा सच्चा  
पर लोगों को चुभता था यह,मैं क्यों हूँ इतना अच्छा
बार बार थे मुझे सताते राहों में अटका रोड़ा
ठोकर खा ,रोड़ों से बचना ,सीखा मैं थोड़ा थोड़ा
जब भी उनने,मुझे फंसाने,उलटी सीधी चाल चली
बच बाहर आने को मैंने ,ढूंढी पतली कोई गली
चुगलखोरियाँ ,चमचगिरियाँ,मख्खनबाजी ,मक्कारी
अपना स्वार्थ साधनेवाली ,चालबाजियां वो सारी
चाल शकुनि मामा जैसी,चलना फेंक गलत पासे
भ्र्ष्ट करे सबकी बुद्धि वह ,सीखा मंत्र ,मंथरा से
कब दे ढील ,खींचना डोरी ,और पतंग काट देना
भाई भाई के बीच दीवारें ,करके खड़ी ,बाँट देना
जितने गुरुघंटाल मिले ,थे इन खेलों में पारंगत
दावपेंच कुछ सीखा गयी ,हमको उनकी थोड़ी संगत
इन उलटी सीधी चालों का ,ज्ञान बहुत आवश्यक था
वरना उनके चक्रव्यूह से ,कोई भी ना बच सकता
सदगुरु ने था ज्ञान सिखाया ,अच्छी अच्छी शिक्षा दी
पर जीवन में कई बार जब आयी घडी परीक्षा की
सीधी ऊँगली ,घी ना निकला ,टेढ़ी की ,तब सका निकल
गुरुघंटालों की शिक्षा ने ,रस्ता मेरा ,किया सरल
सच का रस्ता ,अच्छा होता ,मगर बात ये भी सच्ची
अगर किसी का भला कर सके ,कभी झूंठ भी है अच्छी
टेढ़ा ज्ञान ,काम में ला ,मैं  निकला हूँ जंजालों से
मैंने गुरु से जितना सीखा ,उतना गुरुघंटालों से

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधवार, 2 सितंबर 2020

प्यार की बरसात

जबसे मेरी मसें भीगी ,
मेरे मन में प्यार के कीड़े कुलबुलाने लगे
सारे हसीं चेहरे ,मेरा मन लुभाने लगे
यौवन की ऊष्मा में ,जब मन तपता था
तो हृदय के सागर में ,
मोहब्बत का मानसूनी बादल उठता था
ये आवारा बादल ,किसी हसीना को देख के
कभी गरज कर छेड़खानी करते ,
कभी आँख मारते ,तड़ित रेख से
और कभी कभी छींटाकशी कर ,
अपना मन बहलाते थे
पर बेचारे बरस नहीं पाते थे
भटकते रहते थे ,सही जगह और ,
सही दबाब वाले क्षेत्र की तलाश में
बरसने की आस में
ये होते रहे घनीभूत
और जब तुम्हे देखा ,
तो प्यार से होकर अभिभूत
ये द्रवित हुए और जब तुमसे मुलाकात होगयी
और प्यार की बरसात हो गयी

घोटू 
प्रभु ,ऐसे दिन  कभी  न आये  

ना यारों संग ,बैठक ,गपशप  
मौज और मस्ती ,खाना पीना
ना बीबी के कन्ट्रोल बिन ,
थोड़े घंटे ,खुल कर जीना
ना नित शेविंग ,सजना धजना ,
प्रेस वस्त्र में ऑफिस जाना
दिन भर यससर यससर सुनना ,
आता है वो याद जमाना
इस कोरोना की दहशत ने ,
कैसे दिन हमको दिखलाये
प्रभु ऐसे दिन कभी  नआये

 घर का काम पड़े खुद करना ,
ना महरी का आना जाना
झाड़ू पोंछा ,गृह कार्यों में ,
पत्नीजी का हाथ  बटाना
बरमूडा ,टी शर्ट पहन कर ,
दिन भर रहना घर में घुस कर
कब तक अपना वक़्त गुजारें ,
टी वी चैनल ,बदल बदल कर
दिन भर पड़े  रहें बिस्तर में ,
हरदम अलसाये अलसाये
प्रभु ऐसे दिन कभी  न आये

सबके मुंह पर बंधी पट्टियाँ ,
तुम उनको पहचान न पाओ
होटल में जाकर न खा सको ,
बाहर से कुछ ना मंगवाओ
जली कटी खानी भी पड़ती ,
जली कटी सुननी भी पड़ती
कुछ बोलो तो झगड़ा होता ,
बात बात में बात बिगड़ती
अपनों से तुम मिल ना पाओ ,
दो गज दूरी रहो बनाये
प्रभु ,ऐसे दिन कभी न आये

कोई अपना जो बीमार हो,
 हाल पूछने तुम न जा सको
मिलने वालों की शादी में
शिरकत कर दावत न खा सको
कोई बर्थडे कोई उत्सव ,
मना न पाओ ,हंसकर गाकर  
नहीं किसी की शवयात्रा में ,
दुःख अपना दिखलाओ जाकर
आपस में बढ़ गयी दूरियां ,
अपने ज्यों हो गए पराये
प्रभु ,ऐसे दिन कभी न आये

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
यूं जीना आसान नहीं है

कटा उन्यासी वर्षों जीवन
कभी ख़ुशी थी और कभी गम
देख लिए सारे ही मौसम
बाकी दिन भी कटे ख़ुशी से ,
             अब मन में अरमान यही है
संग उमर के लगी बिमारी
वृद्धावस्था की लाचारी
रोज दवा की मारामारी
ये मत खाओ ,वो मत खाओ ,
             यूं जीना आसान नहीं है
ठुकरा दूँ सारे  आमंत्रण
खानपान पर रखूँ नियंत्रण
फिर जीवन में क्या आकर्षण
मन को हरदम रहो मसोसे ,
            होठों पर मुस्कान नहीं है
बार बार कहता है ये मन
बचा हुआ थोड़ा सा जीवन
मनमरजी से क्यों न जियें हम
जब तक जीवन मज़ा उठायें ,
          मन पर कोई लगाम नहीं है
दिवस मौत का अगर मुक़र्रर
तो फिर हम क्यों जियें डर कर
जीवन का सुख लूटें जी भर
तरस तरस कर भी क्या जीना ,
             जिन्दा है पर जान नहीं है
रचे प्रभु ने सुख के साधन
मीठा और चटपटा भोजन
कर उपयोग मज़ा पाएं हम
तिरस्कार उन सबका करना ,
          क्या प्रभु का अपमान नहीं है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बीबीजी हज्जाम बन गयी

तेज तर्रार सभी बातों में ,बड़े बड़ों के कान काटती
मैं गलती से यदि कुछ कहता ,तो मेरी हर बात काटती
जब जब भी बाज़ार ले गया ,हरदम मेरी जेब काटती
जली कटी सब मुझे सुना कर ,अक्सर मुझको रहे डाटती
पैरों के नाखून काटती ,छू कर पैर महान हो गयी
थे सैलून बंद, बीबी ने ,काटे बाल ,हज्जाम हो गयी

घोटू 

रविवार, 30 अगस्त 2020

एक लड़की को देखा तो --

एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा
दिल मेरा ,हाथ से मेरे ,जाने लगा

थी मेरी कल्पनाओं में जो सुंदरी
खूबसूरत परी, हो  जो जादूभरी
जिसके चेहरे पे छिटकी रहे चांदनी
जिसके अधरों पे गूंजे मधुर रागिनी
जिसकी आँखों में शर्मोहया हो बसी
फूल खुशियों के बरसा दे जिसकी हंसी
मुस्करा कर लुभाले सभी का जो मन
खुशमिज़ाज हो ,महकती हुई गुलबदन
थोड़ी गंभीर हो ,थोड़ी चंचल ,चपल
साथ हर हाल में ,बन रहे हम सफर
रूप जिसका ,जिया में दे जादू जगा  
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा

गाँव की गौरी सी जिसमे हो ताजगी
जिसमे हो भोलापन और भरी सादगी  
जसके मेरे विचारों में हो साम्यता
भारतीय संस्कृति के लिए मान्यता
आधुनिक हो मगर ,घर चला जो सके
साथ परिवार का ,भी निभा जो सके
दिल के उपवन में ऐसी कली खिल गयी
मेरी चाहत थी जो ,वो मुझे मिल गयी
मैंने देखा उसे ,मेरा दिल खो गया
प्यार पहली नज़र में मुझे हो गया
रह गया देखता ,मैं ठगा सा ठगा
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

शुक्रवार, 28 अगस्त 2020

कमियां

कोरोना के डर के मारे
फुर्सत में रहते हम सारे
बोअर हो गए बैठे ठाले
आओ सबकी कमी निकालें

वो ऐसा है ,वो है वैसा
उसके पास बहुत है पैसा
रहता है कंजूसों जैसा
चिकचिक करता रहे हमेशा

एक वो टकला बड़ा बोर है
झूंठा है और चुगलखोर  है
बेईमान खुद ,बड़ा चोर है
मगर मचाता बहुत शोर है

वो बूढा है सबसे हटके
पेर कब्र में जिसके लटके  
चाहे प्राण गले में अटके
लेकिन नयना अब भी भटके

वो छोटू ,दिखता है मुन्ना
लेकिन वो है काफी घुन्ना
फैल रहा है दिन दिन दूना
लगा दिया कितनो को चूना

वो लम्बू है बड़ा निराला
चालू चीज बड़ा है साला
लाइन सब पर करता मारा
पर अब तक बैठा है कंवारा

वो लड़का दिखता सीधा है
बातचीत में संजीदा है
हुआ पड़ोसन पर फ़िदा है
करता सबको शर्मिन्दा है

वो है घर का करता धरता
मेहनत कर दिन रात विचरता
पर अपनी पत्नी से डरता
उसको मख्खन मारा करता

उस प्रोढ़ा सी पंजाबन के
नखरे बड़े निराले मन के
रहती है कितनी बनठन के
अब भी तार हिलाती मन के

उस बुढ़िया की देखो सूरत
अब भी मनमोहिनी मूरत
लगता देख आज की हालत
होगी कभी बुलन्द  इमारत

हम बोले क्यों होते बेकल
फुरसत में हो इतने पागल
कमी ढूंढना बहुत है सरल
झांको कभी हृदय के अंदर

पाओगे तुम बहुत गड़बड़ी
अंदर कमियां भरी है पड़ी
वो सुधरे तो किस्मत सुधरी
फिर से बात बनेगी ,बिगड़ी

मत ढूंढो औरों की बुराई
खुद की कमियां देखो भाई
उन्हें सुधारो तब ही बढ़ाई
देखो लोगों की अच्छाई

कोई कितना बने सिकंदर
कमिया होती सबके अंदर
बड़ा ,किन्तु खारा है समन्दर
शुद्ध रखो निज मन का मंदिर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधवार, 26 अगस्त 2020

संकट में भगवान

मंदिर में सन्नाटा पसरा ,देव सभी मिल बात करे
इस कोरोना वाइरस ने ,  बहुत  बुरे हालत करे
रोज भक्त जो मंदिर आते ,हमको शीश झुकाते थे
भजन कीर्तन मंत्र पाठ कर ,प्रभु की महिमा गाते थे
पर जब से है इस कोरोना ,संकट ने आ घेर लिया
कोई हमको नहीं पूछता ,सब ने है मुंह फेर लिया
ना परशाद चढ़ाता कोई ,ना अभिषेक कराता है
बाहर से ही शीश नमाता ,और सटक फिर जाता है
हम भ्रम में थे ,संकट में सब ,आ गुहार लगाएंगे
ज्यादा भक्तिभाव से आकर ,पूजा हमे चढ़ाएंगे
किन्तु संक्रमण के भय कारण ,सारे मंदिर बंद हुए
भीड़भाड़ ना हो बचने को ,उत्सव पर प्रतिबंध हुए
कुछ महीनो में ,भक्तिभाव का ,ऐसा हुआ सफाया है
मानव से ज्यादा  देवों  पर ,लगता संकट आया है
शिवजी बोले ,सच अबके तो ,टूट गया है मेरा मन
ना कोई भीड़ लगी भक्तों की ,बीत गया पूरा सावन
ना कावड़ ,गंगाजल आया ,ऐसा बंटाधार  हुआ
शिवरात्रि को शादी थी पर मेरा ना श्रृंगार हुआ
अभिषेक ना शहद शर्करा ,नहीं भांग का भोग चढ़ा
इस कोरोना के कीड़े ने ,किया मेरा नुक्सान बड़ा
बड़े रुआंसा ,कान्हा बोले ,मेरा बर्थडे नहीं मना
ना तो सजी झांकियां कोई ,ना ज्यादा परशाद बना
ना तो हुई रासलीलाएं ,ना भक्तों का रेला था
ना थे भजन कीर्तन बस मैं ,बैठा रहा अकेला था
माता रानी बड़ी दुखी थी ,नवरात्रे सूखे  बीते
ना थी कोई भीड़ भक्तों की ,मंदिर थे रीते रीते
ना श्रृंगार ,चढ़ावा कोई ,ना ही चूनरें चढ़ी नयी
ना थी चौकी ,ना भंडारे ,ना ही रतजगा हुआ कहीं
थे ग़मगीन गणपति बप्पा ,मना न उनका जन्मोत्सव
दस दिन की वो भव्य झांकियां ,भीड़भाड़ वाला वैभव
ना दर्शन की लम्बी लाइन ,नहीं चढ़ावा ,ना मोदक
ऐसा फीका जन्मोत्सव तो ,मेरा नहीं हुआ अब तक
सबने मीटिंग करी ,एक स्वर में मिल करके यही कहा
धर्मव्यवस्था बैठ जायेगी ,यदि ये ही माहौल रहा
इसीलिये आवश्यक है अब ,कृपा विष्णु भगवंत करे
 होय अवतरित वेक्सीन में ,कोरोना का अंत करें  
प्रभु तुम्हारे आगे कोरोना ,बौना है ,संहार करो
अपने दुखी त्रसित भक्तों पर जल्दी यह उपकार करो
जिससे भक्तिभाव फिर जागे ,मंदिर में रौनक आये
चढ़े चढ़ावा ,भजन कीर्तन ,लौट पुराने दिन आये

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

सोमवार, 24 अगस्त 2020

re: I`m interested in your offer of Social Signals

hi
baheti.mm.tara1

Glad to hear that, here are the details below

More information here:
http://www.realsocialsignals.co/buy-social-signals/

For the best ranking results, buy Monthly basis Social signals, provided
daily, month after month:
http://www.realsocialsignals.co/custom-social-signals/


Regards
Emmanuel












http://www.realsocialsignals.co/unsubscribe/


2018-11-9, tr, 19:37 baheti.mm.tara1 <baheti.mm.tara1@blogger.com> raše:
Hi there, Please send me the Social signals offer that we talked about over
the phone. I`m interested and& I want to boost my SEO metrics with this new
SEO method. T#hanks again, will wait your reply.
एक तारा

 सूना सूना सा  जीवन था  ,मेरे मन की मीत  बनी तुम
तारा,तुम एकतारा बन कर ,जीवन का संगीत बनी तुम

मैं पतझड़ का सूखा तरु था ,तुम आयी तो विकसे किसलय
सुरभित हुआ हृदय का उपवन ,मेरे स्वर में आयी फिर लय
आहट  हुई मुस्कराहट की ,फिर से इन फीके  अधरों पर
फिर से मन उन्मुक्त गगन में ,लगा फड़फड़ाने ,अपने पर
हार गया मैं अपना सब कुछ ,ऐसी प्यारी जीत बनी तुम
तारा ,तुम एकतारा बन कर ,जीवन का संगीत बनी तुम

दग्ध हृदय को शीतलता दी ,और शीतल तन को दी ऊष्मा
अपना सारा प्यार उंढेला ,और  बरसा दी  तन की सुषमा
मुरझाई जीवन लतिका में ,नवजीवन संचार  हुआ फिर
एक दूजे को हुए समर्पित ,हम में इतना प्यार हुआ फिर
अब पल पल ,तुम्हारा संबल ,ऐसी जीवन रीत बनी तुम
तारा ,तुम एकतारा बन कर ,जीवन का संगीत बनी तुम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
उनयासीवें जन्मदिवस पर

स्वाद वही ताजे वाला है ,भले हो गया हूँ मैं बासी
अब भी वही जोश कायम है भले हुआ  मैं उनयासी

बचपन से दोस्त ,गए कुछ छोड़ और कुछ रंग बदले
दांत संग कुछ छोड़ गए है , काले  केश ,हुए उजले
परिवार के सब बच्ची  बच्चों , का  निज  परिवार बना  
कभी दूर का ,कभी पास का ,एक अजब व्यवहार बना
रोज भुलाता ,बीती बातें ,सारी, जो चुभ चुभ  जाती
पर दाढ़ी के बालों जैसी ,रोज सुबह फिर उग आती
मन तो उतना रसिक ना रहा ,जिव्हा पर रस की लोभी
लालायित रहती खाने को ,मीठा ,चाट ,मिले जो भी
अब ना तेजी रही चाल में ,ना ही तेजी बोली में
पड़ने फीके लगे रंग सब ,जीवन की रंगोली  में
वानप्रस्थ की उमर बिता दी ,और बना ना सन्यासी
अब भी वही जोश है कायम ,भले हुआ मैं उनयासी
 
वो ही दीवारें ,वो ही छत है ,और वैसा ही आंगन है
चहल पहल वाले घर में अब ,व्याप्त हुआ सूनापन है  
नज़रें वही ,नज़रिया लेकिन धीरे धीरे बदल  रहा
ऐसा लगता है कि जैसे ,समय हाथ से फिसल रहा
घर में हम दो ही प्राणी है ,बूढ़े ,तन से थके थके
मैं हूँ और मेरी पत्नी हम ,एक दूजे का ख्याल रखें
मन है सुदृढ़ ,भले ही तन में ,बाकी नहीं सुगढ़ता है
फिर भी ताकत है लड़ने की ,बिमारी से लड़ता है
साथ उमर के सबको ही ,करना पड़ता समझौता है
तन तो बूढा हो जाता है ,मन कब बूढ़ा होता है
भरा हुआ जीने का जज्बा  ,और उमंग अच्छी खासी
अब भी वही जोश कायम है ,भले हुआ मैं उनयासी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

रविवार, 23 अगस्त 2020

ख की खराश -खुदा से अरदास

ऐ खुदा ,ये खाखसार खादिम कब तक ख़ामोशी से
ख्यालों की दुनिया में खरामा खरामा जीता रहेगा
और ख्वामख़्वाह ख़ाली बैठा खून के घूँट पीता रहेगा
इसलिये ऐ  ख़ल्क़ के बादशाह ,मेरी ख्वाइश पूरी करवा दे
किसी ख़ास ,खूबसूरत ,खुशअदा ,खुशमिजाज ख़ातून को ,
मेरी शरीकेहयात और ख्वाबों की मलिका बनाकर भिजवा दे
जिस खुलेदिल ,खानदानी खातून की खुशामदीद मेरे जीवन को ,
खुशनुमा बना कर खुशहाली की खुशबू से महका दे
जिसकी शख्शियत की खसूसियत में मासूमियत हो
जो खुशहाल ,हमख़याल और खुशनियत हो
जो खुशपेशानी खूबसूरती का खजाना हो
जिसके मोहब्बत के खुमार में दिल दीवाना हो
जिसकी आँखों में चमक और चेहरे पर खिलखिलाहट हो
बोली में खनखनाहट और लबों पर मुस्कराहट हो
मैं  खुशनसीब ख़ुशी ख़ुशी उसकी खिदमत ,खातिरदारी ,
और ख़ुशामद में मशरूफ  रहूंगा
उसकी पूरी देख रेख कर खुदा से,
 उसकी ख़ैरख़्वाही की  दुआ मांगता रहूंगा
 
खाखसार  खादिम 'घोटू '

शनिवार, 22 अगस्त 2020

【SEAnews】Review:The baptism of the Holy Spirit (As sly as snakes and as innocent as doves)-E

SEAnews SEA Research, BLK 758 Yishun Street 72 #09-444 Singapore 760758
India Front Line Report
HOME
Greetings
Digest Classified MISC About Us Readers' Voice
右ペイン

Review:The baptism of the Holy Spirit (As sly as snakes and as innocent as doves)

 Jesus said, "The Pharisees and the teachers of the law have taken the keys of knowledge and have hidden them. They have not entered nor have they allowed those who want to enter to do so. As for you, be as sly as snakes and as innocent as doves." (Thomas 39)
      −−−−−−−−−−−−−−
Jesus, in the three of the four Gospels of the New Testament, that is, 'the Gospel of Mark,' 'the Gospel of Matthew' and 'the Gospel of Luke,' visited the Temple of Jerusalem during the Passover feast only once at the end of his missionary work. However, he, in 'the Gospel of John,' visited the temple during the Passover feast three times. So it seems that Jesus' missionary work spanned at least three years.

According to 《the Gospel of John》, Jesus made a debut to the religious society of Jerusalem with testimony of John the Baptist in Bethany (John 1:19-34) and in the next year he went up to Jerusalem and made a drastic measure, that is, made a whip out of cords, and drove all the merchants from the temple area. By the way, the Passover Feast is celebrated on the 14th or 15th day counting from the new moon of Ni-san (March–April on the Gregorian calendar). Ni-san is the first month of the Jewish calendar, it corresponds to January in the solar calendar. So even though it was the next year, it passed less than a month from his debut. Not only did Jesus step into the temple and drive away the merchants, but he boasted to the priests, who demanded of him, "What miraculous sign can you show us to prove your authority to do all this?" "Destroy this temple, and I will raise it again in three days." (John 2:13-20)
Spiritual rebirth = Restoration of 'the primitive integration'
There was a man of the Pharisees named Nicodemus. He came to Jesus at that night and said, "Rabbi, we know you are a teacher who has come from God. For no one could perform the miraculous signs you are doing if God were not with him."

In reply Jesus declared, "I tell you the truth, no one can see the kingdom of God unless he is born again."
"How can a man be born when he is old?" Nicodemus asked. "Surely he cannot enter a second time into his mother's womb to be born!"
Jesus answered, "I tell you the truth, no one can enter the kingdom of God unless he is born of water and the Spirit. Flesh gives birth to flesh, but the Spirit gives birth to spirit. You should not be surprised at my saying, 'You must be born again.' The wind blows wherever it pleases. You hear its sound, but you cannot tell where it comes from or where it is going. So it is with everyone born of the Spirit." (John 3:1-8)
It seems that Jesus revealed to Nicodemus that the 'primitive integration' is only restored through 'spiritual rebirth' or the so-called "ZaihuoXiancheng (再活现成: Resurrection)" of Zen Buddhism(禅宗).
The baptism of the Holy Spirit
Afterwards, he stayed in the Judean countryside with his disciples, and started the activity of baptizing with the Holy Spirit. But his disciples seem to have baptized the newcomers with water. (John 3:22)

Jesus then revealed the essence of "The Baptism of the Holy Spirit" in the synagogue of Capernaum, a town on the north bank of the Sea of Galilee, as follows. "I tell you the truth, unless you eat the flesh of the Son of Man and drink his blood, you have no life in you. Whoever eats my flesh and drinks my blood has eternal life, and I will raise him up at the last day. For my flesh is real food and my blood is real drink. Whoever eats my flesh and drinks my blood remains in me, and I in him. Just as the living Father sent me and I live because of the Father, so the one who feeds on me will live because of me. This is the bread that came down from heaven. Your forefathers ate manna and died, but he who feeds on this bread will live forever." Many of his disciples who heard this said, "This is a hard teaching. Who can accept it?" and left Jesus and no longer followed him. (John 6:53-66)
Three-One mysterious substance

Except for Thomas, only Nathanael and Philip could understand the words of Jesus at that time, but John, James, both the Greater and the Less, and Peter probably could not understand. According to the Gospel of Thomas, recognition of the original self as 'the children of the light' or 'the children of Father' is the realization of the Kingdom of God and it is the essence of 'the baptism of the Holy Spirit.' It seems that Thomas established this quintessence as the doctrine of 'Three-One mysterious substance (三一妙身)' during his preaching tour of India and China after Jesus' death.
The doctrine of 'Three-One mysterious substance' not only had a seismic effect on the Mahayana Buddhism movement (大乗仏教運動) that had emerged in India at that time and became the catalyst for the rise of the philosophy of Tiantai-Huayen (天台・華厳哲学) and Zen Buddhism in China but also contributed to the birth of Islam.
○Huayen philosophy

Chinese Hua-yan Buddhist Cheng-guan (澄観760-820) preached that 'Li (理reality or truth),' which is absolutely free from spatial and temporal limitations, is ever manifested in 'Shi (事appearance),' which is under spatial and temporal limitations. Another Hua-yan Buddhist Fa-zang (法蔵643-720) said, "Li does not exist without Shi, for what is pure is ever mixed, what is absolute reality is ever manifested in appearance. Shi comprises Li in its entirety, for what is mixed is ever pure. Li and Shi exist freely by themselves; yet there is no impediment between what is pure and what is mixed. As soon as one understands this, one's mind is simply and abruptly enlightened." However, in fact, few can really reach this level of intellection through such metaphysical approach. Therefore, the leading masters of Zen Buddhism, Dong-shan Liao-jie (洞山了价) and Lin-ji Yi-xuan (臨済義玄) developed their distinctive pedagogical methods or formulas, such as 'Wu Wei Pian Zheng (五位偏正: The Five Relations Between Particularity and Universality)' and 'Si Liao Jian (四料簡: Four Processes for the Liberation of Subjectivity and Objectivity)' respectively.
○Tiantai philosophy

Indian Mahayana Buddhist Nagarjuna (150?-250?) described this theory in his book "The Treatise on the Middle Way" and stated: "Dharmas (phenomena) are born of causes and conditions. I say they are thus empty. They are also called the temporary name, and that is also the truth of the Middle Way." In this world, individual events and things perceived by men through their five senses are merely provisional names given to each process of changes. Thus they are called the temporary name. And they are not substantive, so, called emptiness. However, the truth only exists as universality within individual events and things and does not exist without individual appearances. Therefore, Nagarjuna called it the truth of the Middle Way.
During Wei, Jin, and Southern and Northern Dynasties period (魏晋南北朝時代220-589 CE) of China, Hui-wen (慧文550-577), the founder of Tiantai Buddhism (天台宗), who read this verse and at once perceived the triple truth (三諦), namely, the truth of emptiness (空), the truth of temporariness (仮) and the truth of mean (中), explained as follows. "These three - emptiness, temporariness and mean - penetrate one another and are found perfectly harmonized and united. One should not consider the three truths as separate but as the perfectly harmonious three fold truth."
Aziguan (阿字観)

The main scripture of esoteric Buddhism, 'Mahavairocana Tantra (大日経),' introduces a method of meditation called 'Aziguan (or Ajikan阿字観: rite of meditating upon the Sanskrit syllable 'Ah')' as a measure of realizing 'the intrinsic self-control of human beings.'
According to it, all of the universe and human life are attributed to 'A (阿),' and 'A' is regarded as the root of all dharmas. Aziguan is none other than bodily understanding the substance of all things are 'non-occurrence' in nature. Aziguan is a religious meditation to visualize this principle.
The scripture also adds that "The content of the Aziguan can be divided into following three parts, 'Guansheng (観声),' 'Guanzi (観字)' and 'Guanshixiang (観実相).' These three parts are the methods of one mind satisfaction at the same time (一心同時具足之法). However, when beginning to learn the practice, it is often difficult to enter the mystery, so for convenience, it can be viewed separately." And it explains the key points of "Guansheng," "Guanzi" and "Guanshixiang" as follows.
(1) Guansheng (観声see sound): One makes Stipulation mudra (定印) with his hands and says "Ah (阿)" as his breath comes in and out, entrust his voice to his breath, and breathes steadily.
(2)Guanzi (観字see letter): One views a letter of the word '阿 (Ah).' One should be concentrated on it moment-to-moment and devote himself completely to the letter '阿' so that his delusion will retreat day by day.
(3)Guanshixiang (観実相see reality): One contemplates the letter of the word '阿,' the image lotus or moon to realize that everything in the universe is not born from the beginning but exists as it is.
By the way, this scripture, whose full name is "the Mahavairocana Abhisambodhi Vikurvita AdhiSthana Tantra," was translated into Chinese by Subhakarasimha (善無畏) from India and Buddhist monks of Tang Dynasty in 724 and also translated into Tibetan by Silendrabodhi and ka-ba-dpal-brtsegs in 812 but the original Sanskrit text has not been discovered. Thus, it seems to have been established in the middle of the 7th century. It is said that the founder of Japanese Shingon sect (日本真言宗), Kobo Daishi Kukai (弘法大師空海) brought it to Japan. Examples of meditation methods for training in the Shingon sect include 'Susokan (数息観),' 'Asokan (阿息観),' and 'Gachirinkan (月輪観).'

The reason why 'Ah' was regarded as the root of all dharmas is probably due to the prosperity of Jingjiao (景教Keikyo: Luminous Religion) that praised Allah (阿羅訶歟) as the eternal true lord of 'Three-One mysterious substance (三一妙身).'
When the practitioners of the Shingon sect envision the content of enlightenment, make various symbolic signs with the fingers of their hands as manifestations. These signs are called mudra (印相). If one raises his right hand to the level of his chest with the palm facing forward, that is the form of Semui-in (施無畏印) and represents bestowing fearlessness. If one sits with crossed his legs and places the palms of both his hands on top of each other in front of his belly, this gesture is specifically called Hokkaijo-in (法界定印the Dharma-realm meditation mudra), which is famous for being taken on the occasion of Zen meditation. In the case of Hokkaijo-in of the esoteric Buddhism, some time one makes a ring with his thumb and forefinger (or middle finger or ring finger). Therefore, the portraits of Jesus in a pose in which a ring is made with the ring finger and the thumb of his right hand, and the remaining three fingers are raised, known as the representative icon of the Eastern Church, seem to integrate 'Semui-in' which encourages the opponent to "don't be afraid" and 'Hokkaijo-in' which is a gesture of meditation.
As sly as snakes and as innocent as doves

Jesus said, "The Pharisees and the teachers of the law have taken the keys of knowledge and have hidden them. They have not entered nor have they allowed those who want to enter to do so. As for you, be as sly as snakes and as innocent as doves." (Thomas 39)
According to Mr. Sasagu Arai, author of the Japanese version of 《The Gospel of Thomas》, the phrase 'keys of knowledge' in the verse thirty nine of 《the Gospel of Thomas》 is almost same with parallel words in Chapter 11 verse 52 of 《the Gospel of Luke》. However, in 《the Gospel of Thomas》, 'knowledge' is singular and 'key' is plural. In 《the Gospel of Luke》, 'knowledge' is plural, and 'key' is singular. In 《the Gospel of Luke》, the knowledges to reach heaven are various, but there is only one key through those knowledges to heaven.
On the other hand, in the parallel article of Chapter 23 verse 13 of 《the Gospel of Matthew》, the part corresponding to 'the key of knowledge' is 'the kingdom of heaven.' The expression 'as sly as snakes and as innocent as doves' is almost the same as the latter half of Chapter 10 verse 16 of 《the Gospel of Matthew》 as below. "I am sending you out like sheep among wolves. Therefore be as shrewd as snakes and as innocent as doves." However, in 《the Gospel of Thomas》, this word is used in a completely different context. To Thomas, 'knowledge (Gnosis)' is the recognition of "the original self" even from the description in the verses 3 and 67 of the Gospel of Thomas. In other words, 'knowledge' is 'the kingdom of heaven' itself, and there is only one, but there are various 'keys' to reach it. Therefore, "you must find it (the key) as slyly as a snake, and return to 'the original self' obediently like a dove, in other words, to restore 'the primitive integration.' <To be continued>

What is "Baptism with The Holy Spirit"?
According to the dialectic of the Gospel of John,
【Thesis】"A man can possess eternal life through accepting testimony of the Son of man and being baptized by him." (John 5:24)
【Anti-thesis】But "The one who comes from the earth cannot accept the testimony by one from heaven." (John 3:32)
How then can a man possess eternal life?
【Synthesis】"If you want to be baptized with the Holy Spirit, you can just go back to the word which was with God in the beginning (John 1:1) and certify that God is truthful. (John 3:33)"
When he said, "You are Huichao," Zen Master Fayan thrusted vivid Self in Huichao in front of his eyes.
Purchase here



One world:AD-SEAnews
AD-SEAnews, New concept of SEAnews, aims to realize borderless one world.

Your Comments / Unsubscribe





width="200" border="0">


SEAnews Messenger


SEAnewsFacebook


SEAnews eBookstore


SEAnews world circulation


[Your Comments / Unsubscribe]/[您的意见/退订]/[ご意見/配信停止]
Please do not directly reply to the e-mail address which is used for delivering the newsletter.
请别用递送新闻的邮件地址而直接回信。
メールをお届けした送信専用アドレスには返信しないで下さい。
SEAnews 掲載記事の無断転載を禁じます。すべての内容は日本の著作権法並びに国際条約により保護されています。
Copyright 2003 SEAnews® All rights reserved. No reproduction or republication without written permission.
कोरोना काल में गणपति अभिनन्दन

ना ढोल न ताशा ना उत्सव ,ना भजन कीर्तन ना गाना
चुपचाप ,शोरगुल से बच कर ,इस बार गजानन तुम आना

हर साल लगा करती लाइन ,लम्बी दरशन को तुम्हारे
बस पल दो पल दर्शन होते ,भक्तों की भीड़भाड़ मारे
मैं अबकी बार तुम्हारे संग ,खुद  बैठ सकूंगा देरी तक
जी खोल बता मैं पाऊंगा , सुख दुःख चिंताएं मेरी सब
मूषक के कान में ना कह कर ,सब हाल है सीधे बतलाना
चुपचाप शोरगुल से बच कर ,इस बार गजानन तुम आना

दस दिन तक विरह पीड़ सहते ,हर बार अकेले तुम आते
इस बार रिद्धि और सिद्धि संग ,आना ,खुश रहना ,मुस्काते
हर साल बना अपने हाथों ,मे  तुम्हे चढ़ाता था मोदक
बंट जाते थे परशाद रूप ,वो पहुँच न पाते थे तुम तक
इस बार चढ़ाऊँ जब मोदक ,नित बड़े प्रेम से तुम खाना
चुपचाप ,शोरगुल से बच कर ,इस बार गजानन तुम आना

मदन मोहन बाहेती ;घोटू '

शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

क्षणिकाएं

प्यार

तुम्हारे प्रति मेरा प्यार
वैसा ही है जैसे दाढ़ी के बाल
कितना ही करलो ;शेव '
रोज प्रकट होकर रहते है 'सेव '

जाल
 
पत्नियाँ ,अपने पति के आसपास ,
बुन लेती है एक  ख़ास
रूप का ,प्यार का ,मोहमाया का जाल
उसे तोड़ कर निकल जाय ,
नहीं है किसी पति की मजाल

भाग्य

किसी के पीछे मत भागो ,
चाहे लड़की हो ,चाहे पैसा आपको लुभाएगा
क्योंकि वो अगर आपके भाग्य  में है ,
तो भाग कर अपनेआप आपके पास आएगा

मित्र
 
जो आपके अच्छे दिनों में ,
आपके लिए सर के बल आने का करते है गरूर
वो आपके बुरे दिनों में ,
उलटे पैरों भाग जाते है आपसे दूर
सच्चे मित्र ,हर हाल में ,आपके साथ चलते है ,
आपका हाथ थामे नजर आते है जरूर

संतुलन

अनावृष्टी
सूख फैलाती है
 दुर्भिक्ष और कंगाली लाती है
अतिवृष्टी ,
बाढ़ का कहर ढाती है ,
परेशानी और बदहाली लाती है
संतुलित बरसात ही ,
प्यास  बुझाती  है
जीवन में खुशहाली  लाती है

संस्कार

संस्कार ,
आटे की गोल चपाती की तरह होते है
जो संस्कृति के अनुसार
कहीं परांठा
कहीं डोसा
कहीं पैनकेक
और कहीं पिज़्ज़ा कहलाते है
और प्रचलन के अनुसार सब्जी को ,
कहीं अलग से
कहीं भीतर भर कर ,
कहीं ऊपर छिड़क कर खाये जाते है

घोटू  
ख्वाइश

ऐ खुदा ,ये खाखसार खादिम कब तक ख़ामोशी से
ख्यालों की दुनिया में खरामा खरामा जीता रहेगा
और ख्वामख़्वाह ख़ाली बैठा खून के घूँट पीता रहेगा
इसलिये ऐ  ख़ल्क़ के बादशाह ,मेरी ख्वाइश पूरी करवा दे
किसी ख़ास ,खूबसूरत ,खुशअदा ,खुशमिजाज ख़ातून को ,
मेरी शरीकेहयात और ख्वाबों की मलिका बनाकर भिजवा दे
जिस खुलेदिल ,खानदानी खातून की खुशामदीद मेरे जीवन को ,
खुशनुमा बना कर खुशहाली की खुशबू से महका दे
जिसकी शख्शियत की खसूसियत में मासूमियत हो
जो खुशहाल ,हमख़याल और खुशनियत हो
जो खुशपेशानी खूबसूरती का खजाना हो
जिसके मोहब्बत के खुमार में दिल दीवाना हो
जिसकी आँखों में चमक और चेहरे पर खिलखिलाहट हो
बोली में खनखनाहट और लबों पर मुस्कराहट हो
मैं  खुशनसीब ख़ुशी ख़ुशी उसकी खिदमत ,खातिरदारी ,
और ख़ुशामद में मशरूफ  रहूंगा
उसकी पूरी देख रेख कर खुदा से,
 उसकी ख़ैरख़्वाही की  दुआ मांगता रहूंगा
 
खाखसार  खादिम 'घोटू '

सोमवार, 17 अगस्त 2020

समोसा

प्रकृति ने तीन मौसम बनाये है
एक ग्रीष्म ,एक सर्दी और एक बरसात
पर इंसान ने बनाई है एक ऐसी चीज ,
जो तीनो मौसम का अहसास ,
कराती हो एक साथ
गरम हो तो लगे सुहानी
सर्दी में बहुत मन को लुभानी
जिसे जब भी देखो ,मुंह में आ जाए पानी
जिसको गरम गरम पाने के लिए ,
लोग लाइन लगाए रहते है
ऐसे हर ऋतू में सर्वप्रिय और
सर्वश्रेष्ट व्यंजन को लोग समोसा कहते है
श्वेताम्बर में लिपटा हुआ
सारी दुनिया का स्वाद अपने में समेटा हुआ
जब सांसारिक अनुभूतियों के उबलते तेल में
भातृभाव के साथ ,सपरिवार
तला जाता हुआ जब नज़र आता है यार
तो उसकी सोंधी सोंधी सुगंध  
हमारे नथुनों में भरती है  जो आनंद
उसके आगे नंदन वन की महक
 भी फीकी पड़ जाती है
क्योंकि यह खुशबू ,न सिर्फ मन को सुहाती है ,
बल्कि मुंह में पानी भी भर लाती है
समोसे से सुन्दर रूप में एक बात ख़ास है
इसके तीनो कोनो में त्रिदेव का वास है
ऐसा लगता है ब्रह्मा ,विष्णु और महेश
का एक साथ हो रहा हो अभिषेक
इसका तीन कोने लिया हुआ आकार
करवा देता है तीनो लोको  का साक्षत्कार
जब  गरम गरम समोसा ,
खट्टी मीठी चटनी के साथ मुंह में जाता है
भूलोक आकाश और पाताल ,
तीनो लोको के सुख का आभास हो जाता है
बाहरी सतह का करारापन
और उसके अंदर आत्मा का चटपटापन
स्वर्गिक  सुख का अनुभव साकार कर देता है
आँखों में तृप्ति की चमक भर देता है
संगीत के सातों स्वर का संगम समोसे में होता है
सरगम स से शुरू होती है ,
बीच में म ,और अंत में सा होता है
वैसे ही समोसे के शुरू में स ,बीच में म
और अंत में होता है सा
याने कि स्वाद के संगीत की सरगम है समोसा
दुनिया के कोने कोने में,
 ये तिकोने सलोने समोसे पाए जाते है
और किसी न किसी रूप में ,
बड़े ही चाव से खाये जाते है
जैसे इंसान ,भगवान की सर्वोत्तम कृति है
वैसे ही समोसा ,इंसान की सर्वोत्तम कृति है
वो चीज जिसे देख कर मुंह में पानी भर जाए
जिसे पाने की लालसा जग जाए
जो बाहर से करारी और अंदर से स्वाद हो
जिसे खाकर मन को मिलता आल्हाद हो
वो या तो हो सकता है किसी सुंदरी का बोसा
या फिर ताज़ा गरम गरम समोसा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
दसवां रस

रसीली आँखे हमे लुभाती है
रसीले अधर हमे ललचाते है
हम सब रसिक हृदयवाले है ,
रूप रस में डूबे चले जाते है
नवरसों के जाल में हमने
जिंदगी को उलझा कर रखा है  
पर उस दसवें रस की बात नहीं करते ,
जिसे हम रोज करते चखा है
जिसके बिना जिंदगी फीकी है ,
नीरस है  बेमानी है
वो रस जो आँखों में चमक
 और मुंह में लाता पानी है
वो रस जिसमे मधुरता है ,मिठास है
वो रस जो  हमारी जिंदगी में ख़ास है
वो रस जिसके लिए हमेशा ,
मन में दीवानगी रहती बनी है
जिव्हा को तृप्त करता वह रस चासनी है
ये चासनी वाला रस ,सबको सुहाता है
बेसन की बूंदियों को मोतीचूर बनाता है
टेढ़ीमेढ़ी जलेबी ,तले हुए खमीर का
एक फीका सा जाल है
पर ये रस ,जब उसकी आत्मा में प्रवेश होता है ,
तो कर देता कमाल है
उसे रसभरी ,स्वादिष्ट ,लज़ीज
मनमोहिनी जलेबी बना देता है
हर कोई रीझ जाए ,इतना स्वाद ला देता है
चासनी रुपी यह रस गजब करता है
इमरती में अमृत भरता है
गुलाबी रंग के गोलगोल गुलाबजामुन ,
जब चासनी में अठखेलियां करते नज़र आते है
कितनो के ही मुंह में पानी भर लाते है
फटे हुए दूध की गोलियां, जब इसमें स्नान करती है
तो उनके रूप और स्वाद की गरिमा निखरती है
इस रस को पीकर इतनी इठलाती है
कि स्वाद भरा रसगुल्ला बन जाती है
चमचम कहो या राजभोग
चाहने लगते  है सब लोग
मैदे की तली हुई बाटी ,
जब इस रस में रम जाती है
शहंशाही अंदाज से बालूशाही कहलाती है
खोखले जालीदार घेवर
इस रस को पीकर ,दिखलाने लगते है तेवर
रसभीने मालपुवे ,कमाल के नज़र आते है
सबके मन को ललचाते है
शकर को पानी में गला ,
प्यार की ऊष्मा से बनाई गयी ये चाशनी
होती है स्वाद की धनी
खुशबू और रंग मिलालो शर्बत बन जाती है
गर्मी में गले को तर करती हुई ठंडक लाती है
दुनिया के सारे रस
इस रस के आगे है बेबस
क्योंकि जो तृप्ति और स्वाद इसमें आता है
अन्यत्र कही नहीं पाया जाता है
चासनी महान है
मिष्ठानो की जान है
हे रसीली ,मुंह में पानी लाती हुई सुंदरी ,
तुम्हे रसिक रसप्रेमी 'घोटू' का प्रणाम है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
नयी पीढ़ी का पुरानी पीढ़ी को सन्देश

ये दादा दादी भी अजीब चीज होते है
बार बार हमें ये अहसास दिलाते रहते है ,
कि हम उनके पोती या पोते है
जब हम छोटे थे ,उन्होंने हमारे वास्ते ,
ये किया था ,वो किया था दम  भरते है
बार बार हमें अपना अपनापन दिखा कर ,
भावात्मक रूप से 'एक्सप्लॉइट 'करते है
जब कभी मिलते है ,'सेंटीमेंटल 'हो जाते है
हमें छोटा सा बच्चा समझ कर प्यार जताते है
अरे भाई माना कि परिवार में सबसे बुजुर्ग आप है
आप हमारे बाप के भी बाप है
हमारे बचपन में आपने हमें संभाला था ,
खिलाया था ,हमारे नखरे उठाये थे
हमारे लिए आप घोड़े बने थे
और रहते घंटों गोदी में उठाये थे
ठीक है आपने बहुत कुछ किया ,
पर उस समय ये आपका फर्ज बनता था
जो आपने प्रेम से निभाया था
पर हमारी प्यारी प्यारी बचपन की
हरकतों का सुख भी तो आपने ही  उठाया था
ऐसा कोई बड़ा अहसान भी तो नहीं किया था ,
ये तो हर दादा दादी करते है और करते आ रहे है
आप ये क्यों भूल जाते है कि ये हम ही तो है ,
जो आपकी वंशबेल को आगे बढ़ा रहे है
अब हम बढे हो गए है ,समझदार हो गए है
और  हम अपने दिल की मानते है
हमे क्या करना है और क्या नहीं करना है
,ये हम अच्छी तरह जानते है
और आप चाहते है कि हम उसी रास्ते पर चले ,
जिस पर आप चलते आये उम्र भर है
तो ये तो हो नहीं सकता क्योंकि ,आपकी
और हमारी सोच में ,पीढ़ियों का अंतर् है
जमाना कहाँ  से कहाँ पंहुच गया है और
आप वही पुराने ढर्रे पर अटके हुए है
और हमारे आधुनिक विचारों पर ,
हमे कहते कि हम भटके हुए है
आप तो बड़े धार्मिक है और करते रहते है
भगवान कृष्ण की लीलाओं का गुणगान
बचपन में नन्द यशोदा ने उनपर कितना
प्यार लुटाया था ,अपना बेटा मान
पर बड़े होकर जब हो मथुरा गए ,
तो क्या रखा था नन्द यशोदा का ज़रा भी ध्यान
तो ये तो दुनिया की रीत है ,चक्र है ,
ऐसा ही चलता है और चलता ही रहेगा
आज की पीढ़ी का व्यवहार देख ,
पुरानी पीढ़ी का दिल जलता ही रहेगा
तो दादा दादी प्लीज ,जितनी भी जिंदगी बची है ,
अपने ढंग से आराम से बिताओ
हम पर अपने विचार मत थोंपो और
हमे 'सेंटिमेंटली एक्सप्लॉइट 'कर ,
अपना जिया मत जलाओ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

शनिवार, 15 अगस्त 2020

फूलबदन पत्नी

कल रात पलंग हिला झट से ,मैं उठ बैठा था घबराया
मुझको कुछ ऐसा लगा कहीं भूकंप नहीं कोई आया
मैंने उठ इधर उधर देखा ,डर मारे हालत पतली थी
मालूम बाद में मुझे हुआ ,ये उनने करवट बदली थी

मैं  बोला लड्डू लाओ जरा ,वो बोली चूहे चाट गए
मै बोला इस घर में चूहे ,मुझको न दिखाई कभी दिए
वो बोली कि घर में ना ,चूहे थे मेरे पेट में दौड़ रहे
थी भूख लगी लड्डू स्वाद ,जिव्हा  पर काबू कहाँ रहे

तुमने मेरे पीछे पड़ पड ,करदी ये खड़ी मुसीबत है
कहते थे घूमो ,हवा खाओ ,तो अच्छी रहती सेहत है
भरने से हवा जिस तरह से ,फ़ुटबाल फूलती गोलमोल
वैसे ही खा खा करके हवा ,फूला है मेरा डीलडौल

घोटू  
 

गुरुवार, 13 अगस्त 2020

कैसे मनायें पंद्रह अगस्त

कोरोना ने कर दिया त्रस्त
सारा जीवन है अस्तव्यस्त
इस परिस्तिथि में तुम्ही कहो ,
कैसे मनायें पंद्रह अगस्त

यह आजादी का पुण्यपर्व ,
हम कैद मगर बैठें है घर
ले सकते खुलकर सांस नहीं ,
पट्टी है बंधी हुई मुंह पर
प्रतिबंध लगे इतने हम पर ,
हम बुरी तरह हो गए पस्त
इस परिस्तिथि में तुम्ही कहो ,
कैसे मनायें पंद्रह अगस्त

कंधे से कंधा मिला साथ ,
ना चल सकते ,ना करे काम
कम से कम दो गज दूरी की ,
है लगी हुई हम पर लगाम
सब मेलजोल अब बंद हुआ ,
भाईचारा हो गया ध्वस्त
इस परिस्तिथि में तुम्ही कहो
कैसे मनाये पंद्रह अगस्त

ना समारोह ,कोई उत्सव ,
ना खेलकूद की आजादी
हो गए दबा सा ,घुटन भरा ,
जीवन जीने के हम आदी
त्योंहार ,धार्मिक पर्वों पर ,
भी पाबंदी है जबरजस्त
इस परिस्तिथि में तुम्ही कहो ,
कैसे मनायें पंद्रह अगस्त

एक तरफ चीन है उत्तर में ,
झगड़ा करने ,बैठा तैयार
एक तरफ पाक के आतंकी ,
घुसपैठ कर रहे बार बार
दंगों से बाज नहीं आते ,
घर में बैठे फिरकापरस्त
इस परिस्तिथि में तुम्ही कहो ,
कैसे मनाये पंद्रह अगस्त

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधवार, 12 अगस्त 2020

खुल कर बोलो

जो भी बोलो ,खुल कर बोलो ,लेकिन तुम सोच समझ बोलो
अपने मन की गांठे खोलो  ,पर पोल किसी की मत खोलो
क्योंकि कुछ बाते दबी हुई ,चिंगारी दबी राख जैसी
जब खुलती ,आग लपट बन कर ,कर देती ऐसी की तैसी
तुम जब भी अपना मुख खोलो ,तो बस इतना सा ख्याल रखो
सच कड़वा होता ,चुभता है ,अपनी  जुबान संभाल रखो
सबके जीवन में भला बुरा ,कितना संचित ही होता है
हो खुली किताब तरह जीवन ,ऐसा किंचित ही होता है
मुंहफट,खुल, कहनेवालों के,होते कम दोस्त शत्रु ज्यादा
क्या कहना ,क्या ना कहना है ,रखनी पड़ती है मर्यादा
मन का खुल्लापन अच्छा है ,यदि सोच समझ कर बात कही
शालीन हमारी संस्कृति है ,तन का खुल्लापन  ठीक नहीं
जब खुली हवा में हम सासें लेते है ,बहुत सुहाता है
खुल्ला नीला सा आसमान ,सबके ही मन को भाता है
तुम अगर किसी से प्रेम करो ,मत रखो दबा ,कहदो खुल कर
शरमा शरमी में कई बार ,हाथों से बाज़ी ,जाय फिसल
मन में मत घुटो ,साफ़ कह दो ,इससे मन होता है हलका
मन में जब ना रहता गुबार ,छलहीन प्रेम करता छलका
जी खोल  प्रशंसा करो खूब ,हर सुन्दर चेहरे वाले की
होती   अक्सर तारीफ बहुत , तारीफें करने  वाले की  
खुल कर पत्नी से प्यार करो ,पर रहे ध्यान में एक बात
इतनी आजादी मत  देना ,कि करे खर्च वह खुले हाथ
खुलना है अच्छी बात मगर ,ज्यादा खुलना बेशरमी है
खुल्ले हाथों कर दान पुण्य ,हम तर जाते बेतरणी  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
भजन

प्रभु आपके प्रेम में ,पागल मैं ,पगले से प्यार करोगे क्या
मैं फंसा हुआ मझधार मेरा ,तुम बेडा पार करोगे  क्या
नारायण नाम पुकार रहा हूँ दुष्ट अजामिल के जैसा ,
गज हूँ मैं ,ग्राह के चंगुल में ,मेरा उद्धार करोगे क्या
मैं  कुब्जा सा टेड़ा मेढा ,निकली मोह माया की कूबड़ ,
तुम मुझको ठोकर एक मार ,मेरा उपचार करोगे क्या
मैं छल की मारी अहिल्या सा ,निर्जीव शिला बन पड़ा हुआ ,
निज चरणों की रज से छूकर ,मेरा उद्धार करोगे क्या
मैंने शबरी से चख चख कर ,कुछ बैर रखे है चुन चुन कर ,
जूठे है ,लेकिन मीठे है ,इनको स्वीकार  करोगे क्या
हे नाथ,अनाथ मैं अज्ञानी, भोग और विलास में डूब रहा ,
अब आया शरण आपकी हूँ ,भवसागर पार करोगे क्या

मदन मोहन बाहेती'घोटू '
मैं रणछोड़

शुरू शुरू में गरम खून था, बहुत जोश उत्साह भरा था
मन में एक गलतफहमी थी ,जो मैं सोचूँ ,वही खरा था
चमचागिरी नहीं करता था, ना आती थी मख्खनबाजी
मेरे इस व्यवहार के कारण ,रहती थी सबकी नाराजी
सच को सच कहने चक्कर में ,सबसे उलझ उलझ जाता था
लोग मुझे झगड़ालू कहते ,पर क्यों समझ नहीं आता था
मेरे अड़ियल 'एटीट्यूड 'के ,कारण मुझसे सब चिढ़ते थे
बात बात में तू तू मैं मैं ,होती ,मुझसे आ भिड़ते थे
बिना वजह से पाल लिया करता था कितनो से ही अनबन
कार्यकुशल था ,लेकिन फिर भी ,होता मेरा  नहीं प्रमोशन
शुभचिंतक एक मित्र मिल गए ,उनने मुझको जब समझाया
रहो रोम में रोमन  बन कर  ,'यस सर 'का  जादू बतलाया  
मैंने उनकी बात मान ली ,बदला अपना  तौर तरीका
तौबा अड़ियलपन से कर ली , मख्खनबाजी करना सीखा
जब से मैंने छोड़ दिया रण ,खुशियों की बरसात हो रही
खूब प्रमोशन मुझे मिल रहे ,किस्मत मेरे साथ हो रही
घर पर भी बीबी से अक्सर ,रोज रोज होता झगड़ा था
वो कहती  मेरी मानो ,मैं ,जिद पर रहता सदा अड़ा था
वही पालिसी ऑफिस वाली ,घर पर पत्नी संग अपनाई
छोड़ा युद्ध ,कर दिया सरेंडर ,जीवन में फिर खुशियां छाई
प्यार बढ़ा पत्नी का दूना ,अब न रूठना और मनाना
सुख शांति का मूलमंत्र है ,बन रणछोड़ ,प्यार फैलाना
छोड़ा रण श्री कृष्ण चंद्र ने ,जबसे वो रणछोड़ कहाये
बने द्वारिकाधीश ,शांति से ,बाकी जीवन वहीँ  बिताये
इसीलिये  मेरे प्रिय मित्रों ,सबको मेरी , यह  सलाह है
मत झगड़ो,रणछोड़ बनो तुम ,सच्चे सुख की यही राह है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

सोमवार, 10 अगस्त 2020

रणछोड़ कृष्ण

गोकुल छोड़ा ,गोपी छोड़ी और नन्द यशोदा को छोड़ा
जिसके संग नेह लगाया था ,उस राधा का भी दिल तोडा
खारे सागर का तट भाया ,मीठी यमुना के छोड़ घाट
और बसा द्वारका राज किया ,छोड़ा मथुरा का राजपाट
रबड़ी छोड़ी ,खुरचन छोड़ी ,पेड़े छोड़े ,छोड़ा माखन
ढोकले ,फाफड़े मन भाये ,तज दिए भोग तुमने छप्पन
उत्तर भारत की राजनीति में चक्र तुम्हारा था चलता
और युद्ध महाभारत के भी ,तुम्ही तो थे करता धरता
तुमने गीता का ज्ञान दिया और पूजनीय ,सिरमौर बने
पर जब उत्तर भारत छोड़ा ,रण छोड़ दिया ,रणछोड़ बने
उत्तर की संस्कृति को तुमने ,पश्चिम में जाकर फैलाया
गौ प्रेम तुम्हारा गोकुल का ,गुजरात के घर घर में छाया
जो प्रेम भाव तुमने सीखा ,बचपन में गोपी ,राधा से
गुजरात में जाकर सिखा दिया,तुमने सबको मर्यादा से
वह महारास वृन्दावन का ,बन गया डांडिया और गरबा
कहती है नमक को भी मीठा ,इतनी शांति प्रिय है जनता
यह तुम्हारा रणछोड़ रूप ,है प्रेम ,शांति का ही प्रतीक
घर घर में इसी रूप में तुम ,पूजे जाते  द्वारिकाधीश

मदन मोहन बाहेती ;घोटू '  
आधुनिक सुदामा चरित्र 
( ब तर्ज नरोत्तमलाल )

१ 
मैली और कुचैली ,ढीलीढाली और फैली ,
 कोई बनियान जैसी वो तो पहने हुए ड्रेस है 
जगह जगह फटी हुई ,तार तार कटी हुई ,
सलमसल्ला जीन्स जिसमे हुई नहीं प्रेस है 
बड़ी हुई दाढ़ी में वो दिखता अनाडी जैसा ,
लड़की की चोटियों से ,बंधे हुए  केश है 
नाम है सुदामा ,कहे दोस्त है पुराना ,
चाहे मिलना आपसे वो ,करे गेट क्रेश है 
२ 
ऑफिस के बॉस कृष्णा,नाम जो सुदामा सुना ,
याद आया ये तो मेरा ,कॉलेज का फ्रेंड था 
सभी यार दोस्तों से ,लेता था उधार पैसे ,
मुफ्त में ही मजा लेना ,ये तो उसका ट्रेंड था 
लोगों का टिफ़िन खोल ,चोरी चोरी खाना खाता ,
प्रॉक्सी दे मेरी करता ,क्लास वो अटेंड था 
पढ़ने में होशियार ,पढ़ाता था सबको यार ,
नकल कराने में भी ,एक्सपीरियंस हेंड था 
३ 
कृष्ण बोले चपरासी से ,जाओ अंदर लाओ उसे ,
और सुनो केंटीन से ,भिजवा देना ,चाय  दो 
सुदामा से कृष्ण कहे ,इतने दिन कहाँ रहे ,
व्हाट्सएप,फेसबुक पर,कभी ना दिखाय  दो 
फ्रेण्डों के फ्रेंड कृष्ण ,सुदामा से करे प्रश्न ,
थके हुए लगते हो, थोड़ा  सा सुस्ताय लो 
होकर के इमोशनल ,कृष्ण बोले माय डीयर,
भूखे हो ,पिज़ा हम,मंगवा दें,खाय  लो 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
ये लोग किसलिए जलते हैं

ये लोग किसलिए जलते है
इर्षा के मारे तिल तिल जल ,
मन ही मन बहुत उबलते है
ये लोग किसलिए जलते है

कोई जल कर होता उज्जवल ,
बन कर भभूत ,चढ़ता सर पर
कोई जल कर बनता काजल ,
नयनो में अंज, करता सुन्दर  
कोई जल कर दीपक जैसा ,
फैलता जग भर  में प्रकाश
तो कोई शमा जैसा जलता ,
परवानो का करता  विनाश
हो पास नहीं जिसका प्रियतम ,
वह विरह आग में जलता है
भोजन को पका ,पेट भरने ,
घर घर में चूल्हा जलता है
कोई औरों की प्रगति देख ,
जलभुन कर खाक हुआ करता
कोई  गुस्से में गाली दे ,
जल कर गुश्ताख हुआ करता
कोई की प्रेम प्रतीक्षा में ,
जलते आँखों के दीपक है
होते सपूत है जो बच्चे ,
वो कहलाते कुलदीपक है
मनता दशहरा,जला रावण ,
दीपावली  , दीप जलाते  है
होली पर जला होलिका को,
हम सब त्यौहार मनाते है
पूजा में दीप आरती में ,
करते जब हवन ,जले समिधा
माँ  के मंदिर में ज्योत जले ,
मातारानी, हरती दुविधा
जलना संस्कृति का अभिन्न अंग ,
काया जलती ,जब मरते है
ये लोग इसलिए जलते है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '         

रविवार, 9 अगस्त 2020

देवी वंदन

मैंने जब जब भी कहा तुम्हे ,लक्ष्मी ,तुम दौड़ी आयी और ,
श्रद्धा से सेवाभाव लिए ,तुम लगी दबाने पैर  मेरे
जब तुम्हे पुकारा सरस्वती ,तुम आ जिव्हा पर बैठ गयी ,
अपनी तारीफ़ में लिखवाये ,कविता और गीत बहुतेरे
जब अन्नपूर्णा मैं बोला ,मुझको स्वादिष्ट मिला भोजन ,
हो गयी  तृप्त  मेरी काया ,ढेरों मिठाई ,पकवान मिले
गलती से दुर्गा कभी कहा ,तुमने दिखलाये निज तेवर ,
हो गयी खफा और कह डाले ,मन के सब शिकवे और गिले
तुम सती साध्वी सीता सी ,मेरे संग संग ,भटको  वन वन ,
तुमको न अकेली मैं छोड़ूँ ,मुझको लगता डर रावण का
लेकिन मेरे मन को भाता ,वह रूप राधिका का ज्यादा ,
वह प्यार ,समर्पण ,छेड़छाड़ ,वह मधुर रास वृन्दावन का
मैं गया भूल गोकुल गलियां ,माखन की मटकी गोपी की ,
जब से रुक्मणि के संग बंधा ,रहना पड़ता अनुशासन में
तुम ही लक्ष्मी ,तुम सरस्वती ,मेरी अन्नपूर्णा  देवी तुम ,
तुम प्यार लुटाती सच्चे मन ,और सुख सरसाती जीवन में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
तुम मेरी प्रियतम

तुम पूनम के चंदा जैसी ,अमृत बरसाती चंद्र किरण
प्राची की लाली से प्रकटी ,सूरज की रश्मि, प्रथम प्रथम
तुम्हारा प्रेम प्रकाश पुंज ,आलोकित करता है जीवन
मनभावन और मनोहर तुम ,सुन्दर ,सुंदरतर ,सुन्दरतम

है गाल गुलाब पंखुड़ियों से ,रस भरे अधर, रक्तिम रक्तिम
है कमलकली अधखुले नयन ,मदमाता सा चम्पई बदन
है पूरा तन रेशम रेशम ,और महक रहा चन्दन चन्दन
हो रही पल्ल्वित पुष्पों सी ,कोमल ,कोमलतर ,कोमलतम

 उर में है युगल कलश अमृत ,संचित पूँजी यौवन धन की
पतली डाली,कमनीय कमर,निखरी निखरी छवि है तन की
हिरणी सी चपल चाल ,मनहर ,और चंचल चंचल सी चितवन
मन के कण कण में बसी हुई ,तुम मेरी प्रिय ,प्रियतर,प्रियतम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

शनिवार, 8 अगस्त 2020

मंहगा सोना

कमजोरी हर नारी मन की
यह चाहत स्वर्णाभूषण की
पहनो मुख पर आती रौनक
बढ़ती उसकी जा रही चमक
है भाव रोज ऊपर  चढ़ता
सोना कितना  मंहगा पड़ता

स्कूल के दिन है याद हमें
शैतानी वाला स्वाद हमें
कक्षा  में बोअर होते थे
पिछली  बेंचों पर सोते थे
पकडे ,मुर्गा बनना पड़ता
सोना कितना  मंहगा पड़ता

हम दफ्तर में थे थक जाते  
लोकल ट्रेनों से घर जाते
थक कर झपकी ले लेते हम
छूटा करता था स्टेशन
फिर लौट हमें आना पड़ता
सोना कितना मंहगा पड़ता

निज देश प्रेम करने जागृत
एक सेमीनार था आयोजित
 मंच  पर बैठे थे मंत्री जी
लग गयी आँख ,आयी झपकी
पेपर में फोटू जब छपता
सोना कितना मंहगा पड़ता

कर बचत  गरीब कामवाली
ले आयी सोने की बाली  
पहनी जिस दिन था त्योंहार
ले गए छीन कर झपटमार
कट गए कान ,सिलना पड़ता
सोना कितना मंहगा पड़ता

है चार माह भगवन सोते
शुभ कार्य नहीं कोई होते
मुहूरत अटका देता  रोडे
तड़फा करते ,प्रेमी जोड़े
जब इन्तजार करना पड़ता
सोना कितना मंहगा पड़ता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कम्प्यूटर हृदया प्रिया से  

हे कम्यूटर ह्रदय प्रीमिका ,सच्चे दिल से तुम्हे शुक्रिया
मुझे दोस्तों से 'कट 'करके अपने दिल में 'पेस्ट 'कर लिया
नम्र निवेदन इतना ,मुझको ,'शेयर 'फॉरवर्ड 'मत करना
अपने दिल की 'मेमोरी 'में ,'सेव 'इसे तुम कर के रखना

घोटू 
कोरोना काल -बुरा हाल
         दो छक्के

पत्नीजी थी डाटती ,जोर जोर चिल्लाय
पतिदेव का कर रही थी वो 'भेजा फ्राय '
थी वो 'भेजा फ़्राय' ,पति चुप ,डरता डरता
बेचारा कुछ करता भी ,तो वो क्या करता
बोला चुप हो ,बंद करो ,चिल्लाना ,रोना
'मास्क 'बाँध लो,नहीं कहीं हो जाय कोरोना

कोरोना के  कहर  से , घर घर फैला क्लेश
कम्पित है और दुखी है ,दुनिया का हर देश
दुनिया का हर देश , दुष्ट है यह महामारी
 मंदिर बनता  राम ,हरो अब  विपदा भारी
जैसे रावण  मारा , इसको  भी मरवा  दो
जल्दी इसका 'राम नाम सत्य 'तुम करवा दो

घोटू 

गुरुवार, 6 अगस्त 2020

रोमांटिक ओल्ड कपल
-------------------------

खुश रह मस्ती से काट रहे ,ढलते जीवन का एक एक पल
हम है रोमांटिक ओल्ड कपल

ऊँगली में फंसा उंगलिया हम ,घूमा करते जब था यौवन
अब बने सहारा एक दूजे का ,ऊँगली पकड़ चल रहे हम
रजनी से काले केशों में ,सूरज सी  श्वेत चमक  आयी
है नयन कमल से खिले हुए ,पर पखुड़ी पखुड़ी मुरझाई
जीवन सरिता कल कल बहती ,मालूम नहीं क्या होगा कल
खुश हो मस्ती में काट रहे ,ढलते जीवन का एक एक पल
हम है रोमांटिक ओल्ड कपल

हममें आपस में तालमेल  ,मिलते जुलते विचार सदा
हम जिम्मेदारी मुक्त हुए , सबसे अच्छा व्यवहार सदा
सन्तुष्ट सरल अब जीवन है ,ना बची कोई फरमाइश है
जब तक जिन्दा है साथ रहे ,बस इतनी सी ही ख्वाइश है
यह जीवन सफर काट दें हम बन एक दूसरे का संबल
खुश रह मस्ती में काट रहे ,ढलते जीवन का एक एकपल
हम है रोमांटिक ओल्ड कपल

बातें एक दूजे के मन की ,हम समझा करते बिन बोले
कोई दुराव छिपाव  नहीं , है खुली किताब,बहुत भोले  
होती रहती है उंच नीच , सुख दुःख आते जाते रहते
लेकिन मन में उत्साह लिए ,हम हँसते हँसते ,सब सहते
है अब भी वही दिवानापन ,हम एक दूसरे प्रति पागल
खुश रह मस्ती में काट रहे ,ढलते जीवन का एक एक पल
हम है रोमांटिक ओल्ड कपल

मदन मोहन बाहेती ;घोटू ;

बुधवार, 5 अगस्त 2020

fw: put ranks down for any website

negative seo that works
http://www.str8-creative.io/product/negative-seo-service/

Do you have competitors that don`t play fair in terms of SEO? Then why
should you? Hire us and we`ll do a negative SEO campaign and destroy your
competition by building the worse possible backlinks towards their sites and
keywords.

Sign up with us today
Str8 Creative Team

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-